[1] अग्निमीळ इति नवर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाअग्निर्गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:1}{अनुवाक:1, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
अ॒ग्निमी᳚ळेपु॒रोहि॑तं¦य॒ज्ञस्य॑दे॒वमृ॒त्विज᳚म् | होता᳚रंरत्न॒धात॑मम् || 1 || वर्ग:1 |
अ॒ग्निःपूर्वे᳚भि॒रृषि॑भि॒¦रीड्यो॒नूत॑नैरु॒त | सदे॒वाँ,एहव॑क्षति || 2 || |
अ॒ग्निना᳚र॒यिम॑श्नव॒त्¦पोष॑मे॒वदि॒वेदि॑वे | य॒शसं᳚वी॒रव॑त्तमम् || 3 || |
अग्ने॒यंय॒ज्ञम॑ध्व॒रं¦वि॒श्वतः॑परि॒भूरसि॑ | सइद्दे॒वेषु॑गच्छति || 4 || |
अ॒ग्निर्होता᳚क॒विक्र॑तुः¦स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः | दे॒वोदे॒वेभि॒राग॑मत् || 5 || |
यद॒ङ्गदा॒शुषे॒त्व¦मग्ने᳚भ॒द्रंक॑रि॒ष्यसि॑ | तवेत्तत्स॒त्यम᳚ङ्गिरः || 6 || वर्ग:2 |
उप॑त्वाग्नेदि॒वेदि॑वे॒¦दोषा᳚वस्तर्धि॒याव॒यम् | नमो॒भर᳚न्त॒एम॑सि || 7 || |
राज᳚न्तमध्व॒राणां᳚¦गो॒पामृ॒तस्य॒दीदि॑विम् | वर्ध॑मानं॒स्वेदमे᳚ || 8 || |
सनः॑पि॒तेव॑सू॒नवे¦ऽग्ने᳚सूपाय॒नोभ॑व | सच॑स्वानःस्व॒स्तये᳚ || 9 || |
[2] वायवायाहीति नवर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाः आद्यतृचस्यवायुः द्वितीयतृचस्येंद्रवायू तृतीयतृचस्यमित्रावरुणौगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:2}{अनुवाक:1, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
वाय॒वाया᳚हिदर्शते॒¦मेसोमा॒,अरं᳚कृताः | तेषां᳚पाहिश्रु॒धीहव᳚म् || 1 || वर्ग:3 |
वाय॑उ॒क्थेभि॑र्जरन्ते॒¦त्वामच्छा᳚जरि॒तारः॑ | सु॒तसो᳚मा,अह॒र्विदः॑ || 2 || |
वायो॒तव॑प्रपृञ्च॒ती¦धेना᳚जिगातिदा॒शुषे᳚ | उ॒रू॒चीसोम॑पीतये || 3 || |
इन्द्र॑वायू,इ॒मेसु॒ता¦,उप॒प्रयो᳚भि॒राग॑तम् | इन्द॑वोवामु॒शन्ति॒हि || 4 || |
वाय॒विन्द्र॑श्चचेतथः¦सु॒तानां᳚वाजिनीवसू | तावाया᳚त॒मुप॑द्र॒वत् || 5 || |
वाय॒विन्द्र॑श्चसुन्व॒त¦आया᳚त॒मुप॑निष्कृ॒तम् | म॒क्ष्वि१॑(इ॒)त्थाधि॒यान॑रा || 6 || वर्ग:4 |
मि॒त्रंहु॑वेपू॒तद॑क्षं॒¦वरु॑णंचरि॒शाद॑सम् | धियं᳚घृ॒ताचीं॒साध᳚न्ता || 7 || |
ऋ॒तेन॑मित्रावरुणा¦वृतावृधावृतस्पृशा | क्रतुं᳚बृ॒हन्त॑माशाथे || 8 || |
क॒वीनो᳚मि॒त्रावरु॑णा¦तुविजा॒ता,उ॑रु॒क्षया᳚ | दक्षं᳚दधाते,अ॒पस᳚म् || 9 || |
[3] अश्विनायज्वरीरिति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाः आद्यतृचस्याश्विनौ द्वितीयतृचस्येंद्रः तृतीयतृचस्यविश्वेदेवाः चतुर्थतृचस्यसरस्वतीगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:3}{अनुवाक:1, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
अश्वि॑ना॒यज्व॑री॒रिषो॒¦द्रव॑त्पाणी॒शुभ॑स्पती | पुरु॑भुजाचन॒स्यत᳚म् || 1 || वर्ग:5 |
अश्वि॑ना॒पुरु॑दंससा॒¦नरा॒शवी᳚रयाधि॒या | धिष्ण्या॒वन॑तं॒गिरः॑ || 2 || |
दस्रा᳚यु॒वाक॑वःसु॒ता¦नास॑त्यावृ॒क्तब᳚र्हिषः | आया᳚तंरुद्रवर्तनी || 3 || |
इन्द्राया᳚हिचित्रभानो¦सु॒ता,इ॒मेत्वा॒यवः॑ | अण्वी᳚भि॒स्तना᳚पू॒तासः॑ || 4 || |
इन्द्राया᳚हिधि॒येषि॒तो¦विप्र॑जूतःसु॒ताव॑तः | उप॒ब्रह्मा᳚णिवा॒घतः॑ || 5 || |
इन्द्राया᳚हि॒तूतु॑जान॒¦उप॒ब्रह्मा᳚णिहरिवः | सु॒तेद॑धिष्वन॒श्चनः॑ || 6 || |
ओमा᳚सश्चर्षणीधृतो॒¦विश्वे᳚देवास॒आग॑त | दा॒श्वांसो᳚दा॒शुषः॑सु॒तम् || 7 || वर्ग:6 |
विश्वे᳚दे॒वासो᳚,अ॒प्तुरः॑¦सु॒तमाग᳚न्त॒तूर्ण॑यः | उ॒स्रा,इ॑व॒स्वस॑राणि || 8 || |
विश्वे᳚दे॒वासो᳚,अ॒स्रिध॒¦एहि॑मायासो,अ॒द्रुहः॑ | मेधं᳚जुषन्त॒वह्न॑यः || 9 || |
पा॒व॒कानः॒सर॑स्वती॒¦वाजे᳚भिर्वा॒जिनी᳚वती | य॒ज्ञंव॑ष्टुधि॒याव॑सुः || 10 || |
चो॒द॒यि॒त्रीसू॒नृता᳚नां॒¦चेत᳚न्तीसुमती॒नाम् | य॒ज्ञंद॑धे॒सर॑स्वती || 11 || |
म॒हो,अर्णः॒सर॑स्वती॒¦प्रचे᳚तयतिके॒तुना᳚ | धियो॒विश्वा॒विरा᳚जति || 12 || |
[4] सुरूपकृत्नुमिति दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाइंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:4}{अनुवाक:2, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
सु॒रू॒प॒कृ॒त्नुमू॒तये᳚¦सु॒दुघा᳚मिवगो॒दुहे᳚ | जु॒हू॒मसि॒द्यवि॑द्यवि || 1 || वर्ग:7 |
उप॑नः॒सव॒नाग॑हि॒¦सोम॑स्यसोमपाःपिब | गो॒दा,इद्रे॒वतो॒मदः॑ || 2 || |
अथा᳚ते॒,अन्त॑मानां¦वि॒द्याम॑सुमती॒नाम् | मानो॒,अति॑ख्य॒आग॑हि || 3 || |
परे᳚हि॒विग्र॒मस्तृ॑त॒¦मिन्द्रं᳚पृच्छाविप॒श्चित᳚म् | यस्ते॒सखि॑भ्य॒आवर᳚म् || 4 || |
उ॒तब्रु॑वन्तुनो॒निदो॒¦निर॒न्यत॑श्चिदारत | दधा᳚ना॒,इन्द्र॒इद्दुवः॑ || 5 || |
उ॒तनः॑सु॒भगाँ᳚,अ॒रि¦र्वो॒चेयु॑र्दस्मकृ॒ष्टयः॑ | स्यामेदिन्द्र॑स्य॒शर्म॑णि || 6 || वर्ग:8 |
एमा॒शुमा॒शवे᳚भर¦यज्ञ॒श्रियं᳚नृ॒माद॑नम् | प॒त॒यन्म᳚न्द॒यत्स॑खम् || 7 || |
अ॒स्यपी॒त्वाश॑तक्रतो¦घ॒नोवृ॒त्राणा᳚मभवः | प्रावो॒वाजे᳚षुवा॒जिन᳚म् || 8 || |
तंत्वा॒वाजे᳚षुवा॒जिनं᳚¦वा॒जया᳚मःशतक्रतो | धना᳚नामिन्द्रसा॒तये᳚ || 9 || |
योरा॒यो॒३॑(ओ॒)वनि᳚र्म॒हान्त्¦सु॑पा॒रःसु᳚न्व॒तःसखा᳚ | तस्मा॒,इन्द्रा᳚यगायत || 10 || |
[5] आत्वेतेति दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाइंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:5}{अनुवाक:2, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
आत्वेता॒निषी᳚द॒ते¦न्द्र॑म॒भिप्रगा᳚यत | सखा᳚यः॒स्तोम॑वाहसः || 1 || वर्ग:9 |
पु॒रू॒तमं᳚पुरू॒णा¦मीशा᳚नं॒वार्या᳚णाम् | इन्द्रं॒सोमे॒सचा᳚सु॒ते || 2 || |
सघा᳚नो॒योग॒आभु॑व॒त्¦सरा॒येसपुरं᳚ध्याम् | गम॒द्वाजे᳚भि॒रासनः॑ || 3 || |
यस्य॑सं॒स्थेनवृ॒ण्वते॒¦हरी᳚स॒मत्सु॒शत्र॑वः | तस्मा॒,इन्द्रा᳚यगायत || 4 || |
सु॒त॒पाव्ने᳚सु॒ता,इ॒मे¦शुच॑योयन्तिवी॒तये᳚ | सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः || 5 || |
त्वंसु॒तस्य॑पी॒तये᳚¦स॒द्योवृ॒द्धो,अ॑जायथाः | इन्द्र॒ज्यैष्ठ्या᳚यसुक्रतो || 6 || वर्ग:10 |
आत्वा᳚विशन्त्वा॒शवः॒¦सोमा᳚सइन्द्रगिर्वणः | शंते᳚सन्तु॒प्रचे᳚तसे || 7 || |
त्वांस्तोमा᳚,अवीवृध॒न्¦त्वामु॒क्थाश॑तक्रतो | त्वांव॑र्धन्तुनो॒गिरः॑ || 8 || |
अक्षि॑तोतिःसनेदि॒मं¦वाज॒मिन्द्रः॑सह॒स्रिण᳚म् | यस्मि॒न्विश्वा᳚नि॒पौंस्या᳚ || 9 || |
मानो॒मर्ता᳚,अ॒भिद्रु॑हन्¦त॒नूना᳚मिन्द्रगिर्वणः | ईशा᳚नोयवयाव॒धम् || 10 || |
[6] युंजतीति दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाः आद्यानांतिसृणामिंद्रः ततःषण्णांमरुतः (वीळुचिदिंद्रेणेतिद्वयोरिंद्रश्चवा) दशम्याइंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:6}{अनुवाक:2, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
यु॒ञ्जन्ति॑ब्र॒ध्नम॑रु॒षं¦चर᳚न्तं॒परि॑त॒स्थुषः॑ | रोच᳚न्तेरोच॒नादि॒वि || 1 || वर्ग:11 |
यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒काम्या॒¦हरी॒विप॑क्षसा॒रथे᳚ | शोणा᳚धृ॒ष्णूनृ॒वाह॑सा || 2 || |
के॒तुंकृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒¦पेशो᳚मर्या,अपे॒शसे᳚ | समु॒षद्भि॑रजायथाः || 3 || |
आदह॑स्व॒धामनु॒¦पुन॑र्गर्भ॒त्वमे᳚रि॒रे | दधा᳚ना॒नाम॑य॒ज्ञिय᳚म् || 4 || |
वी॒ळुचि॑दारुज॒त्नुभि॒¦र्गुहा᳚चिदिन्द्र॒वह्नि॑भिः | अवि᳚न्दउ॒स्रिया॒,अनु॑ || 5 || |
दे॒व॒यन्तो॒यथा᳚म॒ति¦मच्छा᳚वि॒दद्व॑सुं॒गिरः॑ | म॒हाम॑नूषतश्रु॒तम् || 6 || वर्ग:12 |
इन्द्रे᳚ण॒संहिदृक्ष॑से¦संजग्मा॒नो,अबि॑भ्युषा | म॒न्दूस॑मा॒नव॑र्चसा || 7 || |
अ॒न॒व॒द्यैर॒भिद्यु॑भि¦र्म॒खःसह॑स्वदर्चति | ग॒णैरिन्द्र॑स्य॒काम्यैः᳚ || 8 || |
अतः॑परिज्म॒न्नाग॑हि¦दि॒वोवा᳚रोच॒नादधि॑ | सम॑स्मिन्नृञ्जते॒गिरः॑ || 9 || |
इ॒तोवा᳚सा॒तिमीम॑हे¦दि॒वोवा॒पार्थि॑वा॒दधि॑ | इन्द्रं᳚म॒होवा॒रज॑सः || 10 || |
[7] इंद्रमिदिति दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाइंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:7}{अनुवाक:2, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो᳚बृ॒ह¦दिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑ | इन्द्रं॒वाणी᳚रनूषत || 1 || वर्ग:13 |
इन्द्र॒इद्धर्योः॒सचा॒¦सम्मि॑श्ल॒आव॑चो॒युजा᳚ | इन्द्रो᳚व॒ज्रीहि॑र॒ण्ययः॑ || 2 || |
इन्द्रो᳚दी॒र्घाय॒चक्ष॑स॒¦आसूर्यं᳚रोहयद्दि॒वि | विगोभि॒रद्रि॑मैरयत् || 3 || |
इन्द्र॒वाजे᳚षुनोव¦स॒हस्र॑प्रधनेषुच | उ॒ग्रउ॒ग्राभि॑रू॒तिभिः॑ || 4 || |
इन्द्रं᳚व॒यंम॑हाध॒न¦इन्द्र॒मर्भे᳚हवामहे | युजं᳚वृ॒त्रेषु॑व॒ज्रिण᳚म् || 5 || |
सनो᳚वृषन्न॒मुंच॒रुं¦सत्रा᳚दाव॒न्नपा᳚वृधि | अ॒स्मभ्य॒मप्र॑तिष्कुतः || 6 || वर्ग:14 |
तु॒ञ्जेतु᳚ञ्जे॒यउत्त॑रे॒¦स्तोमा॒,इन्द्र॑स्यव॒ज्रिणः॑ | नवि᳚न्धे,अस्यसुष्टु॒तिम् || 7 || |
वृषा᳚यू॒थेव॒वंस॑गः¦कृ॒ष्टीरि॑य॒र्त्योज॑सा | ईशा᳚नो॒,अप्र॑तिष्कुतः || 8 || |
यएक॑श्चर्षणी॒नां¦वसू᳚नामिर॒ज्यति॑ | इन्द्रः॒पञ्च॑क्षिती॒नाम् || 9 || |
इन्द्रं᳚वोवि॒श्वत॒स्परि॒¦हवा᳚महे॒जने᳚भ्यः | अ॒स्माक॑मस्तु॒केव॑लः || 10 || |
[8] एंद्रेति दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाइंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:8}{अनुवाक:3, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
एन्द्र॑सान॒सिंर॒यिं¦स॒जित्वा᳚नंसदा॒सह᳚म् | वर्षि॑ष्ठमू॒तये᳚भर || 1 || वर्ग:15 |
नियेन॑मुष्टिह॒त्यया॒¦निवृ॒त्रारु॒णधा᳚महै | त्वोता᳚सो॒न्यर्व॑ता || 2 || |
इन्द्र॒त्वोता᳚स॒आव॒यं¦वज्रं᳚घ॒नाद॑दीमहि | जये᳚म॒संयु॒धिस्पृधः॑ || 3 || |
व॒यंशूरे᳚भि॒रस्तृ॑भि॒¦रिन्द्र॒त्वया᳚यु॒जाव॒यम् | सा॒स॒ह्याम॑पृतन्य॒तः || 4 || |
म॒हाँ,इन्द्रः॑प॒रश्च॒नु¦म॑हि॒त्वम॑स्तुव॒ज्रिणे᳚ | द्यौर्नप्र॑थि॒नाशवः॑ || 5 || |
स॒मो॒हेवा॒यआश॑त॒¦नर॑स्तो॒कस्य॒सनि॑तौ | विप्रा᳚सोवाधिया॒यवः॑ || 6 || वर्ग:16 |
यःकु॒क्षिःसो᳚म॒पात॑मः¦समु॒द्रइ॑व॒पिन्व॑ते | उ॒र्वीरापो॒नका॒कुदः॑ || 7 || |
ए॒वाह्य॑स्यसू॒नृता᳚¦विर॒प्शीगोम॑तीम॒ही | प॒क्वाशाखा॒नदा॒शुषे᳚ || 8 || |
ए॒वाहिते॒विभू᳚तय¦ऊ॒तय॑इन्द्र॒माव॑ते | स॒द्यश्चि॒त्सन्ति॑दा॒शुषे᳚ || 9 || |
ए॒वाह्य॑स्य॒काम्या॒¦स्तोम॑उ॒क्थंच॒शंस्या᳚ | इन्द्रा᳚य॒सोम॑पीतये || 10 || |
[9] इंद्रेहीति दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाइंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:9}{अनुवाक:3, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
इन्द्रेहि॒मत्स्यन्ध॑सो॒¦विश्वे᳚भिःसोम॒पर्व॑भिः | म॒हाँ,अ॑भि॒ष्टिरोज॑सा || 1 || वर्ग:17 |
एमे᳚नंसृजतासु॒ते¦म॒न्दिमिन्द्रा᳚यम॒न्दिने᳚ | चक्रिं॒विश्वा᳚नि॒चक्र॑ये || 2 || |
मत्स्वा᳚सुशिप्रम॒न्दिभिः॒¦स्तोमे᳚भिर्विश्वचर्षणे | सचै॒षुसव॑ने॒ष्वा || 3 || |
असृ॑ग्रमिन्द्रते॒गिरः॒¦प्रति॒त्वामुद॑हासत | अजो᳚षावृष॒भंपति᳚म् || 4 || |
संचो᳚दयचि॒त्रम॒र्वाग्¦राध॑इन्द्र॒वरे᳚ण्यम् | अस॒दित्ते᳚वि॒भुप्र॒भु || 5 || |
अ॒स्मान्त्सुतत्र॑चोद॒ये¦न्द्र॑रा॒येरभ॑स्वतः | तुवि॑द्युम्न॒यश॑स्वतः || 6 || वर्ग:18 |
संगोम॑दिन्द्र॒वाज॑व¦द॒स्मेपृ॒थुश्रवो᳚बृ॒हत् | वि॒श्वायु॑र्धे॒ह्यक्षि॑तम् || 7 || |
अ॒स्मेधे᳚हि॒श्रवो᳚बृ॒हद्¦द्यु॒म्नंस॑हस्र॒सात॑मम् | इन्द्र॒तार॒थिनी॒रिषः॑ || 8 || |
वसो॒रिन्द्रं॒वसु॑पतिं¦गी॒र्भिर्गृ॒णन्त॑ऋ॒ग्मिय᳚म् | होम॒गन्ता᳚रमू॒तये᳚ || 9 || |
सु॒तेसु॑ते॒न्यो᳚कसे¦बृ॒हद्बृ॑ह॒तएद॒रिः | इन्द्रा᳚यशू॒षम॑र्चति || 10 || |
[10] गायंतीति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रोमधुच्छंदाइंद्रोनुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:10}{अनुवाक:3, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
गाय᳚न्तित्वागाय॒त्रिणोऽ¦र्च᳚न्त्य॒र्कम॒र्किणः॑ | ब्र॒ह्माण॑स्त्वाशतक्रत॒¦उद्वं॒शमि॑वयेमिरे || 1 || वर्ग:19 |
यत्सानोः॒सानु॒मारु॑ह॒द्¦भूर्यस्प॑ष्ट॒कर्त्व᳚म् | तदिन्द्रो॒,अर्थं᳚चेतति¦यू॒थेन॑वृ॒ष्णिरे᳚जति || 2 || |
यु॒क्ष्वाहिके॒शिना॒हरी॒¦वृष॑णाकक्ष्य॒प्रा | अथा᳚नइन्द्रसोमपा¦गि॒रामुप॑श्रुतिंचर || 3 || |
एहि॒स्तोमाँ᳚,अ॒भिस्व॑रा॒¦भिगृ॑णी॒ह्यारु॑व | ब्रह्म॑चनोवसो॒सचे¦न्द्र॑य॒ज्ञंच॑वर्धय || 4 || |
उ॒क्थमिन्द्रा᳚य॒शंस्यं॒¦वर्ध॑नंपुरुनि॒ष्षिधे᳚ | श॒क्रोयथा᳚सु॒तेषु॑णो¦रा॒रण॑त्स॒ख्येषु॑च || 5 || |
तमित्स॑खि॒त्वई᳚महे॒¦तंरा॒येतंसु॒वीर्ये᳚ | सश॒क्रउ॒तनः॑शक॒¦दिन्द्रो॒वसु॒दय॑मानः || 6 || |
सु॒वि॒वृतं᳚सुनि॒रज॒¦मिन्द्र॒त्वादा᳚त॒मिद्यशः॑ | गवा॒मप᳚व्र॒जंवृ॑धि¦कृणु॒ष्वराधो᳚,अद्रिवः || 7 || वर्ग:20 |
न॒हित्वा॒रोद॑सी,उ॒भे¦ऋ॑घा॒यमा᳚ण॒मिन्व॑तः | जेषः॒स्व᳚र्वतीर॒पः¦संगा,अ॒स्मभ्यं᳚धूनुहि || 8 || |
आश्रु॑त्कर्णश्रु॒धीहवं॒¦नूचि॑द्दधिष्वमे॒गिरः॑ | इन्द्र॒स्तोम॑मि॒मंमम॑¦कृ॒ष्वायु॒जश्चि॒दन्त॑रम् || 9 || |
वि॒द्माहित्वा॒वृष᳚न्तमं॒¦वाजे᳚षुहवन॒श्रुत᳚म् | वृष᳚न्तमस्यहूमह¦ऊ॒तिंस॑हस्र॒सात॑माम् || 10 || |
आतून॑इन्द्रकौशिक¦मन्दसा॒नःसु॒तंपि॑ब | नव्य॒मायुः॒प्रसूति॑र¦कृ॒धीस॑हस्र॒सामृषि᳚म् || 11 || |
परि॑त्वागिर्वणो॒गिर॑¦इ॒माभ॑वन्तुवि॒श्वतः॑ | वृ॒द्धायु॒मनु॒वृद्ध॑यो॒¦जुष्टा᳚भवन्तु॒जुष्ट॑यः || 12 || |
[11] इंद्रंविश्वाइत्यष्टर्चस्य सूक्तस्य जेतामाधुच्छंदसइंद्रोनुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:11}{अनुवाक:3, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
इन्द्रं॒विश्वा᳚,अवीवृधन्त्¦समु॒द्रव्य॑चसं॒गिरः॑ | र॒थीत॑मंर॒थीनां॒¦वाजा᳚नां॒सत्प॑तिं॒पति᳚म् || 1 || वर्ग:21 |
स॒ख्येत॑इन्द्रवा॒जिनो॒¦माभे᳚मशवसस्पते | त्वाम॒भिप्रणो᳚नुमो॒¦जेता᳚र॒मप॑राजितम् || 2 || |
पू॒र्वीरिन्द्र॑स्यरा॒तयो॒¦नविद॑स्यन्त्यू॒तयः॑ | यदी॒वाज॑स्य॒गोम॑तः¦स्तो॒तृभ्यो॒मंह॑तेम॒घम् || 3 || |
पु॒रांभि॒न्दुर्युवा᳚क॒वि¦रमि॑तौजा,अजायत | इन्द्रो॒विश्व॑स्य॒कर्म॑णो¦ध॒र्ताव॒ज्रीपु॑रुष्टु॒तः || 4 || |
त्वंव॒लस्य॒गोम॒तो¦ऽपा᳚वरद्रिवो॒बिल᳚म् | त्वांदे॒वा,अबि॑भ्युषस्¦तु॒ज्यमा᳚नासआविषुः || 5 || |
तवा॒हंशू᳚ररा॒तिभिः॒¦प्रत्या᳚यं॒सिन्धु॑मा॒वद॑न् | उपा᳚तिष्ठन्तगिर्वणो¦वि॒दुष्टे॒तस्य॑का॒रवः॑ || 6 || |
मा॒याभि॑रिन्द्रमा॒यिनं॒¦त्वंशुष्ण॒मवा᳚तिरः | वि॒दुष्टे॒तस्य॒मेधि॑रा॒स्¦तेषां॒श्रवां॒स्युत्ति॑र || 7 || |
इन्द्र॒मीशा᳚न॒मोज॑सा॒¦भिस्तोमा᳚,अनूषत | स॒हस्रं॒यस्य॑रा॒तय॑¦उ॒तवा॒सन्ति॒भूय॑सीः || 8 || |
[12] अग्निंदूतमिति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिरग्निर्गायत्री अग्निनाग्निरित्यस्य निर्मथ्याहवनीयावनीदेवते |{मंडल:1, सूक्त:12}{अनुवाक:4, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
अ॒ग्निंदू॒तंवृ॑णीमहे॒¦होता᳚रंवि॒श्ववे᳚दसम् | अ॒स्यय॒ज्ञस्य॑सु॒क्रतु᳚म् || 1 || वर्ग:22 |
अ॒ग्निम॑ग्निं॒हवी᳚मभिः॒¦सदा᳚हवन्तवि॒श्पति᳚म् | ह॒व्य॒वाहं᳚पुरुप्रि॒यम् || 2 || |
अग्ने᳚दे॒वाँ,इ॒हाव॑ह¦जज्ञा॒नोवृ॒क्तब᳚र्हिषे | असि॒होता᳚न॒ईड्यः॑ || 3 || |
ताँ,उ॑श॒तोविबो᳚धय॒¦यद॑ग्ने॒यासि॑दू॒त्य᳚म् | दे॒वैरास॑त्सिब॒र्हिषि॑ || 4 || |
घृता᳚हवनदीदिवः॒¦प्रति॑ष्म॒रिष॑तोदह | अग्ने॒त्वंर॑क्ष॒स्विनः॑ || 5 || |
अ॒ग्निना॒ग्निःसमि॑ध्यते¦क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा᳚ | ह॒व्य॒वाड्जु॒ह्वा᳚स्यः || 6 || |
क॒विम॒ग्निमुप॑स्तुहि¦स॒त्यध᳚र्माणमध्व॒रे | दे॒वम॑मीव॒चात॑नम् || 7 || वर्ग:23 |
यस्त्वाम॑ग्नेह॒विष्प॑ति¦र्दू॒तंदे᳚वसप॒र्यति॑ | तस्य॑स्मप्रावि॒ताभ॑व || 8 || |
यो,अ॒ग्निंदे॒ववी᳚तये¦ह॒विष्माँ᳚,आ॒विवा᳚सति | तस्मै᳚पावकमृळय || 9 || |
सनः॑पावकदीदि॒वो¦ऽग्ने᳚दे॒वाँ,इ॒हाव॑ह | उप॑य॒ज्ञंह॒विश्च॑नः || 10 || |
सनः॒स्तवा᳚न॒आभ॑र¦गाय॒त्रेण॒नवी᳚यसा | र॒यिंवी॒रव॑ती॒मिष᳚म् || 11 || |
अग्ने᳚शु॒क्रेण॑शो॒चिषा॒¦विश्वा᳚भिर्दे॒वहू᳚तिभिः | इ॒मंस्तोमं᳚जुषस्वनः || 12 || |
[13] सुसमिद्धइति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिः प्रथमायाइध्मः (समिद्धोग्निर्वा) द्वितीयायास्तनूनपात् तृतीयायानराशंसः चतुर्थ्याइळः पंचम्याबर्हिः षष्ट्यादेव्योद्वारः सप्तम्याउषासानक्ता अष्टम्यादैव्यौहोतारौ (प्रचेतसावितिगुणः) नवम्याःसरस्वतीळाभारत्यः दशम्यास्त्वष्टा एकादश्यावनस्पतिः द्वादश्याःस्वाहाकृतयोदेवताः गायत्री छंदः (एतदाप्रीसूक्तं) |{मंडल:1, सूक्त:13}{अनुवाक:4, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
सुस॑मिद्धोन॒आव॑ह¦दे॒वाँ,अ॑ग्नेह॒विष्म॑ते | होतः॑पावक॒यक्षि॑च || 1 || वर्ग:24 |
मधु॑मन्तंतनूनपाद्¦य॒ज्ञंदे॒वेषु॑नःकवे | अ॒द्याकृ॑णुहिवी॒तये᳚ || 2 || |
नरा॒शंस॑मि॒हप्रि॒य¦म॒स्मिन्य॒ज्ञउप॑ह्वये | मधु॑जिह्वंहवि॒ष्कृत᳚म् || 3 || |
अग्ने᳚सु॒खत॑मे॒¦रथे᳚दे॒वाँ,ई᳚ळि॒तआव॑ह | असि॒होता॒मनु᳚र्हितः || 4 || |
स्तृ॒णी॒तब॒र्हिरा᳚नु॒षग्¦घृ॒तपृ॑ष्ठंमनीषिणः | यत्रा॒मृत॑स्य॒चक्ष॑णम् || 5 || |
विश्र॑यन्तामृता॒वृधो॒¦द्वारो᳚दे॒वीर॑स॒श्चतः॑ | अ॒द्यानू॒नंच॒यष्ट॑वे || 6 || |
नक्तो॒षासा᳚सु॒पेश॑सा॒¦ऽस्मिन्य॒ज्ञउप॑ह्वये | इ॒दंनो᳚ब॒र्हिरा॒सदे᳚ || 7 || वर्ग:25 |
तासु॑जि॒ह्वा,उप॑ह्वये॒¦होता᳚रा॒दैव्या᳚क॒वी | य॒ज्ञंनो᳚यक्षतामि॒मम् || 8 || |
इळा॒सर॑स्वतीम॒ही¦ति॒स्रोदे॒वीर्म॑यो॒भुवः॑ | ब॒र्हिःसी᳚दन्त्व॒स्रिधः॑ || 9 || |
इ॒हत्वष्टा᳚रमग्रि॒यं¦वि॒श्वरू᳚प॒मुप॑ह्वये | अ॒स्माक॑मस्तु॒केव॑लः || 10 || |
अव॑सृजावनस्पते॒¦देव॑दे॒वेभ्यो᳚ह॒विः | प्रदा॒तुर॑स्तु॒चेत॑नम् || 11 || |
स्वाहा᳚य॒ज्ञंकृ॑णोत॒ने¦न्द्रा᳚य॒यज्व॑नोगृ॒हे | तत्र॑दे॒वाँ,उप॑ह्वये || 12 || |
[14] ऐभिरग्नइति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिर्विश्वेदेवागायत्री | (वैश्वदेवत्वंसूक्तभेदप्रयोगेयल्लिंगंसादेवतेतिपक्षेआद्ययोर्द्वयोरग्निः तृतीयायाविश्वेदेवाः ततोनवानामग्निः एवंद्वादशर्च) |{मंडल:1, सूक्त:14}{अनुवाक:4, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
ऐभि॑रग्ने॒दुवो॒गिरो॒¦विश्वे᳚भिः॒सोम॑पीतये | दे॒वेभि᳚र्याहि॒यक्षि॑च || 1 || वर्ग:26 |
आत्वा॒कण्वा᳚,अहूषत¦गृ॒णन्ति॑विप्रते॒धियः॑ | दे॒वेभि॑रग्न॒आग॑हि || 2 || |
इ॒न्द्र॒वा॒यूबृह॒स्पतिं᳚¦मि॒त्राग्निंपू॒षणं॒भग᳚म् | आ॒दि॒त्यान्मारु॑तंग॒णम् || 3 || |
प्रवो᳚भ्रियन्त॒इन्द॑वो¦मत्स॒रामा᳚दयि॒ष्णवः॑ | द्र॒प्सामध्व॑श्चमू॒षदः॑ || 4 || |
ईळ॑ते॒त्वाम॑व॒स्यवः॒¦कण्वा᳚सोवृ॒क्तब᳚र्हिषः | ह॒विष्म᳚न्तो,अरं॒कृतः॑ || 5 || |
घृ॒तपृ॑ष्ठामनो॒युजो॒¦येत्वा॒वह᳚न्ति॒वह्न॑यः | आदे॒वान्त्सोम॑पीतये || 6 || |
तान्यज॑त्राँ,ऋता॒वृधो¦ऽग्ने॒पत्नी᳚वतस्कृधि | मध्वः॑सुजिह्वपायय || 7 || वर्ग:27 |
येयज॑त्रा॒यईड्या॒स्¦तेते᳚पिबन्तुजि॒ह्वया᳚ | मधो᳚रग्ने॒वष॑ट्कृति || 8 || |
आकीं॒सूर्य॑स्यरोच॒नाद्¦विश्वा᳚न्दे॒वाँ,उ॑ष॒र्बुधः॑ | विप्रो॒होते॒हव॑क्षति || 9 || |
विश्वे᳚भिःसो॒म्यंमध्व¦ग्न॒इन्द्रे᳚णवा॒युना᳚ | पिबा᳚मि॒त्रस्य॒धाम॑भिः || 10 || |
त्वंहोता॒मनु᳚र्हि॒तो¦ऽग्ने᳚य॒ज्ञेषु॑सीदसि | सेमंनो᳚,अध्व॒रंय॑ज || 11 || |
यु॒क्ष्वाह्यरु॑षी॒रथे᳚¦ह॒रितो᳚देवरो॒हितः॑ | ताभि॑र्दे॒वाँ,इ॒हाव॑ह || 12 || |
[15] इंद्रसोममिति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिः आद्यानांषण्णांइंद्रोमरुतस्त्वष्टाग्निरिंद्रोमित्रावरुणौ ततश्चतसृणां द्रविणोदा अग्निः एकादश्याअश्विनौद्वादश्याअग्निर्गायत्री (ऋतुदेवताएताः) |{मंडल:1, सूक्त:15}{अनुवाक:4, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
इन्द्र॒सोमं॒पिब॑ऋ॒तुना¦ऽऽत्वा᳚विश॒न्त्विन्द॑वः | म॒त्स॒रास॒स्तदो᳚कसः || 1 || वर्ग:28 |
मरु॑तः॒पिब॑तऋ॒तुना᳚¦पो॒त्राद्य॒ज्ञंपु॑नीतन | यू॒यंहिष्ठासु॑दानवः || 2 || |
अ॒भिय॒ज्ञंगृ॑णीहिनो॒¦ग्नावो॒नेष्टः॒पिब॑ऋ॒तुना᳚ | त्वंहिर॑त्न॒धा,असि॑ || 3 || |
अग्ने᳚दे॒वाँ,इ॒हाव॑ह¦सा॒दया॒योनि॑षुत्रि॒षु | परि॑भूष॒पिब॑ऋ॒तुना᳚ || 4 || |
ब्राह्म॑णादिन्द्र॒राध॑सः॒¦पिबा॒सोम॑मृ॒तूँरनु॑ | तवेद्धिस॒ख्यमस्तृ॑तम् || 5 || |
यु॒वंदक्षं᳚धृतव्रत॒¦मित्रा᳚वरुणदू॒ळभ᳚म् | ऋ॒तुना᳚य॒ज्ञमा᳚शाथे || 6 || |
द्र॒वि॒णो॒दाद्रवि॑णसो॒¦ग्राव॑हस्तासो,अध्व॒रे | य॒ज्ञेषु॑दे॒वमी᳚ळते || 7 || वर्ग:29 |
द्र॒वि॒णो॒दाद॑दातुनो॒¦वसू᳚नि॒यानि॑शृण्वि॒रे | दे॒वेषु॒ताव॑नामहे || 8 || |
द्र॒वि॒णो॒दाःपि॑पीषति¦जु॒होत॒प्रच॑तिष्ठत | ने॒ष्ट्रादृ॒तुभि॑रिष्यत || 9 || |
यत्त्वा᳚तु॒रीय॑मृ॒तुभि॒¦र्द्रवि॑णोदो॒यजा᳚महे | अध॑स्मानोद॒दिर्भ॑व || 10 || |
अश्वि॑ना॒पिब॑तं॒मधु॒¦दीद्य॑ग्नीशुचिव्रता | ऋ॒तुना᳚यज्ञवाहसा || 11 || |
गार्ह॑पत्येनसन्त्य¦ऋ॒तुना᳚यज्ञ॒नीर॑सि | दे॒वान्दे᳚वय॒तेय॑ज || 12 || |
[16] आत्वावहन्त्विति नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिरिंद्रोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:16}{अनुवाक:4, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
आत्वा᳚वहन्तु॒हर॑यो॒¦वृष॑णं॒सोम॑पीतये | इन्द्र॑त्वा॒सूर॑चक्षसः || 1 || वर्ग:30 |
इ॒माधा॒नाघृ॑त॒स्नुवो॒¦हरी᳚,इ॒होप॑वक्षतः | इन्द्रं᳚सु॒खत॑मे॒रथे᳚ || 2 || |
इन्द्रं᳚प्रा॒तर्ह॑वामह॒¦इन्द्रं᳚प्रय॒त्य॑ध्व॒रे | इन्द्रं॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || 3 || |
उप॑नःसु॒तमाग॑हि॒¦हरि॑भिरिन्द्रके॒शिभिः॑ | सु॒तेहित्वा॒हवा᳚महे || 4 || |
सेमंनः॒स्तोम॒माग॒¦ह्युपे॒दंसव॑नंसु॒तम् | गौ॒रोनतृ॑षि॒तःपि॑ब || 5 || |
इ॒मेसोमा᳚स॒इन्द॑वः¦सु॒तासो॒,अधि॑ब॒र्हिषि॑ | ताँ,इ᳚न्द्र॒सह॑सेपिब || 6 || वर्ग:31 |
अ॒यंते॒स्तोमो᳚,अग्रि॒यो¦हृ॑दि॒स्पृग॑स्तु॒शंत॑मः | अथा॒सोमं᳚सु॒तंपि॑ब || 7 || |
विश्व॒मित्सव॑नंसु॒त¦मिन्द्रो॒मदा᳚यगच्छति | वृ॒त्र॒हासोम॑पीतये || 8 || |
सेमंनः॒काम॒मापृ॑ण॒¦गोभि॒रश्वैः᳚शतक्रतो | स्तवा᳚मत्वास्वा॒ध्यः॑ || 9 || |
[17] इंद्रावरुणयोरिति नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिरिंद्रावरुणौगायत्री | युवाकुहिद्वृचौपादनिचूतौ (इंद्रः सहस्रेतिह्रसीयसी वा}{मंडल:1, सूक्त:17}{अनुवाक:4, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
इन्द्रा॒वरु॑णयोर॒हं¦स॒म्राजो॒रव॒आवृ॑णे | तानो᳚मृळातई॒दृशे᳚ || 1 || वर्ग:32 |
गन्ता᳚रा॒हिस्थोव॑से॒¦हवं॒विप्र॑स्य॒माव॑तः | ध॒र्तारा᳚चर्षणी॒नाम् || 2 || |
अ॒नु॒का॒मंत॑र्पयेथा॒¦मिन्द्रा᳚वरुणरा॒यआ | तावां॒नेदि॑ष्ठमीमहे || 3 || |
यु॒वाकु॒हिशची᳚नां¦यु॒वाकु॑सुमती॒नाम् | भू॒याम॑वाज॒दाव्ना᳚म् || 4 || |
इन्द्रः॑सहस्र॒दाव्नां॒¦वरु॑णः॒शंस्या᳚नाम् | क्रतु॑र्भवत्यु॒क्थ्यः॑ || 5 || |
तयो॒रिदव॑साव॒यं¦स॒नेम॒निच॑धीमहि | स्यादु॒तप्र॒रेच॑नम् || 6 || वर्ग:33 |
इन्द्रा᳚वरुणवाम॒हं¦हु॒वेचि॒त्राय॒राध॑से | अ॒स्मान्त्सुजि॒ग्युष॑स्कृतम् || 7 || |
इन्द्रा᳚वरुण॒नूनुवां॒¦सिषा᳚सन्तीषुधी॒ष्वा | अ॒स्मभ्यं॒शर्म॑यच्छतम् || 8 || |
प्रवा᳚मश्नोतुसुष्टु॒ति¦रिन्द्रा᳚वरुण॒यांहु॒वे | यामृ॒धाथे᳚स॒धस्तु॑तिम् || 9 || |
[18] सोमानमिति नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेधातिथिः आद्यानांतिसृणाम्ब्रह्मणस्पतिः चतुर्थ्याइंद्रसोमब्रह्मणस्पतयः पंचम्याइंद्र सोम ब्रह्मणस्पतयोदक्षिणाच ततश्चतसृणांसदसस्पतिः (अंत्यायानराशंसोवा) गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:18}{अनुवाक:5, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
सो॒मानं॒स्वर॑णं¦कृणु॒हिब्र᳚ह्मणस्पते | क॒क्षीव᳚न्तं॒यऔ᳚शि॒जः || 1 || वर्ग:34 |
योरे॒वान्यो,अ॑मीव॒हा¦व॑सु॒वित्पु॑ष्टि॒वर्ध॑नः | सनः॑सिषक्तु॒यस्तु॒रः || 2 || |
मानः॒शंसो॒,अर॑रुषो¦धू॒र्तिःप्रण॒ङ्मर्त्य॑स्य | रक्षा᳚णोब्रह्मणस्पते || 3 || |
सघा᳚वी॒रोनरि॑ष्यति॒¦यमिन्द्रो॒ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ | सोमो᳚हि॒नोति॒मर्त्य᳚म् || 4 || |
त्वंतंब्र᳚ह्मणस्पते॒¦सोम॒इन्द्र॑श्च॒मर्त्य᳚म् | दक्षि॑णापा॒त्वंह॑सः || 5 || |
सद॑स॒स्पति॒मद्भु॑तं¦प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम्य᳚म् | स॒निंमे॒धाम॑यासिषम् || 6 || वर्ग:35 |
यस्मा᳚दृ॒तेनसिध्य॑ति¦य॒ज्ञोवि॑प॒श्चित॑श्च॒न | सधी॒नांयोग॑मिन्वति || 7 || |
आदृ॑ध्नोतिह॒विष्कृ॑तिं॒¦प्राञ्चं᳚कृणोत्यध्व॒रम् | होत्रा᳚दे॒वेषु॑गच्छति || 8 || |
नरा॒शंसं᳚सु॒धृष्ट॑म॒¦मप॑श्यंस॒प्रथ॑स्तमम् | दि॒वोनसद्म॑मखसम् || 9 || |
[19] प्रतित्यमिति नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिरग्नामरुतोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:19}{अनुवाक:5, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:1} |
प्रति॒त्यंचारु॑मध्व॒रं¦गो᳚पी॒थाय॒प्रहू᳚यसे | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 1 || वर्ग:36 |
न॒हिदे॒वोनमर्त्यो᳚¦म॒हस्तव॒क्रतुं᳚प॒रः | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 2 || |
येम॒होरज॑सोवि॒दु¦र्विश्वे᳚दे॒वासो᳚,अ॒द्रुहः॑ | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 3 || |
यउ॒ग्रा,अ॒र्कमा᳚नृ॒चु¦रना᳚धृष्टास॒ओज॑सा | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 4 || |
येशु॒भ्राघो॒रव॑र्पसः¦सुक्ष॒त्रासो᳚रि॒शाद॑सः | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 5 || |
येनाक॒स्याधि॑रोच॒ने¦दि॒विदे॒वास॒आस॑ते | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 6 || वर्ग:37 |
यई॒ङ्खय᳚न्ति॒पर्व॑तान्¦ति॒रःस॑मु॒द्रम᳚र्ण॒वम् | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 7 || |
आयेत॒न्वन्ति॑र॒श्मिभि॑स्¦ति॒रःस॑मु॒द्रमोज॑सा | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 8 || |
अ॒भित्वा᳚पू॒र्वपी᳚तये¦सृ॒जामि॑सो॒म्यंमधु॑ | म॒रुद्भि॑रग्न॒आग॑हि || 9 || |
[20] अयंदेवायेत्यष्टर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेधातिथिरृभवो गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:20}{अनुवाक:5, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
अ॒यंदे॒वाय॒जन्म॑ने॒¦स्तोमो॒विप्रे᳚भिरास॒या | अका᳚रिरत्न॒धात॑मः || 1 || वर्ग:1 |
यइन्द्रा᳚यवचो॒युजा᳚¦तत॒क्षुर्मन॑सा॒हरी᳚ | शमी᳚भिर्य॒ज्ञमा᳚शत || 2 || |
तक्ष॒न्नास॑त्याभ्यां॒¦परि॑ज्मानंसु॒खंरथ᳚म् | तक्ष᳚न्धे॒नुंस॑ब॒र्दुघा᳚म् || 3 || |
युवा᳚नापि॒तरा॒पुनः॑¦स॒त्यम᳚न्त्रा,ऋजू॒यवः॑ | ऋ॒भवो᳚वि॒ष्ट्य॑क्रत || 4 || |
संवो॒मदा᳚सो,अग्म॒ते¦न्द्रे᳚णचम॒रुत्व॑ता | आ॒दि॒त्येभि॑श्च॒राज॑भिः || 5 || |
उ॒तत्यंच॑म॒संनवं॒¦त्वष्टु॑र्दे॒वस्य॒निष्कृ॑तम् | अक॑र्तच॒तुरः॒पुनः॑ || 6 || वर्ग:2 |
तेनो॒रत्ना᳚निधत्तन॒¦त्रिरासाप्ता᳚निसुन्व॒ते | एक॑मेकंसुश॒स्तिभिः॑ || 7 || |
अधा᳚रयन्त॒वह्न॒यो¦ऽभ॑जन्तसुकृ॒त्यया᳚ | भा॒गंदे॒वेषु॑य॒ज्ञिय᳚म् || 8 || |
[21] इहेंद्राग्नीइति षळर्चस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिरिंद्राग्नीगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:21}{अनुवाक:5, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
इ॒हेन्द्रा॒ग्नी,उप॑ह्वये॒¦तयो॒रित्स्तोम॑मुश्मसि | तासोमं᳚सोम॒पात॑मा || 1 || वर्ग:3 |
ताय॒ज्ञेषु॒प्रशं᳚सते¦न्द्रा॒ग्नीशु᳚म्भतानरः | तागा᳚य॒त्रेषु॑गायत || 2 || |
तामि॒त्रस्य॒प्रश॑स्तय¦इन्द्रा॒ग्नीताह॑वामहे | सो॒म॒पासोम॑पीतये || 3 || |
उ॒ग्रासन्ता᳚हवामह॒¦उपे॒दंसव॑नंसु॒तम् | इ॒न्द्रा॒ग्नी,एहग॑च्छताम् || 4 || |
ताम॒हान्ता॒सद॒स्पती॒,¦इन्द्रा᳚ग्नी॒रक्ष॑उब्जतम् | अप्र॑जाःसन्त्व॒त्रिणः॑ || 5 || |
तेन॑स॒त्येन॑जागृत॒¦मधि॑प्रचे॒तुने᳚प॒दे | इन्द्रा᳚ग्नी॒शर्म॑यच्छतम् || 6 || |
[22] प्रातर्युजेत्येकविंशत्यृचस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिः आद्यानां चतसृणामश्विनौ ततश्चतसृणांसविता ततोद्वयोरग्निः ततएकस्यादेव्यः ततएकस्याइंद्राणी वरुणान्यग्नाय्यः ततोद्वयोर्द्यावापृथिव्यौ ततएकस्याःपृथिवी ततःषण्णां विष्णुः (अतोदेवाइत्यस्यादेवावा ) गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:22}{अनुवाक:5, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
प्रा॒त॒र्युजा॒विबो᳚धया॒¦श्विना॒वेहग॑च्छताम् | अ॒स्यसोम॑स्यपी॒तये᳚ || 1 || वर्ग:4 |
यासु॒रथा᳚र॒थीत॑मो॒¦भादे॒वादि॑वि॒स्पृशा᳚ | अ॒श्विना॒ताह॑वामहे || 2 || |
यावां॒कशा॒मधु॑म॒त्य¦श्वि॑नासू॒नृता᳚वती | तया᳚य॒ज्ञंमि॑मिक्षतम् || 3 || |
न॒हिवा॒मस्ति॑दूर॒के¦यत्रा॒रथे᳚न॒गच्छ॑थः | अश्वि॑नासो॒मिनो᳚गृ॒हम् || 4 || |
हिर᳚ण्यपाणिमू॒तये᳚¦सवि॒तार॒मुप॑ह्वये | सचेत्ता᳚दे॒वता᳚प॒दम् || 5 || |
अ॒पांनपा᳚त॒मव॑से¦सवि॒तार॒मुप॑स्तुहि | तस्य᳚व्र॒तान्यु॑श्मसि || 6 || वर्ग:5 |
वि॒भ॒क्तारं᳚हवामहे॒¦वसो᳚श्चि॒त्रस्य॒राध॑सः | स॒वि॒तारं᳚नृ॒चक्ष॑सम् || 7 || |
सखा᳚य॒आनिषी᳚दत¦सवि॒तास्तोम्यो॒नुनः॑ | दाता॒राधां᳚सिशुम्भति || 8 || |
अग्ने॒पत्नी᳚रि॒हाव॑ह¦दे॒वाना᳚मुश॒तीरुप॑ | त्वष्टा᳚रं॒सोम॑पीतये || 9 || |
आग्ना,अ॑ग्नइ॒हाव॑से॒¦होत्रां᳚यविष्ठ॒भार॑तीम् | वरू᳚त्रींधि॒षणां᳚वह || 10 || |
अ॒भिनो᳚दे॒वीरव॑सा¦म॒हःशर्म॑णानृ॒पत्नीः᳚ | अच्छि᳚न्नपत्राःसचन्ताम् || 11 || वर्ग:6 |
इ॒हेन्द्रा॒णीमुप॑ह्वये¦वरुणा॒नींस्व॒स्तये᳚ | अ॒ग्नायीं॒सोम॑पीतये || 12 || |
म॒हीद्यौःपृ॑थि॒वीच॑न¦इ॒मंय॒ज्ञंमि॑मिक्षताम् | पि॒पृ॒तांनो॒भरी᳚मभिः || 13 || |
तयो॒रिद्घृ॒तव॒त्पयो॒¦विप्रा᳚रिहन्तिधी॒तिभिः॑ | ग॒न्ध॒र्वस्य॑ध्रु॒वेप॒दे || 14 || |
स्यो॒नापृ॑थिविभवा¦नृक्ष॒रानि॒वेश॑नी | यच्छा᳚नः॒शर्म॑स॒प्रथः॑ || 15 || |
अतो᳚दे॒वा,अ॑वन्तुनो॒¦यतो॒विष्णु᳚र्विचक्र॒मे | पृ॒थि॒व्याःस॒प्तधाम॑भिः || 16 || वर्ग:7 |
इ॒दंविष्णु॒र्विच॑क्रमे¦त्रे॒धानिद॑धेप॒दम् | समू᳚ळ्हमस्यपांसु॒रे || 17 || |
त्रीणि॑प॒दाविच॑क्रमे॒¦विष्णु॑र्गो॒पा,अदा᳚भ्यः | अतो॒धर्मा᳚णिधा॒रय॑न् || 18 || |
विष्णोः॒कर्मा᳚णिपश्यत॒¦यतो᳚व्र॒तानि॑पस्प॒शे | इन्द्र॑स्य॒युज्यः॒सखा᳚ || 19 || |
तद्विष्णोः᳚पर॒मंप॒दं¦सदा᳚पश्यन्तिसू॒रयः॑ | दि॒वी᳚व॒चक्षु॒रात॑तम् || 20 || |
तद्विप्रा᳚सोविप॒न्यवो᳚¦जागृ॒वांसः॒समि᳚न्धते | विष्णो॒र्यत्प॑र॒मंप॒दम् || 21 || |
[23] तीव्राःसोमासैति चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य काण्वोमेधातिथिः आद्यायावायुः ततोद्वयोरिंद्रवायू ततस्तिसृणां मित्रावरुणौ ततस्तिसृणां मरुतः (मरुत्वानिंद्रइति केचित्) ततस्तिसृणां विश्वेदेवाः ततस्तिसृणां पूषाततः सप्तानामापः ततएकस्याअग्न्यापः ततएकस्या अग्निः अप्स्वंतरितिपुरउष्णिक् अप्सुमइत्यनुष्टुप्इदमापइत्याद्यास्तिस्रोनुष्टुभः आपःपृणीतेतिप्रतिष्ठा शेषागायत्र्यः। (अग्न्यापइत्यत्राप्शब्दस्यपूर्वनिपातेप्राप्तेद्वंद्वेधिइति सूत्रादग्निशब्दस्यपूर्वनिपातः कृतः ) |{मंडल:1, सूक्त:23}{अनुवाक:5, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
ती॒व्राःसोमा᳚स॒आग॑ह्या॒¦शीर्व᳚न्तःसु॒ता,इ॒मे | वायो॒तान्प्रस्थि॑तान्पिब || 1 || वर्ग:8 |
उ॒भादे॒वादि॑वि॒स्पृशे᳚¦न्द्रवा॒यूह॑वामहे | अ॒स्यसोम॑स्यपी॒तये᳚ || 2 || |
इ॒न्द्र॒वा॒यूम॑नो॒जुवा॒¦विप्रा᳚हवन्तऊ॒तये᳚ | स॒ह॒स्रा॒क्षाधि॒यस्पती᳚ || 3 || |
मि॒त्रंव॒यंह॑वामहे॒¦वरु॑णं॒सोम॑पीतये | ज॒ज्ञा॒नापू॒तद॑क्षसा || 4 || |
ऋ॒तेन॒यावृ॑ता॒वृधा᳚¦वृ॒तस्य॒ज्योति॑ष॒स्पती᳚ | तामि॒त्रावरु॑णाहुवे || 5 || |
वरु॑णःप्रावि॒ताभु॑वन्¦मि॒त्रोविश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | कर॑तांनःसु॒राध॑सः || 6 || वर्ग:9 |
म॒रुत्व᳚न्तंहवामह॒¦इन्द्र॒मासोम॑पीतये | स॒जूर्ग॒णेन॑तृम्पतु || 7 || |
इन्द्र॑ज्येष्ठा॒मरु॑द्गणा॒¦देवा᳚सः॒पूष॑रातयः | विश्वे॒मम॑श्रुता॒हव᳚म् || 8 || |
ह॒तवृ॒त्रंसु॑दानव॒¦इन्द्रे᳚ण॒सह॑सायु॒जा | मानो᳚दुः॒शंस॑ईशत || 9 || |
विश्वा᳚न्दे॒वान्ह॑वामहे¦म॒रुतः॒सोम॑पीतये | उ॒ग्राहिपृश्नि॑मातरः || 10 || |
जय॑तामिवतन्य॒तु¦र्म॒रुता᳚मेतिधृष्णु॒या | यच्छुभं᳚या॒थना᳚नरः || 11 || वर्ग:10 |
ह॒स्का॒राद्वि॒द्युत॒स्पर्य¦तो᳚जा॒ता,अ॑वन्तुनः | म॒रुतो᳚मृळयन्तुनः || 12 || |
आपू᳚षञ्चि॒त्रब᳚र्हिष॒¦माघृ॑णेध॒रुणं᳚दि॒वः | आजा᳚न॒ष्टंयथा᳚प॒शुम् || 13 || |
पू॒षाराजा᳚न॒माघृ॑णि॒¦रप॑गूळ्हं॒गुहा᳚हि॒तम् | अवि᳚न्दच्चि॒त्रब᳚र्हिषम् || 14 || |
उ॒तोसमह्य॒मिन्दु॑भिः॒¦षड्यु॒क्ताँ,अ॑नु॒सेषि॑धत् | गोभि॒र्यवं॒नच॑र्कृषत् || 15 || |
अ॒म्बयो᳚य॒न्त्यध्व॑भि¦र्जा॒मयो᳚,अध्वरीय॒ताम् | पृ॒ञ्च॒तीर्मधु॑ना॒पयः॑ || 16 || वर्ग:11 |
अ॒मूर्या,उप॒सूर्ये॒¦याभि᳚र्वा॒सूर्यः॑स॒ह | तानो᳚हिन्वन्त्वध्व॒रम् || 17 || |
अ॒पोदे॒वीरुप॑ह्वये॒¦यत्र॒गावः॒पिब᳚न्तिनः | सिन्धु॑भ्यः॒कर्त्वं᳚ह॒विः || 18 || |
अ॒प्स्व१॑(अ॒)न्तर॒मृत॑म॒प्सुभे᳚ष॒ज¦म॒पामु॒तप्रश॑स्तये | देवा॒भव॑तवा॒जिनः॑ || 19 || |
अ॒प्सुमे॒सोमो᳚,अब्रवी¦द॒न्तर्विश्वा᳚निभेष॒जा | अ॒ग्निंच॑वि॒श्वश᳚म्भुव॒¦माप॑श्चवि॒श्वभे᳚षजीः || 20 || |
आपः॑पृणी॒तभे᳚ष॒जं¦वरू᳚थंत॒न्वे॒३॑(ए॒)मम॑ | ज्योक्च॒सूर्यं᳚दृ॒शे || 21 || वर्ग:12 |
इ॒दमा᳚पः॒प्रव॑हत॒¦यत्किंच॑दुरि॒तंमयि॑ | यद्वा॒हम॑भिदु॒द्रोह॒¦यद्वा᳚शे॒पउ॒तानृ॑तम् || 22 || |
आपो᳚,अ॒द्यान्व॑चारिषं॒¦रसे᳚न॒सम॑गस्महि | पय॑स्वानग्न॒आग॑हि॒¦तंमा॒संसृ॑ज॒वर्च॑सा || 23 || |
संमा᳚ग्ने॒वर्च॑सासृज॒¦संप्र॒जया॒समायु॑षा | वि॒द्युर्मे᳚,अस्यदे॒वा¦,इन्द्रो᳚विद्यात्स॒हऋषि॑भिः || 24 || |
[24] कस्यनूनमितिपंचदशर्चस्य सूक्तस्याजीर्गर्तिःशुनःशेपः सकृत्रिमोवैश्वामित्रोदेवरातः आद्यायाः कः द्वितीयायाअग्निस्ततस्तिसृणांसविता ( भगभक्तस्येत्यस्याभगोवा ) नहितेक्षत्रमित्याद्यानांवरुणस्त्रिष्टुप् अभित्वेत्यादितिस्रोगायत्र्यः |{मंडल:1, सूक्त:24}{अनुवाक:6, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
कस्य॑नू॒नंक॑त॒मस्या॒मृता᳚नां॒¦मना᳚महे॒चारु॑दे॒वस्य॒नाम॑ | कोनो᳚म॒ह्या,अदि॑तये॒पुन॑र्दात्¦पि॒तरं᳚चदृ॒शेयं᳚मा॒तरं᳚च || 1 || वर्ग:13 |
अ॒ग्नेर्व॒यंप्र॑थ॒मस्या॒मृता᳚नां॒¦मना᳚महे॒चारु॑दे॒वस्य॒नाम॑ | सनो᳚म॒ह्या,अदि॑तये॒पुन॑र्दात्¦पि॒तरं᳚चदृ॒शेयं᳚मा॒तरं᳚च || 2 || |
अ॒भित्वा᳚देवसवित॒¦रीशा᳚नं॒वार्या᳚णाम् | सदा᳚वन्भा॒गमी᳚महे || 3 || |
यश्चि॒द्धित॑इ॒त्थाभगः॑¦शशमा॒नःपु॒रानि॒दः | अ॒द्वे॒षोहस्त॑योर्द॒धे || 4 || |
भग॑भक्तस्यतेव॒य¦मुद॑शेम॒तवाव॑सा | मू॒र्धानं᳚रा॒यआ॒रभे᳚ || 5 || |
न॒हिते᳚क्ष॒त्रंनसहो॒नम॒न्युं¦वय॑श्च॒नामीप॒तय᳚न्तआ॒पुः | नेमा,आपो᳚,अनिमि॒षंचर᳚न्ती॒¦र्नयेवात॑स्यप्रमि॒नन्त्यभ्व᳚म् || 6 || वर्ग:14 |
अ॒बु॒ध्नेराजा॒वरु॑णो॒वन॑स्यो॒¦र्ध्वंस्तूपं᳚ददतेपू॒तद॑क्षः | नी॒चीनाः᳚स्थुरु॒परि॑बु॒ध्नए᳚षा¦म॒स्मे,अ॒न्तर्निहि॑ताःके॒तवः॑स्युः || 7 || |
उ॒रुंहिराजा॒वरु॑णश्च॒कार॒¦सूर्या᳚य॒पन्था॒मन्वे᳚त॒वा,उ॑ | अ॒पदे॒पादा॒प्रति॑धातवेऽक¦रु॒ताप॑व॒क्ताहृ॑दया॒विध॑श्चित् || 8 || |
श॒तंते᳚राजन्भि॒षजः॑स॒हस्र॑¦मु॒र्वीग॑भी॒रासु॑म॒तिष्टे᳚,अस्तु | बाध॑स्वदू॒रेनिरृ॑तिंपरा॒चैः¦कृ॒तंचि॒देनः॒प्रमु॑मुग्ध्य॒स्मत् || 9 || |
अ॒मीयऋक्षा॒निहि॑तासउ॒च्चा¦नक्तं॒ददृ॑श्रे॒कुह॑चि॒द्दिवे᳚युः | अद॑ब्धानि॒वरु॑णस्यव्र॒तानि॑¦वि॒चाक॑शच्च॒न्द्रमा॒नक्त॑मेति || 10 || |
तत्त्वा᳚यामि॒ब्रह्म॑णा॒वन्द॑मान॒स्¦तदाशा᳚स्ते॒यज॑मानोह॒विर्भिः॑ | अहे᳚ळमानोवरुणे॒हबो॒ध्यु¦रु॑शंस॒मान॒आयुः॒प्रमो᳚षीः || 11 || वर्ग:15 |
तदिन्नक्तं॒तद्दिवा॒मह्य॑माहु॒स्¦तद॒यंकेतो᳚हृ॒दआविच॑ष्टे | शुनः॒शेपो॒यमह्व॑द्गृभी॒तः¦सो,अ॒स्मान्राजा॒वरु॑णोमुमोक्तु || 12 || |
शुनः॒शेपो॒ह्यह्व॑द्गृभी॒तस्¦त्रि॒ष्वा᳚दि॒त्यंद्रु॑प॒देषु॑ब॒द्धः | अवै᳚नं॒राजा॒वरु॑णःससृज्याद्¦वि॒द्वाँ,अद॑ब्धो॒विमु॑मोक्तु॒पाशा॑न् || 13 || |
अव॑ते॒हेळो᳚वरुण॒नमो᳚भि॒¦रव॑य॒ज्ञेभि॑रीमहेह॒विर्भिः॑ | क्षय᳚न्न॒स्मभ्य॑मसुरप्रचेता॒¦राज॒न्नेनां᳚सिशिश्रथःकृ॒तानि॑ || 14 || |
उदु॑त्त॒मंव॑रुण॒पाश॑म॒स्म¦दवा᳚ध॒मंविम॑ध्य॒मंश्र॑थाय | अथा᳚व॒यमा᳚दित्यव्र॒तेतवा¦ना᳚गसो॒,अदि॑तयेस्याम || 15 || |
[25] यच्चिद्धितइत्येकविंशत्यृचस्य सूक्तस्याजीर्गर्तिःशुनःशेपोवरुणोगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:25}{अनुवाक:6, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
यच्चि॒द्धिते॒विशो᳚यथा॒¦प्रदे᳚ववरुणव्र॒तम् | मि॒नी॒मसि॒द्यवि॑द्यवि || 1 || वर्ग:16 |
मानो᳚व॒धाय॑ह॒त्नवे᳚¦जिहीळा॒नस्य॑रीरधः | माहृ॑णा॒नस्य॑म॒न्यवे᳚ || 2 || |
विमृ॑ळी॒काय॑ते॒मनो᳚¦र॒थीरश्वं॒नसंदि॑तम् | गी॒र्भिर्व॑रुणसीमहि || 3 || |
परा॒हिमे॒विम᳚न्यवः॒¦पत᳚न्ति॒वस्य॑इष्टये | वयो॒नव॑स॒तीरुप॑ || 4 || |
क॒दाक्ष॑त्र॒श्रियं॒नर॒¦मावरु॑णंकरामहे | मृ॒ळी॒कायो᳚रु॒चक्ष॑सम् || 5 || |
तदित्स॑मा॒नमा᳚शाते॒¦वेन᳚न्ता॒नप्रयु॑च्छतः | धृ॒तव्र॑तायदा॒शुषे᳚ || 6 || वर्ग:17 |
वेदा॒योवी॒नांप॒द¦म॒न्तरि॑क्षेण॒पत॑ताम् | वेद॑ना॒वःस॑मु॒द्रियः॑ || 7 || |
वेद॑मा॒सोधृ॒तव्र॑तो॒¦द्वाद॑शप्र॒जाव॑तः | वेदा॒यउ॑प॒जाय॑ते || 8 || |
वेद॒वात॑स्यवर्त॒नि¦मु॒रोरृ॒ष्वस्य॑बृह॒तः | वेदा॒ये,अ॒ध्यास॑ते || 9 || |
निष॑सादधृ॒तव्र॑तो॒¦वरु॑णःप॒स्त्या॒३॑(आ॒)स्वा | साम्रा᳚ज्यायसु॒क्रतुः॑ || 10 || |
अतो॒विश्वा॒न्यद्भु॑ता¦चिकि॒त्वाँ,अ॒भिप॑श्यति | कृ॒तानि॒याच॒कर्त्वा᳚ || 11 || वर्ग:18 |
सनो᳚वि॒श्वाहा᳚सु॒क्रतु॑¦रादि॒त्यःसु॒पथा᳚करत् | प्रण॒आयूं᳚षितारिषत् || 12 || |
बिभ्र॑द्द्रा॒पिंहि॑र॒ण्ययं॒¦वरु॑णोवस्तनि॒र्णिज᳚म् | परि॒स्पशो॒निषे᳚दिरे || 13 || |
नयंदिप्स᳚न्तिदि॒प्सवो॒¦नद्रुह्वा᳚णो॒जना᳚नाम् | नदे॒वम॒भिमा᳚तयः || 14 || |
उ॒तयोमानु॑षे॒ष्वा¦यश॑श्च॒क्रे,असा॒म्या | अ॒स्माक॑मु॒दरे॒ष्वा || 15 || |
परा᳚मेयन्तिधी॒तयो॒¦गावो॒नगव्यू᳚ती॒रनु॑ | इ॒च्छन्ती᳚रुरु॒चक्ष॑सम् || 16 || वर्ग:19 |
संनुवो᳚चावहै॒पुन॒¦र्यतो᳚मे॒मध्वाभृ॑तम् | होते᳚व॒क्षद॑सेप्रि॒यम् || 17 || |
दर्शं॒नुवि॒श्वद॑र्शतं॒¦दर्शं॒रथ॒मधि॒क्षमि॑ | ए॒ताजु॑षतमे॒गिरः॑ || 18 || |
इ॒मंमे᳚वरुणश्रुधी॒¦हव॑म॒द्याच॑मृळय | त्वाम॑व॒स्युराच॑के || 19 || |
त्वंविश्व॑स्यमेधिर¦दि॒वश्च॒ग्मश्च॑राजसि | सयाम॑नि॒प्रति॑श्रुधि || 20 || |
उदु॑त्त॒मंमु॑मुग्धिनो॒¦विपाशं᳚मध्य॒मंचृ॑त | अवा᳚ध॒मानि॑जी॒वसे᳚ || 21 || |
[26] वसिष्वेतिदशर्चस्य सूक्तस्याजीगर्तिःशुनःशेपोग्निर्गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:26}{अनुवाक:6, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
वसि॑ष्वा॒हिमि॑येध्य॒¦वस्त्रा᳚ण्यूर्जांपते | सेमंनो᳚,अध्व॒रंय॑ज || 1 || वर्ग:20 |
निनो॒होता॒वरे᳚ण्यः॒¦सदा᳚यविष्ठ॒मन्म॑भिः | अग्ने᳚दि॒वित्म॑ता॒वचः॑ || 2 || |
आहिष्मा᳚सू॒नवे᳚पि॒ता¦पिर्यज॑त्या॒पये᳚ | सखा॒सख्ये॒वरे᳚ण्यः || 3 || |
आनो᳚ब॒र्हीरि॒शाद॑सो॒¦वरु॑णोमि॒त्रो,अ᳚र्य॒मा | सीद᳚न्तु॒मनु॑षोयथा || 4 || |
पूर्व्य॑होतर॒स्यनो॒¦मन्द॑स्वस॒ख्यस्य॑च | इ॒मा,उ॒षुश्रु॑धी॒गिरः॑ || 5 || |
यच्चि॒द्धिशश्व॑ता॒तना᳚¦दे॒वंदे᳚वं॒यजा᳚महे | त्वे,इद्धू᳚यतेह॒विः || 6 || वर्ग:21 |
प्रि॒योनो᳚,अस्तुवि॒श्पति॒¦र्होता᳚म॒न्द्रोवरे᳚ण्यः | प्रि॒याःस्व॒ग्नयो᳚व॒यम् || 7 || |
स्व॒ग्नयो॒हिवार्यं᳚¦दे॒वासो᳚दधि॒रेच॑नः | स्व॒ग्नयो᳚मनामहे || 8 || |
अथा᳚नउ॒भये᳚षा॒¦ममृ॑त॒मर्त्या᳚नाम् | मि॒थःस᳚न्तु॒प्रश॑स्तयः || 9 || |
विश्वे᳚भिरग्ने,अ॒ग्निभि॑¦रि॒मंय॒ज्ञमि॒दंवचः॑ | चनो᳚धाःसहसोयहो || 10 || |
[27] अश्वंनत्वेतित्रयोदशर्चस्यसूक्तस्याजीगर्तिःशुनःशेपोऽग्निर्गायत्री | नमोमहद्भ्यइत्यस्यादेवास्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:27}{अनुवाक:6, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
अश्वं॒नत्वा॒वार॑वन्तं¦व॒न्दध्या᳚,अ॒ग्निंनमो᳚भिः | स॒म्राज᳚न्तमध्व॒राणा᳚म् || 1 || वर्ग:22 |
सघा᳚नःसू॒नुःशव॑सा¦पृ॒थुप्र॑गामासु॒शेवः॑ | मी॒ढ्वाँ,अ॒स्माकं᳚बभूयात् || 2 || |
सनो᳚दू॒राच्चा॒साच्च॒¦निमर्त्या᳚दघा॒योः | पा॒हिसद॒मिद्वि॒श्वायुः॑ || 3 || |
इ॒ममू॒षुत्वम॒स्माकं᳚¦स॒निंगा᳚य॒त्रंनव्यां᳚सम् | अग्ने᳚दे॒वेषु॒प्रवो᳚चः || 4 || |
आनो᳚भजपर॒मे¦ष्वावाजे᳚षुमध्य॒मेषु॑ | शिक्षा॒वस्वो॒,अन्त॑मस्य || 5 || |
वि॒भ॒क्तासि॑चित्रभानो॒¦सिन्धो᳚रू॒र्मा,उ॑पा॒कआ | स॒द्योदा॒शुषे᳚क्षरसि || 6 || वर्ग:23 |
यम॑ग्नेपृ॒त्सुमर्त्य॒¦मवा॒वाजे᳚षु॒यंजु॒नाः | सयन्ता॒शश्व॑ती॒रिषः॑ || 7 || |
नकि॑रस्यसहन्त्य¦पर्ये॒ताकय॑स्यचित् | वाजो᳚,अस्तिश्र॒वाय्यः॑ || 8 || |
सवाजं᳚वि॒श्वच॑र्षणि॒¦रर्व॑द्भिरस्तु॒तरु॑ता | विप्रे᳚भिरस्तु॒सनि॑ता || 9 || |
जरा᳚बोध॒तद्वि॑विड्ढि¦वि॒शेवि॑शेय॒ज्ञिया᳚य | स्तोमं᳚रु॒द्राय॒दृशी᳚कम् || 10 || |
सनो᳚म॒हाँ,अ॑निमा॒नो¦धू॒मके᳚तुःपुरुश्च॒न्द्रः | धि॒येवाजा᳚यहिन्वतु || 11 || वर्ग:24 |
सरे॒वाँ,इ॑ववि॒श्पति॒¦र्दैव्यः॑के॒तुःशृ॑णोतुनः | उ॒क्थैर॒ग्निर्बृ॒हद्भा᳚नुः || 12 || |
नमो᳚म॒हद्भ्यो॒नमो᳚,अर्भ॒केभ्यो॒¦नमो॒युव॑भ्यो॒नम॑आशि॒नेभ्यः॑ | यजा᳚मदे॒वान्यदि॑श॒क्नवा᳚म॒¦माज्याय॑सः॒शंस॒मावृ॑क्षिदेवाः || 13 || |
[28] यत्रग्रावेतिनवर्चस्यसूक्तस्याजीगर्तिःशुनःशेपःआद्यानांचतसृणामिंद्रः ततो द्वयोरुलूखलं ततोद्वयोरुलूखलमुसले अंत्यायाः प्रजापतिर्हरिश्चंद्रः ( अधिषवणचर्मदेवतावा ) आद्याः षळनुष्टुभः अंत्यास्तिस्रोगायत्र्यः |{मंडल:1, सूक्त:28}{अनुवाक:6, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
यत्र॒ग्रावा᳚पृ॒थुबु॑ध्न¦ऊ॒र्ध्वोभव॑ति॒सोत॑वे | उ॒लूख॑लसुताना॒¦मवेद्वि᳚न्द्रजल्गुलः || 1 || वर्ग:25 |
यत्र॒द्वावि॑वज॒घना᳚¦धिषव॒ण्या᳚कृ॒ता | उ॒लूख॑लसुताना॒¦मवेद्वि᳚न्द्रजल्गुलः || 2 || |
यत्र॒नार्य॑पच्य॒व¦मु॑पच्य॒वंच॒शिक्ष॑ते | उ॒लूख॑लसुताना॒¦मवेद्वि᳚न्द्रजल्गुलः || 3 || |
यत्र॒मन्थां᳚विब॒ध्नते᳚¦र॒श्मीन्यमि॑त॒वा,इ॑व | उ॒लूख॑लसुताना॒¦मवेद्वि᳚न्द्रजल्गुलः || 4 || |
यच्चि॒द्धित्वंगृ॒हेगृ॑ह॒¦उलू᳚खलकयु॒ज्यसे᳚ | इ॒हद्यु॒मत्त॑मंवद॒¦जय॑तामिवदुन्दु॒भिः || 5 || |
उ॒तस्म॑तेवनस्पते॒¦वातो॒विवा॒त्यग्र॒मित् | अथो॒,इन्द्रा᳚य॒पात॑वे¦सु॒नुसोम॑मुलूखल || 6 || वर्ग:26 |
आ॒य॒जीवा᳚ज॒सात॑मा॒¦ताह्यु१॑(उ॒)च्चावि॑जर्भृ॒तः | हरी᳚,इ॒वान्धां᳚सि॒बप्स॑ता || 7 || |
तानो᳚,अ॒द्यव॑नस्पती¦ऋ॒ष्वावृ॒ष्वेभिः॑सो॒तृभिः॑ | इन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्सुतम् || 8 || |
उच्छि॒ष्टंच॒म्वो᳚र्भर॒¦सोमं᳚प॒वित्र॒आसृ॑ज | निधे᳚हि॒गोरधि॑त्व॒चि || 9 || |
[29] यच्चिद्धिसत्येतिसप्तर्चस्यसूक्तस्याजीगर्तिःशुनःशेपइंद्रःपंक्तिः |{मंडल:1, सूक्त:29}{अनुवाक:6, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
यच्चि॒द्धिस॑त्यसोमपा¦,अनाश॒स्ता,इ॑व॒स्मसि॑ | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 1 || वर्ग:27 |
शिप्रि᳚न्वाजानांपते॒¦शची᳚व॒स्तव॑दं॒सना᳚ | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 2 || |
निष्वा᳚पयामिथू॒दृशा᳚¦स॒स्तामबु॑ध्यमाने | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 3 || |
स॒सन्तु॒त्या,अरा᳚तयो॒¦बोध᳚न्तुशूररा॒तयः॑ | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 4 || |
समि᳚न्द्रगर्द॒भंमृ॑ण¦नु॒वन्तं᳚पा॒पया᳚मु॒या | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 5 || |
पता᳚तिकुण्डृ॒णाच्या᳚¦दू॒रंवातो॒वना॒दधि॑ | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 6 || |
सर्वं᳚परिक्रो॒शंज॑हि¦ज॒म्भया᳚कृकदा॒श्व᳚म् | आतून॑इन्द्रशंसय॒¦गोष्वश्वे᳚षुशु॒भ्रिषु॑स॒हस्रे᳚षुतुवीमघ || 7 || |
[30] आवइंद्रमिति द्वाविंशत्यृचस्यसूक्तस्याजीगर्तिःशुनःशेपइंद्रः सप्तदश्यादितिसृणामश्विनौ ततस्तिसृणामुषागायत्री अस्माकमितिपादनिचृत् शश्वदिंद्रइतित्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:30}{अनुवाक:6, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
आव॒इन्द्रं॒क्रिविं᳚यथा¦वाज॒यन्तः॑श॒तक्र॑तुम् | मंहि॑ष्ठंसिञ्च॒इन्दु॑भिः || 1 || वर्ग:28 |
श॒तंवा॒यःशुची᳚नां¦स॒हस्रं᳚वा॒समा᳚शिराम् | एदु॑नि॒म्नंनरी᳚यते || 2 || |
संयन्मदा᳚यशु॒ष्मिण॑¦ए॒नाह्य॑स्यो॒दरे᳚ | स॒मु॒द्रोनव्यचो᳚द॒धे || 3 || |
अ॒यमु॑ते॒सम॑तसि¦क॒पोत॑इवगर्भ॒धिम् | वच॒स्तच्चि᳚न्नओहसे || 4 || |
स्तो॒त्रंरा᳚धानांपते॒¦गिर्वा᳚होवीर॒यस्य॑ते | विभू᳚तिरस्तुसू॒नृता᳚ || 5 || |
ऊ॒र्ध्वस्ति॑ष्ठानऊ॒तये॒¦ऽस्मिन्वाजे᳚शतक्रतो | सम॒न्येषु॑ब्रवावहै || 6 || वर्ग:29 |
योगे᳚योगेत॒वस्त॑रं॒¦वाजे᳚वाजेहवामहे | सखा᳚य॒इन्द्र॑मू॒तये᳚ || 7 || |
आघा᳚गम॒द्यदि॒श्रव॑त्¦सह॒स्रिणी᳚भिरू॒तिभिः॑ | वाजे᳚भि॒रुप॑नो॒हव᳚म् || 8 || |
अनु॑प्र॒त्नस्यौक॑सो¦हु॒वेतु॑विप्र॒तिंनर᳚म् | यंते॒पूर्वं᳚पि॒ताहु॒वे || 9 || |
तंत्वा᳚व॒यंवि॑श्ववा॒रा¦शा᳚स्महेपुरुहूत | सखे᳚वसोजरि॒तृभ्यः॑ || 10 || |
अ॒स्माकं᳚शि॒प्रिणी᳚नां॒¦सोम॑पाःसोम॒पाव्ना᳚म् | सखे᳚वज्रि॒न्त्सखी᳚नाम् || 11 || वर्ग:30 |
तथा॒तद॑स्तुसोमपाः॒¦सखे᳚वज्रि॒न्तथा᳚कृणु | यथा᳚तउ॒श्मसी॒ष्टये᳚ || 12 || |
रे॒वती᳚र्नःसध॒माद॒¦इन्द्रे᳚सन्तुतु॒विवा᳚जाः | क्षु॒मन्तो॒याभि॒र्मदे᳚म || 13 || |
आघ॒त्वावा॒न्त्मना॒प्तः¦स्तो॒तृभ्यो᳚धृष्णविया॒नः | ऋ॒णोरक्षं॒नच॒क्र्योः᳚ || 14 || |
आयद्दुवः॑शतक्रत॒¦वाकामं᳚जरितॄ॒णाम् | ऋ॒णोरक्षं॒नशची᳚भिः || 15 || |
शश्व॒दिन्द्रः॒पोप्रु॑थद्भिर्जिगाय॒¦नान॑दद्भिः॒शाश्व॑सद्भि॒र्धना᳚नि | सनो᳚हिरण्यर॒थंदं॒सना᳚वा॒न्¦त्सनः॑सनि॒तास॒नये॒सनो᳚ऽदात् || 16 || वर्ग:31 |
आश्वि॑ना॒वश्वा᳚वत्ये॒¦षाया᳚तं॒शवी᳚रया | गोम॑द्दस्रा॒हिर᳚ण्यवत् || 17 || |
स॒मा॒नयो᳚जनो॒हिवां॒¦रथो᳚दस्रा॒वम॑र्त्यः | स॒मु॒द्रे,अ॑श्वि॒नेय॑ते || 18 || |
न्य१॑(अ॒)घ्न्यस्य॑मू॒र्धनि॑¦च॒क्रंरथ॑स्ययेमथुः | परि॒द्याम॒न्यदी᳚यते || 19 || |
कस्त॑उषःकधप्रिये¦भु॒जेमर्तो᳚,अमर्त्ये | कंन॑क्षसेविभावरि || 20 || |
व॒यंहिते॒,अम᳚न्म॒ह्या¦ऽऽन्ता॒दाप॑रा॒कात् | अश्वे॒नचि॑त्रे,अरुषि || 21 || |
त्वंत्येभि॒राग॑हि॒¦वाजे᳚भिर्दुहितर्दिवः | अ॒स्मेर॒यिंनिधा᳚रय || 22 || |
[31] त्वमग्नइत्यष्टादशर्चस्य सूक्तस्यांगिरसोहिरण्यस्तूपोग्निर्जगती अष्टमी षोळश्यंत्यास्त्रिष्टुभः |{मंडल:1, सूक्त:31}{अनुवाक:7, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
त्वम॑ग्नेप्रथ॒मो,अङ्गि॑रा॒ऋषि॑¦र्दे॒वोदे॒वाना᳚मभवःशि॒वःसखा᳚ | तव᳚व्र॒तेक॒वयो᳚विद्म॒नाप॒सो¦ऽजा᳚यन्तम॒रुतो॒भ्राज॑दृष्टयः || 1 || वर्ग:32 |
त्वम॑ग्नेप्रथ॒मो,अङ्गि॑रस्तमः¦क॒विर्दे॒वानां॒परि॑भूषसिव्र॒तम् | वि॒भुर्विश्व॑स्मै॒भुव॑नाय॒मेधि॑रो¦द्विमा॒ताश॒युःक॑ति॒धाचि॑दा॒यवे᳚ || 2 || |
त्वम॑ग्नेप्रथ॒मोमा᳚त॒रिश्व॑न¦आ॒विर्भ॑वसुक्रतू॒यावि॒वस्व॑ते | अरे᳚जेतां॒रोद॑सीहोतृ॒वूर्ये¦ऽस॑घ्नोर्भा॒रमय॑जोम॒होव॑सो || 3 || |
त्वम॑ग्ने॒मन॑वे॒द्याम॑वाशयः¦पुरू॒रव॑सेसु॒कृते᳚सु॒कृत्त॑रः | श्वा॒त्रेण॒यत्पि॒त्रोर्मुच्य॑से॒पर्या¦त्वा॒पूर्व॑मनय॒न्नाप॑रं॒पुनः॑ || 4 || |
त्वम॑ग्नेवृष॒भःपु॑ष्टि॒वर्ध॑न॒¦उद्य॑तस्रुचेभवसिश्र॒वाय्यः॑ | यआहु॑तिं॒परि॒वेदा॒वष॑ट्कृति॒¦मेका᳚यु॒रग्रे॒विश॑आ॒विवा᳚ससि || 5 || |
त्वम॑ग्नेवृजि॒नव॑र्तनिं॒नरं॒¦सक्म᳚न्पिपर्षिवि॒दथे᳚विचर्षणे | यःशूर॑साता॒परि॑तक्म्ये॒धने᳚¦द॒भ्रेभि॑श्चि॒त्समृ॑ता॒हंसि॒भूय॑सः || 6 || वर्ग:33 |
त्वंतम॑ग्ने,अमृत॒त्वउ॑त्त॒मे¦मर्तं᳚दधासि॒श्रव॑सेदि॒वेदि॑वे | यस्ता᳚तृषा॒णउ॒भया᳚य॒जन्म॑ने॒¦मयः॑कृ॒णोषि॒प्रय॒आच॑सू॒रये᳚ || 7 || |
त्वंनो᳚,अग्नेस॒नये॒धना᳚नां¦य॒शसं᳚का॒रुंकृ॑णुहि॒स्तवा᳚नः | ऋ॒ध्याम॒कर्मा॒पसा॒नवे᳚न¦दे॒वैर्द्या᳚वापृथिवी॒प्राव॑तंनः || 8 || |
त्वंनो᳚,अग्नेपि॒त्रोरु॒पस्थ॒आ¦दे॒वोदे॒वेष्व॑नवद्य॒जागृ॑विः | त॒नू॒कृद्बो᳚धि॒प्रम॑तिश्चका॒रवे॒¦त्वंक᳚ल्याण॒वसु॒विश्व॒मोपि॑षे || 9 || |
त्वम॑ग्ने॒प्रम॑ति॒स्त्वंपि॒तासि॑न॒स्¦त्वंव॑य॒स्कृत्तव॑जा॒मयो᳚व॒यम् | संत्वा॒रायः॑श॒तिनः॒संस॑ह॒स्रिणः॑¦सु॒वीरं᳚यन्तिव्रत॒पाम॑दाभ्य || 10 || |
त्वाम॑ग्नेप्रथ॒ममा॒युमा॒यवे᳚¦दे॒वा,अ॑कृण्व॒न्नहु॑षस्यवि॒श्पति᳚म् | इळा᳚मकृण्व॒न्मनु॑षस्य॒शास॑नीं¦पि॒तुर्यत्पु॒त्रोमम॑कस्य॒जाय॑ते || 11 || वर्ग:34 |
त्वंनो᳚,अग्ने॒तव॑देवपा॒युभि᳚¦र्म॒घोनो᳚रक्षत॒न्व॑श्चवन्द्य | त्रा॒तातो॒कस्य॒तन॑ये॒गवा᳚म॒¦स्यनि॑मेषं॒रक्ष॑माण॒स्तव᳚व्र॒ते || 12 || |
त्वम॑ग्ने॒यज्य॑वेपा॒युरन्त॑रो¦ऽनिष॒ङ्गाय॑चतुर॒क्षइ॑ध्यसे | योरा॒तह᳚व्योऽवृ॒काय॒धाय॑से¦की॒रेश्चि॒न्मन्त्रं॒मन॑साव॒नोषि॒तम् || 13 || |
त्वम॑ग्नउरु॒शंसा᳚यवा॒घते᳚¦स्पा॒र्हंयद्रेक्णः॑पर॒मंव॒नोषि॒तत् | आ॒ध्रस्य॑चि॒त्प्रम॑तिरुच्यसेपि॒ता¦प्रपाकं॒शास्सि॒प्रदिशो᳚वि॒दुष्ट॑रः || 14 || |
त्वम॑ग्ने॒प्रय॑तदक्षिणं॒नरं॒¦वर्मे᳚वस्यू॒तंपरि॑पासिवि॒श्वतः॑ | स्वा॒दु॒क्षद्मा॒योव॑स॒तौस्यो᳚न॒कृज्¦जी᳚वया॒जंयज॑ते॒सोप॒मादि॒वः || 15 || |
इ॒माम॑ग्नेश॒रणिं᳚मीमृषोन¦इ॒ममध्वा᳚नं॒यमगा᳚मदू॒रात् | आ॒पिःपि॒ताप्रम॑तिःसो॒म्यानां॒¦भृमि॑रस्यृषि॒कृन्मर्त्या᳚नाम् || 16 || वर्ग:35 |
म॒नु॒ष्वद॑ग्ने,अङ्गिर॒स्वद᳚ङ्गिरो¦ययाति॒वत्सद॑नेपूर्व॒वच्छु॑चे | अच्छ॑या॒ह्याव॑हा॒दैव्यं॒जन॒¦मासा᳚दयब॒र्हिषि॒यक्षि॑चप्रि॒यम् || 17 || |
ए॒तेना᳚ग्ने॒ब्रह्म॑णावावृधस्व॒¦शक्ती᳚वा॒यत्ते᳚चकृ॒मावि॒दावा᳚ | उ॒तप्रणे᳚ष्य॒भिवस्यो᳚,अ॒स्मान्¦त्संनः॑सृजसुम॒त्यावाज॑वत्या || 18 || |
[32] इंद्रस्यन्विति पंचदशर्चस्यसूक्तस्यांगिरसोहिरण्यस्तूपइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:32}{अनुवाक:7, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:2} |
इन्द्र॑स्य॒नुवी॒र्या᳚णि॒प्रवो᳚चं॒¦यानि॑च॒कार॑प्रथ॒मानि॑व॒ज्री | अह॒न्नहि॒मन्व॒पस्त॑तर्द॒¦प्रव॒क्षणा᳚,अभिन॒त्पर्व॑तानाम् || 1 || वर्ग:36 |
अह॒न्नहिं॒पर्व॑तेशिश्रिया॒णं¦त्वष्टा᳚स्मै॒वज्रं᳚स्व॒र्यं᳚ततक्ष | वा॒श्रा,इ॑वधे॒नवः॒स्यन्द॑माना॒,¦अञ्जः॑समु॒द्रमव॑जग्मु॒रापः॑ || 2 || |
वृ॒षा॒यमा᳚णोऽवृणीत॒सोमं॒¦त्रिक॑द्रुकेष्वपिबत्सु॒तस्य॑ | आसाय॑कंम॒घवा᳚दत्त॒वज्र॒¦मह᳚न्नेनंप्रथम॒जामही᳚नाम् || 3 || |
यदि॒न्द्राह᳚न्प्रथम॒जामही᳚ना॒¦मान्मा॒यिना॒ममि॑नाः॒प्रोतमा॒याः | आत्सूर्यं᳚ज॒नय॒न्द्यामु॒षासं᳚¦ता॒दीत्ना॒शत्रुं॒नकिला᳚विवित्से || 4 || |
अह᳚न्वृ॒त्रंवृ॑त्र॒तरं॒व्यं᳚स॒¦मिन्द्रो॒वज्रे᳚णमह॒ताव॒धेन॑ | स्कन्धां᳚सीव॒कुलि॑शेना॒विवृ॒क्णा¦हिः॑शयतउप॒पृक्पृ॑थि॒व्याः || 5 || |
अ॒यो॒द्धेव॑दु॒र्मद॒आहिजु॒ह्वे¦म॑हावी॒रंतु॑विबा॒धमृ॑जी॒षम् | नाता᳚रीदस्य॒समृ॑तिंव॒धानां॒¦संरु॒जानाः᳚पिपिष॒इन्द्र॑शत्रुः || 6 || वर्ग:37 |
अ॒पाद॑ह॒स्तो,अ॑पृतन्य॒दिन्द्र॒¦मास्य॒वज्र॒मधि॒सानौ᳚जघान | वृष्णो॒वध्रिः॑प्रति॒मानं॒बुभू᳚षन्¦पुरु॒त्रावृ॒त्रो,अ॑शय॒द्व्य॑स्तः || 7 || |
न॒दंनभि॒न्नम॑मु॒याशया᳚नं॒¦मनो॒रुहा᳚णा॒,अति॑य॒न्त्यापः॑ | याश्चि॑द्वृ॒त्रोम॑हि॒नाप॒र्यति॑ष्ठ॒त्¦तासा॒महिः॑पत्सुतः॒शीर्ब॑भूव || 8 || |
नी॒चाव॑या,अभवद्वृ॒त्रपु॒त्रे¦न्द्रो᳚,अस्या॒,अव॒वध॑र्जभार | उत्त॑रा॒सूरध॑रःपु॒त्रआ᳚सी॒द्¦दानुः॑शयेस॒हव॑त्सा॒नधे॒नुः || 9 || |
अति॑ष्ठन्तीनामनिवेश॒नानां॒¦काष्ठा᳚नां॒मध्ये॒निहि॑तं॒शरी᳚रम् | वृ॒त्रस्य॑नि॒ण्यंविच॑र॒न्त्यापो᳚¦दी॒र्घंतम॒आश॑य॒दिन्द्र॑शत्रुः || 10 || |
दा॒सप॑त्नी॒रहि॑गोपा,अतिष्ठ॒न्¦निरु॑द्धा॒,आपः॑प॒णिने᳚व॒गावः॑ | अ॒पांबिल॒मपि॑हितं॒यदासी᳚द्¦वृ॒त्रंज॑घ॒न्वाँ,अप॒तद्व॑वार || 11 || वर्ग:38 |
अश्व्यो॒वारो᳚,अभव॒स्तदि᳚न्द्र¦सृ॒केयत्त्वा᳚प्र॒त्यह᳚न्दे॒वएकः॑ | अज॑यो॒गा,अज॑यःशूर॒सोम॒¦मवा᳚सृजः॒सर्त॑वेस॒प्तसिन्धू॑न् || 12 || |
नास्मै᳚वि॒द्युन्नत᳚न्य॒तुःसि॑षेध॒¦नयांमिह॒मकि॑रद्ध्रा॒दुनिं᳚च | इन्द्र॑श्च॒यद्यु॑यु॒धाते॒,अहि॑श्चो॒¦ताप॒रीभ्यो᳚म॒घवा॒विजि॑ग्ये || 13 || |
अहे᳚र्या॒तारं॒कम॑पश्यइन्द्र¦हृ॒दियत्ते᳚ज॒घ्नुषो॒भीरग॑च्छत् | नव॑च॒यन्न॑व॒तिंच॒स्रव᳚न्तीः¦श्ये॒नोनभी॒तो,अत॑रो॒रजां᳚सि || 14 || |
इन्द्रो᳚या॒तोऽव॑सितस्य॒राजा॒¦शम॑स्यचशृ॒ङ्गिणो॒वज्र॑बाहुः | सेदु॒राजा᳚क्षयतिचर्षणी॒ना¦म॒रान्नने॒मिःपरि॒ताब॑भूव || 15 || |
[33] एतायामेतिपंचदशर्चस्यसूक्तस्यांगिरसोहिरण्यस्तूपइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:33}{अनुवाक:7, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
एताया॒मोप॑ग॒व्यन्त॒इन्द्र॑¦म॒स्माकं॒सुप्रम॑तिंवावृधाति | अ॒ना॒मृ॒णःकु॒विदाद॒स्यरा॒यो¦गवां॒केतं॒पर॑मा॒वर्ज॑तेनः || 1 || वर्ग:1 |
उपेद॒हंध॑न॒दामप्र॑तीतं॒¦जुष्टां॒नश्ये॒नोव॑स॒तिंप॑तामि | इन्द्रं᳚नम॒स्यन्नु॑प॒मेभि॑र॒र्कै¦र्यःस्तो॒तृभ्यो॒हव्यो॒,अस्ति॒याम॑न् || 2 || |
निसर्व॑सेनइषु॒धीँर॑सक्त॒¦सम॒र्योगा,अ॑जति॒यस्य॒वष्टि॑ | चो॒ष्कू॒यमा᳚णइन्द्र॒भूरि॑वा॒मं¦माप॒णिर्भू᳚र॒स्मदधि॑प्रवृद्ध || 3 || |
वधी॒र्हिदस्युं᳚ध॒निनं᳚घ॒नेनँ॒¦एक॒श्चर᳚न्नुपशा॒केभि॑रिन्द्र | धनो॒रधि॑विषु॒णक्तेव्या᳚य॒¦न्नय॑ज्वानःसन॒काःप्रेति॑मीयुः || 4 || |
परा᳚चिच्छी॒र्षाव॑वृजु॒स्तइ॒न्द्रा¦य॑ज्वानो॒यज्व॑भिः॒स्पर्ध॑मानाः | प्रयद्दि॒वोह॑रिवःस्थातरुग्र॒¦निर᳚व्र॒ताँ,अ॑धमो॒रोद॑स्योः || 5 || |
अयु॑युत्सन्ननव॒द्यस्य॒सेना॒¦मया᳚तयन्तक्षि॒तयो॒नव॑ग्वाः | वृ॒षा॒युधो॒नवध्र॑यो॒निर॑ष्टाः¦प्र॒वद्भि॒रिन्द्रा᳚च्चि॒तय᳚न्तआयन् || 6 || वर्ग:2 |
त्वमे॒तान्रु॑द॒तोजक्ष॑त॒श्चा¦यो᳚धयो॒रज॑सइन्द्रपा॒रे | अवा᳚दहोदि॒वआदस्यु॑मु॒च्चा¦प्रसु᳚न्व॒तःस्तु॑व॒तःशंस॑मावः || 7 || |
च॒क्रा॒णासः॑परी॒णहं᳚पृथि॒व्या¦हिर᳚ण्येनम॒णिना॒शुम्भ॑मानाः | नहि᳚न्वा॒नास॑स्तितिरु॒स्तइन्द्रं॒¦परि॒स्पशो᳚,अदधा॒त्सूर्ये᳚ण || 8 || |
परि॒यदि᳚न्द्र॒रोद॑सी,उ॒भे¦,अबु॑भोजीर्महि॒नावि॒श्वतः॑सीम् | अम᳚न्यमानाँ,अ॒भिमन्य॑मानै॒¦र्निर्ब्र॒ह्मभि॑रधमो॒दस्यु॑मिन्द्र || 9 || |
नयेदि॒वःपृ॑थि॒व्या,अन्त॑मा॒पु¦र्नमा॒याभि॑र्धन॒दांप॒र्यभू᳚वन् | युजं॒वज्रं᳚वृष॒भश्च॑क्र॒इन्द्रो॒¦निर्ज्योति॑षा॒तम॑सो॒गा,अ॑दुक्षत् || 10 || |
अनु॑स्व॒धाम॑क्षर॒न्नापो᳚,अ॒स्या¦व॑र्धत॒मध्य॒आना॒व्या᳚नाम् | स॒ध्री॒चीने᳚न॒मन॑सा॒तमिन्द्र॒¦ओजि॑ष्ठेन॒हन्म॑नाहन्न॒भिद्यून् || 11 || वर्ग:3 |
न्या᳚विध्यदिली॒बिश॑स्यदृ॒ळ्हा¦विशृ॒ङ्गिण॑मभिन॒च्छुष्ण॒मिन्द्रः॑ | याव॒त्तरो᳚मघव॒न्याव॒दोजो॒¦वज्रे᳚ण॒शत्रु॑मवधीःपृत॒न्युम् || 12 || |
अ॒भिसि॒ध्मो,अ॑जिगादस्य॒शत्रू॒न्¦विति॒ग्मेन॑वृष॒भेणा॒पुरो᳚ऽभेत् | संवज्रे᳚णासृजद्वृ॒त्रमिन्द्रः॒¦प्रस्वांम॒तिम॑तिर॒च्छाश॑दानः || 13 || |
आवः॒कुत्स॑मिन्द्र॒यस्मि᳚ञ्चा॒कन्¦प्रावो॒युध्य᳚न्तंवृष॒भंदश॑द्युम् | श॒फच्यु॑तोरे॒णुर्न॑क्षत॒द्या¦मुच्छ्वै᳚त्रे॒योनृ॒षाह्या᳚यतस्थौ || 14 || |
आवः॒शमं᳚वृष॒भंतुग्र्या᳚सु¦क्षेत्रजे॒षेम॑घव॒ञ्छ्वित्र्यं॒गाम् | ज्योक्चि॒दत्र॑तस्थि॒वांसो᳚,अक्रञ्¦छत्रूय॒तामध॑रा॒वेद॑नाकः || 15 || |
[34] त्रिश्चिदितिद्वादशर्चस्यसूक्तस्यांगिरसोहिरण्यस्तूपोश्विनौजगती नवम्यंत्येत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:34}{अनुवाक:7, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
त्रिश्चि᳚न्नो,अ॒द्याभ॑वतंनवेदसा¦वि॒भुर्वां॒याम॑उ॒तरा॒तिर॑श्विना | यु॒वोर्हिय॒न्त्रंहि॒म्येव॒वास॑सो¦ऽभ्यायं॒सेन्या᳚भवतंमनी॒षिभिः॑ || 1 || वर्ग:4 |
त्रयः॑प॒वयो᳚मधु॒वाह॑ने॒रथे॒¦सोम॑स्यवे॒नामनु॒विश्व॒इद्वि॑दुः | त्रयः॑स्क॒म्भासः॑स्कभि॒तास॑आ॒रभे॒¦त्रिर्नक्तं᳚या॒थस्त्रिर्व॑श्विना॒दिवा᳚ || 2 || |
स॒मा॒ने,अह॒न्त्रिर॑वद्यगोहना॒¦त्रिर॒द्यय॒ज्ञंमधु॑नामिमिक्षतम् | त्रिर्वाज॑वती॒रिषो᳚,अश्विनायु॒वं¦दो॒षा,अ॒स्मभ्य॑मु॒षस॑श्चपिन्वतम् || 3 || |
त्रिर्व॒र्तिर्या᳚तं॒त्रिरनु᳚व्रतेज॒ने¦त्रिःसु॑प्रा॒व्ये᳚त्रे॒धेव॑शिक्षतम् | त्रिर्ना॒न्द्यं᳚वहतमश्विनायु॒वं¦त्रिःपृक्षो᳚,अ॒स्मे,अ॒क्षरे᳚वपिन्वतम् || 4 || |
त्रिर्नो᳚र॒यिंव॑हतमश्विनायु॒वं¦त्रिर्दे॒वता᳚ता॒त्रिरु॒ताव॑तं॒धियः॑ | त्रिःसौ᳚भग॒त्वंत्रिरु॒तश्रवां᳚सिनस्¦त्रि॒ष्ठंवां॒सूरे᳚दुहि॒तारु॑ह॒द्रथ᳚म् || 5 || |
त्रिर्नो᳚,अश्विनादि॒व्यानि॑भेष॒जा¦त्रिःपार्थि॑वानि॒त्रिरु॑दत्तम॒द्भ्यः | ओ॒मानं᳚शं॒योर्मम॑कायसू॒नवे᳚¦त्रि॒धातु॒शर्म॑वहतंशुभस्पती || 6 || |
त्रिर्नो᳚,अश्विनायज॒तादि॒वेदि॑वे॒¦परि॑त्रि॒धातु॑पृथि॒वीम॑शायतम् | ति॒स्रोना᳚सत्यारथ्यापरा॒वत॑¦आ॒त्मेव॒वातः॒स्वस॑राणिगच्छतम् || 7 || वर्ग:5 |
त्रिर॑श्विना॒सिन्धु॑भिःस॒प्तमा᳚तृभि॒स्¦त्रय॑आहा॒वास्त्रे॒धाह॒विष्कृ॒तम् | ति॒स्रःपृ॑थि॒वीरु॒परि॑प्र॒वादि॒वो¦नाकं᳚रक्षेथे॒द्युभि॑र॒क्तुभि᳚र्हि॒तम् || 8 || |
क्व१॑(अ॒)त्रीच॒क्रात्रि॒वृतो॒रथ॑स्य॒¦क्व१॑(अ॒)त्रयो᳚व॒न्धुरो॒येसनी᳚ळाः | क॒दायोगो᳚वा॒जिनो॒रास॑भस्य॒¦येन॑य॒ज्ञंना᳚सत्योपया॒थः || 9 || |
आना᳚सत्या॒गच्छ॑तंहू॒यते᳚ह॒वि¦र्मध्वः॑पिबतंमधु॒पेभि॑रा॒सभिः॑ | यु॒वोर्हिपूर्वं᳚सवि॒तोषसो॒रथ॑¦मृ॒ताय॑चि॒त्रंघृ॒तव᳚न्त॒मिष्य॑ति || 10 || |
आना᳚सत्यात्रि॒भिरे᳚काद॒शैरि॒ह¦दे॒वेभि᳚र्यातंमधु॒पेय॑मश्विना | प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒नीरपां᳚सिमृक्षतं॒¦सेध॑तं॒द्वेषो॒भव॑तंसचा॒भुवा᳚ || 11 || |
आनो᳚,अश्विनात्रि॒वृता॒रथे᳚ना॒¦र्वाञ्चं᳚र॒यिंव॑हतंसु॒वीर᳚म् | शृ॒ण्वन्ता᳚वा॒मव॑सेजोहवीमि¦वृ॒धेच॑नोभवतं॒वाज॑सातौ || 12 || |
[35] ह्वयामीत्येकादशर्चस्यसूक्तस्यांगिरसोहिरण्यस्तूपः सवितात्रिष्टुप् आद्यायाश्चतुर्षुपादेषुक्रमेणाग्निमित्रावरुणरात्रिसवितारोदेवताः आद्यानवम्यौ जगत्यौ |{मंडल:1, सूक्त:35}{अनुवाक:7, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
ह्वया᳚म्य॒ग्निंप्र॑थ॒मंस्व॒स्तये॒¦ह्वया᳚मिमि॒त्रावरु॑णावि॒हाव॑से | ह्वया᳚मि॒रात्रीं॒जग॑तोनि॒वेश॑नीं॒¦ह्वया᳚मिदे॒वंस॑वि॒तार॑मू॒तये᳚ || 1 || वर्ग:6 |
आकृ॒ष्णेन॒रज॑सा॒वर्त॑मानो¦निवे॒शय᳚न्न॒मृतं॒मर्त्यं᳚च | हि॒र॒ण्यये᳚नसवि॒तारथे॒ना¦दे॒वोया᳚ति॒भुव॑नानि॒पश्य॑न् || 2 || |
याति॑दे॒वःप्र॒वता॒यात्यु॒द्वता॒¦याति॑शु॒भ्राभ्यां᳚यज॒तोहरि॑भ्याम् | आदे॒वोया᳚तिसवि॒ताप॑रा॒वतो¦ऽप॒विश्वा᳚दुरि॒ताबाध॑मानः || 3 || |
अ॒भीवृ॑तं॒कृश॑नैर्वि॒श्वरू᳚पं॒¦हिर᳚ण्यशम्यंयज॒तोबृ॒हन्त᳚म् | आस्था॒द्रथं᳚सवि॒ताचि॒त्रभा᳚नुः¦कृ॒ष्णारजां᳚सि॒तवि॑षीं॒दधा᳚नः || 4 || |
विजना᳚ञ्छ्या॒वाःशि॑ति॒पादो᳚,अख्य॒न्¦रथं॒हिर᳚ण्यप्रौगं॒वह᳚न्तः | शश्व॒द्विशः॑सवि॒तुर्दैव्य॑स्यो॒¦पस्थे॒विश्वा॒भुव॑नानितस्थुः || 5 || |
ति॒स्रोद्यावः॑सवि॒तुर्द्वा,उ॒पस्थाँ॒¦एका᳚य॒मस्य॒भुव॑नेविरा॒षाट् | आ॒णिंनरथ्य॑म॒मृताधि॑तस्थु¦रि॒हब्र॑वीतु॒यउ॒तच्चिके᳚तत् || 6 || |
विसु॑प॒र्णो,अ॒न्तरि॑क्षाण्यख्यद्¦गभी॒रवे᳚पा॒,असु॑रःसुनी॒थः | क्वे॒३॑(ए॒)दानीं॒सूर्यः॒कश्चि॑केत¦कत॒मांद्यांर॒श्मिर॒स्यात॑तान || 7 || वर्ग:7 |
अ॒ष्टौव्य॑ख्यत्क॒कुभः॑पृथि॒व्यास्¦त्रीधन्व॒योज॑नास॒प्तसिन्धू॑न् | हि॒र॒ण्या॒क्षःस॑वि॒तादे॒वआगा॒द्¦दध॒द्रत्ना᳚दा॒शुषे॒वार्या᳚णि || 8 || |
हिर᳚ण्यपाणिःसवि॒ताविच॑र्षणि¦रु॒भेद्यावा᳚पृथि॒वी,अ॒न्तरी᳚यते | अपामी᳚वां॒बाध॑ते॒वेति॒सूर्य॑¦म॒भिकृ॒ष्णेन॒रज॑सा॒द्यामृ॑णोति || 9 || |
हिर᳚ण्यहस्तो॒,असु॑रःसुनी॒थः¦सु॑मृळी॒कःस्ववाँ᳚यात्व॒र्वाङ् | अ॒प॒सेध᳚न्र॒क्षसो᳚यातु॒धाना॒¦नस्था᳚द्दे॒वःप्र॑तिदो॒षंगृ॑णा॒नः || 10 || |
येते॒पन्थाः᳚सवितःपू॒र्व्यासो᳚¦ऽरे॒णवः॒सुकृ॑ता,अ॒न्तरि॑क्षे | तेभि᳚र्नो,अ॒द्यप॒थिभिः॑¦सु॒गेभी॒रक्षा᳚चनो॒,अधि॑चब्रूहिदेव || 11 || |
[36] प्रवोयह्वमितिविंशत्यचस्य सूक्तस्य घौरः कण्वोग्निः ऊर्ध्वऊषुणइतिद्वयोर्यूपः प्रगाथः (अयुजोबृहत्यः युजः सतोबृहत्यइत्यर्थः) |{मंडल:1, सूक्त:36}{अनुवाक:8, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
प्रवो᳚य॒ह्वंपु॑रू॒णां¦वि॒शांदे᳚वय॒तीना᳚म् | अ॒ग्निंसू॒क्तेभि॒र्वचो᳚भिरीमहे॒¦यंसी॒मिद॒न्यईळ॑ते || 1 || वर्ग:8 |
जना᳚सो,अ॒ग्निंद॑धिरेसहो॒वृधं᳚¦ह॒विष्म᳚न्तोविधेमते | सत्वंनो᳚,अ॒द्यसु॒मना᳚,इ॒हावि॒ता¦भवा॒वाजे᳚षुसन्त्य || 2 || |
प्रत्वा᳚दू॒तंवृ॑णीमहे॒¦होता᳚रंवि॒श्ववे᳚दसम् | म॒हस्ते᳚स॒तोविच॑रन्त्य॒र्चयो᳚¦दि॒विस्पृ॑शन्तिभा॒नवः॑ || 3 || |
दे॒वास॑स्त्वा॒वरु॑णोमि॒त्रो,अ᳚र्य॒मा¦संदू॒तंप्र॒त्नमि᳚न्धते | विश्वं॒सो,अ॑ग्नेजयति॒त्वया॒धनं॒¦यस्ते᳚द॒दाश॒मर्त्यः॑ || 4 || |
म॒न्द्रोहोता᳚गृ॒हप॑ति॒¦रग्ने᳚दू॒तोवि॒शाम॑सि | त्वेविश्वा॒संग॑तानिव्र॒ताध्रु॒वा¦यानि॑दे॒वा,अकृ᳚ण्वत || 5 || |
त्वे,इद॑ग्नेसु॒भगे᳚यविष्ठ्य॒¦विश्व॒माहू᳚यतेह॒विः | सत्वंनो᳚,अ॒द्यसु॒मना᳚,उ॒ताप॒रं¦यक्षि॑दे॒वान्त्सु॒वीर्या᳚ || 6 || वर्ग:9 |
तंघे᳚मि॒त्थान॑म॒स्विन॒¦उप॑स्व॒राज॑मासते | होत्रा᳚भिर॒ग्निंमनु॑षः॒समि᳚न्धते¦तिति॒र्वांसो॒,अति॒स्रिधः॑ || 7 || |
घ्नन्तो᳚वृ॒त्रम॑तर॒न्रोद॑सी,अ॒प¦उ॒रुक्षया᳚यचक्रिरे | भुव॒त्कण्वे॒वृषा᳚द्यु॒म्न्याहु॑तः॒¦क्रन्द॒दश्वो॒गवि॑ष्टिषु || 8 || |
संसी᳚दस्वम॒हाँ,अ॑सि॒¦शोच॑स्वदेव॒वीत॑मः | विधू॒मम॑ग्ने,अरु॒षंमि॑येध्य¦सृ॒जप्र॑शस्तदर्श॒तम् || 9 || |
यंत्वा᳚दे॒वासो॒मन॑वेद॒धुरि॒ह¦यजि॑ष्ठंहव्यवाहन | यंकण्वो॒मेध्या᳚तिथिर्धन॒स्पृतं॒¦यंवृषा॒यमु॑पस्तु॒तः || 10 || |
यम॒ग्निंमेध्या᳚तिथिः॒¦कण्व॑ई॒धऋ॒तादधि॑ | तस्य॒प्रेषो᳚दीदियु॒स्तमि॒मा,ऋच॒स्¦तम॒ग्निंव॑र्धयामसि || 11 || वर्ग:10 |
रा॒यस्पू᳚र्धिस्वधा॒वोऽस्ति॒हिते¦ग्ने᳚दे॒वेष्वाप्य᳚म् | त्वंवाज॑स्य॒श्रुत्य॑स्यराजसि॒¦सनो᳚मृळम॒हाँ,अ॑सि || 12 || |
ऊ॒र्ध्वऊ॒षुण॑ऊ॒तये॒¦तिष्ठा᳚दे॒वोनस॑वि॒ता | ऊ॒र्ध्वोवाज॑स्य॒सनि॑ता॒¦यद॒ञ्जिभि᳚र्वा॒घद्भि᳚र्वि॒ह्वया᳚महे || 13 || |
ऊ॒र्ध्वोनः॑पा॒ह्यंह॑सो॒निके॒तुना॒¦विश्वं॒सम॒त्रिणं᳚दह | कृ॒धीन॑ऊ॒र्ध्वाञ्च॒रथा᳚यजी॒वसे᳚¦वि॒दादे॒वेषु॑नो॒दुवः॑ || 14 || |
पा॒हिनो᳚,अग्नेर॒क्षसः॑पा॒हि¦धू॒र्तेररा᳚व्णः | पा॒हिरीष॑तउ॒तवा॒जिघां᳚सतो॒¦बृह॑द्भानो॒यवि॑ष्ठ्य || 15 || |
घ॒नेव॒विष्व॒ग्विज॒ह्यरा᳚व्ण॒स्¦तपु॑र्जम्भ॒यो,अ॑स्म॒ध्रुक् | योमर्त्यः॒शिशी᳚ते॒,अत्य॒क्तुभि॒¦र्मानः॒सरि॒पुरी᳚शत || 16 || वर्ग:11 |
अ॒ग्निर्व᳚व्नेसु॒वीर्य॑¦म॒ग्निःकण्वा᳚य॒सौभ॑गम् | अ॒ग्निःप्राव᳚न्मि॒त्रोतमेध्या᳚तिथि¦म॒ग्निःसा॒ता,उ॑पस्तु॒तम् || 17 || |
अ॒ग्निना᳚तु॒र्वशं॒यदुं᳚परा॒वत॑¦उ॒ग्रादे᳚वंहवामहे | अ॒ग्निर्न॑य॒न्नव॑वास्त्वंबृ॒हद्र॑थं¦तु॒र्वीतिं॒दस्य॑वे॒सहः॑ || 18 || |
नित्वाम॑ग्ने॒मनु॑र्दधे॒¦ज्योति॒र्जना᳚य॒शश्व॑ते | दी॒देथ॒कण्व॑ऋ॒तजा᳚तउक्षि॒तो¦यंन॑म॒स्यन्ति॑कृ॒ष्टयः॑ || 19 || |
त्वे॒षासो᳚,अ॒ग्नेरम॑वन्तो,अ॒र्चयो᳚¦भी॒मासो॒नप्रती᳚तये | र॒क्ष॒स्विनः॒सद॒मिद्या᳚तु॒माव॑तो॒¦विश्वं॒सम॒त्रिणं᳚दह || 20 || |
[37] क्रीळंवइतिपंचदशर्चस्य सूक्तस्य घौरःकण्वोमरुतो गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:37}{अनुवाक:8, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
क्री॒ळंवः॒शर्धो॒मारु॑त¦मन॒र्वाणं᳚रथे॒शुभ᳚म् | कण्वा᳚,अ॒भिप्रगा᳚यत || 1 || वर्ग:12 |
येपृष॑तीभिरृ॒ष्टिभिः॑¦सा॒कंवाशी᳚भिर॒ञ्जिभिः॑ | अजा᳚यन्त॒स्वभा᳚नवः || 2 || |
इ॒हेव॑शृण्वएषां॒¦कशा॒हस्ते᳚षु॒यद्वदा॑न् | नियाम᳚ञ्चि॒त्रमृ᳚ञ्जते || 3 || |
प्रवः॒शर्धा᳚य॒घृष्व॑ये¦त्वे॒षद्यु᳚म्नायशु॒ष्मिणे᳚ | दे॒वत्तं॒ब्रह्म॑गायत || 4 || |
प्रशं᳚सा॒गोष्वघ्न्यं᳚¦क्री॒ळंयच्छर्धो॒मारु॑तम् | जम्भे॒रस॑स्यवावृधे || 5 || |
कोवो॒वर्षि॑ष्ठ॒आन॑रो¦दि॒वश्च॒ग्मश्च॑धूतयः | यत्सी॒मन्तं॒नधू᳚नु॒थ || 6 || वर्ग:13 |
निवो॒यामा᳚य॒मानु॑षो¦द॒ध्रउ॒ग्राय॑म॒न्यवे᳚ | जिही᳚त॒पर्व॑तोगि॒रिः || 7 || |
येषा॒मज्मे᳚षुपृथि॒वी¦जु॑जु॒र्वाँ,इ॑ववि॒श्पतिः॑ | भि॒यायामे᳚षु॒रेज॑ते || 8 || |
स्थि॒रंहिजान॑मेषां॒¦वयो᳚मा॒तुर्निरे᳚तवे | यत्सी॒मनु॑द्वि॒ताशवः॑ || 9 || |
उदु॒त्येसू॒नवो॒गिरः॒¦काष्ठा॒,अज्मे᳚ष्वत्नत | वा॒श्रा,अ॑भि॒ज्ञुयात॑वे || 10 || |
त्यंचि॑द्घादी॒र्घंपृ॒थुं¦मि॒होनपा᳚त॒ममृ॑ध्रम् | प्रच्या᳚वयन्ति॒याम॑भिः || 11 || वर्ग:14 |
मरु॑तो॒यद्ध॑वो॒बलं॒¦जनाँ᳚,अचुच्यवीतन | गि॒रीँर॑चुच्यवीतन || 12 || |
यद्ध॒यान्ति॑म॒रुतः॒¦संह॑ब्रुव॒तेऽध्व॒न्ना | शृ॒णोति॒कश्चि॑देषाम् || 13 || |
प्रया᳚त॒शीभ॑मा॒शुभिः॒¦सन्ति॒कण्वे᳚षुवो॒दुवः॑ | तत्रो॒षुमा᳚दयाध्वै || 14 || |
अस्ति॒हिष्मा॒मदा᳚यवः॒¦स्मसि॑ष्माव॒यमे᳚षाम् | विश्वं᳚चि॒दायु॑र्जी॒वसे᳚ || 15 || |
[38] कद्धनूनमिति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य घौरः कण्वो मरुतो गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:38}{अनुवाक:8, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
कद्ध॑नू॒नंक॑धप्रियः¦पि॒तापु॒त्रंनहस्त॑योः | द॒धि॒ध्वेवृ॑क्तबर्हिषः || 1 || वर्ग:15 |
क्व॑नू॒नंकद्वो॒,अर्थं॒¦गन्ता᳚दि॒वोनपृ॑थि॒व्याः | क्व॑वो॒गावो॒नर᳚ण्यन्ति || 2 || |
क्व॑वःसु॒म्नानव्यां᳚सि॒¦मरु॑तः॒क्व॑सुवि॒ता | क्वो॒३॑(ओ॒)विश्वा᳚नि॒सौभ॑गा || 3 || |
यद्यू॒यंपृ॑श्निमातरो॒¦मर्ता᳚सः॒स्यात॑न | स्तो॒तावो᳚,अ॒मृतः॑स्यात् || 4 || |
मावो᳚मृ॒गोनयव॑से¦जरि॒ताभू॒दजो᳚ष्यः | प॒थाय॒मस्य॑गा॒दुप॑ || 5 || |
मोषुणः॒परा᳚परा॒¦निरृ॑तिर्दु॒र्हणा᳚वधीत् | प॒दी॒ष्टतृष्ण॑यास॒ह || 6 || वर्ग:16 |
स॒त्यंत्वे॒षा,अम॑वन्तो॒¦धन्व᳚ञ्चि॒दारु॒द्रिया᳚सः | मिहं᳚कृण्वन्त्यवा॒ताम् || 7 || |
वा॒श्रेव॑वि॒द्युन्मि॑माति¦व॒त्संनमा॒तासि॑षक्ति | यदे᳚षांवृ॒ष्टिरस॑र्जि || 8 || |
दिवा᳚चि॒त्तमः॑कृण्वन्ति¦प॒र्जन्ये᳚नोदवा॒हेन॑ | यत्पृ॑थि॒वींव्यु॒न्दन्ति॑ || 9 || |
अध॑स्व॒नान्म॒रुतां॒¦विश्व॒मासद्म॒पार्थि॑वम् | अरे᳚जन्त॒प्रमानु॑षाः || 10 || |
मरु॑तोवीळुपा॒णिभि॑श्¦चि॒त्रारोध॑स्वती॒रनु॑ | या॒तेमखि॑द्रयामभिः || 11 || वर्ग:17 |
स्थि॒रावः॑सन्तुने॒मयो॒¦रथा॒,अश्वा᳚सएषाम् | सुसं᳚स्कृता,अ॒भीश॑वः || 12 || |
अच्छा᳚वदा॒तना᳚गि॒रा¦ज॒रायै॒ब्रह्म॑ण॒स्पति᳚म् | अ॒ग्निंमि॒त्रंनद॑र्श॒तम् || 13 || |
मि॒मी॒हिश्लोक॑मा॒स्ये᳚¦प॒र्जन्य॑इवततनः | गाय॑गाय॒त्रमु॒क्थ्य᳚म् || 14 || |
वन्द॑स्व॒मारु॑तंग॒णं¦त्वे॒षंप॑न॒स्युम॒र्किण᳚म् | अ॒स्मेवृ॒द्धा,अ॑सन्नि॒ह || 15 || |
[39] प्रयदित्थेतिदशर्चस्य सूक्तस्य घौरः कण्वोमरुतो बार्हतप्रगाथः (अयुजो बृहत्यः युजः सतोबृहत्यः) |{मंडल:1, सूक्त:39}{अनुवाक:8, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
प्रयदि॒त्थाप॑रा॒वतः॑¦शो॒चिर्नमान॒मस्य॑थ | कस्य॒क्रत्वा᳚मरुतः॒कस्य॒वर्प॑सा॒¦कंया᳚थ॒कंह॑धूतयः || 1 || वर्ग:18 |
स्थि॒रावः॑स॒न्त्वायु॑धापरा॒णुदे᳚¦वी॒ळू,उ॒तप्र॑ति॒ष्कभे᳚ | यु॒ष्माक॑मस्तु॒तवि॑षी॒पनी᳚यसी॒¦मामर्त्य॑स्यमा॒यिनः॑ || 2 || |
परा᳚ह॒यत्स्थि॒रंह॒थ¦नरो᳚व॒र्तय॑थागु॒रु | विया᳚थनव॒निनः॑पृथि॒व्या¦व्याशाः॒पर्व॑तानाम् || 3 || |
न॒हिवः॒शत्रु᳚र्विवि॒दे,अधि॒द्यवि॒¦नभूम्यां᳚रिशादसः | यु॒ष्माक॑मस्तु॒तवि॑षी॒तना᳚यु॒जा¦रुद्रा᳚सो॒नूचि॑दा॒धृषे᳚ || 4 || |
प्रवे᳚पयन्ति॒पर्व॑ता॒न्¦विवि᳚ञ्चन्ति॒वन॒स्पती॑न् | प्रो,आ᳚रतमरुतोदु॒र्मदा᳚,इव॒¦देवा᳚सः॒सर्व॑यावि॒शा || 5 || |
उपो॒रथे᳚षु॒पृष॑तीरयुग्ध्वं॒¦प्रष्टि᳚र्वहति॒रोहि॑तः | आवो॒यामा᳚यपृथि॒वीचि॑दश्रो॒¦दबी᳚भयन्त॒मानु॑षाः || 6 || वर्ग:19 |
आवो᳚म॒क्षूतना᳚य॒कं¦रुद्रा॒,अवो᳚वृणीमहे | गन्ता᳚नू॒नंनोव॑सा॒यथा᳚पु॒रे¦त्थाकण्वा᳚यबि॒भ्युषे᳚ || 7 || |
यु॒ष्मेषि॑तोमरुतो॒मर्त्ये᳚षित॒¦आयोनो॒,अभ्व॒ईष॑ते | वितंयु॑योत॒शव॑सा॒व्योज॑सा॒¦वियु॒ष्माका᳚भिरू॒तिभिः॑ || 8 || |
असा᳚मि॒हिप्र॑यज्यवः॒¦कण्वं᳚द॒दप्र॑चेतसः | असा᳚मिभिर्मरुत॒आन॑ऊ॒तिभि॒¦र्गन्ता᳚वृ॒ष्टिंनवि॒द्युतः॑ || 9 || |
असा॒म्योजो᳚बिभृथासुदान॒वोऽसा᳚मिधूतयः॒शवः॑ | ऋ॒षि॒द्विषे᳚मरुतःपरिम॒न्यव॒¦इषुं॒नसृ॑जत॒द्विष᳚म् || 10 || |
[40] उत्तिष्ठेत्यष्टर्चस्य सूक्तस्य घौरः कण्वोब्रह्मणस्पतिः प्रगाथः (अयुजोबृहत्यः युजः सतोबृहत्यः) |{मंडल:1, सूक्त:40}{अनुवाक:8, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
उत्ति॑ष्ठब्रह्मणस्पते¦देव॒यन्त॑स्त्वेमहे | उप॒प्रय᳚न्तुम॒रुतः॑सु॒दान॑व॒¦इन्द्र॑प्रा॒शूर्भ॑वा॒सचा᳚ || 1 || वर्ग:20 |
त्वामिद्धिस॑हसस्पुत्र॒मर्त्य॑¦उपब्रू॒तेधने᳚हि॒ते | सु॒वीर्यं᳚मरुत॒आस्वश्व्यं॒¦दधी᳚त॒योव॑आच॒के || 2 || |
प्रैतु॒ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒¦प्रदे॒व्ये᳚तुसू॒नृता᳚ | अच्छा᳚वी॒रंनर्यं᳚प॒ङ्क्तिरा᳚धसं¦दे॒वाय॒ज्ञंन॑यन्तुनः || 3 || |
योवा॒घते॒ददा᳚तिसू॒नरं॒वसु॒¦सध॑त्ते॒,अक्षि॑ति॒श्रवः॑ | तस्मा॒,इळां᳚सु॒वीरा॒माय॑जामहे¦सु॒प्रतू᳚र्तिमने॒हस᳚म् || 4 || |
प्रनू॒नंब्रह्म॑ण॒स्पति॒¦र्मन्त्रं᳚वदत्यु॒क्थ्य᳚म् | यस्मि॒न्निन्द्रो॒वरु॑णोमि॒त्रो,अ᳚र्य॒मा¦दे॒वा,ओकां᳚सिचक्रि॒रे || 5 || |
तमिद्वो᳚चेमावि॒दथे᳚षुश॒म्भुवं॒¦मन्त्रं᳚देवा,अने॒हस᳚म् | इ॒मांच॒वाचं᳚प्रति॒हर्य॑थानरो॒¦विश्वेद्वा॒मावो᳚,अश्नवत् || 6 || वर्ग:21 |
कोदे᳚व॒यन्त॑मश्नव॒ज्¦जनं॒कोवृ॒क्तब᳚र्हिषम् | प्रप्र॑दा॒श्वान्प॒स्त्या᳚भिरस्थिता¦ऽन्त॒र्वाव॒त्क्षयं᳚दधे || 7 || |
उप॑क्ष॒त्रंपृ᳚ञ्ची॒तहन्ति॒राज॑भि¦र्भ॒येचि॑त्सुक्षि॒तिंद॑धे | नास्य॑व॒र्तानत॑रु॒ताम॑हाध॒ने¦नार्भे᳚,अस्तिव॒ज्रिणः॑ || 8 || |
[41] यंरक्षन्तीति नवर्चस्य सूक्तस्य घौरःकण्वः आद्यानांतिसृणामंत्यानांतिसृणांचवरुणमित्रार्यमणस्तृतीयादितिसृणामादित्यागायत्री |{मंडल:1, सूक्त:41}{अनुवाक:8, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
यंरक्ष᳚न्ति॒प्रचे᳚तसो॒¦वरु॑णोमि॒त्रो,अ᳚र्य॒मा | नूचि॒त्सद॑भ्यते॒जनः॑ || 1 || वर्ग:22 |
यंबा॒हुते᳚व॒पिप्र॑ति॒¦पान्ति॒मर्त्यं᳚रि॒षः | अरि॑ष्टः॒सर्व॑एधते || 2 || |
विदु॒र्गाविद्विषः॑पु॒रो¦घ्नन्ति॒राजा᳚नएषाम् | नय᳚न्तिदुरि॒ताति॒रः || 3 || |
सु॒गःपन्था᳚,अनृक्ष॒र¦आदि॑त्यासऋ॒तंय॒ते | नात्रा᳚वखा॒दो,अ॑स्तिवः || 4 || |
यंय॒ज्ञंनय॑थानर॒¦आदि॑त्या,ऋ॒जुना᳚प॒था | प्रवः॒सधी॒तये᳚नशत् || 5 || |
सरत्नं॒मर्त्यो॒वसु॒¦विश्वं᳚तो॒कमु॒तत्मना᳚ | अच्छा᳚गच्छ॒त्यस्तृ॑तः || 6 || वर्ग:23 |
क॒थारा᳚धामसखायः॒¦स्तोमं᳚मि॒त्रस्या᳚र्य॒म्णः | महि॒प्सरो॒वरु॑णस्य || 7 || |
मावो॒घ्नन्तं॒माशप᳚न्तं॒¦प्रति॑वोचेदेव॒यन्त᳚म् | सु॒म्नैरिद्व॒आवि॑वासे || 8 || |
च॒तुर॑श्चि॒द्दद॑मानाद्¦बिभी॒यादानिधा᳚तोः | नदु॑रु॒क्ताय॑स्पृहयेत् || 9 || |
[42] संपूषन्निति दशर्चस्य सूक्तस्य घौरः कण्वः पूषागायत्री |{मंडल:1, सूक्त:42}{अनुवाक:8, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
संपू᳚ष॒न्नध्व॑नस्तिर॒¦व्यंहो᳚विमुचोनपात् | सक्ष्वा᳚देव॒प्रण॑स्पु॒रः || 1 || वर्ग:24 |
योनः॑पूषन्न॒घोवृको᳚¦दुः॒शेव॑आ॒दिदे᳚शति | अप॑स्म॒तंप॒थोज॑हि || 2 || |
अप॒त्यंप॑रिप॒न्थिनं᳚¦मुषी॒वाणं᳚हुर॒श्चित᳚म् | दू॒रमधि॑स्रु॒तेर॑ज || 3 || |
त्वंतस्य॑द्वया॒विनो॒¦ऽघशं᳚सस्य॒कस्य॑चित् | प॒दाभिति॑ष्ठ॒तपु॑षिम् || 4 || |
आतत्ते᳚दस्रमन्तुमः॒¦पूष॒न्नवो᳚वृणीमहे | येन॑पि॒तॄनचो᳚दयः || 5 || |
अधा᳚नोविश्वसौभग॒¦हिर᳚ण्यवाशीमत्तम | धना᳚निसु॒षणा᳚कृधि || 6 || वर्ग:25 |
अति॑नःस॒श्चतो᳚नय¦सु॒गानः॑सु॒पथा᳚कृणु | पूष᳚न्नि॒हक्रतुं᳚विदः || 7 || |
अ॒भिसू॒यव॑संनय॒¦नन॑वज्वा॒रो,अध्व॑ने | पूष᳚न्नि॒हक्रतुं᳚विदः || 8 || |
श॒ग्धिपू॒र्धिप्रयं᳚सिच¦शिशी॒हिप्रास्यु॒दर᳚म् | पूष᳚न्नि॒हक्रतुं᳚विदः || 9 || |
नपू॒षणं᳚मेथामसि¦सू॒क्तैर॒भिगृ॑णीमसि | वसू᳚निद॒स्ममी᳚महे || 10 || |
[43] कद्रुद्रायेतिनवर्चस्य सूक्तस्य घौरः कण्वोरुद्रस्तृतीयायामित्रावरुणौचसप्तम्यादितृचस्य सोमो गायत्र्यन्त्यानुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:43}{अनुवाक:8, सूक्त:8}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
कद्रु॒द्राय॒प्रचे᳚तसे¦मी॒ळ्हुष्ट॑माय॒तव्य॑से | वो॒चेम॒शंत॑मंहृ॒दे || 1 || वर्ग:26 |
यथा᳚नो॒,अदि॑तिः॒कर॒त्¦पश्वे॒नृभ्यो॒यथा॒गवे᳚ | यथा᳚तो॒काय॑रु॒द्रिय᳚म् || 2 || |
यथा᳚नोमि॒त्रोवरु॑णो॒¦यथा᳚रु॒द्रश्चिके᳚तति | यथा॒विश्वे᳚स॒जोष॑सः || 3 || |
गा॒थप॑तिंमे॒धप॑तिं¦रु॒द्रंजला᳚षभेषजम् | तच्छं॒योःसु॒म्नमी᳚महे || 4 || |
यःशु॒क्रइ॑व॒सूर्यो॒¦हिर᳚ण्यमिव॒रोच॑ते | श्रेष्ठो᳚दे॒वानां॒वसुः॑ || 5 || |
शंनः॑कर॒त्यर्व॑ते¦सु॒गंमे॒षाय॑मे॒ष्ये᳚ | नृभ्यो॒नारि॑भ्यो॒गवे᳚ || 6 || वर्ग:27 |
अ॒स्मेसो᳚म॒श्रिय॒मधि॒¦निधे᳚हिश॒तस्य॑नृ॒णाम् | महि॒श्रव॑स्तुविनृ॒म्णम् || 7 || |
मानः॑सोमपरि॒बाधो॒¦मारा᳚तयोजुहुरन्त | आन॑इन्दो॒वाजे᳚भज || 8 || |
यास्ते᳚प्र॒जा,अ॒मृत॑स्य॒¦पर॑स्मि॒न्धाम᳚न्नृ॒तस्य॑ | मू॒र्धानाभा᳚सोमवेन¦आ॒भूष᳚न्तीःसोमवेदः || 9 || |
[44] अग्नेविवस्वदितिचतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्वोग्निराद्येअश्व्युषश्चप्रगाथः (अयुजोबृहत्यः युजःसतोबृहत्यः) |{मंडल:1, सूक्त:44}{अनुवाक:9, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
अग्ने॒विव॑स्वदु॒षस॑श्¦चि॒त्रंराधो᳚,अमर्त्य | आदा॒शुषे᳚जातवेदोवहा॒त्व¦म॒द्यादे॒वाँ,उ॑ष॒र्बुधः॑ || 1 || वर्ग:28 |
जुष्टो॒हिदू॒तो,असि॑हव्य॒वाह॒नो¦ऽग्ने᳚र॒थीर॑ध्व॒राणा᳚म् | स॒जूर॒श्विभ्या᳚मु॒षसा᳚सु॒वीर्य॑¦म॒स्मेधे᳚हि॒श्रवो᳚बृ॒हत् || 2 || |
अ॒द्यादू॒तंवृ॑णीमहे॒¦वसु॑म॒ग्निंपु॑रुप्रि॒यम् | धू॒मके᳚तुं॒भा,ऋ॑जीकं॒व्यु॑ष्टिषु¦य॒ज्ञाना᳚मध्वर॒श्रिय᳚म् || 3 || |
श्रेष्ठं॒यवि॑ष्ठ॒मति॑थिं॒स्वा᳚हुतं॒¦जुष्टं॒जना᳚यदा॒शुषे᳚ | दे॒वाँ,अच्छा॒यात॑वेजा॒तवे᳚दस¦म॒ग्निमी᳚ळे॒व्यु॑ष्टिषु || 4 || |
स्त॒वि॒ष्यामि॒त्वाम॒हं¦विश्व॑स्यामृतभोजन | अग्ने᳚त्रा॒तार॑म॒मृतं᳚मियेध्य॒¦यजि॑ष्ठंहव्यवाहन || 5 || |
सु॒शंसो᳚बोधिगृण॒तेय॑विष्ठ्य॒¦मधु॑जिह्वः॒स्वा᳚हुतः | प्रस्क᳚ण्वस्यप्रति॒रन्नायु॑र्जी॒वसे᳚¦नम॒स्यादैव्यं॒जन᳚म् || 6 || वर्ग:29 |
होता᳚रंवि॒श्ववे᳚दसं॒¦संहित्वा॒विश॑इ॒न्धते᳚ | सआव॑हपुरुहूत॒प्रचे᳚त॒सो¦ऽग्ने᳚दे॒वाँ,इ॒हद्र॒वत् || 7 || |
स॒वि॒तार॑मु॒षस॑म॒श्विना॒भग॑¦म॒ग्निंव्यु॑ष्टिषु॒क्षपः॑ | कण्वा᳚सस्त्वासु॒तसो᳚मासइन्धते¦हव्य॒वाहं᳚स्वध्वर || 8 || |
पति॒र्ह्य॑ध्व॒राणा॒¦मग्ने᳚दू॒तोवि॒शामसि॑ | उ॒ष॒र्बुध॒आव॑ह॒सोम॑पीतये¦दे॒वाँ,अ॒द्यस्व॒र्दृशः॑ || 9 || |
अग्ने॒पूर्वा॒,अनू॒षसो᳚विभावसो¦दी॒देथ॑वि॒श्वद॑र्शतः | असि॒ग्रामे᳚ष्ववि॒तापु॒रोहि॒तो¦ऽसि॑य॒ज्ञेषु॒मानु॑षः || 10 || |
नित्वा᳚य॒ज्ञस्य॒साध॑न॒¦मग्ने॒होता᳚रमृ॒त्विज᳚म् | म॒नु॒ष्वद्दे᳚वधीमहि॒प्रचे᳚तसं¦जी॒रंदू॒तमम॑र्त्यम् || 11 || वर्ग:30 |
यद्दे॒वानां᳚मित्रमहःपु॒रोहि॒तो¦ऽन्त॑रो॒यासि॑दू॒त्य᳚म् | सिन्धो᳚रिव॒प्रस्व॑नितासऊ॒र्मयो॒¦ऽग्नेर्भ्रा᳚जन्ते,अ॒र्चयः॑ || 12 || |
श्रु॒धिश्रु॑त्कर्ण॒वह्नि॑भि¦र्दे॒वैर॑ग्नेस॒याव॑भिः | आसी᳚दन्तुब॒र्हिषि॑मि॒त्रो,अ᳚र्य॒मा¦प्रा᳚त॒र्यावा᳚णो,अध्व॒रम् || 13 || |
शृ॒ण्वन्तु॒स्तोमं᳚म॒रुतः॑सु॒दान॑वो¦ऽग्निजि॒ह्वा,ऋ॑ता॒वृधः॑ | पिब॑तु॒सोमं॒वरु॑णोधृ॒तव्र॑तो॒¦ऽश्विभ्या᳚मु॒षसा᳚स॒जूः || 14 || |
[45] त्वमग्नेवसूनितिदशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्वोग्निरन्त्यायादेवाश्चानुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:45}{अनुवाक:9, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
त्वम॑ग्ने॒वसूँ᳚रि॒ह¦रु॒द्राँ,आ᳚दि॒त्याँ,उ॒त | यजा᳚स्वध्व॒रंजनं॒¦मनु॑जातंघृत॒प्रुष᳚म् || 1 || वर्ग:31 |
श्रु॒ष्टी॒वानो॒हिदा॒शुषे᳚¦दे॒वा,अ॑ग्ने॒विचे᳚तसः | तान्रो᳚हिदश्वगिर्वण॒स्¦त्रय॑स्त्रिंशत॒माव॑ह || 2 || |
प्रि॒य॒मे॒ध॒वद॑त्रि॒वज्¦जात॑वेदोविरूप॒वत् | अ॒ङ्गि॒र॒स्वन्म॑हिव्रत॒¦प्रस्क᳚ण्वस्यश्रुधी॒हव᳚म् || 3 || |
महि॑केरवऊ॒तये᳚¦प्रि॒यमे᳚धा,अहूषत | राज᳚न्तमध्व॒राणा᳚¦म॒ग्निंशु॒क्रेण॑शो॒चिषा᳚ || 4 || |
घृता᳚हवनसन्त्ये॒¦मा,उ॒षुश्रु॑धी॒गिरः॑ | याभिः॒कण्व॑स्यसू॒नवो॒¦हव॒न्तेऽव॑सेत्वा || 5 || |
त्वांचि॑त्रश्रवस्तम॒¦हव᳚न्तेवि॒क्षुज॒न्तवः॑ | शो॒चिष्के᳚शंपुरुप्रि॒या¦ग्ने᳚ह॒व्याय॒वोळ्ह॑वे || 6 || वर्ग:32 |
नित्वा॒होता᳚रमृ॒त्विजं᳚¦दधि॒रेव॑सु॒वित्त॑मम् | श्रुत्क᳚र्णंस॒प्रथ॑स्तमं॒¦विप्रा᳚,अग्ने॒दिवि॑ष्टिषु || 7 || |
आत्वा॒विप्रा᳚,अचुच्यवुः¦सु॒तसो᳚मा,अ॒भिप्रयः॑ | बृ॒हद्भाबिभ्र॑तोह॒वि¦रग्ने॒मर्ता᳚यदा॒शुषे᳚ || 8 || |
प्रा॒त॒र्याव्णः॑सहस्कृत¦सोम॒पेया᳚यसन्त्य | इ॒हाद्यदैव्यं॒जनं᳚¦ब॒र्हिरासा᳚दयावसो || 9 || |
अ॒र्वाञ्चं॒दैव्यं॒जन॒¦मग्ने॒यक्ष्व॒सहू᳚तिभिः | अ॒यंसोमः॑सुदानव॒स्¦तंपा᳚तति॒रो,अ᳚ह्न्यम् || 10 || |
[46] एषोउषाइति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्वोश्विनौगायत्री |{मंडल:1, सूक्त:46}{अनुवाक:9, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:3} |
ए॒षो,उ॒षा,अपू᳚र्व्या॒¦व्यु॑च्छतिप्रि॒यादि॒वः | स्तु॒षेवा᳚मश्विनाबृ॒हत् || 1 || वर्ग:33 |
याद॒स्रासिन्धु॑मातरा¦मनो॒तरा᳚रयी॒णाम् | धि॒यादे॒वाव॑सु॒विदा᳚ || 2 || |
व॒च्यन्ते᳚वांककु॒हासो᳚¦जू॒र्णाया॒मधि॑वि॒ष्टपि॑ | यद्वां॒रथो॒विभि॒ष्पता᳚त् || 3 || |
ह॒विषा᳚जा॒रो,अ॒पां¦पिप॑र्ति॒पपु॑रिर्नरा | पि॒ताकुट॑स्यचर्ष॒णिः || 4 || |
आ॒दा॒रोवां᳚मती॒नां¦नास॑त्यामतवचसा | पा॒तंसोम॑स्यधृष्णु॒या || 5 || |
यानः॒पीप॑रदश्विना॒¦ज्योति॑ष्मती॒तम॑स्ति॒रः | ताम॒स्मेरा᳚साथा॒मिष᳚म् || 6 || वर्ग:34 |
आनो᳚ना॒वाम॑ती॒नां¦या॒तंपा॒राय॒गन्त॑वे | यु॒ञ्जाथा᳚मश्विना॒रथ᳚म् || 7 || |
अ॒रित्रं᳚वांदि॒वस्पृ॒थु¦ती॒र्थेसिन्धू᳚नां॒रथः॑ | धि॒यायु॑युज्र॒इन्द॑वः || 8 || |
दि॒वस्क᳚ण्वास॒इन्द॑वो॒¦वसु॒सिन्धू᳚नांप॒दे | स्वंव॒व्रिंकुह॑धित्सथः || 9 || |
अभू᳚दु॒भा,उ॑अं॒शवे॒¦हिर᳚ण्यं॒प्रति॒सूर्यः॑ | व्य॑ख्यज्जि॒ह्वयासि॑तः || 10 || |
अभू᳚दुपा॒रमेत॑वे॒¦पन्था᳚ऋ॒तस्य॑साधु॒या | अद॑र्शि॒विस्रु॒तिर्दि॒वः || 11 || वर्ग:35 |
तत्त॒दिद॒श्विनो॒रवो᳚¦जरि॒ताप्रति॑भूषति | मदे॒सोम॑स्य॒पिप्र॑तोः || 12 || |
वा॒व॒सा॒नावि॒वस्व॑ति॒¦सोम॑स्यपी॒त्यागि॒रा | म॒नु॒ष्वच्छ᳚म्भू॒,आग॑तम् || 13 || |
यु॒वोरु॒षा,अनु॒श्रियं॒¦परि॑ज्मनोरु॒पाच॑रत् | ऋ॒ताव॑नथो,अ॒क्तुभिः॑ || 14 || |
उ॒भापि॑बतमश्विनो॒¦भानः॒शर्म॑यच्छतम् | अ॒वि॒द्रि॒याभि॑रू॒तिभिः॑ || 15 || |
[47] अयंवामिति दशर्चस्यसूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्वोश्विनौ प्रगाथः (अयुजोबृहत्यो युजःसतोबृहत्यः ) |{मंडल:1, सूक्त:47}{अनुवाक:9, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
अ॒यंवां॒मधु॑मत्तमः¦सु॒तःसोम॑ऋतावृधा | तम॑श्विनापिबतंति॒रो,अ᳚ह्न्यं¦ध॒त्तंरत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ || 1 || वर्ग:1 |
त्रि॒व॒न्धु॒रेण॑त्रि॒वृता᳚सु॒पेश॑सा॒¦रथे॒नाया᳚तमश्विना | कण्वा᳚सोवां॒ब्रह्म॑कृण्वन्त्यध्व॒रे¦तेषां॒सुशृ॑णुतं॒हव᳚म् || 2 || |
अश्वि॑ना॒मधु॑मत्तमं¦पा॒तंसोम॑मृतावृधा | अथा॒द्यद॑स्रा॒वसु॒बिभ्र॑ता॒रथे᳚¦दा॒श्वांस॒मुप॑गच्छतम् || 3 || |
त्रि॒ष॒ध॒स्थेब॒र्हिषि॑विश्ववेदसा॒¦मध्वा᳚य॒ज्ञंमि॑मिक्षतम् | कण्वा᳚सोवांसु॒तसो᳚मा,अ॒भिद्य॑वो¦यु॒वांह॑वन्ते,अश्विना || 4 || |
याभिः॒कण्व॑म॒भिष्टि॑भिः॒¦प्राव॑तंयु॒वम॑श्विना | ताभिः॒ष्व१॑(अ॒)स्माँ,अ॑वतंशुभस्पती¦पा॒तंसोम॑मृतावृधा || 5 || |
सु॒दासे᳚दस्रा॒वसु॒बिभ्र॑ता॒रथे॒¦पृक्षो᳚वहतमश्विना | र॒यिंस॑मु॒द्रादु॒तवा᳚दि॒वस्पर्य॒¦स्मेध॑त्तंपुरु॒स्पृह᳚म् || 6 || वर्ग:2 |
यन्ना᳚सत्यापरा॒वति॒¦यद्वा॒स्थो,अधि॑तु॒र्वशे᳚ | अतो॒रथे᳚नसु॒वृता᳚न॒आग॑तं¦सा॒कंसूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॑ || 7 || |
अ॒र्वाञ्चा᳚वां॒सप्त॑योऽध्वर॒श्रियो॒¦वह᳚न्तु॒सव॒नेदुप॑ | इषं᳚पृ॒ञ्चन्ता᳚सु॒कृते᳚सु॒दान॑व॒¦आब॒र्हिःसी᳚दतंनरा || 8 || |
तेन॑नास॒त्याग॑तं॒¦रथे᳚न॒सूर्य॑त्वचा | येन॒शश्व॑दू॒हथु॑र्दा॒शुषे॒वसु॒¦मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || 9 || |
उ॒क्थेभि॑र॒र्वागव॑सेपुरू॒वसू᳚,¦अ॒र्कैश्च॒निह्व॑यामहे | शश्व॒त्कण्वा᳚नां॒सद॑सिप्रि॒येहिकं॒¦सोमं᳚प॒पथु॑रश्विना || 10 || |
[48] सहवामेनेति षोळशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्व उषाः प्रगाथः (अयुजोबृहत्यो युजःसतोबृहत्यः ) |{मंडल:1, सूक्त:48}{अनुवाक:9, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
स॒हवा॒मेन॑नउषो॒¦व्यु॑च्छादुहितर्दिवः | स॒हद्यु॒म्नेन॑बृह॒तावि॑भावरि¦रा॒यादे᳚वि॒दास्व॑ती || 1 || वर्ग:3 |
अश्वा᳚वती॒र्गोम॑तीर्विश्वसु॒विदो॒¦भूरि॑च्यवन्त॒वस्त॑वे | उदी᳚रय॒प्रति॑मासू॒नृता᳚,उष॒श्¦चोद॒राधो᳚म॒घोना᳚म् || 2 || |
उ॒वासो॒षा,उ॒च्छाच्च॒नु¦दे॒वीजी॒रारथा᳚नाम् | ये,अ॑स्या,आ॒चर॑णेषुदध्रि॒रे¦स॑मु॒द्रेनश्र॑व॒स्यवः॑ || 3 || |
उषो॒येते॒प्रयामे᳚षुयु॒ञ्जते॒¦मनो᳚दा॒नाय॑सू॒रयः॑ | अत्राह॒तत्कण्व॑एषां॒कण्व॑तमो॒¦नाम॑गृणातिनृ॒णाम् || 4 || |
आघा॒योषे᳚वसू॒नर्यु॒¦षाया᳚तिप्रभुञ्ज॒ती | ज॒रय᳚न्ती॒वृज॑नंप॒द्वदी᳚यत॒¦उत्पा᳚तयतिप॒क्षिणः॑ || 5 || |
वियासृ॒जति॒सम॑नं॒व्य१॑(अ॒)र्थिनः॑¦प॒दंनवे॒त्योद॑ती | वयो॒नकि॑ष्टेपप्ति॒वांस॑आसते॒¦व्यु॑ष्टौवाजिनीवति || 6 || वर्ग:4 |
ए॒षायु॑क्तपरा॒वतः॒¦सूर्य॑स्यो॒दय॑ना॒दधि॑ | श॒तंरथे᳚भिःसु॒भगो॒षा,इ॒यं¦विया᳚त्य॒भिमानु॑षान् || 7 || |
विश्व॑मस्यानानाम॒चक्ष॑से॒जग॒ज्¦ज्योति॑ष्कृणोतिसू॒नरी᳚ | अप॒द्वेषो᳚म॒घोनी᳚दुहि॒तादि॒वउ॒षा,उ॑च्छ॒दप॒स्रिधः॑ || 8 || |
उष॒आभा᳚हिभा॒नुना᳚¦च॒न्द्रेण॑दुहितर्दिवः | आ॒वह᳚न्ती॒भूर्य॒स्मभ्यं॒सौभ॑गं¦व्यु॒च्छन्ती॒दिवि॑ष्टिषु || 9 || |
विश्व॑स्य॒हिप्राण॑नं॒जीव॑नं॒त्वे¦वियदु॒च्छसि॑सूनरि | सानो॒रथे᳚नबृह॒तावि॑भावरि¦श्रु॒धिचि॑त्रामघे॒हव᳚म् || 10 || |
उषो॒वाजं॒हिवंस्व॒¦यश्चि॒त्रोमानु॑षे॒जने᳚ | तेनाव॑हसु॒कृतो᳚,अध्व॒राँ,उप॒¦येत्वा᳚गृ॒णन्ति॒वह्न॑यः || 11 || वर्ग:5 |
विश्वा᳚न्दे॒वाँ,आव॑ह॒सोम॑पीतये॒¦ऽन्तरि॑क्षादुष॒स्त्वम् | सास्मासु॑धा॒गोम॒दश्वा᳚वदु॒क्थ्य१॑(अ॒)¦मुषो॒वाजं᳚सु॒वीर्य᳚म् || 12 || |
यस्या॒रुश᳚न्तो,अ॒र्चयः॒¦प्रति॑भ॒द्रा,अदृ॑क्षत | सानो᳚र॒यिंवि॒श्ववा᳚रंसु॒पेश॑स¦मु॒षाद॑दातु॒सुग्म्य᳚म् || 13 || |
येचि॒द्धित्वामृष॑यः॒पूर्व॑ऊ॒तये᳚¦जुहू॒रेव॑सेमहि | सानः॒स्तोमाँ᳚,अ॒भिगृ॑णीहि॒राध॒सो¦षः॑शु॒क्रेण॑शो॒चिषा᳚ || 14 || |
उषो॒यद॒द्यभा॒नुना॒¦विद्वारा᳚वृ॒णवो᳚दि॒वः | प्रनो᳚यच्छतादवृ॒कंपृ॒थुच्छ॒र्दिः¦प्रदे᳚वि॒गोम॑ती॒रिषः॑ || 15 || |
संनो᳚रा॒याबृ॑ह॒तावि॒श्वपे᳚शसा¦मिमि॒क्ष्वासमिळा᳚भि॒रा | संद्यु॒म्नेन॑विश्व॒तुरो᳚षोमहि॒¦संवाजै᳚र्वाजिनीवति || 16 || |
[49] उषोभत्रेभिरिति चतुरृचस्व सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्वउषाअनुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:49}{अनुवाक:9, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
उषो᳚भ॒द्रेभि॒राग॑हि¦दि॒वश्चि॑द्रोच॒नादधि॑ | वह᳚न्त्वरु॒णप्स॑व॒¦उप॑त्वासो॒मिनो᳚गृ॒हम् || 1 || वर्ग:6 |
सु॒पेश॑संसु॒खंरथं॒¦यम॒ध्यस्था᳚,उष॒स्त्वम् | तेना᳚सु॒श्रव॑सं॒जनं॒¦प्रावा॒द्यदु॑हितर्दिवः || 2 || |
वय॑श्चित्तेपत॒त्रिणो᳚¦द्वि॒पच्चतु॑ष्पदर्जुनि | उषः॒प्रार᳚न्नृ॒तूँरनु॑¦दि॒वो,अन्ते᳚भ्य॒स्परि॑ || 3 || |
व्यु॒च्छन्ती॒हिर॒श्मिभि॒¦र्विश्व॑मा॒भासि॑रोच॒नम् | तांत्वामु॑षर्वसू॒यवो᳚¦गी॒र्भिःकण्वा᳚,अहूषत || 4 || |
[50] उदुत्यमिति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य काण्वःप्रस्कण्वः सूर्यो गायत्री अंत्याश्चतस्रोनुष्टुभः (अंत्यस्तृचोरोगघ्नउपनिषदंत्योर्थर्चोद्विषन्न इतिगुणः) |{मंडल:1, सूक्त:50}{अनुवाक:9, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
उदु॒त्यंजा॒तवे᳚दसं¦दे॒वंव॑हन्तिके॒तवः॑ | दृ॒शेविश्वा᳚य॒सूर्य᳚म् || 1 || वर्ग:7 |
अप॒त्येता॒यवो᳚यथा॒¦नक्ष॑त्रायन्त्य॒क्तुभिः॑ | सूरा᳚यवि॒श्वच॑क्षसे || 2 || |
अदृ॑श्रमस्यके॒तवो॒¦विर॒श्मयो॒जनाँ॒,अनु॑ | भ्राज᳚न्तो,अ॒ग्नयो᳚यथा || 3 || |
त॒रणि᳚र्वि॒श्वद॑र्शतो¦ज्योति॒ष्कृद॑सिसूर्य | विश्व॒माभा᳚सिरोच॒नम् || 4 || |
प्र॒त्यङ्दे॒वानां॒विशः॑¦प्र॒त्यङ्ङुदे᳚षि॒मानु॑षान् | प्र॒त्यङ्विश्वं॒स्व॑र्दृ॒शे || 5 || |
येना᳚पावक॒चक्ष॑सा¦भुर॒ण्यन्तं॒जनाँ॒,अनु॑ | त्वंव॑रुण॒पश्य॑सि || 6 || वर्ग:8 |
विद्यामे᳚षि॒रज॑स्पृ॒थ्व¦हा॒मिमा᳚नो,अ॒क्तुभिः॑ | पश्य॒ञ्जन्मा᳚निसूर्य || 7 || |
स॒प्तत्वा᳚ह॒रितो॒रथे॒¦वह᳚न्तिदेवसूर्य | शो॒चिष्के᳚शंविचक्षण || 8 || |
अयु॑क्तस॒प्तशु॒न्ध्युवः॒¦सूरो॒रथ॑स्यन॒प्त्यः॑ | ताभि᳚र्याति॒स्वयु॑क्तिभिः || 9 || |
उद्व॒यंतम॑स॒स्परि॒¦ज्योति॒ष्पश्य᳚न्त॒उत्त॑रम् | दे॒वंदे᳚व॒त्रासूर्य॒¦मग᳚न्म॒ज्योति॑रुत्त॒मम् || 10 || |
उ॒द्यन्न॒द्यमि॑त्रमह¦आ॒रोह॒न्नुत्त॑रां॒दिव᳚म् | हृ॒द्रो॒गंमम॑सूर्य¦हरि॒माणं᳚चनाशय || 11 || |
शुके᳚षुमेहरि॒माणं᳚¦रोप॒णाका᳚सुदध्मसि | अथो᳚हारिद्र॒वेषु॑मे¦हरि॒माणं॒निद॑ध्मसि || 12 || |
उद॑गाद॒यमा᳚दि॒त्यो¦विश्वे᳚न॒सह॑सास॒ह | द्वि॒षन्तं॒मह्यं᳚र॒न्धय॒न्¦मो,अ॒हंद्वि॑ष॒तेर॑धम् || 13 || |
[51] अभित्यमिति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य आंगिरसः सव्यइंद्रोजगतीअंत्येद्वेत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:51}{अनुवाक:10, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
अ॒भित्यंमे॒षंपु॑रुहू॒तमृ॒ग्मिय॒¦मिन्द्रं᳚गी॒र्भिर्म॑दता॒वस्वो᳚,अर्ण॒वम् | यस्य॒द्यावो॒नवि॒चर᳚न्ति॒मानु॑षा¦भु॒जेमंहि॑ष्ठम॒भिविप्र॑मर्चत || 1 || वर्ग:9 |
अ॒भीम॑वन्वन्त्स्वभि॒ष्टिमू॒तयो᳚¦ऽन्तरिक्ष॒प्रांतवि॑षीभि॒रावृ॑तम् | इन्द्रं॒दक्षा᳚सऋ॒भवो᳚मद॒च्युतं᳚¦श॒तक्र॑तुं॒जव॑नीसू॒नृतारु॑हत् || 2 || |
त्वंगो॒त्रमङ्गि॑रोभ्योऽवृणो॒रपो॒¦तात्र॑येश॒तदु॑रेषुगातु॒वित् | स॒सेन॑चिद्विम॒दाया᳚वहो॒वस्वा॒¦जावद्रिं᳚वावसा॒नस्य॑न॒र्तय॑न् || 3 || |
त्वम॒पाम॑पि॒धाना᳚वृणो॒रपा¦धा᳚रयः॒पर्व॑ते॒दानु॑म॒द्वसु॑ | वृ॒त्रंयदि᳚न्द्र॒शव॒साव॑धी॒रहि॒¦मादित्सूर्यं᳚दि॒व्यारो᳚हयोदृ॒शे || 4 || |
त्वंमा॒याभि॒रप॑मा॒यिनो᳚ऽधमः¦स्व॒धाभि॒र्ये,अधि॒शुप्ता॒वजु॑ह्वत | त्वंपिप्रो᳚र्नृमणः॒प्रारु॑जः॒पुरः॒¦प्रऋ॒जिश्वा᳚नंदस्यु॒हत्ये᳚ष्वाविथ || 5 || |
त्वंकुत्सं᳚शुष्ण॒हत्ये᳚ष्वावि॒था¦र᳚न्धयोऽतिथि॒ग्वाय॒शम्ब॑रम् | म॒हान्तं᳚चिदर्बु॒दंनिक्र॑मीःप॒दा¦स॒नादे॒वद॑स्यु॒हत्या᳚यजज्ञिषे || 6 || वर्ग:10 |
त्वेविश्वा॒तवि॑षीस॒ध्र्य॑ग्घि॒ता¦तव॒राधः॑सोमपी॒थाय॑हर्षते | तव॒वज्र॑श्चिकितेबा॒ह्वोर्हि॒तो¦वृ॒श्चाशत्रो॒रव॒विश्वा᳚नि॒वृष्ण्या᳚ || 7 || |
विजा᳚नी॒ह्यार्या॒न्येच॒दस्य॑वो¦ब॒र्हिष्म॑तेरन्धया॒शास॑दव्र॒तान् | शाकी᳚भव॒यज॑मानस्यचोदि॒ता¦विश्वेत्ताते᳚सध॒मादे᳚षुचाकन || 8 || |
अनु᳚व्रतायर॒न्धय॒न्नप᳚व्रता¦ना॒भूभि॒रिन्द्रः॑श्न॒थय॒न्नना᳚भुवः | वृ॒द्धस्य॑चि॒द्वर्ध॑तो॒द्यामिन॑क्षतः॒¦स्तवा᳚नोव॒म्रोविज॑घानसं॒दिहः॑ || 9 || |
तक्ष॒द्यत्त॑उ॒शना॒सह॑सा॒सहो॒¦विरोद॑सीम॒ज्मना᳚बाधते॒शवः॑ | आत्वा॒वात॑स्यनृमणोमनो॒युज॒¦आपूर्य॑माणमवहन्न॒भिश्रवः॑ || 10 || |
मन्दि॑ष्ट॒यदु॒शने᳚का॒व्येसचाँ॒¦इन्द्रो᳚व॒ङ्कूव᳚ङ्कु॒तराधि॑तिष्ठति | उ॒ग्रोय॒यिंनिर॒पःस्रोत॑सासृज॒द्¦विशुष्ण॑स्यदृंहि॒ता,ऐ᳚रय॒त्पुरः॑ || 11 || वर्ग:11 |
आस्मा॒रथं᳚वृष॒पाणे᳚षुतिष्ठसि¦शार्या॒तस्य॒प्रभृ॑ता॒येषु॒मन्द॑से | इन्द्र॒यथा᳚सु॒तसो᳚मेषुचा॒कनो᳚¦ऽन॒र्वाणं॒श्लोक॒मारो᳚हसेदि॒वि || 12 || |
अद॑दा॒,अर्भां᳚मह॒तेव॑च॒स्यवे᳚¦क॒क्षीव॑तेवृच॒यामि᳚न्द्रसुन्व॒ते | मेना᳚भवोवृषण॒श्वस्य॑सुक्रतो॒¦विश्वेत्ताते॒सव॑नेषुप्र॒वाच्या᳚ || 13 || |
इन्द्रो᳚,अश्रायिसु॒ध्यो᳚निरे॒के¦प॒ज्रेषु॒स्तोमो॒दुर्यो॒नयूपः॑ | अ॒श्व॒युर्ग॒व्यूर॑थ॒युर्व॑सू॒युरि¦न्द्र॒इद्रा॒यः,क्ष॑यतिप्रय॒न्ता || 14 || |
इ॒दंनमो᳚वृष॒भाय॑स्व॒राजे᳚¦स॒त्यशु॑ष्मायत॒वसे᳚ऽवाचि | अ॒स्मिन्नि᳚न्द्रवृ॒जने॒सर्व॑वीराः॒¦स्मत्सू॒रिभि॒स्तव॒शर्म᳚न्त्स्याम || 15 || |
[52] त्यंसुमेषमिति पंचदशर्चस्य सूक्तस्यांगिरसःसव्यइंद्रोजगती त्रयोदश्यंत्येत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:52}{अनुवाक:10, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
त्यंसुमे॒षंम॑हयास्व॒र्विदं᳚¦श॒तंयस्य॑सु॒भ्वः॑सा॒कमीर॑ते | अत्यं॒नवाजं᳚हवन॒स्यदं॒रथ॒¦मेन्द्रं᳚ववृत्या॒मव॑सेसुवृ॒क्तिभिः॑ || 1 || वर्ग:12 |
सपर्व॑तो॒नध॒रुणे॒ष्वच्यु॑तः¦स॒हस्र॑मूति॒स्तवि॑षीषुवावृधे | इन्द्रो॒यद्वृ॒त्रमव॑धीन्नदी॒वृत॑¦मु॒ब्जन्नर्णां᳚सि॒जर्हृ॑षाणो॒,अन्ध॑सा || 2 || |
सहिद्व॒रोद्व॒रिषु॑व॒व्रऊध॑नि¦च॒न्द्रबु॑ध्नो॒मद॑वृद्धोमनी॒षिभिः॑ | इन्द्रं॒तम॑ह्वेस्वप॒स्यया᳚धि॒या¦मंहि॑ष्ठरातिं॒सहिपप्रि॒रन्ध॑सः || 3 || |
आयंपृ॒णन्ति॑दि॒विसद्म॑बर्हिषः¦समु॒द्रंनसु॒भ्व१॑(अः॒)स्वा,अ॒भिष्ट॑यः | तंवृ॑त्र॒हत्ये॒,अनु॑तस्थुरू॒तयः॒¦शुष्मा॒,इन्द्र॑मवा॒ता,अह्रु॑तप्सवः || 4 || |
अ॒भिस्ववृ॑ष्टिं॒मदे᳚,अस्य॒युध्य॑तो¦र॒घ्वीरि॑वप्रव॒णेस॑स्रुरू॒तयः॑ | इन्द्रो॒यद्व॒ज्रीधृ॒षमा᳚णो॒,अन्ध॑सा¦भि॒नद्व॒लस्य॑परि॒धीँरि॑वत्रि॒तः || 5 || |
परीं᳚घृ॒णाच॑रतितित्वि॒षेशवो॒¦ऽपोवृ॒त्वीरज॑सोबु॒ध्नमाश॑यत् | वृ॒त्रस्य॒यत्प्र॑व॒णेदु॒र्गृभि॑श्वनो¦निज॒घन्थ॒हन्वो᳚रिन्द्रतन्य॒तुम् || 6 || वर्ग:13 |
ह्र॒दंनहित्वा᳚न्यृ॒षन्त्यू॒र्मयो॒¦ब्रह्मा᳚णीन्द्र॒तव॒यानि॒वर्ध॑ना | त्वष्टा᳚चित्ते॒युज्यं᳚वावृधे॒शव॑¦स्त॒तक्ष॒वज्र॑म॒भिभू᳚त्योजसम् || 7 || |
ज॒घ॒न्वाँ,उ॒हरि॑भिःसम्भृतक्रत॒¦विन्द्र॑वृ॒त्रंमनु॑षेगातु॒यन्न॒पः | अय॑च्छथाबा॒ह्वोर्वज्र॑माय॒स¦मधा᳚रयोदि॒व्यासूर्यं᳚दृ॒शे || 8 || |
बृ॒हत्स्वश्च᳚न्द्र॒मम॑व॒द्यदु॒क्थ्य१॑(अ॒)¦मकृ᳚ण्वतभि॒यसा॒रोह॑णंदि॒वः | यन्मानु॑षप्रधना॒,इन्द्र॑मू॒तयः॒¦स्व᳚र्नृ॒षाचो᳚म॒रुतोम॑द॒न्ननु॑ || 9 || |
द्यौश्चि॑द॒स्याम॑वाँ॒,अहेः᳚स्व॒ना¦दयो᳚यवीद्भि॒यसा॒वज्र॑इन्द्रते | वृ॒त्रस्य॒यद्ब॑द्बधा॒नस्य॑रोदसी॒¦मदे᳚सु॒तस्य॒शव॒साभि॑न॒च्छिरः॑ || 10 || |
यदिन्न्वि᳚न्द्रपृथि॒वीदश॑भुजि॒¦रहा᳚नि॒विश्वा᳚त॒तन᳚न्तकृ॒ष्टयः॑ | अत्राह॑तेमघव॒न्विश्रु॑तं॒सहो॒¦द्यामनु॒शव॑साब॒र्हणा᳚भुवत् || 11 || वर्ग:14 |
त्वम॒स्यपा॒रेरज॑सो॒व्यो᳚मनः॒¦स्वभू᳚त्योजा॒,अव॑सेधृषन्मनः | च॒कृ॒षेभूमिं᳚प्रति॒मान॒मोज॑सो॒¦पःस्वः॑परि॒भूरे॒ष्यादिव᳚म् || 12 || |
त्वंभु॑वःप्रति॒मानं᳚पृथि॒व्या¦ऋ॒ष्ववी᳚रस्यबृह॒तःपति॑र्भूः | विश्व॒माप्रा᳚,अ॒न्तरि॑क्षंमहि॒त्वा¦स॒त्यम॒द्धानकि॑र॒न्यस्त्वावा॑न् || 13 || |
नयस्य॒द्यावा᳚पृथि॒वी,अनु॒व्यचो॒¦नसिन्ध॑वो॒रज॑सो॒,अन्त॑मान॒शुः | नोतस्ववृ॑ष्टिं॒मदे᳚,अस्य॒युध्य॑त॒¦एको᳚,अ॒न्यच्च॑कृषे॒विश्व॑मानु॒षक् || 14 || |
आर्च॒न्नत्र॑म॒रुतः॒सस्मि᳚न्ना॒जौ¦विश्वे᳚दे॒वासो᳚,अमद॒न्ननु॑त्वा | वृ॒त्रस्य॒यद्भृ॑ष्टि॒मता᳚व॒धेन॒¦नित्वमि᳚न्द्र॒प्रत्या॒नंज॒घन्थ॑ || 15 || |
[53] न्यूषुवाचमित्येकादशर्चस्य सूक्तस्यांगिरसःसव्यइंद्रोजगतीअंत्येद्वेत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:53}{अनुवाक:10, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
न्यू॒३॑(ऊ॒)षुवाचं॒प्रम॒हेभ॑रामहे॒¦गिर॒इन्द्रा᳚य॒सद॑नेवि॒वस्व॑तः | नूचि॒द्धिरत्नं᳚सस॒तामि॒वावि॑द॒¦न्नदु॑ष्टु॒तिर्द्र॑विणो॒देषु॑शस्यते || 1 || वर्ग:15 |
दु॒रो,अश्व॑स्यदु॒रइ᳚न्द्र॒गोर॑सि¦दु॒रोयव॑स्य॒वसु॑नइ॒नस्पतिः॑ | शि॒क्षा॒न॒रःप्र॒दिवो॒,अका᳚मकर्शनः॒¦सखा॒सखि॑भ्य॒स्तमि॒दंगृ॑णीमसि || 2 || |
शची᳚वइन्द्रपुरुकृद्द्युमत्तम॒¦तवेदि॒दम॒भित॑श्चेकिते॒वसु॑ | अतः॑सं॒गृभ्या᳚भिभूत॒आभ॑र॒¦मात्वा᳚य॒तोज॑रि॒तुःकाम॑मूनयीः || 3 || |
ए॒भिर्द्युभिः॑सु॒मना᳚,ए॒भिरिन्दु॑भि¦र्निरुन्धा॒नो,अम॑तिं॒गोभि॑र॒श्विना᳚ | इन्द्रे᳚ण॒दस्युं᳚द॒रय᳚न्त॒इन्दु॑भि¦र्यु॒तद्वे᳚षसः॒समि॒षार॑भेमहि || 4 || |
समि᳚न्द्ररा॒यासमि॒षार॑भेमहि॒¦संवाजे᳚भिःपुरुश्च॒न्द्रैर॒भिद्यु॑भिः | संदे॒व्याप्रम॑त्यावी॒रशु॑ष्मया॒¦गो,अ॑ग्र॒याश्वा᳚वत्यारभेमहि || 5 || |
तेत्वा॒मदा᳚,अमद॒न्तानि॒वृष्ण्या॒¦तेसोमा᳚सोवृत्र॒हत्ये᳚षुसत्पते | यत्का॒रवे॒दश॑वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति¦ब॒र्हिष्म॑ते॒निस॒हस्रा᳚णिब॒र्हयः॑ || 6 || वर्ग:16 |
यु॒धायुध॒मुप॒घेदे᳚षिधृष्णु॒या¦पु॒रापुरं॒समि॒दंहं॒स्योज॑सा | नम्या॒यदि᳚न्द्र॒सख्या᳚परा॒वति॑¦निब॒र्हयो॒नमु॑चिं॒नाम॑मा॒यिन᳚म् || 7 || |
त्वंकर᳚ञ्जमु॒तप॒र्णयं᳚वधी॒¦स्तेजि॑ष्ठयातिथि॒ग्वस्य॑वर्त॒नी | त्वंश॒तावङ्गृ॑दस्याभिन॒त्पुरो᳚¦ऽनानु॒दःपरि॑षूता,ऋ॒जिश्व॑ना || 8 || |
त्वमे॒ताञ्ज॑न॒राज्ञो॒द्विर्दशा᳚¦ब॒न्धुना᳚सु॒श्रव॑सोपज॒ग्मुषः॑ | ष॒ष्टिंस॒हस्रा᳚नव॒तिंनव॑श्रु॒तो¦निच॒क्रेण॒रथ्या᳚दु॒ष्पदा᳚वृणक् || 9 || |
त्वमा᳚विथसु॒श्रव॑सं॒तवो॒तिभि॒¦स्तव॒त्राम॑भिरिन्द्र॒तूर्व॑याणम् | त्वम॑स्मै॒कुत्स॑मतिथि॒ग्वमा॒युं¦म॒हेराज्ञे॒यूने᳚,अरन्धनायः || 10 || |
यउ॒दृची᳚न्द्रदे॒वगो᳚पाः॒¦सखा᳚यस्तेशि॒वत॑मा॒,असा᳚म | त्वांस्तो᳚षाम॒त्वया᳚सु॒वीरा॒¦द्राघी᳚य॒आयुः॑प्रत॒रंदधा᳚नाः || 11 || |
[54] मानोअस्मिन्नित्येकादशर्चस्यसूक्तस्यांगिरसः सव्यइंद्रोजगती षष्ट्यष्टमीनवम्येकादश्यस्त्रिष्टुभः |{मंडल:1, सूक्त:54}{अनुवाक:10, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
मानो᳚,अ॒स्मिन्म॑घवन्पृ॒त्स्वंह॑सि¦न॒हिते॒,अन्तः॒शव॑सःपरी॒णशे᳚ | अक्र᳚न्दयोन॒द्यो॒३॑(ओ॒)रोरु॑व॒द्वना᳚¦क॒थानक्षो॒णीर्भि॒यसा॒समा᳚रत || 1 || वर्ग:17 |
अर्चा᳚श॒क्राय॑शा॒किने॒शची᳚वते¦शृ॒ण्वन्त॒मिन्द्रं᳚म॒हय᳚न्न॒भिष्टु॑हि | योधृ॒ष्णुना॒शव॑सा॒रोद॑सी,उ॒भे¦वृषा᳚वृष॒त्वावृ॑ष॒भोन्यृ॒ञ्जते᳚ || 2 || |
अर्चा᳚दि॒वेबृ॑ह॒तेशू॒ष्य१॑(अं॒)वचः॒¦स्वक्ष॑त्रं॒यस्य॑धृष॒तोधृ॒षन्मनः॑ | बृ॒हच्छ्र॑वा॒,असु॑रोब॒र्हणा᳚कृ॒तः¦पु॒रोहरि॑भ्यांवृष॒भोरथो॒हिषः || 3 || |
त्वंदि॒वोबृ॑ह॒तःसानु॑कोप॒यो¦ऽव॒त्मना᳚धृष॒ताशम्ब॑रंभिनत् | यन्मा॒यिनो᳚व्र॒न्दिनो᳚म॒न्दिना᳚धृ॒ष¦च्छि॒तांगभ॑स्तिम॒शनिं᳚पृत॒न्यसि॑ || 4 || |
नियद्वृ॒णक्षि॑श्वस॒नस्य॑मू॒र्धनि॒¦शुष्ण॑स्यचिद्व्र॒न्दिनो॒रोरु॑व॒द्वना᳚ | प्रा॒चीने᳚न॒मन॑साब॒र्हणा᳚वता॒¦यद॒द्याचि॑त्कृ॒णवः॒कस्त्वा॒परि॑ || 5 || |
त्वमा᳚विथ॒नर्यं᳚तु॒र्वशं॒यदुं॒¦त्वंतु॒र्वीतिं᳚व॒य्यं᳚शतक्रतो | त्वंरथ॒मेत॑शं॒कृत्व्ये॒धने॒¦त्वंपुरो᳚नव॒तिंद᳚म्भयो॒नव॑ || 6 || वर्ग:18 |
सघा॒राजा॒सत्प॑तिःशूशुव॒ज्जनो᳚¦रा॒तह᳚व्यः॒प्रति॒यःशास॒मिन्व॑ति | उ॒क्थावा॒यो,अ॑भिगृ॒णाति॒राध॑सा॒¦दानु॑रस्मा॒,उप॑रापिन्वतेदि॒वः || 7 || |
अस॑मंक्ष॒त्रमस॑मामनी॒षा¦प्रसो᳚म॒पा,अप॑सासन्तु॒नेमे᳚ | येत॑इन्द्रद॒दुषो᳚व॒र्धय᳚न्ति॒¦महि॑क्ष॒त्रंस्थवि॑रं॒वृष्ण्यं᳚च || 8 || |
तुभ्येदे॒तेब॑हु॒ला,अद्रि॑दुग्धा¦श्चमू॒षद॑श्चम॒सा,इ᳚न्द्र॒पानाः᳚ | व्य॑श्नुहित॒र्पया॒काम॑मेषा॒¦मथा॒मनो᳚वसु॒देया᳚यकृष्व || 9 || |
अ॒पाम॑तिष्ठद्ध॒रुण॑ह्वरं॒तमो॒¦ऽन्तर्वृ॒त्रस्य॑ज॒ठरे᳚षु॒पर्व॑तः | अ॒भीमिन्द्रो᳚न॒द्यो᳚व॒व्रिणा᳚हि॒ता¦विश्वा᳚,अनु॒ष्ठाःप्र॑व॒णेषु॑जिघ्नते || 10 || |
सशेवृ॑ध॒मधि॑धाद्यु॒म्नम॒स्मे¦महि॑क्ष॒त्रंज॑ना॒षाळि᳚न्द्र॒तव्य᳚म् | रक्षा᳚चनोम॒घोनः॑पा॒हिसू॒रीन्¦रा॒येच॑नःस्वप॒त्या,इ॒षेधाः᳚ || 11 || |
[55] दिवश्चिदित्यष्टर्चस्य सूक्तस्यांगिरसः सव्य इंद्रोजगती |{मंडल:1, सूक्त:55}{अनुवाक:10, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
दि॒वश्चि॑दस्यवरि॒माविप॑प्रथ॒¦इन्द्रं॒नम॒ह्नापृ॑थि॒वीच॒नप्रति॑ | भी॒मस्तुवि॑ष्माञ्चर्ष॒णिभ्य॑आत॒पः¦शिशी᳚ते॒वज्रं॒तेज॑से॒नवंस॑गः || 1 || वर्ग:19 |
सो,अ᳚र्ण॒वोनन॒द्यः॑समु॒द्रियः॒¦प्रति॑गृभ्णाति॒विश्रि॑ता॒वरी᳚मभिः | इन्द्रः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚वृषायते¦स॒नात्सयु॒ध्मओज॑सापनस्यते || 2 || |
त्वंतमि᳚न्द्र॒पर्व॑तं॒नभोज॑से¦म॒होनृ॒म्णस्य॒धर्म॑णामिरज्यसि | प्रवी॒र्ये᳚णदे॒वताति॑चेकिते॒¦विश्व॑स्मा,उ॒ग्रःकर्म॑णेपु॒रोहि॑तः || 3 || |
सइद्वने᳚नम॒स्युभि᳚र्वचस्यते॒¦चारु॒जने᳚षुप्रब्रुवा॒णइ᳚न्द्रि॒यम् | वृषा॒छन्दु॑र्भवतिहर्य॒तोवृषा॒¦क्षेमे᳚ण॒धेनां᳚म॒घवा॒यदिन्व॑ति || 4 || |
सइन्म॒हानि॑समि॒थानि॑म॒ज्मना᳚¦कृ॒णोति॑यु॒ध्मओज॑सा॒जने᳚भ्यः | अधा᳚च॒नश्रद्द॑धति॒त्विषी᳚मत॒¦इन्द्रा᳚य॒वज्रं᳚नि॒घनि॑घ्नतेव॒धम् || 5 || |
सहिश्र॑व॒स्युःसद॑नानिकृ॒त्रिमा᳚¦क्ष्म॒यावृ॑धा॒नओज॑साविना॒शय॑न् | ज्योतीं᳚षिकृ॒ण्वन्न॑वृ॒काणि॒यज्य॒वे¦ऽव॑सु॒क्रतुः॒सर्त॒वा,अ॒पःसृ॑जत् || 6 || वर्ग:20 |
दा॒नाय॒मनः॑सोमपावन्नस्तुते॒¦ऽर्वाञ्चा॒हरी᳚वन्दनश्रु॒दाकृ॑धि | यमि॑ष्ठासः॒सार॑थयो॒यइ᳚न्द्रते॒¦नत्वा॒केता॒,आद॑भ्नुवन्ति॒भूर्ण॑यः || 7 || |
अप्र॑क्षितं॒वसु॑बिभर्षि॒हस्त॑यो॒¦रषा᳚ळ्हं॒सह॑स्त॒न्वि॑श्रु॒तोद॑धे | आवृ॑तासोऽव॒तासो॒नक॒र्तृभि॑¦स्त॒नूषु॑ते॒क्रत॑वइन्द्र॒भूर॑यः || 8 || |
[56] एषप्रपूर्वीरिति षळर्चस्य सूक्तस्यांगिरसःसव्यइंद्रोजगती |{मंडल:1, सूक्त:56}{अनुवाक:10, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
ए॒षप्रपू॒र्वीरव॒तस्य॑च॒म्रिषो¦ऽत्यो॒नयोषा॒मुद॑यंस्तभु॒र्वणिः॑ | दक्षं᳚म॒हेपा᳚ययतेहिर॒ण्ययं॒¦रथ॑मा॒वृत्या॒हरि॑योग॒मृभ्व॑सम् || 1 || वर्ग:21 |
तंगू॒र्तयो᳚नेम॒न्निषः॒परी᳚णसः¦समु॒द्रंनसं॒चर॑णेसनि॒ष्यवः॑ | पतिं॒दक्ष॑स्यवि॒दथ॑स्य॒नूसहो᳚¦गि॒रिंनवे॒ना,अधि॑रोह॒तेज॑सा || 2 || |
सतु॒र्वणि᳚र्म॒हाँ,अ॑रे॒णुपौंस्ये᳚¦गि॒रेर्भृ॒ष्टिर्नभ्रा᳚जतेतु॒जाशवः॑ | येन॒शुष्णं᳚मा॒यिन॑माय॒सोमदे᳚¦दु॒ध्रआ॒भूषु॑रा॒मय॒न्निदाम॑नि || 3 || |
दे॒वीयदि॒तवि॑षी॒त्वावृ॑धो॒तय॒¦इन्द्रं॒सिष॑क्त्यु॒षसं॒नसूर्यः॑ | योधृ॒ष्णुना॒शव॑सा॒बाध॑ते॒तम॒¦इय॑र्तिरे॒णुंबृ॒हद᳚र्हरि॒ष्वणिः॑ || 4 || |
वियत्ति॒रोध॒रुण॒मच्यु॑तं॒रजो¦ऽति॑ष्ठिपोदि॒वआता᳚सुब॒र्हणा᳚ | स्व᳚र्मीळ्हे॒यन्मद॑इन्द्र॒हर्ष्याह॑न्¦वृ॒त्रंनिर॒पामौ᳚ब्जो,अर्ण॒वम् || 5 || |
त्वंदि॒वोध॒रुणं᳚धिष॒ओज॑सापृथि॒व्या,इ᳚न्द्र॒सद॑नेषु॒माहि॑नः | त्वंसु॒तस्य॒मदे᳚,अरिणा,अ॒पो¦विवृ॒त्रस्य॑स॒मया᳚पा॒ष्या᳚रुजः || 6 || |
[57] प्रमंहिष्ठायेति षळर्चस्यसूक्तस्यांगिरसः सव्यइंद्रोजगती |{मंडल:1, सूक्त:57}{अनुवाक:10, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
प्रमंहि॑ष्ठायबृह॒तेबृ॒हद्र॑ये¦स॒त्यशु॑ष्मायत॒वसे᳚म॒तिंभ॑रे | अ॒पामि॑वप्रव॒णेयस्य॑दु॒र्धरं॒¦राधो᳚वि॒श्वायु॒शव॑से॒,अपा᳚वृतम् || 1 || वर्ग:22 |
अध॑ते॒विश्व॒मनु॑हासदि॒ष्टय॒¦आपो᳚नि॒म्नेव॒सव॑नाह॒विष्म॑तः | यत्पर्व॑ते॒नस॒मशी᳚तहर्य॒त¦इन्द्र॑स्य॒वज्रः॒श्नथि॑ताहिर॒ण्ययः॑ || 2 || |
अ॒स्मैभी॒माय॒नम॑सा॒सम॑ध्व॒र¦उषो॒नशु॑भ्र॒आभ॑रा॒पनी᳚यसे | यस्य॒धाम॒श्रव॑से॒नामे᳚न्द्रि॒यं¦ज्योति॒रका᳚रिह॒रितो॒नाय॑से || 3 || |
इ॒मेत॑इन्द्र॒तेव॒यंपु॑रुष्टुत॒¦येत्वा॒रभ्य॒चरा᳚मसिप्रभूवसो | न॒हित्वद॒न्योगि᳚र्वणो॒गिरः॒सघ॑त्¦क्षो॒णीरि॑व॒प्रति॑नोहर्य॒तद्वचः॑ || 4 || |
भूरि॑तइन्द्रवी॒र्य१॑(अं॒)तव॑स्मस्य॒¦स्यस्तो॒तुर्म॑घव॒न्काम॒मापृ॑ण | अनु॑ते॒द्यौर्बृ॑ह॒तीवी॒र्यं᳚मम¦इ॒यंच॑तेपृथि॒वीने᳚म॒ओज॑से || 5 || |
त्वंतमि᳚न्द्र॒पर्व॑तंम॒हामु॒रुं¦वज्रे᳚णवज्रिन्पर्व॒शश्च॑कर्तिथ | अवा᳚सृजो॒निवृ॑ताः॒सर्त॒वा,अ॒पः¦स॒त्राविश्वं᳚दधिषे॒केव॑लं॒सहः॑ || 6 || |
[58] नूचिदितिनवर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधाअग्निर्जगती अंत्याश्चतस्रस्त्रिष्टुभः |{मंडल:1, सूक्त:58}{अनुवाक:11, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
नूचि॑त्सहो॒जा,अ॒मृतो॒नितु᳚न्दते॒¦होता॒यद्दू॒तो,अभ॑वद्वि॒वस्व॑तः | विसाधि॑ष्ठेभिःप॒थिभी॒रजो᳚मम॒¦आदे॒वता᳚ताह॒विषा᳚विवासति || 1 || वर्ग:23 |
आस्वमद्म॑यु॒वमा᳚नो,अ॒जर॑¦स्तृ॒ष्व॑वि॒ष्यन्न॑त॒सेषु॑तिष्ठति | अत्यो॒नपृ॒ष्ठंप्रु॑षि॒तस्य॑रोचते¦दि॒वोनसानु॑स्त॒नय᳚न्नचिक्रदत् || 2 || |
क्रा॒णारु॒द्रेभि॒र्वसु॑भिःपु॒रोहि॑तो॒¦होता॒निष॑त्तोरयि॒षाळम॑र्त्यः | रथो॒नवि॒क्ष्वृ᳚ञ्जसा॒नआ॒युषु॒¦व्या᳚नु॒षग्वार्या᳚दे॒वऋ᳚ण्वति || 3 || |
विवात॑जूतो,अत॒सेषु॑तिष्ठते॒¦वृथा᳚जु॒हूभिः॒सृण्या᳚तुवि॒ष्वणिः॑ | तृ॒षुयद॑ग्नेव॒निनो᳚वृषा॒यसे᳚¦कृ॒ष्णंत॒एम॒रुश॑दूर्मे,अजर || 4 || |
तपु॑र्जम्भो॒वन॒आवात॑चोदितो¦यू॒थेनसा॒ह्वाँ,अव॑वाति॒वंस॑गः | अ॒भि॒व्रज॒न्नक्षि॑तं॒पाज॑सा॒रजः॑¦स्था॒तुश्च॒रथं᳚भयतेपत॒त्रिणः॑ || 5 || |
द॒धुष्ट्वा॒भृग॑वो॒मानु॑षे॒ष्वा¦र॒यिंनचारुं᳚सु॒हवं॒जने᳚भ्यः | होता᳚रमग्ने॒,अति॑थिं॒वरे᳚ण्यं¦मि॒त्रंनशेवं᳚दि॒व्याय॒जन्म॑ने || 6 || वर्ग:24 |
होता᳚रंस॒प्तजु॒ह्वो॒३॑(ओ॒)यजि॑ष्ठं॒¦यंवा॒घतो᳚वृ॒णते᳚,अध्व॒रेषु॑ | अ॒ग्निंविश्वे᳚षामर॒तिंवसू᳚नां¦सप॒र्यामि॒प्रय॑सा॒यामि॒रत्न᳚म् || 7 || |
अच्छि॑द्रासूनोसहसोनो,अ॒द्य¦स्तो॒तृभ्यो᳚मित्रमहः॒शर्म॑यच्छ | अग्ने᳚गृ॒णन्त॒मंह॑सउरु॒ष्यो¦र्जो᳚नपात्पू॒र्भिराय॑सीभिः || 8 || |
भवा॒वरू᳚थंगृण॒तेवि॑भावो॒¦भवा᳚मघवन्म॒घव॑द्भ्यः॒शर्म॑ | उ॒रु॒ष्याग्ने॒,अंह॑सोगृ॒णन्तं᳚¦प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || 9 || |
[59] वयाइदितिसप्तर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधावैश्वानरोग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:59}{अनुवाक:11, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
व॒या,इद॑ग्ने,अ॒ग्नय॑स्ते,अ॒न्ये¦त्वेविश्वे᳚,अ॒मृता᳚मादयन्ते | वैश्वा᳚नर॒नाभि॑रसिक्षिती॒नां¦स्थूणे᳚व॒जनाँ᳚,उप॒मिद्य॑यन्थ || 1 || वर्ग:25 |
मू॒र्धादि॒वोनाभि॑र॒ग्निःपृ॑थि॒व्या¦,अथा᳚भवदर॒तीरोद॑स्योः | तंत्वा᳚दे॒वासो᳚ऽजनयन्तदे॒वं¦वैश्वा᳚नर॒ज्योति॒रिदार्या᳚य || 2 || |
आसूर्ये॒नर॒श्मयो᳚ध्रु॒वासो᳚¦वैश्वान॒रेद॑धिरे॒ऽग्नावसू᳚नि | यापर्व॑ते॒ष्वोष॑धीष्व॒प्सु¦यामानु॑षे॒ष्वसि॒तस्य॒राजा᳚ || 3 || |
बृ॒ह॒ती,इ॑वसू॒नवे॒रोद॑सी॒¦गिरो॒होता᳚मनु॒ष्यो॒३॑(ओ॒)नदक्षः॑ | स्व᳚र्वतेस॒त्यशु॑ष्मायपू॒र्वी¦र्वै᳚श्वान॒राय॒नृत॑मायय॒ह्वीः || 4 || |
दि॒वश्चि॑त्तेबृह॒तोजा᳚तवेदो॒¦वैश्वा᳚नर॒प्ररि॑रिचेमहि॒त्वम् | राजा᳚कृष्टी॒नाम॑सि॒मानु॑षीणां¦यु॒धादे॒वेभ्यो॒वरि॑वश्चकर्थ || 5 || |
प्रनूम॑हि॒त्वंवृ॑ष॒भस्य॑वोचं॒¦यंपू॒रवो᳚वृत्र॒हणं॒सच᳚न्ते | वै॒श्वा॒न॒रोदस्यु॑म॒ग्निर्ज॑घ॒न्वाँ¦अधू᳚नो॒त्काष्ठा॒,अव॒शम्ब॑रंभेत् || 6 || |
वै॒श्वा॒न॒रोम॑हि॒म्नावि॒श्वकृ॑ष्टि¦र्भ॒रद्वा᳚जेषुयज॒तोवि॒भावा᳚ | शा॒त॒व॒ने॒येश॒तिनी᳚भिर॒ग्निः¦पु॑रुणी॒थेज॑रतेसू॒नृता᳚वान् || 7 || |
[60] वह्निंयशसमिति पंचर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधाअग्नित्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:60}{अनुवाक:11, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
वह्निं᳚य॒शसं᳚वि॒दथ॑स्यके॒तुं¦सु॑प्रा॒व्यं᳚दू॒तंस॒द्यो,अ॑र्थम् | द्वि॒जन्मा᳚नंर॒यिमि॑वप्रश॒स्तं¦रा॒तिंभ॑र॒द्भृग॑वेमात॒रिश्वा᳚ || 1 || वर्ग:26 |
अ॒स्यशासु॑रु॒भया᳚सःसचन्ते¦ह॒विष्म᳚न्तउ॒शिजो॒येच॒मर्ताः᳚ | दि॒वश्चि॒त्पूर्वो॒न्य॑सादि॒होता॒¦पृच्छ्यो᳚वि॒श्पति᳚र्वि॒क्षुवे॒धाः || 2 || |
तंनव्य॑सीहृ॒दआजाय॑मान¦म॒स्मत्सु॑की॒र्तिर्मधु॑जिह्वमश्याः | यमृ॒त्विजो᳚वृ॒जने॒मानु॑षासः॒¦प्रय॑स्वन्तआ॒यवो॒जीज॑नन्त || 3 || |
उ॒शिक्पा᳚व॒कोवसु॒र्मानु॑षेषु॒¦वरे᳚ण्यो॒होता᳚धायिवि॒क्षु | दमू᳚नागृ॒हप॑ति॒र्दम॒आँ¦अ॒ग्निर्भु॑वद्रयि॒पती᳚रयी॒णाम् || 4 || |
तंत्वा᳚व॒यंपति॑मग्नेरयी॒णां¦प्रशं᳚सामोम॒तिभि॒र्गोत॑मासः | आ॒शुंनवा᳚जम्भ॒रंम॒र्जय᳚न्तः¦प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || 5 || |
[61] अस्माइद्विति षोळशर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधाइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:61}{अनुवाक:11, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:4} |
अ॒स्मा,इदु॒प्रत॒वसे᳚तु॒राय॒¦प्रयो॒नह᳚र्मि॒स्तोमं॒माहि॑नाय | ऋची᳚षमा॒याध्रि॑गव॒ओह॒¦मिन्द्रा᳚य॒ब्रह्मा᳚णिरा॒तत॑मा || 1 || वर्ग:27 |
अ॒स्मा,इदु॒प्रय॑इव॒प्रयं᳚सि॒¦भरा᳚म्याङ्गू॒षंबाधे᳚सुवृ॒क्ति | इन्द्रा᳚यहृ॒दामन॑सामनी॒षा¦प्र॒त्नाय॒पत्ये॒धियो᳚मर्जयन्त || 2 || |
अ॒स्मा,इदु॒त्यमु॑प॒मंस्व॒र्षां¦भरा᳚म्याङ्गू॒षमा॒स्ये᳚न | मंहि॑ष्ठ॒मच्छो᳚क्तिभिर्मती॒नां¦सु॑वृ॒क्तिभिः॑सू॒रिंवा᳚वृ॒धध्यै᳚ || 3 || |
अ॒स्मा,इदु॒स्तोमं॒संहि॑नोमि॒¦रथं॒नतष्टे᳚व॒तत्सि॑नाय | गिर॑श्च॒गिर्वा᳚हसेसुवृ॒क्ती¦न्द्रा᳚यविश्वमि॒न्वंमेधि॑राय || 4 || |
अ॒स्मा,इदु॒सप्ति॑मिवश्रव॒स्ये¦न्द्रा᳚या॒र्कंजु॒ह्वा॒३॑(आ॒)सम᳚ञ्जे | वी॒रंदा॒नौक॑संव॒न्दध्यै᳚¦पु॒रांगू॒र्तश्र॑वसंद॒र्माण᳚म् || 5 || |
अ॒स्मा,इदु॒त्वष्टा᳚तक्ष॒द्वज्रं॒¦स्वप॑स्तमंस्व॒र्य१॑(अं॒)रणा᳚य | वृ॒त्रस्य॑चिद्वि॒दद्येन॒मर्म॑¦तु॒जन्नीशा᳚नस्तुज॒ताकि॑ये॒धाः || 6 || वर्ग:28 |
अ॒स्येदु॑मा॒तुःसव॑नेषुस॒द्योम॒हः¦पि॒तुंप॑पि॒वाञ्चार्वन्ना᳚ | मु॒षा॒यद्विष्णुः॑पच॒तंसही᳚या॒न्¦विध्य॑द्वरा॒हंति॒रो,अद्रि॒मस्ता᳚ || 7 || |
अ॒स्मा,इदु॒ग्नाश्चि॑द्दे॒वप॑त्नी॒¦रिन्द्रा᳚या॒र्कम॑हि॒हत्य॑ऊवुः | परि॒द्यावा᳚पृथि॒वीज॑भ्रउ॒र्वी¦नास्य॒तेम॑हि॒मानं॒परि॑ष्टः || 8 || |
अ॒स्येदे॒वप्ररि॑रिचेमहि॒त्वं¦दि॒वस्पृ॑थि॒व्याःपर्य॒न्तरि॑क्षात् | स्व॒राळिन्द्रो॒दम॒आवि॒श्वगू᳚र्तः¦स्व॒रिरम॑त्रोववक्षे॒रणा᳚य || 9 || |
अ॒स्येदे॒वशव॑साशु॒षन्तं॒¦विवृ॑श्च॒द्वज्रे᳚णवृ॒त्रमिन्द्रः॑ | गानव्रा॒णा,अ॒वनी᳚रमुञ्च¦द॒भिश्रवो᳚दा॒वने॒सचे᳚ताः || 10 || |
अ॒स्येदु॑त्वे॒षसा᳚रन्त॒सिन्ध॑वः॒¦परि॒यद्वज्रे᳚णसी॒मय॑च्छत् | ई॒शा॒न॒कृद्दा॒शुषे᳚दश॒स्यन्¦तु॒र्वीत॑येगा॒धंतु॒र्वणिः॑कः || 11 || वर्ग:29 |
अ॒स्मा,इदु॒प्रभ॑रा॒तूतु॑जानो¦वृ॒त्राय॒वज्र॒मीशा᳚नःकिये॒धाः | गोर्नपर्व॒विर॑दातिर॒श्चे¦ष्य॒न्नर्णां᳚स्य॒पांच॒रध्यै᳚ || 12 || |
अ॒स्येदु॒प्रब्रू᳚हिपू॒र्व्याणि॑¦तु॒रस्य॒कर्मा᳚णि॒नव्य॑उ॒क्थैः | यु॒धेयदि॑ष्णा॒नआयु॑धा¦न्यृघा॒यमा᳚णोनिरि॒णाति॒शत्रू॑न् || 13 || |
अ॒स्येदु॑भि॒यागि॒रय॑श्चदृ॒ळ्हा¦द्यावा᳚च॒भूमा᳚ज॒नुष॑स्तुजेते | उपो᳚वे॒नस्य॒जोगु॑वानओ॒णिं¦स॒द्योभु॑वद्वी॒र्या᳚यनो॒धाः || 14 || |
अ॒स्मा,इदु॒त्यदनु॑दाय्येषा॒¦मेको॒यद्व॒व्नेभूरे॒रीशा᳚नः | प्रैत॑शं॒सूर्ये᳚पस्पृधा॒नं¦सौव॑श्व्ये॒सुष्वि॑माव॒दिन्द्रः॑ || 15 || |
ए॒वाते᳚हारियोजनासुवृ॒क्ती¦न्द्र॒ब्रह्मा᳚णि॒गोत॑मासो,अक्रन् | ऐषु॑वि॒श्वपे᳚शसं॒धियं᳚धाः¦प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || 16 || |
[62] प्रमन्मह इतित्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधाइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:62}{अनुवाक:11, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
प्रम᳚न्महेशवसा॒नाय॑शू॒ष¦मा᳚ङ्गू॒षंगिर्व॑णसे,अङ्गिर॒स्वत् | सु॒वृ॒क्तिभिः॑स्तुव॒तऋ॑ग्मि॒याया¦ऽर्चा᳚मा॒र्कंनरे॒विश्रु॑ताय || 1 || वर्ग:1 |
प्रवो᳚म॒हेमहि॒नमो᳚भरध्व¦माङ्गू॒ष्यं᳚शवसा॒नाय॒साम॑ | येना᳚नः॒पूर्वे᳚पि॒तरः॑पद॒ज्ञा¦,अर्च᳚न्तो॒,अङ्गि॑रसो॒गा,अवि᳚न्दन् || 2 || |
इन्द्र॒स्याङ्गि॑रसांचे॒ष्टौ¦वि॒दत्स॒रमा॒तन॑यायधा॒सिम् | बृह॒स्पति॑र्भि॒नदद्रिं᳚वि॒दद्गाः¦समु॒स्रिया᳚भिर्वावशन्त॒नरः॑ || 3 || |
ससु॒ष्टुभा॒सस्तु॒भास॒प्तविप्रैः᳚¦स्व॒रेणाद्रिं᳚स्व॒र्यो॒३॑(ओ॒)नव॑ग्वैः | स॒र॒ण्युभिः॑फलि॒गमि᳚न्द्रशक्र¦व॒लंरवे᳚णदरयो॒दश॑ग्वैः || 4 || |
गृ॒णा॒नो,अङ्गि॑रोभिर्दस्म॒विव॑¦रु॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒गोभि॒रन्धः॑ | विभूम्या᳚,अप्रथयइन्द्र॒सानु॑¦दि॒वोरज॒उप॑रमस्तभायः || 5 || |
तदु॒प्रय॑क्षतममस्य॒कर्म॑¦द॒स्मस्य॒चारु॑तममस्ति॒दंसः॑ | उ॒प॒ह्व॒रेयदुप॑रा॒,अपि᳚न्व॒न्¦मध्व᳚र्णसोन॒द्य१॑(अ॒)श्चत॑स्रः || 6 || वर्ग:2 |
द्वि॒ताविव᳚व्रेस॒नजा॒सनी᳚ळे¦,अ॒यास्यः॒स्तव॑मानेभिर॒र्कैः | भगो॒नमेने᳚पर॒मेव्यो᳚म॒¦न्नधा᳚रय॒द्रोद॑सीसु॒दंसाः᳚ || 7 || |
स॒नाद्दिवं॒परि॒भूमा॒विरू᳚पे¦पुन॒र्भुवा᳚युव॒तीस्वेभि॒रेवैः᳚ | कृ॒ष्णेभि॑र॒क्तोषारुश॑द्भि॒¦र्वपु॑र्भि॒राच॑रतो,अ॒न्यान्या᳚ || 8 || |
सने᳚मिस॒ख्यंस्व॑प॒स्यमा᳚नः¦सू॒नुर्दा᳚धार॒शव॑सासु॒दंसाः᳚ | आ॒मासु॑चिद्दधिषेप॒क्वम॒न्तः¦पयः॑कृ॒ष्णासु॒रुश॒द्रोहि॑णीषु || 9 || |
स॒नात्सनी᳚ळा,अ॒वनी᳚रवा॒ता¦व्र॒तार॑क्षन्ते,अ॒मृताः॒सहो᳚भिः | पु॒रूस॒हस्रा॒जन॑यो॒नपत्नी᳚¦र्दुव॒स्यन्ति॒स्वसा᳚रो॒,अह्र॑याणम् || 10 || |
स॒ना॒युवो॒नम॑सा॒नव्यो᳚,अ॒र्कै¦र्व॑सू॒यवो᳚म॒तयो᳚दस्मदद्रुः | पतिं॒नपत्नी᳚रुश॒तीरु॒शन्तं᳚¦स्पृ॒शन्ति॑त्वाशवसावन्मनी॒षाः || 11 || |
स॒नादे॒वतव॒रायो॒गभ॑स्तौ॒¦नक्षीय᳚न्ते॒नोप॑दस्यन्तिदस्म | द्यु॒माँ,अ॑सि॒क्रतु॑माँ,इन्द्र॒धीरः॒¦शिक्षा᳚शचीव॒स्तव॑नः॒शची᳚भिः || 12 || वर्ग:3 |
स॒ना॒य॒तेगोत॑मइन्द्र॒नव्य॒¦मत॑क्ष॒द्ब्रह्म॑हरि॒योज॑नाय | सु॒नी॒थाय॑नःशवसाननो॒धाः¦प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || 13 || |
[63] त्वंमहानिति नवर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधाइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:63}{अनुवाक:11, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
त्वंम॒हाँ,इ᳚न्द्र॒योह॒शुष्मै॒¦र्द्यावा᳚जज्ञा॒नःपृ॑थि॒वी,अमे᳚धाः | यद्ध॑ते॒विश्वा᳚गि॒रय॑श्चि॒दभ्वा᳚¦भि॒यादृ॒ळ्हासः॑कि॒रणा॒नैज॑न् || 1 || वर्ग:4 |
आयद्धरी᳚,इन्द्र॒विव्र॑ता॒वे¦राते॒वज्रं᳚जरि॒ताबा॒ह्वोर्धा᳚त् | येना᳚विहर्यतक्रतो,अ॒मित्रा॒न्पुर॑¦इ॒ष्णासि॑पुरुहूतपू॒र्वीः || 2 || |
त्वंस॒त्यइ᳚न्द्रधृ॒ष्णुरे॒तान्¦त्वमृ॑भु॒क्षानर्य॒स्त्वंषाट् | त्वंशुष्णं᳚वृ॒जने᳚पृ॒क्षआ॒णौ¦यूने॒कुत्सा᳚यद्यु॒मते॒सचा᳚हन् || 3 || |
त्वंह॒त्यदि᳚न्द्रचोदीः॒सखा᳚¦वृ॒त्रंयद्व॑ज्रिन्वृषकर्मन्नु॒भ्नाः | यद्ध॑शूरवृषमणःपरा॒चै¦र्विदस्यूँ॒र्योना॒वकृ॑तोवृथा॒षाट् || 4 || |
त्वंह॒त्यदि॒न्द्रारि॑षण्यन्¦दृ॒ळ्हस्य॑चि॒न्मर्ता᳚ना॒मजु॑ष्टौ | व्य१॑(अ॒)स्मदाकाष्ठा॒,अर्व॑तेव¦र्घ॒नेव॑वज्रिञ्छ्नथिह्य॒मित्रा॑न् || 5 || |
त्वांह॒त्यदि॒न्द्रार्ण॑सातौ॒¦स्व᳚र्मीळ्हे॒नर॑आ॒जाह॑वन्ते | तव॑स्वधावइ॒यमास॑म॒र्य¦ऊ॒तिर्वाजे᳚ष्वत॒साय्या᳚भूत् || 6 || वर्ग:5 |
त्वंह॒त्यदि᳚न्द्रस॒प्तयुध्य॒न्¦पुरो᳚वज्रिन्पुरु॒कुत्सा᳚यदर्दः | ब॒र्हिर्नयत्सु॒दासे॒वृथा॒व¦र्गं॒होरा᳚ज॒न्वरि॑वःपू॒रवे᳚कः || 7 || |
त्वंत्यांन॑इन्द्रदेवचि॒त्रा¦मिष॒मापो॒नपी᳚पयः॒परि॑ज्मन् | यया᳚शूर॒प्रत्य॒स्मभ्यं॒यंसि॒¦त्मन॒मूर्जं॒नवि॒श्वध॒क्षर॑ध्यै || 8 || |
अका᳚रितइन्द्र॒गोत॑मेभि॒¦र्ब्रह्मा॒ण्योक्ता॒नम॑सा॒हरि॑भ्याम् | सु॒पेश॑सं॒वाज॒माभ॑रानः¦प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || 9 || |
[64] वृष्णेशर्धायेति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य गौतमोनोधामरुतोजगती अंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:64}{अनुवाक:11, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
वृष्णे॒शर्धा᳚य॒सुम॑खायवे॒धसे॒¦नोधः॑सुवृ॒क्तिंप्रभ॑राम॒रुद्भ्यः॑ | अ॒पोनधीरो॒मन॑सासु॒हस्त्यो॒¦गिरः॒सम᳚ञ्जेवि॒दथे᳚ष्वा॒भुवः॑ || 1 || वर्ग:6 |
तेज॑ज्ञिरेदि॒वऋ॒ष्वास॑उ॒क्षणो᳚¦रु॒द्रस्य॒मर्या॒,असु॑रा,अरे॒पसः॑ | पा॒व॒कासः॒शुच॑यः॒सूर्या᳚,इव॒¦सत्वा᳚नो॒नद्र॒प्सिनो᳚घो॒रव॑र्पसः || 2 || |
युवा᳚नोरु॒द्रा,अ॒जरा᳚,अभो॒ग्घनो᳚¦वव॒क्षुरध्रि॑गावः॒पर्व॑ता,इव | दृ॒ळ्हाचि॒द्विश्वा॒भुव॑नानि॒पार्थि॑वा॒¦प्रच्या᳚वयन्तिदि॒व्यानि॑म॒ज्मना᳚ || 3 || |
चि॒त्रैर॒ञ्जिभि॒र्वपु॑षे॒व्य᳚ञ्जते॒¦वक्ष॑स्सुरु॒क्माँ,अधि॑येतिरेशु॒भे | अंसे᳚ष्वेषां॒निमि॑मृक्षुरृ॒ष्टयः॑¦सा॒कंज॑ज्ञिरेस्व॒धया᳚दि॒वोनरः॑ || 4 || |
ई॒शा॒न॒कृतो॒धुन॑योरि॒शाद॑सो॒¦वाता᳚न्वि॒द्युत॒स्तवि॑षीभिरक्रत | दु॒हन्त्यूध॑र्दि॒व्यानि॒धूत॑यो॒¦भूमिं᳚पिन्वन्ति॒पय॑सा॒परि॑ज्रयः || 5 || |
पिन्व᳚न्त्य॒पोम॒रुतः॑सु॒दान॑वः॒¦पयो᳚घृ॒तव॑द्वि॒दथे᳚ष्वा॒भुवः॑ | अत्यं॒नमि॒हेविन॑यन्तिवा॒जिन॒¦मुत्सं᳚दुहन्तिस्त॒नय᳚न्त॒मक्षि॑तम् || 6 || वर्ग:7 |
म॒हि॒षासो᳚मा॒यिन॑श्चि॒त्रभा᳚नवो¦गि॒रयो॒नस्वत॑वसोरघु॒ष्यदः॑ | मृ॒गा,इ॑वह॒स्तिनः॑खादथा॒वना॒¦यदारु॑णीषु॒तवि॑षी॒रयु॑ग्ध्वम् || 7 || |
सिं॒हा,इ॑वनानदति॒प्रचे᳚तसः¦पि॒शा,इ॑वसु॒पिशो᳚वि॒श्ववे᳚दसः | क्षपो॒जिन्व᳚न्तः॒पृष॑तीभिरृ॒ष्टिभिः॒¦समित्स॒बाधः॒शव॒साहि॑मन्यवः || 8 || |
रोद॑सी॒,आव॑दतागणश्रियो॒¦नृषा᳚चःशूराः॒शव॒साहि॑मन्यवः | आव॒न्धुरे᳚ष्व॒मति॒र्नद॑र्श॒ता¦वि॒द्युन्नत॑स्थौमरुतो॒रथे᳚षुवः || 9 || |
वि॒श्ववे᳚दसोर॒यिभिः॒समो᳚कसः॒¦सम्मि॑श्लास॒स्तवि॑षीभिर्विर॒प्शिनः॑ | अस्ता᳚र॒इषुं᳚दधिरे॒गभ॑स्त्यो¦रन॒न्तशु॑ष्मा॒वृष॑खादयो॒नरः॑ || 10 || |
हि॒र॒ण्यये᳚भिःप॒विभिः॑पयो॒वृध॒¦उज्जि॑घ्नन्तआप॒थ्यो॒३॑(ओ॒)नपर्व॑तान् | म॒खा,अ॒यासः॑स्व॒सृतो᳚ध्रुव॒च्युतो᳚¦दुध्र॒कृतो᳚म॒रुतो॒भ्राज॑दृष्टयः || 11 || वर्ग:8 |
घृषुं᳚पाव॒कंव॒निनं॒विच॑र्षणिं¦रु॒द्रस्य॑सू॒नुंह॒वसा᳚गृणीमसि | र॒ज॒स्तुरं᳚त॒वसं॒मारु॑तंग॒ण¦मृ॑जी॒षिणं॒वृष॑णंसश्चतश्रि॒ये || 12 || |
प्रनूसमर्तः॒शव॑सा॒जनाँ॒,अति॑¦त॒स्थौव॑ऊ॒तीम॑रुतो॒यमाव॑त | अर्व॑द्भि॒र्वाजं᳚भरते॒धना॒नृभि॑¦रा॒पृच्छ्यं॒क्रतु॒माक्षे᳚ति॒पुष्य॑ति || 13 || |
च॒र्कृत्यं᳚मरुतःपृ॒त्सुदु॒ष्टरं᳚¦द्यु॒मन्तं॒शुष्मं᳚म॒घव॑त्सुधत्तन | ध॒न॒स्पृत॑मु॒क्थ्यं᳚वि॒श्वच॑र्षणिं¦तो॒कंपु॑ष्येम॒तन॑यंश॒तंहिमाः᳚ || 14 || |
नूष्ठि॒रंम॑रुतोवी॒रव᳚न्त¦मृती॒षाहं᳚र॒यिम॒स्मासु॑धत्त | स॒ह॒स्रिणं᳚श॒तिनं᳚शूशु॒वांसं᳚¦प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || 15 || |
[65] पश्वानेति दशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निर्द्विपदाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:65}{अनुवाक:12, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
प॒श्वानता॒युंगुहा॒चत᳚न्तं॒¦नमो᳚युजा॒नंनमो॒वह᳚न्तम् || 1 || वर्ग:9 |
स॒जोषा॒धीराः᳚प॒दैरनु॑ग्म॒¦न्नुप॑त्वासीद॒न्विश्वे॒यज॑त्राः || 2 || |
ऋ॒तस्य॑दे॒वा,अनु᳚व्र॒तागु॒¦र्भुव॒त्परि॑ष्टि॒र्द्यौर्नभूम॑ || 3 || |
वर्ध᳚न्ती॒मापः॑प॒न्वासुशि॑श्वि¦मृ॒तस्य॒योना॒गर्भे॒सुजा᳚तम् || 4 || |
पु॒ष्टिर्नर॒ण्वाक्षि॒तिर्नपृ॒थ्वी¦गि॒रिर्नभुज्म॒क्षोदो॒नश॒म्भु || 5 || |
अत्यो॒नाज्म॒न्त्सर्ग॑प्रतक्तः॒¦सिन्धु॒र्नक्षोदः॒कईं᳚वराते || 6 || |
जा॒मिःसिन्धू᳚नां॒भ्राते᳚व॒स्वस्रा॒¦मिभ्या॒न्नराजा॒वना᳚न्यत्ति || 7 || |
यद्वात॑जूतो॒वना॒व्यस्था᳚¦द॒ग्निर्ह॑दाति॒रोमा᳚पृथि॒व्याः || 8 || |
श्वसि॑त्य॒प्सुहं॒सोनसीद॒न्¦क्रत्वा॒चेति॑ष्ठोवि॒शामु॑ष॒र्भुत् || 9 || |
सोमो॒नवे॒धा,ऋ॒तप्र॑जातः¦प॒शुर्नशिश्वा᳚वि॒भुर्दू॒रेभाः᳚ || 10 || |
[66] रयिर्नेति दशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निर्द्विपदाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:66}{अनुवाक:12, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
र॒यिर्नचि॒त्रासूरो॒नसं॒दृ¦गायु॒र्नप्रा॒णोनित्यो॒नसू॒नुः || 1 || वर्ग:10 |
तक्वा॒नभूर्णि॒र्वना᳚सिषक्ति॒¦पयो॒नधे॒नुःशुचि᳚र्वि॒भावा᳚ || 2 || |
दा॒धार॒क्षेम॒मोको॒नर॒ण्वो¦यवो॒नप॒क्वोजेता॒जना᳚नाम् || 3 || |
ऋषि॒र्नस्तुभ्वा᳚वि॒क्षुप्र॑श॒स्तो¦वा॒जीनप्री॒तोवयो᳚दधाति || 4 || |
दु॒रोक॑शोचिः॒क्रतु॒र्ननित्यो᳚¦जा॒येव॒योना॒वरं॒विश्व॑स्मै || 5 || |
चि॒त्रोयदभ्रा᳚ट्छ्वे॒तोनवि॒क्षु¦रथो॒नरु॒क्मीत्वे॒षःस॒मत्सु॑ || 6 || |
सेने᳚वसृ॒ष्टामं᳚दधा॒त्य¦स्तु॒र्नदि॒द्युत्त्वे॒षप्र॑तीका || 7 || |
य॒मोह॑जा॒तोय॒मोजनि॑त्वं¦जा॒रःक॒नीनां॒पति॒र्जनी᳚नाम् || 8 || |
तंव॑श्च॒राथा᳚व॒यंव॑स॒त्या¦ऽस्तं॒नगावो॒नक्ष᳚न्तइ॒द्धम् || 9 || |
सिन्धु॒र्नक्षोदः॒प्रनीची᳚रैनो॒¦न्नव᳚न्त॒गावः॒स्व१॑(अ॒)र्दृशी᳚के || 10 || |
[67] वनेष्वितिदशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निर्द्विपदाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:67}{अनुवाक:12, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
वने᳚षुजा॒युर्मर्ते᳚षुमि॒त्रो¦वृ॑णी॒तेश्रु॒ष्टिंराजे᳚वाजु॒र्यम् || 1 || वर्ग:11 |
क्षेमो॒नसा॒धुःक्रतु॒र्नभ॒द्रो¦भुव॑त्स्वा॒धीर्होता᳚हव्य॒वाट् || 2 || |
हस्ते॒दधा᳚नोनृ॒म्णाविश्वा॒¦न्यमे᳚दे॒वान्धा॒द्गुहा᳚नि॒षीद॑न् || 3 || |
वि॒दन्ती॒मत्र॒नरो᳚धियं॒धा¦हृ॒दायत्त॒ष्टान्मन्त्राँ॒,अशं᳚सन् || 4 || |
अ॒जोनक्षांदा॒धार॑पृथि॒वीं¦त॒स्तम्भ॒द्यांमन्त्रे᳚भिःस॒त्यैः || 5 || |
प्रि॒याप॒दानि॑प॒श्वोनिपा᳚हि¦वि॒श्वायु॑रग्नेगु॒हागुहं᳚गाः || 6 || |
यईं᳚चि॒केत॒गुहा॒भव᳚न्त॒¦मायःस॒साद॒धारा᳚मृ॒तस्य॑ || 7 || |
वियेचृ॒तन्त्यृ॒तासप᳚न्त॒¦आदिद्वसू᳚नि॒प्रव॑वाचास्मै || 8 || |
वियोवी॒रुत्सु॒रोध᳚न्महि॒त्वो¦तप्र॒जा,उ॒तप्र॒सूष्व॒न्तः || 9 || |
चित्ति॑र॒पांदमे᳚वि॒श्वायुः॒¦सद्मे᳚व॒धीराः᳚स॒म्माय॑चक्रुः || 10 || |
[68] श्रीणन्निति दशर्चस्य सुक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निर्द्विपदाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:68}{अनुवाक:12, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
श्री॒णन्नुप॑स्था॒द्दिवं᳚भुर॒ण्युः¦स्था॒तुश्च॒रथ॑म॒क्तून्व्यू᳚र्णोत् || 1 || वर्ग:12 |
परि॒यदे᳚षा॒मेको॒विश्वे᳚षां॒¦भुव॑द्दे॒वोदे॒वानां᳚महि॒त्वा || 2 || |
आदित्ते॒विश्वे॒क्रतुं᳚जुषन्त॒¦शुष्का॒द्यद्दे᳚वजी॒वोजनि॑ष्ठाः || 3 || |
भज᳚न्त॒विश्वे᳚देव॒त्वंनाम॑¦ऋ॒तंसप᳚न्तो,अ॒मृत॒मेवैः᳚ || 4 || |
ऋ॒तस्य॒प्रेषा᳚ऋ॒तस्य॑धी॒ति¦र्वि॒श्वायु॒र्विश्वे॒,अपां᳚सिचक्रुः || 5 || |
यस्तुभ्यं॒दाशा॒द्योवा᳚ते॒शिक्षा॒त्¦तस्मै᳚चिकि॒त्वान्र॒यिंद॑यस्व || 6 || |
होता॒निष॑त्तो॒मनो॒रप॑त्ये॒¦सचि॒न्न्वा᳚सां॒पती᳚रयी॒णाम् || 7 || |
इ॒च्छन्त॒रेतो᳚मि॒थस्त॒नूषु॒¦संजा᳚नत॒स्वैर्दक्षै॒रमू᳚राः || 8 || |
पि॒तुर्नपु॒त्राःक्रतुं᳚जुषन्त॒¦श्रोष॒न्ये,अ॑स्य॒शासं᳚तु॒रासः॑ || 9 || |
विराय॑और्णो॒द्दुरः॑पुरु॒क्षुः¦पि॒पेश॒नाकं॒स्तृभि॒र्दमू᳚नाः || 10 || |
[69] शुक्रइति दशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निर्द्विपदाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:69}{अनुवाक:12, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
शु॒क्रःशु॑शु॒क्वाँ,उ॒षोनजा॒रः¦प॒प्रास॑मी॒चीदि॒वोनज्योतिः॑ || 1 || वर्ग:13 |
परि॒प्रजा᳚तः॒क्रत्वा᳚बभूथ॒¦भुवो᳚दे॒वानां᳚पि॒तापु॒त्रःसन् || 2 || |
वे॒धा,अदृ॑प्तो,अ॒ग्निर्वि॑जा॒न¦न्नूध॒र्नगोनां॒स्वाद्मा᳚पितू॒नाम् || 3 || |
जने॒नशेव॑आ॒हूर्यः॒सन्¦मध्ये॒निष॑त्तोर॒ण्वोदु॑रो॒णे || 4 || |
पु॒त्रोनजा॒तोर॒ण्वोदु॑रो॒णे¦वा॒जीनप्री॒तोविशो॒विता᳚रीत् || 5 || |
विशो॒यदह्वे॒नृभिः॒सनी᳚ळा¦,अ॒ग्निर्दे᳚व॒त्वाविश्वा᳚न्यश्याः || 6 || |
नकि॑ष्टए॒ताव्र॒तामि॑नन्ति॒¦नृभ्यो॒यदे॒भ्यःश्रु॒ष्टिंच॒कर्थ॑ || 7 || |
तत्तुते॒दंसो॒यदह᳚न्त्समा॒नै¦र्नृभि॒र्यद्यु॒क्तोवि॒वेरपां᳚सि || 8 || |
उ॒षोनजा॒रोवि॒भावो॒स्रः¦संज्ञा᳚तरूप॒श्चिके᳚तदस्मै || 9 || |
त्मना॒वह᳚न्तो॒दुरो॒व्यृ᳚ण्व॒न्¦नव᳚न्त॒विश्वे॒स्व१॑(अ॒)र्दृशी᳚के || 10 || |
[70] वनेमेत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निर्द्विपदाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:70}{अनुवाक:12, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
व॒नेम॑पू॒र्वीर॒र्योम॑नी॒षा¦,अ॒ग्निःसु॒शोको॒विश्वा᳚न्यश्याः || 1 || वर्ग:14 |
आदैव्या᳚निव्र॒ताचि॑कि॒त्वा¦नामानु॑षस्य॒जन॑स्य॒जन्म॑ || 2 || |
गर्भो॒यो,अ॒पांगर्भो॒वना᳚नां॒¦गर्भ॑श्चस्था॒तांगर्भ॑श्च॒रथा᳚म् || 3 || |
अद्रौ᳚चिदस्मा,अ॒न्तर्दु॑रो॒णे¦वि॒शांनविश्वो᳚,अ॒मृतः॑स्वा॒धीः || 4 || |
सहिक्ष॒पावाँ᳚,अ॒ग्नीर॑यी॒णां¦दाश॒द्यो,अ॑स्मा॒,अरं᳚सू॒क्तैः || 5 || |
ए॒ताचि॑कित्वो॒भूमा॒निपा᳚हि¦दे॒वानां॒जन्म॒मर्ताँ᳚श्चवि॒द्वान् || 6 || |
वर्धा॒न्यंपू॒र्वीः,क्ष॒पोविरू᳚पाः¦स्था॒तुश्च॒रथ॑मृ॒तप्र॑वीतम् || 7 || |
अरा᳚धि॒होता॒स्व१॑(अ॒)र्निष॑त्तः¦कृ॒ण्वन्विश्वा॒न्यपां᳚सिस॒त्या || 8 || |
गोषु॒प्रश॑स्तिं॒वने᳚षुधिषे॒¦भर᳚न्त॒विश्वे᳚ब॒लिंस्व᳚र्णः || 9 || |
वित्वा॒नरः॑पुरु॒त्रास॑पर्यन्¦पि॒तुर्नजिव्रे॒र्विवेदो᳚भरन्त || 10 || |
सा॒धुर्नगृ॒ध्नुरस्ते᳚व॒शूरो॒¦याते᳚वभी॒मस्त्वे॒षःस॒मत्सु॑ || 11 || |
[71] उपप्रजिन्वन्निति दशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निस्त्रिष्टुप्{मंडल:1, सूक्त:71}{अनुवाक:12, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
उप॒प्रजि᳚न्वन्नुश॒तीरु॒शन्तं॒¦पतिं॒ननित्यं॒जन॑यः॒सनी᳚ळाः | स्वसा᳚रः॒श्यावी॒मरु॑षीमजुष्रञ्¦चि॒त्रमु॒च्छन्ती᳚मु॒षसं॒नगावः॑ || 1 || वर्ग:15 |
वी॒ळुचि॑द्दृ॒ळ्हापि॒तरो᳚नउ॒क्थै¦रद्रिं᳚रुज॒न्नङ्गि॑रसो॒रवे᳚ण | च॒क्रुर्दि॒वोबृ॑ह॒तोगा॒तुम॒स्मे¦,अहः॒स्व᳚र्विविदुःके॒तुमु॒स्राः || 2 || |
दध᳚न्नृ॒तंध॒नय᳚न्नस्यधी॒ति¦मादिद॒र्योदि॑धि॒ष्वो॒३॑(ओ॒)विभृ॑त्राः | अतृ॑ष्यन्तीर॒पसो᳚य॒न्त्यच्छा᳚¦दे॒वाञ्जन्म॒प्रय॑साव॒र्धय᳚न्तीः || 3 || |
मथी॒द्यदीं॒विभृ॑तोमात॒रिश्वा᳚¦गृ॒हेगृ॑हेश्ये॒तोजेन्यो॒भूत् | आदीं॒राज्ञे॒नसही᳚यसे॒सचा॒¦सन्नादू॒त्य१॑(अं॒)भृग॑वाणोविवाय || 4 || |
म॒हेयत्पि॒त्रईं॒रसं᳚दि॒वेक¦रव॑त्सरत्पृश॒न्य॑श्चिकि॒त्वान् | सृ॒जदस्ता᳚धृष॒तादि॒द्युम॑स्मै॒¦स्वायां᳚दे॒वोदु॑हि॒तरि॒त्विषिं᳚धात् || 5 || |
स्वआयस्तुभ्यं॒दम॒आवि॒भाति॒¦नमो᳚वा॒दाशा᳚दुश॒तो,अनु॒द्यून् | वर्धो᳚,अग्ने॒वयो᳚,अस्यद्वि॒बर्हा॒¦यास॑द्रा॒यास॒रथं॒यंजु॒नासि॑ || 6 || वर्ग:16 |
अ॒ग्निंविश्वा᳚,अ॒भिपृक्षः॑सचन्ते¦समु॒द्रंनस्र॒वतः॑स॒प्तय॒ह्वीः | नजा॒मिभि॒र्विचि॑किते॒वयो᳚नो¦वि॒दादे॒वेषु॒प्रम॑तिंचिकि॒त्वान् || 7 || |
आयदि॒षेनृ॒पतिं॒तेज॒आन॒ट्¦छुचि॒रेतो॒निषि॑क्तं॒द्यौर॒भीके᳚ | अ॒ग्निःशर्ध॑मनव॒द्यंयुवा᳚नं¦स्वा॒ध्यं᳚जनयत्सू॒दय॑च्च || 8 || |
मनो॒नयोऽध्व॑नःस॒द्यएत्ये¦कः॑स॒त्रासूरो॒वस्व॑ईशे | राजा᳚नामि॒त्रावरु॑णासुपा॒णी¦गोषु॑प्रि॒यम॒मृतं॒रक्ष॑माणा || 9 || |
मानो᳚,अग्नेस॒ख्यापित्र्या᳚णि॒¦प्रम॑र्षिष्ठा,अ॒भिवि॒दुष्क॒विःसन् | नभो॒नरू॒पंज॑रि॒मामि॑नाति¦पु॒रातस्या᳚,अ॒भिश॑स्ते॒रधी᳚हि || 10 || |
[72] निकाव्येति दशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:72}{अनुवाक:12, सूक्त:8}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
निकाव्या᳚वे॒धसः॒शश्व॑तस्क॒¦र्हस्ते॒दधा᳚नो॒नर्या᳚पु॒रूणि॑ | अ॒ग्निर्भु॑वद्रयि॒पती᳚रयी॒णां¦स॒त्राच॑क्रा॒णो,अ॒मृता᳚नि॒विश्वा᳚ || 1 || वर्ग:17 |
अ॒स्मेव॒त्संपरि॒षन्तं॒नवि᳚न्द¦न्नि॒च्छन्तो॒विश्वे᳚,अ॒मृता॒,अमू᳚राः | श्र॒म॒युवः॑पद॒व्यो᳚धियं॒धा¦स्त॒स्थुःप॒देप॑र॒मेचार्व॒ग्नेः || 2 || |
ति॒स्रोयद॑ग्नेश॒रद॒स्त्वामि¦च्छुचिं᳚घृ॒तेन॒शुच॑यःसप॒र्यान् | नामा᳚निचिद्दधिरेय॒ज्ञिया॒न्य¦सू᳚दयन्तत॒न्व१॑(अः॒)सुजा᳚ताः || 3 || |
आरोद॑सीबृह॒तीवेवि॑दानाः॒¦प्ररु॒द्रिया᳚जभ्रिरेय॒ज्ञिया᳚सः | वि॒दन्मर्तो᳚ने॒मधि॑ताचिकि॒त्वा¦न॒ग्निंप॒देप॑र॒मेत॑स्थि॒वांस᳚म् || 4 || |
सं॒जा॒ना॒ना,उप॑सीदन्नभि॒ज्ञु¦पत्नी᳚वन्तोनम॒स्यं᳚नमस्यन् | रि॒रि॒क्वांस॑स्त॒न्वः॑कृण्वत॒स्वाः¦सखा॒सख्यु᳚र्नि॒मिषि॒रक्ष॑माणाः || 5 || |
त्रिःस॒प्तयद्गुह्या᳚नि॒त्वे,इत्¦प॒दावि॑द॒न्निहि॑ताय॒ज्ञिया᳚सः | तेभी᳚रक्षन्ते,अ॒मृतं᳚स॒जोषाः᳚¦प॒शूञ्च॑स्था॒तॄञ्च॒रथं᳚चपाहि || 6 || वर्ग:18 |
वि॒द्वाँ,अ॑ग्नेव॒युना᳚निक्षिती॒नां¦व्या᳚नु॒षक्छु॒रुधो᳚जी॒वसे᳚धाः | अ॒न्त॒र्वि॒द्वाँ,अध्व॑नोदेव॒याना॒¦नत᳚न्द्रोदू॒तो,अ॑भवोहवि॒र्वाट् || 7 || |
स्वा॒ध्यो᳚दि॒वआस॒प्तय॒ह्वी¦रा॒योदुरो॒व्यृ॑त॒ज्ञा,अ॑जानन् | वि॒दद्गव्यं᳚स॒रमा᳚दृ॒ळ्हमू॒र्वं¦येना॒नुकं॒मानु॑षी॒भोज॑ते॒विट् || 8 || |
आयेविश्वा᳚स्वप॒त्यानि॑त॒स्थुः¦कृ᳚ण्वा॒नासो᳚,अमृत॒त्वाय॑गा॒तुम् | म॒ह्नाम॒हद्भिः॑पृथि॒वीवित॑स्थे¦मा॒तापु॒त्रैरदि॑ति॒र्धाय॑से॒वेः || 9 || |
अधि॒श्रियं॒निद॑धु॒श्चारु॑मस्मिन्¦दि॒वोयद॒क्षी,अ॒मृता॒,अकृ᳚ण्वन् | अध॑क्षरन्ति॒सिन्ध॑वो॒नसृ॒ष्टाः¦प्रनीची᳚रग्ने॒,अरु॑षीरजानन् || 10 || |
[73] रयिर्नेति दशर्चस्य सूक्तस्य शाक्त्यः पराशरोग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:73}{अनुवाक:12, सूक्त:9}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
र॒यिर्नयःपि॑तृवि॒त्तोव॑यो॒धाः¦सु॒प्रणी᳚तिश्चिकि॒तुषो॒नशासुः॑ | स्यो॒न॒शीरति॑थि॒र्नप्री᳚णा॒नो¦होते᳚व॒सद्म॑विध॒तोविता᳚रीत् || 1 || वर्ग:19 |
दे॒वोनयःस॑वि॒तास॒त्यम᳚न्मा॒¦क्रत्वा᳚नि॒पाति॑वृ॒जना᳚नि॒विश्वा᳚ | पु॒रु॒प्र॒श॒स्तो,अ॒मति॒र्नस॒त्य¦आ॒त्मेव॒शेवो᳚दिधि॒षाय्यो᳚भूत् || 2 || |
दे॒वोनयःपृ॑थि॒वींवि॒श्वधा᳚या¦,उप॒क्षेति॑हि॒तमि॑त्रो॒नराजा᳚ | पु॒रः॒सदः॑शर्म॒सदो॒नवी॒रा¦,अ॑नव॒द्यापति॑जुष्टेव॒नारी᳚ || 3 || |
तंत्वा॒नरो॒दम॒आनित्य॑मि॒द्ध¦मग्ने॒सच᳚न्तक्षि॒तिषु॑ध्रु॒वासु॑ | अधि॑द्यु॒म्नंनिद॑धु॒र्भूर्य॑स्मि॒न्¦भवा᳚वि॒श्वायु॑र्ध॒रुणो᳚रयी॒णाम् || 4 || |
विपृक्षो᳚,अग्नेम॒घवा᳚नो,अश्यु॒¦र्विसू॒रयो॒दद॑तो॒विश्व॒मायुः॑ | स॒नेम॒वाजं᳚समि॒थेष्व॒र्यो¦भा॒गंदे॒वेषु॒श्रव॑से॒दधा᳚नाः || 5 || |
ऋ॒तस्य॒हिधे॒नवो᳚वावशा॒नाः¦स्मदू᳚ध्नीःपी॒पय᳚न्त॒द्युभ॑क्ताः | प॒रा॒वतः॑सुम॒तिंभिक्ष॑माणा॒¦विसिन्ध॑वःस॒मया᳚सस्रु॒रद्रि᳚म् || 6 || वर्ग:20 |
त्वे,अ॑ग्नेसुम॒तिंभिक्ष॑माणा¦दि॒विश्रवो᳚दधिरेय॒ज्ञिया᳚सः | नक्ता᳚चच॒क्रुरु॒षसा॒विरू᳚पे¦कृ॒ष्णंच॒वर्ण॑मरु॒णंच॒संधुः॑ || 7 || |
यान्रा॒येमर्ता॒न्त्सुषू᳚दो,अग्ने॒¦तेस्या᳚मम॒घवा᳚नोव॒यंच॑ | छा॒येव॒विश्वं॒भुव॑नंसिसक्ष्या¦पप्रि॒वान्रोद॑सी,अ॒न्तरि॑क्षम् || 8 || |
अर्व॑द्भिरग्ने॒,अर्व॑तो॒नृभि॒र्नॄन्¦वी॒रैर्वी॒रान्व॑नुयामा॒त्वोताः᳚ | ई॒शा॒नासः॑पितृवि॒त्तस्य॑रा॒यो¦विसू॒रयः॑श॒तहि॑मानो,अश्युः || 9 || |
ए॒ताते᳚,अग्नउ॒चथा᳚निवेधो॒¦जुष्टा᳚निसन्तु॒मन॑सेहृ॒देच॑ | श॒केम॑रा॒यःसु॒धुरो॒यमं॒ते¦ऽधि॒श्रवो᳚दे॒वभ॑क्तं॒दधा᳚नाः || 10 || |
[74] उपप्रयंतइति नवर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोग्निर्गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:74}{अनुवाक:13, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
उ॒प॒प्र॒यन्तो᳚,अध्व॒रं¦मन्त्रं᳚वोचेमा॒ग्नये᳚ | आ॒रे,अ॒स्मेच॑शृण्व॒ते || 1 || वर्ग:21 |
यःस्नीहि॑तीषुपू॒र्व्यः¦सं᳚जग्मा॒नासु॑कृ॒ष्टिषु॑ | अर॑क्षद्दा॒शुषे॒गय᳚म् || 2 || |
उ॒तब्रु॑वन्तुज॒न्तव॒¦उद॒ग्निर्वृ॑त्र॒हाज॑नि | ध॒नं॒ज॒योरणे᳚रणे || 3 || |
यस्य॑दू॒तो,असि॒क्षये॒¦वेषि॑ह॒व्यानि॑वी॒तये᳚ | द॒स्मत्कृ॒णोष्य॑ध्व॒रम् || 4 || |
तमित्सु॑ह॒व्यम᳚ङ्गिरः¦सुदे॒वंस॑हसोयहो | जना᳚,आहुःसुब॒र्हिष᳚म् || 5 || |
आच॒वहा᳚सि॒ताँ,इ॒ह¦दे॒वाँ,उप॒प्रश॑स्तये | ह॒व्यासु॑श्चन्द्रवी॒तये᳚ || 6 || वर्ग:22 |
नयोरु॑प॒ब्दिरश्व्यः॑¦शृ॒ण्वेरथ॑स्य॒कच्च॒न | यद॑ग्ने॒यासि॑दू॒त्य᳚म् || 7 || |
त्वोतो᳚वा॒ज्यह्र॑यो॒¦ऽभिपूर्व॑स्मा॒दप॑रः | प्रदा॒श्वाँ,अ॑ग्ने,अस्थात् || 8 || |
उ॒तद्यु॒मत्सु॒वीर्यं᳚¦बृ॒हद॑ग्नेविवाससि | दे॒वेभ्यो᳚देवदा॒शुषे᳚ || 9 || |
[75] जुषस्वेति पंचर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोग्निर्गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:75}{अनुवाक:13, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
जु॒षस्व॑स॒प्रथ॑स्तमं॒¦वचो᳚दे॒वप्स॑रस्तमम् | ह॒व्याजुह्वा᳚नआ॒सनि॑ || 1 || वर्ग:23 |
अथा᳚ते,अङ्गिरस्त॒मा¦ग्ने᳚वेधस्तमप्रि॒यम् | वो॒चेम॒ब्रह्म॑सान॒सि || 2 || |
कस्ते᳚जा॒मिर्जना᳚ना॒¦मग्ने॒कोदा॒श्व॑ध्वरः | कोह॒कस्मि᳚न्नसिश्रि॒तः || 3 || |
त्वंजा॒मिर्जना᳚ना॒¦मग्ने᳚मि॒त्रो,अ॑सिप्रि॒यः | सखा॒सखि॑भ्य॒ईड्यः॑ || 4 || |
यजा᳚नोमि॒त्रावरु॑णा॒¦यजा᳚दे॒वाँ,ऋ॒तंबृ॒हत् | अग्ने॒यक्षि॒स्वंदम᳚म् || 5 || |
[76] कातइति पंचचस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:76}{अनुवाक:13, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
कात॒उपे᳚ति॒र्मन॑सो॒वरा᳚य॒¦भुव॑दग्ने॒शंत॑मा॒काम॑नी॒षा | कोवा᳚य॒ज्ञैःपरि॒दक्षं᳚तआप॒¦केन॑वाते॒मन॑सादाशेम || 1 || वर्ग:24 |
एह्य॑ग्नइ॒हहोता॒निषी॒दा¦द॑ब्धः॒सुपु॑रए॒ताभ॑वानः | अव॑तांत्वा॒रोद॑सीविश्वमि॒न्वे¦यजा᳚म॒हेसौ᳚मन॒साय॑दे॒वान् || 2 || |
प्रसुविश्वा᳚न्र॒क्षसो॒धक्ष्य॑ग्ने॒¦भवा᳚य॒ज्ञाना᳚मभिशस्ति॒पावा᳚ | अथाव॑ह॒सोम॑पतिं॒हरि॑भ्या¦माति॒थ्यम॑स्मैचकृमासु॒दाव्ने᳚ || 3 || |
प्र॒जाव॑ता॒वच॑सा॒वह्नि॑रा॒सा¦च॑हु॒वेनिच॑सत्सी॒हदे॒वैः | वेषि॑हो॒त्रमु॒तपो॒त्रंय॑जत्र¦बो॒धिप्र॑यन्तर्जनित॒र्वसू᳚नाम् || 4 || |
यथा॒विप्र॑स्य॒मनु॑षोह॒विर्भि॑¦र्दे॒वाँ,अय॑जःक॒विभिः॑क॒विःसन् | ए॒वाहो᳚तःसत्यतर॒त्वम॒द्या¦ग्ने᳚म॒न्द्रया᳚जु॒ह्वा᳚यजस्व || 5 || |
[77] कथादाशेमेति पंचर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोग्निस्त्रिष्टुप्{मंडल:1, सूक्त:77}{अनुवाक:13, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
क॒थादा᳚शेमा॒ग्नये॒कास्मै᳚¦दे॒वजु॑ष्टोच्यतेभा॒मिने॒गीः | योमर्त्ये᳚ष्व॒मृत॑ऋ॒तावा॒¦होता॒यजि॑ष्ठ॒इत्कृ॒णोति॑दे॒वान् || 1 || वर्ग:25 |
यो,अ॑ध्व॒रेषु॒शंत॑मऋ॒तावा॒¦होता॒तमू॒नमो᳚भि॒राकृ॑णुध्वम् | अ॒ग्निर्यद्वेर्मर्ता᳚यदे॒वा¦न्त्सचा॒बोधा᳚ति॒मन॑सायजाति || 2 || |
सहिक्रतुः॒समर्यः॒ससा॒धु¦र्मि॒त्रोनभू॒दद्भु॑तस्यर॒थीः | तंमेधे᳚षुप्रथ॒मंदे᳚व॒यन्ती॒¦र्विश॒उप॑ब्रुवतेद॒स्ममारीः᳚ || 3 || |
सनो᳚नृ॒णांनृत॑मोरि॒शादा᳚,¦अ॒ग्निर्गिरोऽव॑सावेतुधी॒तिम् | तना᳚च॒येम॒घवा᳚नः॒शवि॑ष्ठा॒¦वाज॑प्रसूता,इ॒षय᳚न्त॒मन्म॑ || 4 || |
ए॒वाग्निर्गोत॑मेभिरृ॒तावा॒¦विप्रे᳚भिरस्तोष्टजा॒तवे᳚दाः | सए᳚षुद्यु॒म्नंपी᳚पय॒त्सवाजं॒¦सपु॒ष्टिंया᳚ति॒जोष॒माचि॑कि॒त्वान् || 5 || |
[78] अभित्वेति पंचर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोग्निर्गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:78}{अनुवाक:13, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
अ॒भित्वा॒गोत॑मागि॒रा¦जात॑वेदो॒विच॑र्षणे | द्यु॒म्नैर॒भिप्रणो᳚नुमः || 1 || वर्ग:26 |
तमु॑त्वा॒गोत॑मोगि॒रा¦रा॒यस्का᳚मोदुवस्यति | द्यु॒म्नैर॒भिप्रणो᳚नुमः || 2 || |
तमु॑त्वावाज॒सात॑म¦मङ्गिर॒स्वद्ध॑वामहे | द्यु॒म्नैर॒भिप्रणो᳚नुमः || 3 || |
तमु॑त्वावृत्र॒हन्त॑मं॒¦योदस्यूँ᳚रवधूनु॒षे | द्यु॒म्नैर॒भिप्रणो᳚नुमः || 4 || |
अवो᳚चाम॒रहू᳚गणा¦,अ॒ग्नये॒मधु॑म॒द्वचः॑ | द्यु॒म्नैर॒भिप्रणो᳚नुमः || 5 || |
[79] हिरण्यकेशइति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणो गोतमोग्निर्गायत्री आद्यास्तिस्रोस्त्रिष्टुभः ततस्तिस्रउष्णिह: (आद्यानांतिसृणांमध्यमोग्निः पार्थिवोवा) |{मंडल:1, सूक्त:79}{अनुवाक:13, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
हिर᳚ण्यकेशो॒रज॑सोविसा॒रे¦ऽहि॒र्धुनि॒र्वात॑इव॒ध्रजी᳚मान् | शुचि॑भ्राजा,उ॒षसो॒नवे᳚दा॒¦यश॑स्वतीरप॒स्युवो॒नस॒त्याः || 1 || वर्ग:27 |
आते᳚सुप॒र्णा,अ॑मिनन्तँ॒,एवैः᳚¦कृ॒ष्णोनो᳚नाववृष॒भोयदी॒दम् | शि॒वाभि॒र्नस्मय॑मानाभि॒रागा॒त्¦पत᳚न्ति॒मिहः॑स्त॒नय᳚न्त्य॒भ्रा || 2 || |
यदी᳚मृ॒तस्य॒पय॑सा॒पिया᳚नो॒¦नय᳚न्नृ॒तस्य॑प॒थिभी॒रजि॑ष्ठैः | अ॒र्य॒मामि॒त्रोवरु॑णः॒परि॑ज्मा॒¦त्वचं᳚पृञ्च॒न्त्युप॑रस्य॒योनौ᳚ || 3 || |
अग्ने॒वाज॑स्य॒गोम॑त॒¦ईशा᳚नःसहसोयहो | अ॒स्मेधे᳚हिजातवेदो॒महि॒श्रवः॑ || 4 || |
सइ॑धा॒नोवसु॑ष्क॒वि¦र॒ग्निरी॒ळेन्यो᳚गि॒रा | रे॒वद॒स्मभ्यं᳚पुर्वणीकदीदिहि || 5 || |
क्ष॒पोरा᳚जन्नु॒तत्मना¦ग्ने॒वस्तो᳚रु॒तोषसः॑ | सति॑ग्मजम्भर॒क्षसो᳚दह॒प्रति॑ || 6 || |
अवा᳚नो,अग्नऊ॒तिभि॑¦र्गाय॒त्रस्य॒प्रभ᳚र्मणि | विश्वा᳚सुधी॒षुव᳚न्द्य || 7 || वर्ग:28 |
आनो᳚,अग्नेर॒यिंभ॑र¦सत्रा॒साहं॒वरे᳚ण्यम् | विश्वा᳚सुपृ॒त्सुदु॒ष्टर᳚म् || 8 || |
आनो᳚,अग्नेसुचे॒तुना᳚¦र॒यिंवि॒श्वायु॑पोषसम् | मा॒र्डी॒कंधे᳚हिजी॒वसे᳚ || 9 || |
प्रपू॒तास्ति॒ग्मशो᳚चिषे॒¦वाचो᳚गोतमा॒ग्नये᳚ | भर॑स्वसुम्न॒युर्गिरः॑ || 10 || |
योनो᳚,अग्नेऽभि॒दास॒त्य¦न्ति॑दू॒रेप॑दी॒ष्टसः | अ॒स्माक॒मिद्वृ॒धेभ॑व || 11 || |
स॒ह॒स्रा॒क्षोविच॑र्षणि¦र॒ग्नीरक्षां᳚सिसेधति | होता᳚गृणीतउ॒क्थ्यः॑ || 12 || |
[80] इत्थाहीति षोडशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमइंद्रोंत्यायादद्ध्यङ्मनुरथर्वाचपंक्तिः |{मंडल:1, सूक्त:80}{अनुवाक:13, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:5} |
इ॒त्थाहिसोम॒इन्मदे᳚¦ब्र॒ह्माच॒कार॒वर्ध॑नम् | शवि॑ष्ठवज्रि॒न्नोज॑सा¦पृथि॒व्यानिःश॑शा॒,अहि॒¦मर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 1 || वर्ग:29 |
सत्वा᳚मद॒द्वृषा॒मदः॒¦सोमः॑श्ये॒नाभृ॑तःसु॒तः | येना᳚वृ॒त्रंनिर॒द्भ्यो¦ज॒घन्थ॑वज्रि॒न्नोज॒सा¦र्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 2 || |
प्रेह्य॒भी᳚हिधृष्णु॒हि¦नते॒वज्रो॒नियं᳚सते | इन्द्र॑नृ॒म्णंहिते॒शवो॒¦हनो᳚वृ॒त्रंजया᳚,अ॒पो¦ऽर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 3 || |
निरि᳚न्द्र॒भूम्या॒,अधि॑¦वृ॒त्रंज॑घन्थ॒निर्दि॒वः | सृ॒जाम॒रुत्व॑ती॒रव॑¦जी॒वध᳚न्या,इ॒मा,अ॒पो¦ऽर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 4 || |
इन्द्रो᳚वृ॒त्रस्य॒दोध॑तः॒¦सानुं॒वज्रे᳚णहीळि॒तः | अ॒भि॒क्रम्याव॑जिघ्नते॒¦ऽपःसर्मा᳚यचो॒दय॒¦न्नर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 5 || |
अधि॒सानौ॒निजि॑घ्नते॒¦वज्रे᳚णश॒तप᳚र्वणा | म॒न्दा॒नइन्द्रो॒,अन्ध॑सः॒¦सखि॑भ्योगा॒तुमि॑च्छ॒¦त्यर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 6 || वर्ग:30 |
इन्द्र॒तुभ्य॒मिद॑द्रि॒वो¦ऽनु॑त्तंवज्रिन्वी॒र्य᳚म् | यद्ध॒त्यंमा॒यिनं᳚मृ॒गं¦तमु॒त्वंमा॒यया᳚वधी॒¦रर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 7 || |
विते॒वज्रा᳚सो,अस्थिर¦न्नव॒तिंना॒व्या॒३॑(आ॒)अनु॑ | म॒हत्त॑इन्द्रवी॒र्यं᳚¦बा॒ह्वोस्ते॒बलं᳚हि॒त¦मर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 8 || |
स॒हस्रं᳚सा॒कम॑र्चत॒¦परि॑ष्टोभतविंश॒तिः | श॒तैन॒मन्व॑नोनवु॒¦रिन्द्रा᳚य॒ब्रह्मोद्य॑त॒¦मर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 9 || |
इन्द्रो᳚वृ॒त्रस्य॒तवि॑षीं॒¦निर॑ह॒न्त्सह॑सा॒सहः॑ | म॒हत्तद॑स्य॒पौंस्यं᳚¦वृ॒त्रंज॑घ॒न्वाँ,अ॑सृज॒¦दर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 10 || |
इ॒मेचि॒त्तव॑म॒न्यवे॒¦वेपे᳚तेभि॒यसा᳚म॒ही | यदि᳚न्द्रवज्रि॒न्नोज॑सा¦वृ॒त्रंम॒रुत्वाँ॒,अव॑धी॒¦रर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 11 || वर्ग:31 |
नवेप॑सा॒नत᳚न्य॒ते¦न्द्रं᳚वृ॒त्रोविबी᳚भयत् | अ॒भ्ये᳚नं॒वज्र॑आय॒सः¦स॒हस्र॑भृष्टिराय॒ता¦र्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 12 || |
यद्वृ॒त्रंतव॑चा॒शनिं॒¦वज्रे᳚णस॒मयो᳚धयः | अहि॑मिन्द्र॒जिघां᳚सतो¦दि॒विते᳚बद्बधे॒शवो¦ऽर्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 13 || |
अ॒भि॒ष्ट॒नेते᳚,अद्रिवो॒¦यत्स्थाजग॑च्चरेजते | त्वष्टा᳚चि॒त्तव॑म॒न्यव॒¦इन्द्र॑वेवि॒ज्यते᳚भि॒या¦र्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 14 || |
न॒हिनुयाद॑धी॒मसी¦न्द्रं॒कोवी॒र्या᳚प॒रः | तस्मि᳚न्नृ॒म्णमु॒तक्रतुं᳚¦दे॒वा,ओजां᳚सि॒संद॑धु॒र¦र्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 15 || |
यामथ᳚र्वा॒मनु॑ष्पि॒ता¦द॒ध्यङ्धिय॒मत्न॑त | तस्मि॒न्ब्रह्मा᳚णिपू॒र्वथे¦न्द्र॑उ॒क्थासम॑ग्म॒ता¦र्च॒न्ननु॑स्व॒राज्य᳚म् || 16 || |
[81] इंद्रोमदायेति नवर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमइंद्रःपंक्तिः{मंडल:1, सूक्त:81}{अनुवाक:13, सूक्त:8}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
इन्द्रो॒मदा᳚यवावृधे॒¦शव॑सेवृत्र॒हानृभिः॑ | तमिन्म॒हत्स्वा॒जिषू॒¦तेमर्भे᳚हवामहे॒¦सवाजे᳚षु॒प्रनो᳚ऽविषत् || 1 || वर्ग:1 |
असि॒हिवी᳚र॒सेन्यो¦ऽसि॒भूरि॑पराद॒दिः | असि॑द॒भ्रस्य॑चिद्वृ॒धो¦यज॑मानायशिक्षसि¦सुन्व॒तेभूरि॑ते॒वसु॑ || 2 || |
यदु॒दीर॑तआ॒जयो᳚¦धृ॒ष्णवे᳚धीयते॒धना᳚ | यु॒क्ष्वाम॑द॒च्युता॒हरी॒¦कंहनः॒कंवसौ᳚दधो॒¦ऽस्माँ,इ᳚न्द्र॒वसौ᳚दधः || 3 || |
क्रत्वा᳚म॒हाँ,अ॑नुष्व॒धं¦भी॒मआवा᳚वृधे॒शवः॑ | श्रि॒यऋ॒ष्वउ॑पा॒कयो॒¦र्निशि॒प्रीहरि॑वान्दधे॒¦हस्त॑यो॒र्वज्र॑माय॒सम् || 4 || |
आप॑प्रौ॒पार्थि॑वं॒रजो᳚¦बद्ब॒धेरो᳚च॒नादि॒वि | नत्वावाँ᳚,इन्द्र॒कश्च॒न¦नजा॒तोनज॑निष्य॒ते¦ऽति॒विश्वं᳚ववक्षिथ || 5 || |
यो,अ॒र्योम॑र्त॒भोज॑नं¦परा॒ददा᳚तिदा॒शुषे᳚ | इन्द्रो᳚,अ॒स्मभ्यं᳚शिक्षतु॒¦विभ॑जा॒भूरि॑ते॒वसु॑¦भक्षी॒यतव॒राध॑सः || 6 || वर्ग:2 |
मदे᳚मदे॒हिनो᳚द॒दि¦र्यू॒थागवा᳚मृजु॒क्रतुः॑ | संगृ॑भायपु॒रूश॒तो¦भ॑याह॒स्त्यावसु॑शिशी॒हिरा॒यआभ॑र || 7 || |
मा॒दय॑स्वसु॒तेसचा॒¦शव॑सेशूर॒राध॑से | वि॒द्माहित्वा᳚पुरू॒वसु॒¦मुप॒कामा᳚न्त्ससृ॒ज्महे¦था᳚नोऽवि॒ताभ॑व || 8 || |
ए॒तेत॑इन्द्रज॒न्तवो॒¦विश्वं᳚पुष्यन्ति॒वार्य᳚म् | अ॒न्तर्हिख्योजना᳚ना¦म॒र्योवेदो॒,अदा᳚शुषां॒¦तेषां᳚नो॒वेद॒आभ॑र || 9 || |
[82] उपोष्विति षळर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमइंद्रःपंक्तिरंत्याजगती{मंडल:1, सूक्त:82}{अनुवाक:13, सूक्त:9}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
उपो॒षुशृ॑णु॒हीगिरो॒¦मघ॑व॒न्मात॑था,इव | य॒दानः॑सू॒नृता᳚वतः॒¦कर॒आद॒र्थया᳚स॒इद्¦योजा॒न्वि᳚न्द्रते॒हरी᳚ || 1 || वर्ग:3 |
अक्ष॒न्नमी᳚मदन्त॒ह्य¦व॑प्रि॒या,अ॑धूषत | अस्तो᳚षत॒स्वभा᳚नवो॒¦विप्रा॒नवि॑ष्ठयाम॒ती¦योजा॒न्वि᳚न्द्रते॒हरी᳚ || 2 || |
सु॒सं॒दृशं᳚त्वाव॒यं¦मघ॑वन्वन्दिषी॒महि॑ | प्रनू॒नंपू॒र्णव᳚न्धुरः¦स्तु॒तोया᳚हि॒वशाँ॒,अनु॒¦योजा॒न्वि᳚न्द्रते॒हरी᳚ || 3 || |
सघा॒तंवृष॑णं॒रथ॒¦मधि॑तिष्ठातिगो॒विद᳚म् | यःपात्रं᳚हारियोज॒नं¦पू॒र्णमि᳚न्द्र॒चिके᳚तति॒¦योजा॒न्वि᳚न्द्रते॒हरी᳚ || 4 || |
यु॒क्तस्ते᳚,अस्तु॒दक्षि॑ण¦उ॒तस॒व्यःश॑तक्रतो | तेन॑जा॒यामुप॑प्रि॒यां¦म᳚न्दा॒नोया॒ह्यन्ध॑सो॒¦योजा॒न्वि᳚न्द्रते॒हरी᳚ || 5 || |
यु॒नज्मि॑ते॒ब्रह्म॑णाके॒शिना॒हरी॒,¦उप॒प्रया᳚हिदधि॒षेगभ॑स्त्योः | उत्त्वा᳚सु॒तासो᳚रभ॒सा,अ॑मन्दिषुः¦पूष॒ण्वान्व॑ज्रि॒न्त्समु॒पत्न्या᳚मदः || 6 || |
[83] अश्वावतीतिषडृचस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमइंद्रोजगती{मंडल:1, सूक्त:83}{अनुवाक:13, सूक्त:10}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
अश्वा᳚वतिप्रथ॒मोगोषु॑गच्छति¦सुप्रा॒वीरि᳚न्द्र॒मर्त्य॒स्तवो॒तिभिः॑ | तमित्पृ॑णक्षि॒वसु॑ना॒भवी᳚यसा॒¦सिन्धु॒मापो॒यथा॒भितो॒विचे᳚तसः || 1 || वर्ग:4 |
आपो॒नदे॒वीरुप॑यन्तिहो॒त्रिय॑¦म॒वःप॑श्यन्ति॒वित॑तं॒यथा॒रजः॑ | प्रा॒चैर्दे॒वासः॒प्रण॑यन्तिदेव॒युं¦ब्र᳚ह्म॒प्रियं᳚जोषयन्तेव॒रा,इ॑व || 2 || |
अधि॒द्वयो᳚रदधा,उ॒क्थ्य१॑(अं॒)वचो᳚¦य॒तस्रु॑चामिथु॒नायास॑प॒र्यतः॑ | असं᳚यत्तोव्र॒तेते᳚क्षेति॒पुष्य॑ति¦भ॒द्राश॒क्तिर्यज॑मानायसुन्व॒ते || 3 || |
आदङ्गि॑राःप्रथ॒मंद॑धिरे॒वय॑¦इ॒द्धाग्न॑यः॒शम्या॒येसु॑कृ॒त्यया᳚ | सर्वं᳚प॒णेःसम॑विन्दन्त॒भोज॑न॒¦मश्वा᳚वन्तं॒गोम᳚न्त॒माप॒शुंनरः॑ || 4 || |
य॒ज्ञैरथ᳚र्वाप्रथ॒मःप॒थस्त॑ते॒¦ततः॒सूर्यो᳚व्रत॒पावे॒नआज॑नि | आगा,आ᳚जदु॒शना᳚का॒व्यःसचा᳚¦य॒मस्य॑जा॒तम॒मृतं᳚यजामहे || 5 || |
ब॒र्हिर्वा॒यत्स्व॑प॒त्याय॑वृ॒ज्यते॒¦र्कोवा॒श्लोक॑मा॒घोष॑तेदि॒वि | ग्रावा॒यत्र॒वद॑तिका॒रुरु॒क्थ्य१॑(अ॒)¦स्तस्येदिन्द्रो᳚,अभिपि॒त्वेषु॑रण्यति || 6 || |
[84] असावीति विंशत्यृचस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमइंद्रआद्याः षळनुष्टुभः सप्तम्याद्यास्तिस्रउष्णिहः दशम्याद्यास्तिस्रःपंक्त्यः त्रयोदशाद्यास्तिस्रो गायत्र्यः षोळश्याद्यास्तिस्रस्त्रिष्टुभः अंत्येद्वेबृहतीसतोबृहत्यौ{मंडल:1, सूक्त:84}{अनुवाक:13, सूक्त:11}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
असा᳚वि॒सोम॑इन्द्रते॒¦शवि॑ष्ठधृष्ण॒वाग॑हि | आत्वा᳚पृणक्त्विन्द्रि॒यं¦रजः॒सूर्यो॒नर॒श्मिभिः॑ || 1 || वर्ग:5 |
इन्द्र॒मिद्धरी᳚वह॒तो¦ऽप्र॑तिधृष्टशवसम् | ऋषी᳚णांचस्तु॒तीरुप॑¦य॒ज्ञंच॒मानु॑षाणाम् || 2 || |
आति॑ष्ठवृत्रह॒न्रथं᳚¦यु॒क्ताते॒ब्रह्म॑णा॒हरी᳚ | अ॒र्वा॒चीनं॒सुते॒मनो॒¦ग्रावा᳚कृणोतुव॒ग्नुना᳚ || 3 || |
इ॒ममि᳚न्द्रसु॒तंपि॑ब॒¦ज्येष्ठ॒मम॑र्त्यं॒मद᳚म् | शु॒क्रस्य॑त्वा॒भ्य॑क्षर॒न्¦धारा᳚ऋ॒तस्य॒साद॑ने || 4 || |
इन्द्रा᳚यनू॒नम॑र्चतो॒¦क्थानि॑चब्रवीतन | सु॒ता,अ॑मत्सु॒रिन्द॑वो॒¦ज्येष्ठं᳚नमस्यता॒सहः॑ || 5 || |
नकि॒ष्ट्वद्र॒थीत॑रो॒¦हरी॒यदि᳚न्द्र॒यच्छ॑से | नकि॒ष्ट्वानु॑म॒ज्मना॒¦नकिः॒स्वश्व॑आनशे || 6 || वर्ग:6 |
यएक॒इद्वि॒दय॑ते॒¦वसु॒मर्ता᳚यदा॒शुषे᳚ | ईशा᳚नो॒,अप्र॑तिष्कुत॒इन्द्रो᳚,अ॒ङ्ग || 7 || |
क॒दामर्त॑मरा॒धसं᳚¦प॒दाक्षुम्प॑मिवस्फुरत् | क॒दानः॑शुश्रव॒द्गिर॒इन्द्रो᳚,अ॒ङ्ग || 8 || |
यश्चि॒द्धित्वा᳚ब॒हुभ्य॒आ¦सु॒तावाँ᳚,आ॒विवा᳚सति | उ॒ग्रंतत्प॑त्यते॒शव॒इन्द्रो᳚,अ॒ङ्ग || 9 || |
स्वा॒दोरि॒त्थावि॑षू॒वतो॒¦मध्वः॑पिबन्तिगौ॒र्यः॑ | या,इन्द्रे᳚णस॒याव॑री॒¦र्वृष्णा॒मद᳚न्तिशो॒भसे॒¦वस्वी॒रनु॑स्व॒राज्य᳚म् || 10 || |
ता,अ॑स्यपृशना॒युवः॒¦सोमं᳚श्रीणन्ति॒पृश्न॑यः | प्रि॒या,इन्द्र॑स्यधे॒नवो॒¦वज्रं᳚हिन्वन्ति॒साय॑कं॒¦वस्वी॒रनु॑स्व॒राज्य᳚म् || 11 || वर्ग:7 |
ता,अ॑स्य॒नम॑सा॒सहः॑¦सप॒र्यन्ति॒प्रचे᳚तसः | व्र॒तान्य॑स्यसश्चिरे¦पु॒रूणि॑पू॒र्वचि॑त्तये॒¦वस्वी॒रनु॑स्व॒राज्य᳚म् || 12 || |
इन्द्रो᳚दधी॒चो,अ॒स्थभि᳚¦र्वृ॒त्राण्यप्र॑तिष्कुतः | ज॒घान॑नव॒तीर्नव॑ || 13 || |
इ॒च्छन्नश्व॑स्य॒यच्छिरः॒¦पर्व॑ते॒ष्वप॑श्रितम् | तद्वि॑दच्छर्य॒णाव॑ति || 14 || |
अत्राह॒गोर॑मन्वत॒¦नाम॒त्वष्टु॑रपी॒च्य᳚म् | इ॒त्थाच॒न्द्रम॑सोगृ॒हे || 15 || |
को,अ॒द्ययु᳚ङ्क्तेधु॒रिगा,ऋ॒तस्य॒¦शिमी᳚वतोभा॒मिनो᳚दुर्हृणा॒यून् | आ॒सन्नि॑षून्हृ॒त्स्वसो᳚मयो॒भून्¦यए᳚षांभृ॒त्यामृ॒णध॒त्सजी᳚वात् || 16 || वर्ग:8 |
कई᳚षतेतु॒ज्यते॒कोबि॑भाय॒¦कोमं᳚सते॒सन्त॒मिन्द्रं॒को,अन्ति॑ | कस्तो॒काय॒कइभा᳚यो॒तरा॒ये¦ऽधि॑ब्रवत्त॒न्वे॒३॑(ए॒)कोजना᳚य || 17 || |
को,अ॒ग्निमी᳚ट्टेह॒विषा᳚घृ॒तेन॑¦स्रु॒चाय॑जाता,ऋ॒तुभि॑र्ध्रु॒वेभिः॑ | कस्मै᳚दे॒वा,आव॑हाना॒शुहोम॒¦कोमं᳚सतेवी॒तिहो᳚त्रःसुदे॒वः || 18 || |
त्वम॒ङ्गप्रशं᳚सिषो¦दे॒वःश॑विष्ठ॒मर्त्य᳚म् | नत्वद॒न्योम॑घवन्नस्तिमर्डि॒ते¦न्द्र॒ब्रवी᳚मिते॒वचः॑ || 19 || |
माते॒राधां᳚सि॒मात॑ऊ॒तयो᳚वसो॒¦ऽस्मान्कदा᳚च॒नाद॑भन् | विश्वा᳚चनउपमिमी॒हिमा᳚नुष॒¦वसू᳚निचर्ष॒णिभ्य॒आ || 20 || |
[85] प्रयेशुंभंतइति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमो मरुतो जगतीपंचम्यंत्येत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:85}{अनुवाक:14, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
प्रयेशुम्भ᳚न्ते॒जन॑यो॒नसप्त॑यो॒¦याम᳚न्रु॒द्रस्य॑सू॒नवः॑सु॒दंस॑सः | रोद॑सी॒हिम॒रुत॑श्चक्रि॒रेवृ॒धे¦मद᳚न्तिवी॒रावि॒दथे᳚षु॒घृष्व॑यः || 1 || वर्ग:9 |
तउ॑क्षि॒तासो᳚महि॒मान॑माशत¦दि॒विरु॒द्रासो॒,अधि॑चक्रिरे॒सदः॑ | अर्च᳚न्तो,अ॒र्कंज॒नय᳚न्तइन्द्रि॒य¦मधि॒श्रियो᳚दधिरे॒पृश्नि॑मातरः || 2 || |
गोमा᳚तरो॒यच्छु॒भय᳚न्ते,अ॒ञ्जिभि॑¦स्त॒नूषु॑शु॒भ्राद॑धिरेवि॒रुक्म॑तः | बाध᳚न्ते॒विश्व॑मभिमा॒तिन॒मप॒¦वर्त्मा᳚न्येषा॒मनु॑रीयतेघृ॒तम् || 3 || |
वियेभ्राज᳚न्ते॒सुम॑खासऋ॒ष्टिभिः॑¦प्रच्या॒वय᳚न्तो॒,अच्यु॑ताचि॒दोज॑सा | म॒नो॒जुवो॒यन्म॑रुतो॒रथे॒ष्वा¦वृष᳚व्रातासः॒पृष॑ती॒रयु॑ग्ध्वम् || 4 || |
प्रयद्रथे᳚षु॒पृष॑ती॒रयु॑ग्ध्वं॒¦वाजे॒,अद्रिं᳚मरुतोरं॒हय᳚न्तः | उ॒तारु॒षस्य॒विष्य᳚न्ति॒धारा॒¦श्चर्मे᳚वो॒दभि॒र्व्यु᳚न्दन्ति॒भूम॑ || 5 || |
आवो᳚वहन्तु॒सप्त॑योरघु॒ष्यदो᳚¦रघु॒पत्वा᳚नः॒प्रजि॑गातबा॒हुभिः॑ | सीद॒ताब॒र्हिरु॒रुवः॒सद॑स्कृ॒तं¦मा॒दय॑ध्वंमरुतो॒मध्वो॒,अन्ध॑सः || 6 || |
ते᳚ऽवर्धन्त॒स्वत॑वसोमहित्व॒ना¦नाकं᳚त॒स्थुरु॒रुच॑क्रिरे॒सदः॑ | विष्णु॒र्यद्धाव॒द्वृष॑णंमद॒च्युतं॒¦वयो॒नसी᳚द॒न्नधि॑ब॒र्हिषि॑प्रि॒ये || 7 || वर्ग:10 |
शूरा᳚,इ॒वेद्युयु॑धयो॒नजग्म॑यः¦श्रव॒स्यवो॒नपृत॑नासुयेतिरे | भय᳚न्ते॒विश्वा॒भुव॑नाम॒रुद्भ्यो॒¦राजा᳚नइवत्वे॒षसं᳚दृशो॒नरः॑ || 8 || |
त्वष्टा॒यद्वज्रं॒सुकृ॑तंहिर॒ण्ययं᳚¦स॒हस्र॑भृष्टिं॒स्वपा॒,अव॑र्तयत् | ध॒त्तइन्द्रो॒नर्यपां᳚सि॒कर्त॒वे¦ऽह᳚न्वृ॒त्रंनिर॒पामौ᳚ब्जदर्ण॒वम् || 9 || |
ऊ॒र्ध्वंनु॑नुद्रेऽव॒तंतओज॑सा¦दादृहा॒णंचि॑द्बिभिदु॒र्विपर्व॑तम् | धम᳚न्तोवा॒णंम॒रुतः॑सु॒दान॑वो॒¦मदे॒सोम॑स्य॒रण्या᳚निचक्रिरे || 10 || |
जि॒ह्मंनु॑नुद्रेऽव॒तंतया᳚दि॒शा¦सि᳚ञ्च॒न्नुत्सं॒गोत॑मायतृ॒ष्णजे᳚ | आग॑च्छन्ती॒मव॑साचि॒त्रभा᳚नवः॒¦कामं॒विप्र॑स्यतर्पयन्त॒धाम॑भिः || 11 || |
यावः॒शर्म॑शशमा॒नाय॒सन्ति॑¦त्रि॒धातू᳚निदा॒शुषे᳚यच्छ॒ताधि॑ | अ॒स्मभ्यं॒तानि॑मरुतो॒विय᳚न्त¦र॒यिंनो᳚धत्तवृषणःसु॒वीर᳚म् || 12 || |
[86] मरुतोयस्येति दशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमो मरुतो गायत्री{मंडल:1, सूक्त:86}{अनुवाक:14, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
मरु॑तो॒यस्य॒हिक्षये᳚¦पा॒थादि॒वोवि॑महसः | ससु॑गो॒पात॑मो॒जनः॑ || 1 || वर्ग:11 |
य॒ज्ञैर्वा᳚यज्ञवाहसो॒¦विप्र॑स्यवामती॒नाम् | मरु॑तःशृणु॒ताहव᳚म् || 2 || |
उ॒तवा॒यस्य॑वा॒जिनो¦ऽनु॒विप्र॒मत॑क्षत | सगन्ता॒गोम॑तिव्र॒जे || 3 || |
अ॒स्यवी॒रस्य॑ब॒र्हिषि॑¦सु॒तःसोमो॒दिवि॑ष्टिषु | उ॒क्थंमद॑श्चशस्यते || 4 || |
अ॒स्यश्रो᳚ष॒न्त्वाभुवो॒¦विश्वा॒यश्च॑र्ष॒णीर॒भि | सूरं᳚चित्स॒स्रुषी॒रिषः॑ || 5 || |
पू॒र्वीभि॒र्हिद॑दाशि॒म¦श॒रद्भि᳚र्मरुतोव॒यम् | अवो᳚भिश्चर्षणी॒नाम् || 6 || वर्ग:12 |
सु॒भगः॒सप्र॑यज्यवो॒¦मरु॑तो,अस्तु॒मर्त्यः॑ | यस्य॒प्रयां᳚सि॒पर्ष॑थ || 7 || |
श॒श॒मा॒नस्य॑वानरः॒¦स्वेद॑स्यसत्यशवसः | वि॒दाकाम॑स्य॒वेन॑तः || 8 || |
यू॒यंतत्स॑त्यशवस¦आ॒विष्क॑र्तमहित्व॒ना | विध्य॑तावि॒द्युता॒रक्षः॑ || 9 || |
गूह॑ता॒गुह्यं॒तमो॒¦विया᳚त॒विश्व॑म॒त्रिण᳚म् | ज्योति॑ष्कर्ता॒यदु॒श्मसि॑ || 10 || |
[87] प्रत्वक्षसइति षडृचस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमो मरुतोजगती{मंडल:1, सूक्त:87}{अनुवाक:14, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
प्रत्व॑क्षसः॒प्रत॑वसोविर॒प्शिनो¦ऽना᳚नता॒,अवि॑थुरा,ऋजी॒षिणः॑ | जुष्ट॑तमासो॒नृत॑मासो,अ॒ञ्जिभि॒¦र्व्या᳚नज्रे॒केचि॑दु॒स्रा,इ॑व॒स्तृभिः॑ || 1 || वर्ग:13 |
उ॒प॒ह्व॒रेषु॒यदचि॑ध्वंय॒यिं¦वय॑इवमरुतः॒केन॑चित्प॒था | श्चोत᳚न्ति॒कोशा॒,उप॑वो॒रथे॒ष्वा¦घृ॒तमु॑क्षता॒मधु॑वर्ण॒मर्च॑ते || 2 || |
प्रैषा॒मज्मे᳚षुविथु॒रेव॑रेजते॒¦भूमि॒र्यामे᳚षु॒यद्ध॑यु॒ञ्जते᳚शु॒भे | तेक्री॒ळयो॒धुन॑यो॒भ्राज॑दृष्टयः¦स्व॒यंम॑हि॒त्वंप॑नयन्त॒धूत॑यः || 3 || |
सहिस्व॒सृत्पृष॑दश्वो॒युवा᳚ग॒णो॒३॑(ओ॒)¦ऽया,ई᳚शा॒नस्तवि॑षीभि॒रावृ॑तः | असि॑स॒त्यऋ॑ण॒यावाने᳚द्यो॒¦ऽस्याधि॒यःप्रा᳚वि॒ताथा॒वृषा᳚ग॒णः || 4 || |
पि॒तुःप्र॒त्नस्य॒जन्म॑नावदामसि॒¦सोम॑स्यजि॒ह्वाप्रजि॑गाति॒चक्ष॑सा | यदी॒मिन्द्रं॒शम्यृक्वा᳚ण॒आश॒ता¦ऽदिन्नामा᳚निय॒ज्ञिया᳚निदधिरे || 5 || |
श्रि॒यसे॒कंभा॒नुभिः॒संमि॑मिक्षिरे॒¦तेर॒श्मिभि॒स्तऋक्व॑भिःसुखा॒दयः॑ | तेवाशी᳚मन्तइ॒ष्मिणो॒,अभी᳚रवो¦वि॒द्रेप्रि॒यस्य॒मारु॑तस्य॒धाम्नः॑ || 6 || |
[88] आविद्युन्मद्भिरिति षडृचस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोमरुतस्त्रिष्टुप् आद्यांत्ये प्रस्तारपंक्तीपंचमीविराड्रूपा {मंडल:1, सूक्त:88}{अनुवाक:14, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
आवि॒द्युन्म॑द्भिर्मरुतःस्व॒र्कै¦रथे᳚भिर्यातऋष्टि॒मद्भि॒रश्व॑पर्णैः | आवर्षि॑ष्ठयानइ॒षा¦वयो॒नप॑प्ततासुमायाः || 1 || वर्ग:14 |
ते᳚ऽरु॒णेभि॒र्वर॒मापि॒शङ्गैः᳚¦शु॒भेकंया᳚न्तिरथ॒तूर्भि॒रश्वैः᳚ | रु॒क्मोनचि॒त्रःस्वधि॑तीवान्¦प॒व्यारथ॑स्यजङ्घनन्त॒भूम॑ || 2 || |
श्रि॒येकंवो॒,अधि॑त॒नूषु॒वाशी᳚¦र्मे॒धावना॒नकृ॑णवन्तऊ॒र्ध्वा | यु॒ष्मभ्यं॒कंम॑रुतःसुजाता¦स्तुविद्यु॒म्नासो᳚धनयन्ते॒,अद्रि᳚म् || 3 || |
अहा᳚नि॒गृध्राः॒पर्याव॒आगु॑¦रि॒मांधियं᳚वार्का॒र्यांच॑दे॒वीम् | ब्रह्म॑कृ॒ण्वन्तो॒गोत॑मासो,अ॒र्कै¦रू॒र्ध्वंनु॑नुद्रउत्स॒धिंपिब॑ध्यै || 4 || |
ए॒तत्त्यन्नयोज॑नमचेति¦स॒स्वर्ह॒यन्म॑रुतो॒गोत॑मोवः | पश्य॒न्हिर᳚ण्यचक्रा॒नयो᳚दंष्ट्रान्¦वि॒धाव॑तोव॒राहू॑न् || 5 || |
ए॒षास्यावो᳚मरुतोऽनुभ॒र्त्री¦प्रति॑ष्टोभतिवा॒घतो॒नवाणी᳚ | अस्तो᳚भय॒द्वृथा᳚सा॒¦मनु॑स्व॒धांगभ॑स्त्योः || 6 || |
[89] आनोभद्राइति दशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमो विश्वेदेवास्त्रिष्टुप् आद्याः पंचसप्तमीच जगत्यः षष्ठीविराट्स्थाना (सूक्तभेदप्रयोगपक्षेतुआद्यानांचतसृणां विश्वेदेवाः ततएकस्याइंद्रापूषणौततश्चतसृणां विश्वेदेवाःततएकस्याअदितिः एवंदश) |{मंडल:1, सूक्त:89}{अनुवाक:14, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
आनो᳚भ॒द्राःक्रत॑वोयन्तुवि॒श्वतो¦ऽद॑ब्धासो॒,अप॑रीतासउ॒द्भिदः॑ | दे॒वानो॒यथा॒सद॒मिद्वृ॒धे,अस॒¦न्नप्रा᳚युवोरक्षि॒तारो᳚दि॒वेदि॑वे || 1 || वर्ग:15 |
दे॒वानां᳚भ॒द्रासु॑म॒तिरृ॑जूय॒तां¦दे॒वानां᳚रा॒तिर॒भिनो॒निव॑र्तताम् | दे॒वानां᳚स॒ख्यमुप॑सेदिमाव॒यं¦दे॒वान॒आयुः॒प्रति॑रन्तुजी॒वसे᳚ || 2 || |
तान्पूर्व॑यानि॒विदा᳚हूमहेव॒यं¦भगं᳚मि॒त्रमदि॑तिं॒दक्ष॑म॒स्रिध᳚म् | अ॒र्य॒मणं॒वरु॑णं॒सोम॑म॒श्विना॒¦सर॑स्वतीनःसु॒भगा॒मय॑स्करत् || 3 || |
तन्नो॒वातो᳚मयो॒भुवा᳚तुभेष॒जं¦तन्मा॒तापृ॑थि॒वीतत्पि॒ताद्यौः | तद्ग्रावा᳚णःसोम॒सुतो᳚मयो॒भुव॒¦स्तद॑श्विनाशृणुतंधिष्ण्यायु॒वम् || 4 || |
तमीशा᳚नं॒जग॑तस्त॒स्थुष॒स्पतिं᳚¦धियंजि॒न्वमव॑सेहूमहेव॒यम् | पू॒षानो॒यथा॒वेद॑सा॒मस॑द्वृ॒धे¦र॑क्षि॒तापा॒युरद॑ब्धःस्व॒स्तये᳚ || 5 || |
स्व॒स्तिन॒इन्द्रो᳚वृ॒द्धश्र॑वाः¦स्व॒स्तिनः॑पू॒षावि॒श्ववे᳚दाः | स्व॒स्तिन॒स्तार्क्ष्यो॒,अरि॑ष्टनेमिः¦स्व॒स्तिनो॒बृह॒स्पति॑र्दधातु || 6 || वर्ग:16 |
पृष॑दश्वाम॒रुतः॒पृश्नि॑मातरः¦शुभं॒यावा᳚नोवि॒दथे᳚षु॒जग्म॑यः | अ॒ग्नि॒जि॒ह्वामन॑वः॒सूर॑चक्षसो॒¦विश्वे᳚नोदे॒वा,अव॒साग॑मन्नि॒ह || 7 || |
भ॒द्रंकर्णे᳚भिःशृणुयामदेवा¦भ॒द्रंप॑श्येमा॒क्षभि᳚र्यजत्राः | स्थि॒रैरङ्गै᳚स्तुष्टु॒वांस॑स्त॒नूभि॒¦र्व्य॑शेमदे॒वहि॑तं॒यदायुः॑ || 8 || |
श॒तमिन्नुश॒रदो॒,अन्ति॑देवा॒¦यत्रा᳚नश्च॒क्राज॒रसं᳚त॒नूना᳚म् | पु॒त्रासो॒यत्र॑पि॒तरो॒भव᳚न्ति॒¦मानो᳚म॒ध्यारी᳚रिष॒तायु॒र्गन्तोः᳚ || 9 || |
अदि॑ति॒र्द्यौरदि॑तिर॒न्तरि॑क्ष॒¦मदि॑तिर्मा॒तासपि॒तासपु॒त्रः | विश्वे᳚दे॒वा,अदि॑तिः॒पञ्च॒जना॒,¦अदि॑तिर्जा॒तमदि॑ति॒र्जनि॑त्वम् || 10 || |
[90] ऋजुनीतीनइतिनवर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमो विश्वेदेवागायत्री अंत्यानुष्टुप् (वैश्वदेवसूक्तेप्यस्मिन्भेदप्रयोगकरणाशक्यत्वान्नवानामपिविश्वेदेवाएव) |{मंडल:1, सूक्त:90}{अनुवाक:14, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
ऋ॒जु॒नी॒तीनो॒वरु॑णो¦मि॒त्रोन॑यतुवि॒द्वान् | अ॒र्य॒मादे॒वैःस॒जोषाः᳚ || 1 || वर्ग:17 |
तेहिवस्वो॒वस॑वाना॒¦स्ते,अप्र॑मूरा॒महो᳚भिः | व्र॒तार॑क्षन्तेवि॒श्वाहा᳚ || 2 || |
ते,अ॒स्मभ्यं॒शर्म॑यंस¦न्न॒मृता॒मर्त्ये᳚भ्यः | बाध॑माना॒,अप॒द्विषः॑ || 3 || |
विनः॑प॒थःसु॑वि॒ताय॑¦चि॒यन्त्विन्द्रो᳚म॒रुतः॑ | पू॒षाभगो॒वन्द्या᳚सः || 4 || |
उ॒तनो॒धियो॒गो,अ॑ग्राः॒¦पूष॒न्विष्ण॒वेव॑यावः | कर्ता᳚नःस्वस्ति॒मतः॑ || 5 || |
मधु॒वाता᳚ऋताय॒ते¦मधु॑क्षरन्ति॒सिन्ध॑वः | माध्वी᳚र्नःस॒न्त्वोष॑धीः || 6 || वर्ग:18 |
मधु॒नक्त॑मु॒तोषसो॒¦मधु॑म॒त्पार्थि॑वं॒रजः॑ | मधु॒द्यौर॑स्तुनःपि॒ता || 7 || |
मधु॑मान्नो॒वन॒स्पति॒¦र्मधु॑माँ,अस्तु॒सूर्यः॑ | माध्वी॒र्गावो᳚भवन्तुनः || 8 || |
शंनो᳚मि॒त्रःशंवरु॑णः॒¦शंनो᳚भवत्वर्य॒मा | शंन॒इन्द्रो॒बृह॒स्पतिः॒¦शंनो॒विष्णु॑रुरुक्र॒मः || 9 || |
[91] त्वंसोमइति त्रयोविंशत्यृचस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमःसोमस्त्रिष्टुप् पंचम्यादिद्वादशगायत्र्यः सप्तदश्युष्णिक् |{मंडल:1, सूक्त:91}{अनुवाक:14, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
त्वंसो᳚म॒प्रचि॑कितोमनी॒षा¦त्वंरजि॑ष्ठ॒मनु॑नेषि॒पन्था᳚म् | तव॒प्रणी᳚तीपि॒तरो᳚नइन्दो¦दे॒वेषु॒रत्न॑मभजन्त॒धीराः᳚ || 1 || वर्ग:19 |
त्वंसो᳚म॒क्रतु॑भिःसु॒क्रतु॑र्भू॒¦स्त्वंदक्षैः᳚सु॒दक्षो᳚वि॒श्ववे᳚दाः | त्वंवृषा᳚वृष॒त्वेभि᳚र्महि॒त्वा¦द्यु॒म्नेभि॑र्द्यु॒म्न्य॑भवोनृ॒चक्षाः᳚ || 2 || |
राज्ञो॒नुते॒वरु॑णस्यव्र॒तानि॑¦बृ॒हद्ग॑भी॒रंतव॑सोम॒धाम॑ | शुचि॒ष्ट्वम॑सिप्रि॒योनमि॒त्रो¦द॒क्षाय्यो᳚,अर्य॒मेवा᳚सिसोम || 3 || |
याते॒धामा᳚निदि॒वियापृ॑थि॒व्यां¦यापर्व॑ते॒ष्वोष॑धीष्व॒प्सु | तेभि᳚र्नो॒विश्वैः᳚सु॒मना॒,अहे᳚ळ॒न्¦राज᳚न्त्सोम॒प्रति॑ह॒व्यागृ॑भाय || 4 || |
त्वंसो᳚मासि॒सत्प॑ति॒¦स्त्वंराजो॒तवृ॑त्र॒हा | त्वंभ॒द्रो,अ॑सि॒क्रतुः॑ || 5 || |
त्वंच॑सोमनो॒वशो᳚¦जी॒वातुं॒नम॑रामहे | प्रि॒यस्तो᳚त्रो॒वन॒स्पतिः॑ || 6 || वर्ग:20 |
त्वंसो᳚मम॒हेभगं॒¦त्वंयून॑ऋताय॒ते | दक्षं᳚दधासिजी॒वसे᳚ || 7 || |
त्वंनः॑सोमवि॒श्वतो॒¦रक्षा᳚राजन्नघाय॒तः | नरि॑ष्ये॒त्त्वाव॑तः॒सखा᳚ || 8 || |
सोम॒यास्ते᳚मयो॒भुव॑¦ऊ॒तयः॒सन्ति॑दा॒शुषे᳚ | ताभि᳚र्नोऽवि॒ताभ॑व || 9 || |
इ॒मंय॒ज्ञमि॒दंवचो᳚¦जुजुषा॒णउ॒पाग॑हि | सोम॒त्वंनो᳚वृ॒धेभ॑व || 10 || |
सोम॑गी॒र्भिष्ट्वा᳚व॒यं¦व॒र्धया᳚मोवचो॒विदः॑ | सु॒मृ॒ळी॒कोन॒आवि॑श || 11 || वर्ग:21 |
ग॒य॒स्फानो᳚,अमीव॒हा¦व॑सु॒वित्पु॑ष्टि॒वर्ध॑नः | सु॒मि॒त्रःसो᳚मनोभव || 12 || |
सोम॑रार॒न्धिनो᳚हृ॒दि¦गावो॒नयव॑से॒ष्वा | मर्य॑इव॒स्वओ॒क्ये᳚ || 13 || |
यःसो᳚मस॒ख्येतव॑¦रा॒रण॑द्देव॒मर्त्यः॑ | तंदक्षः॑सचतेक॒विः || 14 || |
उ॒रु॒ष्याणो᳚,अ॒भिश॑स्तेः॒¦सोम॒निपा॒ह्यंह॑सः | सखा᳚सु॒शेव॑एधिनः || 15 || |
आप्या᳚यस्व॒समे᳚तु¦तेवि॒श्वतः॑सोम॒वृष्ण्य᳚म् | भवा॒वाज॑स्यसंग॒थे || 16 || वर्ग:22 |
आप्या᳚यस्वमदिन्तम॒¦सोम॒विश्वे᳚भिरं॒शुभिः॑ | भवा᳚नःसु॒श्रव॑स्तमः॒सखा᳚वृ॒धे || 17 || |
संते॒पयां᳚सि॒समु॑यन्तु॒वाजाः॒¦संवृष्ण्या᳚न्यभिमाति॒षाहः॑ | आ॒प्याय॑मानो,अ॒मृता᳚यसोम¦दि॒विश्रवां᳚स्युत्त॒मानि॑धिष्व || 18 || |
याते॒धामा᳚निह॒विषा॒यज᳚न्ति॒¦ताते॒विश्वा᳚परि॒भूर॑स्तुय॒ज्ञम् | ग॒य॒स्फानः॑प्र॒तर॑णःसु॒वीरो¦ऽवी᳚रहा॒प्रच॑रासोम॒दुर्या॑न् || 19 || |
सोमो᳚धे॒नुंसोमो॒,अर्व᳚न्तमा॒शुं¦सोमो᳚वी॒रंक᳚र्म॒ण्यं᳚ददाति | सा॒द॒न्यं᳚विद॒थ्यं᳚स॒भेयं᳚¦पितृ॒श्रव॑णं॒योददा᳚शदस्मै || 20 || |
अषा᳚ळ्हंयु॒त्सुपृत॑नासु॒पप्रिं᳚¦स्व॒र्षाम॒प्सांवृ॒जन॑स्यगो॒पाम् | भ॒रे॒षु॒जांसु॑क्षि॒तिंसु॒श्रव॑सं॒¦जय᳚न्तं॒त्वामनु॑मदेमसोम || 21 || वर्ग:23 |
त्वमि॒मा,ओष॑धीःसोम॒विश्वा॒¦स्त्वम॒पो,अ॑जनय॒स्त्वंगाः | त्वमात॑तन्थो॒र्व१॑(अ॒)न्तरि॑क्षं॒¦त्वंज्योति॑षा॒वितमो᳚ववर्थ || 22 || |
दे॒वेन॑नो॒मन॑सादेवसोम¦रा॒योभा॒गंस॑हसावन्न॒भियु॑ध्य | मात्वात॑न॒दीशि॑षेवी॒र्य॑स्यो॒¦भये᳚भ्यः॒प्रचि॑कित्सा॒गवि॑ष्टौ || 23 || |
[92] एताउत्याइत्यष्टादशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतम उषाः अंत्यानां तिसृणामश्विनौ आद्याश्चतस्रोजगत्यः ततोष्टौत्रिष्टुभः अंत्याः षळुष्णिहः |{मंडल:1, सूक्त:92}{अनुवाक:14, सूक्त:8}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
ए॒ता,उ॒त्या,उ॒षसः॑के॒तुम॑क्रत॒¦पूर्वे॒,अर्धे॒रज॑सोभा॒नुम᳚ञ्जते | नि॒ष्कृ॒ण्वा॒ना,आयु॑धानीवधृ॒ष्णवः॒¦प्रति॒गावोऽरु॑षीर्यन्तिमा॒तरः॑ || 1 || वर्ग:24 |
उद॑पप्तन्नरु॒णाभा॒नवो॒वृथा᳚¦स्वा॒युजो॒,अरु॑षी॒र्गा,अ॑युक्षत | अक्र᳚न्नु॒षासो᳚व॒युना᳚निपू॒र्वथा॒¦रुश᳚न्तंभा॒नुमरु॑षीरशिश्रयुः || 2 || |
अर्च᳚न्ति॒नारी᳚र॒पसो॒नवि॒ष्टिभिः॑¦समा॒नेन॒योज॑ने॒नाप॑रा॒वतः॑ | इषं॒वह᳚न्तीःसु॒कृते᳚सु॒दान॑वे॒¦विश्वेदह॒यज॑मानायसुन्व॒ते || 3 || |
अधि॒पेशां᳚सिवपतेनृ॒तूरि॒वा¦पो᳚र्णुते॒वक्ष॑उ॒स्रेव॒बर्ज॑हम् | ज्योति॒र्विश्व॑स्मै॒भुव॑नायकृण्व॒ती¦गावो॒नव्र॒जंव्यु१॑(उ॒)षा,आ᳚व॒र्तमः॑ || 4 || |
प्रत्य॒र्चीरुश॑दस्या,अदर्शि॒¦विति॑ष्ठते॒बाध॑तेकृ॒ष्णमभ्व᳚म् | स्वरुं॒नपेशो᳚वि॒दथे᳚ष्व॒ञ्जञ्¦चि॒त्रंदि॒वोदु॑हि॒ताभा॒नुम॑श्रेत् || 5 || |
अता᳚रिष्म॒तम॑सस्पा॒रम॒स्यो¦षा,उ॒च्छन्ती᳚व॒युना᳚कृणोति | श्रि॒येछन्दो॒नस्म॑यतेविभा॒ती¦सु॒प्रती᳚कासौमन॒साया᳚जीगः || 6 || वर्ग:25 |
भास्व॑तीने॒त्रीसू॒नृता᳚नां¦दि॒वःस्त॑वेदुहि॒तागोत॑मेभिः | प्र॒जाव॑तोनृ॒वतो॒,अश्व॑बुध्या॒¦नुषो॒गो,अ॑ग्राँ॒,उप॑मासि॒वाजा॑न् || 7 || |
उष॒स्तम॑श्यांय॒शसं᳚सु॒वीरं᳚¦दा॒सप्र॑वर्गंर॒यिमश्व॑बुध्यम् | सु॒दंस॑सा॒श्रव॑सा॒यावि॒भासि॒¦वाज॑प्रसूतासुभगेबृ॒हन्त᳚म् || 8 || |
विश्वा᳚निदे॒वीभुव॑नाभि॒चक्ष्या᳚¦प्रती॒चीचक्षु॑रुर्वि॒याविभा᳚ति | विश्वं᳚जी॒वंच॒रसे᳚बो॒धय᳚न्ती॒¦विश्व॑स्य॒वाच॑मविदन्मना॒योः || 9 || |
पुनः॑पुन॒र्जाय॑मानापुरा॒णी¦स॑मा॒नंवर्ण॑म॒भिशुम्भ॑माना | श्व॒घ्नीव॑कृ॒त्नुर्विज॑आमिना॒ना¦मर्त॑स्यदे॒वीज॒रय॒न्त्यायुः॑ || 10 || |
व्यू॒र्ण्व॒तीदि॒वो,अन्ताँ᳚,अबो॒¦ध्यप॒स्वसा᳚रंसनु॒तर्यु॑योति | प्र॒मि॒न॒तीम॑नु॒ष्या᳚यु॒गानि॒¦योषा᳚जा॒रस्य॒चक्ष॑सा॒विभा᳚ति || 11 || वर्ग:26 |
प॒शून्नचि॒त्रासु॒भगा᳚प्रथा॒ना¦सिन्धु॒र्नक्षोद॑उर्वि॒याव्य॑श्वैत् | अमि॑नती॒दैव्या᳚निव्र॒तानि॒¦सूर्य॑स्यचेतिर॒श्मिभि॑र्दृशा॒ना || 12 || |
उष॒स्तच्चि॒त्रमाभ॑रा॒¦स्मभ्यं᳚वाजिनीवति | येन॑तो॒कंच॒तन॑यंच॒धाम॑हे || 13 || |
उषो᳚,अ॒द्येहगो᳚म॒¦त्यश्वा᳚वतिविभावरि | रे॒वद॒स्मेव्यु॑च्छसूनृतावति || 14 || |
यु॒क्ष्वाहिवा᳚जिनीव॒¦त्यश्वाँ᳚,अ॒द्यारु॒णाँ,उ॑षः | अथा᳚नो॒विश्वा॒सौभ॑गा॒न्याव॑ह || 15 || |
अश्वि॑नाव॒र्तिर॒स्मदा¦गोम॑द्दस्रा॒हिर᳚ण्यवत् | अ॒र्वाग्रथं॒सम॑नसा॒निय॑च्छतम् || 16 || वर्ग:27 |
यावि॒त्थाश्लोक॒मादि॒वो¦ज्योति॒र्जना᳚यच॒क्रथुः॑ | आन॒ऊर्जं᳚वहतमश्विनायु॒वम् || 17 || |
एहदे॒वाम॑यो॒भुवा᳚¦द॒स्राहिर᳚ण्यवर्तनी | उ॒ष॒र्बुधो᳚वहन्तु॒सोम॑पीतये || 18 || |
[93] अग्नीषोमाविति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य राहूगणोगोतमोग्नीषोमौत्रिष्टुप् आद्यास्तिस्रोनुष्टुभोष्टमीजगतीवा नवम्यादितिस्रोगायत्र्यः |{मंडल:1, सूक्त:93}{अनुवाक:14, सूक्त:9}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
अग्नी᳚षोमावि॒मंसुमे᳚¦शृणु॒तंवृ॑षणा॒हव᳚म् | प्रति॑सू॒क्तानि॑हर्यतं॒¦भव॑तंदा॒शुषे॒मयः॑ || 1 || वर्ग:28 |
अग्नी᳚षोमा॒यो,अ॒द्यवा᳚¦मि॒दंवचः॑सप॒र्यति॑ | तस्मै᳚धत्तंसु॒वीर्यं॒¦गवां॒पोषं॒स्वश्व्य᳚म् || 2 || |
अग्नी᳚षोमा॒यआहु॑तिं॒¦योवां॒दाशा᳚द्ध॒विष्कृ॑तिम् | सप्र॒जया᳚सु॒वीर्यं॒¦विश्व॒मायु॒र्व्य॑श्नवत् || 3 || |
अग्नी᳚षोमा॒चेति॒तद्वी॒र्यं᳚वां॒¦यदमु॑ष्णीतमव॒संप॒णिंगाः | अवा᳚तिरतं॒बृस॑यस्य॒शेषो¦ऽवि᳚न्दतं॒ज्योति॒रेकं᳚ब॒हुभ्यः॑ || 4 || |
यु॒वमे॒तानि॑दि॒विरो᳚च॒ना¦न्य॒ग्निश्च॑सोम॒सक्र॑तू,अधत्तम् | यु॒वंसिन्धूँ᳚र॒भिश॑स्तेरव॒द्या¦दग्नी᳚षोमा॒वमु᳚ञ्चतंगृभी॒तान् || 5 || |
आन्यंदि॒वोमा᳚त॒रिश्वा᳚जभा॒रा¦म॑थ्नाद॒न्यंपरि॑श्ये॒नो,अद्रेः᳚ | अग्नी᳚षोमा॒ब्रह्म॑णावावृधा॒नो¦रुंय॒ज्ञाय॑चक्रथुरुलो॒कम् || 6 || |
अग्नी᳚षोमाह॒विषः॒प्रस्थि॑तस्य¦वी॒तंहर्य॑तंवृषणाजु॒षेथा᳚म् | सु॒शर्मा᳚णा॒स्वव॑सा॒हिभू॒त¦मथा᳚धत्तं॒यज॑मानाय॒शंयोः || 7 || वर्ग:29 |
यो,अ॒ग्नीषोमा᳚ह॒विषा᳚सप॒र्याद्¦दे᳚व॒द्रीचा॒मन॑सा॒योघृ॒तेन॑ | तस्य᳚व्र॒तंर॑क्षतंपा॒तमंह॑सो¦वि॒शेजना᳚य॒महि॒शर्म॑यच्छतम् || 8 || |
अग्नी᳚षोमा॒सवे᳚दसा॒¦सहू᳚तीवनतं॒गिरः॑ | संदे᳚व॒त्राब॑भूवथुः || 9 || |
अग्नी᳚षोमाव॒नेन॑वां॒¦योवां᳚घृ॒तेन॒दाश॑ति | तस्मै᳚दीदयतंबृ॒हत् || 10 || |
अग्नी᳚षोमावि॒मानि॑नो¦यु॒वंह॒व्याजु॑जोषतम् | आया᳚त॒मुप॑नः॒सचा᳚ || 11 || |
अग्नी᳚षोमापिपृ॒तमर्व॑तोन॒¦आप्या᳚यन्तामु॒स्रिया᳚हव्य॒सूदः॑ | अ॒स्मेबला᳚निम॒घव॑त्सुधत्तं¦कृणु॒तंनो᳚,अध्व॒रंश्रु॑ष्टि॒मन्त᳚म् || 12 || |
[94] इमंस्तोममिति षोडशर्चस्य सूक्तस्य कुत्सोग्निः पूर्वोदेवाइत्यस्यादेवाअग्निश्च तन्नोमित्र इत्यंत्यार्धर्चस्यमित्रवरुणादिति सिंधुपृथिवीद्यावोजगती अंत्येत्रिष्टुभौ | (यद्दैवत्यंवा सूक्तमितिपक्षेऽग्निरेवदेवता) |{मंडल:1, सूक्त:94}{अनुवाक:15, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:6} |
इ॒मंस्तोम॒मर्ह॑तेजा॒तवे᳚दसे॒¦रथ॑मिव॒संम॑हेमामनी॒षया᳚ | भ॒द्राहिनः॒प्रम॑तिरस्यसं॒स¦द्यग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 1 || वर्ग:30 |
यस्मै॒त्वमा॒यज॑से॒ससा᳚ध¦त्यन॒र्वाक्षे᳚ति॒दध॑तेसु॒वीर्य᳚म् | सतू᳚ताव॒नैन॑मश्नोत्यंह॒ति¦रग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 2 || |
श॒केम॑त्वास॒मिधं᳚सा॒धया॒धिय॒¦स्त्वेदे॒वाह॒विर॑द॒न्त्याहु॑तम् | त्वमा᳚दि॒त्याँ,आव॑ह॒तान्ह्यु१॑(उ॒)श्म¦स्यग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 3 || |
भरा᳚मे॒ध्मंकृ॒णवा᳚माह॒वींषि॑ते¦चि॒तय᳚न्तः॒पर्व॑णापर्वणाव॒यम् | जी॒वात॑वेप्रत॒रंसा᳚धया॒धियो¦ऽग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 4 || |
वि॒शांगो॒पा,अ॑स्यचरन्तिज॒न्तवो᳚¦द्वि॒पच्च॒यदु॒तचतु॑ष्पद॒क्तुभिः॑ | चि॒त्रःप्र॑के॒तउ॒षसो᳚म॒हाँ,अ॒¦स्यग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 5 || |
त्वम॑ध्व॒र्युरु॒तहोता᳚सिपू॒र्व्यः¦प्र॑शा॒स्तापोता᳚ज॒नुषा᳚पु॒रोहि॑तः | विश्वा᳚वि॒द्वाँ,आर्त्वि॑ज्याधीरपुष्य॒¦स्यग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 6 || वर्ग:31 |
योवि॒श्वतः॑सु॒प्रती᳚कःस॒दृङ्ङसि॑¦दू॒रेचि॒त्सन्त॒ळिदि॒वाति॑रोचसे | रात्र्या᳚श्चि॒दन्धो॒,अति॑देवपश्य॒¦स्यग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 7 || |
पूर्वो᳚देवाभवतुसुन्व॒तोरथो॒¦ऽस्माकं॒शंसो᳚,अ॒भ्य॑स्तुदू॒ढ्यः॑ | तदाजा᳚नीतो॒तपु॑ष्यता॒वचो¦ऽग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 8 || |
व॒धैर्दुः॒शंसाँ॒,अप॑दू॒ढ्यो᳚जहि¦दू॒रेवा॒ये,अन्ति॑वा॒केचि॑द॒त्रिणः॑ | अथा᳚य॒ज्ञाय॑गृण॒तेसु॒गंकृ॒¦ध्यग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 9 || |
यदयु॑क्था,अरु॒षारोहि॑ता॒रथे॒¦वात॑जूतावृष॒भस्ये᳚वते॒रवः॑ | आदि᳚न्वसिव॒निनो᳚धू॒मके᳚तु॒ना¦ऽग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 10 || |
अध॑स्व॒नादु॒तबि॑भ्युःपत॒त्रिणो᳚¦द्र॒प्सायत्ते᳚यव॒सादो॒व्यस्थि॑रन् | सु॒गंतत्ते᳚ताव॒केभ्यो॒रथे॒भ्यो¦ऽग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 11 || वर्ग:32 |
अ॒यंमि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒धाय॑से¦वया॒तांम॒रुतां॒हेळो॒,अद्भु॑तः | मृ॒ळासुनो॒भूत्वे᳚षां॒मनः॒पुन॒¦रग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 12 || |
दे॒वोदे॒वाना᳚मसिमि॒त्रो,अद्भु॑तो॒¦वसु॒र्वसू᳚नामसि॒चारु॑रध्व॒रे | शर्म᳚न्त्स्याम॒तव॑स॒प्रथ॑स्त॒मे¦ऽग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 13 || |
तत्ते᳚भ॒द्रंयत्समि॑द्धः॒स्वेदमे॒¦सोमा᳚हुतो॒जर॑सेमृळ॒यत्त॑मः | दधा᳚सि॒रत्नं॒द्रवि॑णंचदा॒शुषे¦ऽग्ने᳚स॒ख्येमारि॑षामाव॒यंतव॑ || 14 || |
यस्मै॒त्वंसु॑द्रविणो॒ददा᳚शो¦ऽनागा॒स्त्वम॑दितेस॒र्वता᳚ता | यंभ॒द्रेण॒शव॑साचो॒दया᳚सि¦प्र॒जाव॑ता॒राध॑सा॒तेस्या᳚म || 15 || |
सत्वम॑ग्नेसौभग॒त्वस्य॑वि॒द्वा¦न॒स्माक॒मायुः॒प्रति॑रे॒हदे᳚व | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 16 || |
[95] द्वेविरूपेइत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य कुत्स उषोग्निस्त्रिष्टुप् | (इतआरभ्यजातवेदसइत्यंतं शुद्धोग्निर्वा) |{मंडल:1, सूक्त:95}{अनुवाक:15, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
द्वेविरू᳚पेचरतः॒स्वर्थे᳚,¦अ॒न्यान्या᳚व॒त्समुप॑धापयेते | हरि॑र॒न्यस्यां॒भव॑तिस्व॒धावा᳚ञ्¦छु॒क्रो,अ॒न्यस्यां᳚ददृशेसु॒वर्चाः᳚ || 1 || वर्ग:1 |
दशे॒मंत्वष्टु॑र्जनयन्त॒गर्भ॒¦मत᳚न्द्रासोयुव॒तयो॒विभृ॑त्रम् | ति॒ग्मानी᳚कं॒स्वय॑शसं॒जने᳚षु¦वि॒रोच॑मानं॒परि॑षींनयन्ति || 2 || |
त्रीणि॒जाना॒परि॑भूषन्त्यस्य¦समु॒द्रएकं᳚दि॒व्येक॑म॒प्सु | पूर्वा॒मनु॒प्रदिशं॒पार्थि॑वाना¦मृ॒तून्प्र॒शास॒द्विद॑धावनु॒ष्ठु || 3 || |
कइ॒मंवो᳚नि॒ण्यमाचि॑केत¦व॒त्सोमा॒तॄर्ज॑नयतस्व॒धाभिः॑ | ब॒ह्वी॒नांगर्भो᳚,अ॒पसा᳚मु॒पस्था᳚¦न्म॒हान्क॒विर्निश्च॑रतिस्व॒धावा॑न् || 4 || |
आ॒विष्ट्यो᳚वर्धते॒चारु॑रासु¦जि॒ह्माना᳚मू॒र्ध्वःस्वय॑शा,उ॒पस्थे᳚ | उ॒भेत्वष्टु॑र्बिभ्यतु॒र्जाय॑मानात्¦प्रती॒चीसिं॒हंप्रति॑जोषयेते || 5 || |
उ॒भेभ॒द्रेजो᳚षयेते॒नमेने॒¦गावो॒नवा॒श्रा,उप॑तस्थु॒रेवैः᳚ | सदक्षा᳚णां॒दक्ष॑पतिर्बभूवा॒ञ्¦जन्ति॒यंद॑क्षिण॒तोह॒विर्भिः॑ || 6 || वर्ग:2 |
उद्यं᳚यमीतिसवि॒तेव॑बा॒हू¦,उ॒भेसिचौ᳚यततेभी॒मऋ॒ञ्जन् | उच्छु॒क्रमत्क॑मजतेसि॒मस्मा॒¦न्नवा᳚मा॒तृभ्यो॒वस॑नाजहाति || 7 || |
त्वे॒षंरू॒पंकृ॑णुत॒उत्त॑रं॒यत्¦स᳚म्पृञ्चा॒नःसद॑ने॒गोभि॑र॒द्भिः | क॒विर्बु॒ध्नंपरि॑मर्मृज्यते॒धीः¦सादे॒वता᳚ता॒समि॑तिर्बभूव || 8 || |
उ॒रुते॒ज्रयः॒पर्ये᳚तिबु॒ध्नं¦वि॒रोच॑मानंमहि॒षस्य॒धाम॑ | विश्वे᳚भिरग्ने॒स्वय॑शोभिरि॒द्धो¦ऽद॑ब्धेभिःपा॒युभिः॑पाह्य॒स्मान् || 9 || |
धन्व॒न्त्स्रोतः॑कृणुतेगा॒तुमू॒र्मिं¦शु॒क्रैरू॒र्मिभि॑र॒भिन॑क्षति॒क्षाम् | विश्वा॒सना᳚निज॒ठरे᳚षुधत्ते॒¦ऽन्तर्नवा᳚सुचरतिप्र॒सूषु॑ || 10 || |
ए॒वानो᳚,अग्नेस॒मिधा᳚वृधा॒नो¦रे॒वत्पा᳚वक॒श्रव॑से॒विभा᳚हि | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 11 || |
[96] सप्रत्नथेति नवर्चस्य सूक्तस्य कुत्सोद्रविणोदाअग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:96}{अनुवाक:15, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
सप्र॒त्नथा॒सह॑सा॒जाय॑मानः¦स॒द्यःकाव्या᳚नि॒बळ॑धत्त॒विश्वा᳚ | आप॑श्चमि॒त्रंधि॒षणा᳚चसाधन्¦दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 1 || वर्ग:3 |
सपूर्व॑यानि॒विदा᳚क॒व्यता॒यो¦रि॒माःप्र॒जा,अ॑जनय॒न्मनू᳚नाम् | वि॒वस्व॑ता॒चक्ष॑सा॒द्याम॒पश्च॑¦दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 2 || |
तमी᳚ळतप्रथ॒मंय॑ज्ञ॒साधं॒¦विश॒आरी॒राहु॑तमृञ्जसा॒नम् | ऊ॒र्जःपु॒त्रंभ॑र॒तंसृ॒प्रदा᳚नुं¦दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 3 || |
समा᳚त॒रिश्वा᳚पुरु॒वार॑पुष्टि¦र्वि॒दद्गा॒तुंतन॑यायस्व॒र्वित् | वि॒शांगो॒पाज॑नि॒तारोद॑स्यो¦र्दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 4 || |
नक्तो॒षासा॒वर्ण॑मा॒मेम्या᳚ने¦धा॒पये᳚ते॒शिशु॒मेकं᳚समी॒ची | द्यावा॒क्षामा᳚रु॒क्मो,अ॒न्तर्विभा᳚ति¦दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 5 || |
रा॒योबु॒ध्नःसं॒गम॑नो॒वसू᳚नां¦य॒ज्ञस्य॑के॒तुर्म᳚न्म॒साध॑नो॒वेः | अ॒मृ॒त॒त्वंरक्ष॑माणासएनं¦दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 6 || वर्ग:4 |
नूच॑पु॒राच॒सद॑नंरयी॒णां¦जा॒तस्य॑च॒जाय॑मानस्यच॒क्षाम् | स॒तश्च॑गो॒पांभव॑तश्च॒भूरे᳚¦र्दे॒वा,अ॒ग्निंधा᳚रयन्द्रविणो॒दाम् || 7 || |
द्र॒वि॒णो॒दाद्रवि॑णसस्तु॒रस्य॑¦द्रविणो॒दाःसन॑रस्य॒प्रयं᳚सत् | द्र॒वि॒णो॒दावी॒रव॑ती॒मिषं᳚नो¦द्रविणो॒दारा᳚सतेदी॒र्घमायुः॑ || 8 || |
ए॒वानो᳚,अग्नेस॒मिधा᳚वृधा॒नो¦रे॒वत्पा᳚वक॒श्रव॑से॒विभा᳚हि | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 9 || |
[97] अपनइत्यष्टर्चस्य सूक्तस्यकुत्सःशुचिरग्निर्गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:97}{अनुवाक:15, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
अप॑नः॒शोशु॑चद॒घ¦मग्ने᳚शुशु॒ग्ध्यार॒यिम् | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 1 || वर्ग:5 |
सु॒क्षे॒त्रि॒यासु॑गातु॒या¦व॑सू॒याच॑यजामहे | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 2 || |
प्रयद्भन्दि॑ष्ठएषां॒¦प्रास्माका᳚सश्चसू॒रयः॑ | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 3 || |
प्रयत्ते᳚,अग्नेसू॒रयो॒¦जाये᳚महि॒प्रते᳚व॒यम् | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 4 || |
प्रयद॒ग्नेःसह॑स्वतो¦वि॒श्वतो॒यन्ति॑भा॒नवः॑ | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 5 || |
त्वंहिवि॑श्वतोमुख¦वि॒श्वतः॑परि॒भूरसि॑ | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 6 || |
द्विषो᳚नोविश्वतोमु॒खा¦ति॑ना॒वेव॑पारय | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 7 || |
सनः॒सिन्धु॑मिवना॒वया¦ति॑पर्षास्व॒स्तये᳚ | अप॑नः॒शोशु॑चद॒घम् || 8 || |
[98] वैश्वानरस्येतितृचस्य सूक्तस्य कुत्सोवैश्वानरोग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:98}{अनुवाक:15, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
वै॒श्वा॒न॒रस्य॑सुम॒तौस्या᳚म॒¦राजा॒हिकं॒भुव॑नानामभि॒श्रीः | इ॒तोजा॒तोविश्व॑मि॒दंविच॑ष्टे¦वैश्वान॒रोय॑तते॒सूर्ये᳚ण || 1 || वर्ग:6 |
पृ॒ष्टोदि॒विपृ॒ष्टो,अ॒ग्निःपृ॑थि॒व्यां¦पृ॒ष्टोविश्वा॒,ओष॑धी॒रावि॑वेश | वै॒श्वा॒न॒रःसह॑सापृ॒ष्टो,अ॒ग्निः¦सनो॒दिवा॒सरि॒षःपा᳚तु॒नक्त᳚म् || 2 || |
वैश्वा᳚नर॒तव॒तत्स॒त्यम॑¦स्त्व॒स्मान्रायो᳚म॒घवा᳚नःसचन्ताम् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 3 || |
[99] जातवेदसइत्येकर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यपोजातवेदा अग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:99}{अनुवाक:15, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
जा॒तवे᳚दसेसुनवाम॒सोम॑¦मरातीय॒तोनिद॑हाति॒वेदः॑ | सनः॑पर्ष॒दति॑दु॒र्गाणि॒विश्वा᳚¦ना॒वेव॒सिन्धुं᳚दुरि॒तात्य॒ग्निः || 1 || वर्ग:7 |
[100] सयोवृषेत्येकोनविंशतृचस्य सूक्तस्य वार्षागिराऋज्राश्वांबरीष सहदेव भयमानसुराधसइंद्रस्त्रिष्टुप् (इतआरभ्य मरुत्वानिंद्रैतिकश्चित् | तन्न | सर्वानुक्रमादिभिरनादृतत्वात्){मंडल:1, सूक्त:100}{अनुवाक:15, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
सयोवृषा॒वृष्ण्ये᳚भिः॒समो᳚का¦म॒होदि॒वःपृ॑थि॒व्याश्च॑स॒म्राट् | स॒ती॒नस॑त्वा॒हव्यो॒भरे᳚षु¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 1 || वर्ग:8 |
यस्याना᳚प्तः॒सूर्य॑स्येव॒यामो॒¦भरे᳚भरेवृत्र॒हाशुष्मो॒,अस्ति॑ | वृष᳚न्तमः॒सखि॑भिः॒स्वेभि॒रेवै᳚¦र्म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 2 || |
दि॒वोनयस्य॒रेत॑सो॒दुघा᳚नाः॒¦पन्था᳚सो॒यन्ति॒शव॒साप॑रीताः | त॒रद्द्वे᳚षाःसास॒हिःपौंस्ये᳚भि¦र्म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 3 || |
सो,अङ्गि॑रोभि॒रङ्गि॑रस्तमोभू॒द्¦वृषा॒वृष॑भिः॒सखि॑भिः॒सखा॒सन् | ऋ॒ग्मिभि᳚रृ॒ग्मीगा॒तुभि॒र्ज्येष्ठो᳚¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 4 || |
ससू॒नुभि॒र्नरु॒द्रेभि॒रृभ्वा᳚¦नृ॒षाह्ये᳚सास॒ह्वाँ,अ॒मित्रा॑न् | सनी᳚ळेभिःश्रव॒स्या᳚नि॒तूर्व॑न्¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 5 || |
सम᳚न्यु॒मीःस॒मद॑नस्यक॒र्ता¦स्माके᳚भि॒र्नृभिः॒सूर्यं᳚सनत् | अ॒स्मिन्नह॒न्त्सत्प॑तिःपुरुहू॒तो¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 6 || वर्ग:9 |
तमू॒तयो᳚रणय॒ञ्छूर॑सातौ॒¦तंक्षेम॑स्यक्षि॒तयः॑कृण्वत॒त्राम् | सविश्व॑स्यक॒रुण॑स्येश॒एको᳚¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 7 || |
तम॑प्सन्त॒शव॑सउत्स॒वेषु॒¦नरो॒नर॒मव॑से॒तंधना᳚य | सो,अ॒न्धेचि॒त्तम॑सि॒ज्योति᳚र्विदन्¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 8 || |
सस॒व्येन॑यमति॒व्राध॑तश्चि॒त्¦सद॑क्षि॒णेसंगृ॑भीताकृ॒तानि॑ | सकी॒रिणा᳚चि॒त्सनि॑ता॒धना᳚नि¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 9 || |
सग्रामे᳚भिः॒सनि॑ता॒सरथे᳚भि¦र्वि॒देविश्वा᳚भिःकृ॒ष्टिभि॒र्न्व१॑(अ॒)द्य | सपौंस्ये᳚भिरभि॒भूरश॑स्ती¦र्म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 10 || |
सजा॒मिभि॒र्यत्स॒मजा᳚तिमी॒ळ्हे¦ऽजा᳚मिभिर्वापुरुहू॒तएवैः᳚ | अ॒पांतो॒कस्य॒तन॑यस्यजे॒षे¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 11 || वर्ग:10 |
सव॑ज्र॒भृद्द॑स्यु॒हाभी॒मउ॒ग्रः¦स॒हस्र॑चेताःश॒तनी᳚थ॒ऋभ्वा᳚ | च॒म्री॒षोनशव॑सा॒पाञ्च॑जन्यो¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 12 || |
तस्य॒वज्रः॑क्रन्दति॒स्मत्स्व॒र्षा¦दि॒वोनत्वे॒षोर॒वथः॒शिमी᳚वान् | तंस॑चन्तेस॒नय॒स्तंधना᳚नि¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 13 || |
यस्याज॑स्रं॒शव॑सा॒मान॑मु॒क्थं¦प॑रिभु॒जद्रोद॑सीवि॒श्वतः॑सीम् | सपा᳚रिष॒त्क्रतु॑भिर्मन्दसा॒नो¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 14 || |
नयस्य॑दे॒वादे॒वता॒नमर्ता॒,¦आप॑श्च॒नशव॑सो॒,अन्त॑मा॒पुः | सप्र॒रिक्वा॒त्वक्ष॑सा॒क्ष्मोदि॒वश्च॑¦म॒रुत्वा᳚न्नोभव॒त्विन्द्र॑ऊ॒ती || 15 || |
रो॒हिच्छ्या॒वासु॒मदं᳚शुर्लला॒मी¦र्द्यु॒क्षारा॒यऋ॒ज्राश्व॑स्य | वृष᳚ण्वन्तं॒बिभ्र॑तीधू॒र्षुरथं᳚¦म॒न्द्राचि॑केत॒नाहु॑षीषुवि॒क्षु || 16 || वर्ग:11 |
ए॒तत्त्यत्त॑इन्द्र॒वृष्ण॑उ॒क्थं¦वा᳚र्षागि॒रा,अ॒भिगृ॑णन्ति॒राधः॑ | ऋ॒ज्राश्वः॒प्रष्टि॑भिरम्ब॒रीषः॑¦स॒हदे᳚वो॒भय॑मानःसु॒राधाः᳚ || 17 || |
दस्यू॒ञ्छिम्यूँ᳚श्चपुरुहू॒तएवै᳚¦र्ह॒त्वापृ॑थि॒व्यांशर्वा॒निब᳚र्हीत् | सन॒त्क्षेत्रं॒सखि॑भिःश्वि॒त्न्येभिः॒¦सन॒त्सूर्यं॒सन॑द॒पःसु॒वज्रः॑ || 18 || |
वि॒श्वाहेन्द्रो᳚,अधिव॒क्तानो᳚,अ॒¦स्त्वप॑रिह्वृताःसनुयाम॒वाज᳚म् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 19 || |
[101] प्रमंदिनइत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य कुत्स इंद्रोजगतीअंत्याश्चतस्रत्रिष्टुभः | (आद्यागर्भस्राविणीतिगुणः) |{मंडल:1, सूक्त:101}{अनुवाक:15, सूक्त:8}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
प्रम॒न्दिने᳚पितु॒मद॑र्चता॒वचो॒¦यःकृ॒ष्णग॑र्भानि॒रह᳚न्नृ॒जिश्व॑ना | अ॒व॒स्यवो॒वृष॑णं॒वज्र॑दक्षिणं¦म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 1 || वर्ग:12 |
योव्यं᳚संजाहृषा॒णेन॑म॒न्युना॒¦यःशम्ब॑रं॒यो,अह॒न्पिप्रु॑मव्र॒तम् | इन्द्रो॒यःशुष्ण॑म॒शुषं॒न्यावृ॑णङ्¦म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 2 || |
यस्य॒द्यावा᳚पृथि॒वीपौंस्यं᳚म॒हद्¦यस्य᳚व्र॒तेवरु॑णो॒यस्य॒सूर्यः॑ | यस्येन्द्र॑स्य॒सिन्ध॑वः॒सश्च॑तिव्र॒तं¦म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 3 || |
यो,अश्वा᳚नां॒योगवां॒गोप॑तिर्व॒शी¦यआ᳚रि॒तःकर्म॑णिकर्मणिस्थि॒रः | वी॒ळोश्चि॒दिन्द्रो॒यो,असु᳚न्वतोव॒धो¦म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 4 || |
योविश्व॑स्य॒जग॑तःप्राण॒तस्पति॒¦र्योब्र॒ह्मणे᳚प्रथ॒मोगा,अवि᳚न्दत् | इन्द्रो॒योदस्यूँ॒रध॑राँ,अ॒वाति॑रन्¦म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 5 || |
यःशूरे᳚भि॒र्हव्यो॒यश्च॑भी॒रुभि॒¦र्योधाव॑द्भिर्हू॒यते॒यश्च॑जि॒ग्युभिः॑ | इन्द्रं॒यंविश्वा॒भुव॑ना॒भिसं᳚द॒धु¦र्म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 6 || |
रु॒द्राणा᳚मेतिप्र॒दिशा᳚विचक्ष॒णो¦रु॒द्रेभि॒र्योषा᳚तनुतेपृ॒थुज्रयः॑ | इन्द्रं᳚मनी॒षा,अ॒भ्य॑र्चतिश्रु॒तं¦म॒रुत्व᳚न्तंस॒ख्याय॑हवामहे || 7 || वर्ग:13 |
यद्वा᳚मरुत्वःपर॒मेस॒धस्थे॒¦यद्वा᳚व॒मेवृ॒जने᳚मा॒दया᳚से | अत॒आया᳚ह्यध्व॒रंनो॒,अच्छा᳚¦त्वा॒याह॒विश्च॑कृमासत्यराधः || 8 || |
त्वा॒येन्द्र॒सोमं᳚सुषुमासुदक्ष¦त्वा॒याह॒विश्च॑कृमाब्रह्मवाहः | अधा᳚नियुत्वः॒सग॑णोम॒रुद्भि॑¦र॒स्मिन्य॒ज्ञेब॒र्हिषि॑मादयस्व || 9 || |
मा॒दय॑स्व॒हरि॑भि॒र्येत॑इन्द्र॒¦विष्य॑स्व॒शिप्रे॒विसृ॑जस्व॒धेने᳚ | आत्वा᳚सुशिप्र॒हर॑योवहन्तू॒¦शन्ह॒व्यानि॒प्रति॑नोजुषस्व || 10 || |
म॒रुत्स्तो᳚त्रस्यवृ॒जन॑स्यगो॒पा¦व॒यमिन्द्रे᳚णसनुयाम॒वाज᳚म् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 11 || |
[102] इमांतइत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य कुत्स इंद्रोजगतीअंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:102}{अनुवाक:15, सूक्त:9}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
इ॒मांते॒धियं॒प्रभ॑रेम॒होम॒ही¦म॒स्यस्तो॒त्रेधि॒षणा॒यत्त॑आन॒जे | तमु॑त्स॒वेच॑प्रस॒वेच॑सास॒हि¦मिन्द्रं᳚दे॒वासः॒शव॑सामद॒न्ननु॑ || 1 || वर्ग:14 |
अ॒स्यश्रवो᳚न॒द्यः॑स॒प्तबि॑भ्रति॒¦द्यावा॒क्षामा᳚पृथि॒वीद॑र्श॒तंवपुः॑ | अ॒स्मेसू᳚र्याचन्द्र॒मसा᳚भि॒चक्षे᳚¦श्र॒द्धेकमि᳚न्द्रचरतोवितर्तु॒रम् || 2 || |
तंस्मा॒रथं᳚मघव॒न्प्राव॑सा॒तये॒¦जैत्रं॒यंते᳚,अनु॒मदा᳚मसंग॒मे | आ॒जान॑इन्द्र॒मन॑सापुरुष्टुत¦त्वा॒यद्भ्यो᳚मघव॒ञ्छर्म॑यच्छनः || 3 || |
व॒यंज॑येम॒त्वया᳚यु॒जावृत॑¦म॒स्माक॒मंश॒मुद॑वा॒भरे᳚भरे | अ॒स्मभ्य॑मिन्द्र॒वरि॑वःसु॒गंकृ॑धि॒¦प्रशत्रू᳚णांमघव॒न्वृष्ण्या᳚रुज || 4 || |
नाना॒हित्वा॒हव॑माना॒जना᳚,इ॒मे¦धना᳚नांधर्त॒रव॑साविप॒न्यवः॑ | अ॒स्माकं᳚स्मा॒रथ॒माति॑ष्ठसा॒तये॒¦जैत्रं॒ही᳚न्द्र॒निभृ॑तं॒मन॒स्तव॑ || 5 || |
गो॒जिता᳚बा॒हू,अमि॑तक्रतुःसि॒मः¦कर्म᳚न्कर्मञ्छ॒तमू᳚तिःखजंक॒रः | अ॒क॒ल्पइन्द्रः॑प्रति॒मान॒मोज॒सा¦था॒जना॒विह्व॑यन्तेसिषा॒सवः॑ || 6 || वर्ग:15 |
उत्ते᳚श॒तान्म॑घव॒न्नुच्च॒भूय॑स॒¦उत्स॒हस्रा᳚द्रिरिचेकृ॒ष्टिषु॒श्रवः॑ | अ॒मा॒त्रंत्वा᳚धि॒षणा᳚तित्विषेम॒¦ह्यधा᳚वृ॒त्राणि॑जिघ्नसेपुरंदर || 7 || |
त्रि॒वि॒ष्टि॒धातु॑प्रति॒मान॒मोज॑स¦स्ति॒स्रोभूमी᳚र्नृपते॒त्रीणि॑रोच॒ना | अती॒दंविश्वं॒भुव॑नंववक्षिथा¦श॒त्रुरि᳚न्द्रज॒नुषा᳚स॒नाद॑सि || 8 || |
त्वांदे॒वेषु॑प्रथ॒मंह॑वामहे॒¦त्वंब॑भूथ॒पृत॑नासुसास॒हिः | सेमंनः॑का॒रुमु॑पम॒न्युमु॒द्भिद॒¦मिन्द्रः॑कृणोतुप्रस॒वेरथं᳚पु॒रः || 9 || |
त्वंजि॑गेथ॒नधना᳚रुरोधि॒था¦र्भे᳚ष्वा॒जाम॑घवन्म॒हत्सु॑च | त्वामु॒ग्रमव॑से॒संशि॑शी¦म॒स्यथा᳚नइन्द्र॒हव॑नेषुचोदय || 10 || |
वि॒श्वाहेन्द्रो᳚,अधिव॒क्तानो᳚,अ॒¦स्त्वप॑रिह्वृताःसनुयाम॒वाज᳚म् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 11 || |
[103] तत्तइत्यष्टर्चस्य सूक्तस्य कुत्स इंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:103}{अनुवाक:15, सूक्त:10}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
तत्त॑इन्द्रि॒यंप॑र॒मंप॑रा॒चै¦रधा᳚रयन्तक॒वयः॑पु॒रेदम् | क्ष॒मेदम॒न्यद्दि॒व्य१॑(अ॒)न्यद॑स्य॒¦समी᳚पृच्यतेसम॒नेव॑के॒तुः || 1 || वर्ग:16 |
सधा᳚रयत्पृथि॒वींप॒प्रथ॑च्च॒¦वज्रे᳚णह॒त्वानिर॒पःस॑सर्ज | अह॒न्नहि॒मभि॑नद्रौहि॒णं¦व्यह॒न्व्यं᳚संम॒घवा॒शची᳚भिः || 2 || |
सजा॒तूभ᳚र्माश्र॒द्दधा᳚न॒ओजः॒¦पुरो᳚विभि॒न्दन्न॑चर॒द्विदासीः᳚ | वि॒द्वान्व॑ज्रि॒न्दस्य॑वेहे॒तिम॒स्या¦र्यं॒सहो᳚वर्धयाद्यु॒म्नमि᳚न्द्र || 3 || |
तदू॒चुषे॒मानु॑षे॒मायु॒गानि॑¦की॒र्तेन्यं᳚म॒घवा॒नाम॒बिभ्र॑त् | उ॒प॒प्र॒यन्द॑स्यु॒हत्या᳚यव॒ज्री¦यद्ध॑सू॒नुःश्रव॑से॒नाम॑द॒धे || 4 || |
तद॑स्ये॒दंप॑श्यता॒भूरि॑पु॒ष्टं¦श्रदिन्द्र॑स्यधत्तनवी॒र्या᳚य | सगा,अ॑विन्द॒त्सो,अ॑विन्द॒दश्वा॒न्¦त्सओष॑धीः॒सो,अ॒पःसवना᳚नि || 5 || |
भूरि॑कर्मणेवृष॒भाय॒वृष्णे᳚¦स॒त्यशु॑ष्मायसुनवाम॒सोम᳚म् | यआ॒दृत्या᳚परिप॒न्थीव॒शूरो¦ऽय॑ज्वनोवि॒भज॒न्नेति॒वेदः॑ || 6 || वर्ग:17 |
तदि᳚न्द्र॒प्रेव॑वी॒र्यं᳚चकर्थ॒¦यत्स॒सन्तं॒वज्रे॒णाबो᳚ध॒योहि᳚म् | अनु॑त्वा॒पत्नी᳚र्हृषि॒तंवय॑श्च॒¦विश्वे᳚दे॒वासो᳚,अमद॒न्ननु॑त्वा || 7 || |
शुष्णं॒पिप्रुं॒कुय॑वंवृ॒त्रमि᳚न्द्र¦य॒दाव॑धी॒र्विपुरः॒शम्ब॑रस्य | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 8 || |
[104] योनिष्टइति नवर्चस्य सूक्तस्य कुत्स इंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:104}{अनुवाक:15, सूक्त:11}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
योनि॑ष्टइन्द्रनि॒षदे᳚,अकारि॒¦तमानिषी᳚दस्वा॒नोनार्वा᳚ | वि॒मुच्या॒वयो᳚ऽव॒सायाश्वा᳚न्¦दो॒षावस्तो॒र्वही᳚यसःप्रपि॒त्वे || 1 || वर्ग:18 |
ओत्येनर॒इन्द्र॑मू॒तये᳚गु॒¦र्नूचि॒त्तान्त्स॒द्यो,अध्व॑नोजगम्यात् | दे॒वासो᳚म॒न्युंदास॑स्यश्चम्न॒न्¦तेन॒आव॑क्षन्त्सुवि॒ताय॒वर्ण᳚म् || 2 || |
अव॒त्मना᳚भरते॒केत॑वेदा॒,¦अव॒त्मना᳚भरते॒फेन॑मु॒दन् | क्षी॒रेण॑स्नातः॒कुय॑वस्य॒योषे᳚¦ह॒तेतेस्या᳚तांप्रव॒णेशिफा᳚याः || 3 || |
यु॒योप॒नाभि॒रुप॑रस्या॒योः¦प्रपूर्वा᳚भिस्तिरते॒राष्टि॒शूरः॑ | अ॒ञ्ज॒सीकु॑लि॒शीवी॒रप॑त्नी॒¦पयो᳚हिन्वा॒ना,उ॒दभि॑र्भरन्ते || 4 || |
प्रति॒यत्स्यानीथाद॑र्शि॒दस्यो॒¦रोको॒नाच्छा॒सद॑नंजान॒तीगा᳚त् | अध॑स्मानोमघवञ्चर्कृ॒तादि¦न्मानो᳚म॒घेव॑निष्ष॒पीपरा᳚दाः || 5 || |
सत्वंन॑इन्द्र॒सूर्ये॒सो,अ॒प्स्व॑¦नागा॒स्त्वआभ॑जजीवशं॒से | मान्त॑रां॒भुज॒मारी᳚रिषोनः॒¦श्रद्धि॑तंतेमह॒तइ᳚न्द्रि॒याय॑ || 6 || वर्ग:19 |
अधा᳚मन्ये॒श्रत्ते᳚,अस्मा,अधायि॒¦वृषा᳚चोदस्वमह॒तेधना᳚य | मानो॒,अकृ॑तेपुरुहूत॒योना॒¦विन्द्र॒क्षुध्य॑द्भ्यो॒वय॑आसु॒तिंदाः᳚ || 7 || |
मानो᳚वधीरिन्द्र॒मापरा᳚दा॒¦मानः॑प्रि॒याभोज॑नानि॒प्रमो᳚षीः | आ॒ण्डामानो᳚मघवञ्छक्र॒निर्भे॒¦न्मानः॒पात्रा᳚भेत्स॒हजा᳚नुषाणि || 8 || |
अ॒र्वाङेहि॒सोम॑कामंत्वाहु¦र॒यंसु॒तस्तस्य॑पिबा॒मदा᳚य | उ॒रु॒व्यचा᳚ज॒ठर॒आवृ॑षस्व¦पि॒तेव॑नःशृणुहिहू॒यमा᳚नः || 9 || |
[105] चंद्रमाइत्येकोनविंशत्यृचस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रितो विश्वेदेवाः पंक्तिः अंत्यात्रिष्टुप् अष्टमी महाबृहतीयवमध्या | (सूक्तभेदप्रयोगपक्षेतु आद्याया विश्वेदेवाः द्वितीयायारोदसी तृतीयाया विश्वेदेवाः चतुर्थ्याअग्निरोदस्यः ततस्तिसृणां विश्वेदेवाः अष्टम्याइंद्ररोदस्यः नवम्याः सूर्यरश्मिरोदस्यः दशम्या विश्वेदेवाः एकादश्याः सूर्यरश्मिरोदस्यः द्वादश्या विश्वेदेवाः ततोद्वयोरग्निरोदसी ततएकस्यावरुणरोदस्यः ततोद्वयोर्विश्वेदेवाः तत एकस्यारोदसी अंत्यायाविश्वेदेवाः, उत्तरसूक्तद्वयेविश्वेदेवाएव)|{मंडल:1, सूक्त:105}{अनुवाक:15, सूक्त:12}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
च॒न्द्रमा᳚,अ॒प्स्व१॑(अ॒)न्तरा¦सु॑प॒र्णोधा᳚वतेदि॒वि | नवो᳚हिरण्यनेमयः¦प॒दंवि᳚न्दन्तिविद्युतो¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 1 || वर्ग:20 |
अर्थ॒मिद्वा,उ॑अ॒र्थिन॒¦आजा॒यायु॑वते॒पति᳚म् | तु॒ञ्जाते॒वृष्ण्यं॒पयः॑¦परि॒दाय॒रसं᳚दुहे¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 2 || |
मोषुदे᳚वा,अ॒दःस्व१॑(अ॒)¦रव॑पादिदि॒वस्परि॑ | मासो॒म्यस्य॑श॒म्भुवः॒¦शूने᳚भूम॒कदा᳚च॒न¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 3 || |
य॒ज्ञंपृ॑च्छाम्यव॒मं¦सतद्दू॒तोविवो᳚चति | क्व॑ऋ॒तंपू॒र्व्यंग॒तं¦कस्तद्बि॑भर्ति॒नूत॑नो¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 4 || |
अ॒मीयेदे᳚वाः॒स्थन॑¦त्रि॒ष्वारो᳚च॒नेदि॒वः | कद्व॑ऋ॒तंकदनृ॑तं॒¦क्व॑प्र॒त्नाव॒आहु॑ति¦र्वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 5 || |
कद्व॑ऋ॒तस्य॑धर्ण॒सि¦कद्वरु॑णस्य॒चक्ष॑णम् | कद᳚र्य॒म्णोम॒हस्प॒था¦ति॑क्रामेमदू॒ढ्यो᳚¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 6 || वर्ग:21 |
अ॒हंसो,अ॑स्मि॒यःपु॒रा¦सु॒तेवदा᳚मि॒कानि॑चित् | तंमा᳚व्यन्त्या॒ध्यो॒३॑(ओ॒)¦वृको॒नतृ॒ष्णजं᳚मृ॒गं¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 7 || |
संमा᳚तपन्त्य॒भितः॑¦स॒पत्नी᳚रिव॒पर्श॑वः | मूषो॒नशि॒श्नाव्य॑दन्तिमा॒ध्यः॑¦स्तो॒तारं᳚तेशतक्रतो¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 8 || |
अ॒मीयेस॒प्तर॒श्मय॒¦स्तत्रा᳚मे॒नाभि॒रात॑ता | त्रि॒तस्तद्वे᳚दा॒प्त्यः¦सजा᳚मि॒त्वाय॑रेभति¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 9 || |
अ॒मीयेपञ्चो॒क्षणो॒¦मध्ये᳚त॒स्थुर्म॒होदि॒वः | दे॒व॒त्रानुप्र॒वाच्यं᳚¦सध्रीची॒नानिवा᳚वृतु¦र्वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 10 || |
सु॒प॒र्णा,ए॒तआ᳚सते॒¦मध्य॑आ॒रोध॑नेदि॒वः | तेसे᳚धन्तिप॒थोवृकं॒¦तर᳚न्तंय॒ह्वती᳚र॒पो¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 11 || वर्ग:22 |
नव्यं॒तदु॒क्थ्यं᳚हि॒तं¦देवा᳚सःसुप्रवाच॒नम् | ऋ॒तम॑र्षन्ति॒सिन्ध॑वः¦स॒त्यंता᳚तान॒सूर्यो᳚¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 12 || |
अग्ने॒तव॒त्यदु॒क्थ्यं᳚¦दे॒वेष्व॒स्त्याप्य᳚म् | सनः॑स॒त्तोम॑नु॒ष्वदा¦दे॒वान्य॑क्षिवि॒दुष्ट॑रो¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 13 || |
स॒त्तोहोता᳚मनु॒ष्वदा¦दे॒वाँ,अच्छा᳚वि॒दुष्ट॑रः | अ॒ग्निर्ह॒व्यासु॑षूदति¦दे॒वोदे॒वेषु॒मेधि॑रो¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 14 || |
ब्रह्मा᳚कृणोति॒वरु॑णो¦गातु॒विदं॒तमी᳚महे | व्यू᳚र्णोतिहृ॒दाम॒तिं¦नव्यो᳚जायतामृ॒तं¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 15 || |
अ॒सौयःपन्था᳚,आदि॒त्यो¦दि॒विप्र॒वाच्यं᳚कृ॒तः | नसदे᳚वा,अति॒क्रमे॒¦तंम॑र्तासो॒नप॑श्यथ¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 16 || वर्ग:23 |
त्रि॒तःकूपेऽव॑हितो¦दे॒वान्ह॑वतऊ॒तये᳚ | तच्छु॑श्राव॒बृह॒स्पतिः॑¦कृ॒ण्वन्नं᳚हूर॒णादु॒रु¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 17 || |
अ॒रु॒णोमा᳚स॒कृद्वृकः॑¦प॒थायन्तं᳚द॒दर्श॒हि | उज्जि॑हीतेनि॒चाय्या॒¦तष्टे᳚वपृष्ट्याम॒यी¦वि॒त्तंमे᳚,अ॒स्यरो᳚दसी || 18 || |
ए॒नाङ्गू॒षेण॑व॒यमिन्द्र॑वन्तो॒¦ऽभिष्या᳚मवृ॒जने॒सर्व॑वीराः | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 19 || |
[106] इंद्रंमित्रमिति सप्तर्चस्य सूक्तस्य कुत्सो विश्वेदेवाजगतीअंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:106}{अनुवाक:16, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
इन्द्रं᳚मि॒त्रंवरु॑णम॒ग्निमू॒तये॒¦मारु॑तं॒शर्धो॒,अदि॑तिंहवामहे | रथं॒नदु॒र्गाद्व॑सवःसुदानवो॒¦विश्व॑स्मान्नो॒,अंह॑सो॒निष्पि॑पर्तन || 1 || वर्ग:24 |
तआ᳚दित्या॒,आग॑तास॒र्वता᳚तये¦भू॒तदे᳚वावृत्र॒तूर्ये᳚षुश॒म्भुवः॑ | रथं॒नदु॒र्गाद्व॑सवःसुदानवो॒¦विश्व॑स्मान्नो॒,अंह॑सो॒निष्पि॑पर्तन || 2 || |
अव᳚न्तुनःपि॒तरः॑सुप्रवाच॒ना¦,उ॒तदे॒वीदे॒वपु॑त्रे,ऋता॒वृधा᳚ | रथं॒नदु॒र्गाद्व॑सवःसुदानवो॒¦विश्व॑स्मान्नो॒,अंह॑सो॒निष्पि॑पर्तन || 3 || |
नरा॒शंसं᳚वा॒जिनं᳚वा॒जय᳚न्नि॒ह¦क्ष॒यद्वी᳚रंपू॒षणं᳚सु॒म्नैरी᳚महे | रथं॒नदु॒र्गाद्व॑सवःसुदानवो॒¦विश्व॑स्मान्नो॒,अंह॑सो॒निष्पि॑पर्तन || 4 || |
बृह॑स्पते॒सद॒मिन्नः॑सु॒गंकृ॑धि॒¦शंयोर्यत्ते॒मनु᳚र्हितं॒तदी᳚महे | रथं॒नदु॒र्गाद्व॑सवःसुदानवो॒¦विश्व॑स्मान्नो॒,अंह॑सो॒निष्पि॑पर्तन || 5 || |
इन्द्रं॒कुत्सो᳚वृत्र॒हणं॒शची॒पतिं᳚¦का॒टेनिबा᳚ळ्ह॒ऋषि॑रह्वदू॒तये᳚ | रथं॒नदु॒र्गाद्व॑सवःसुदानवो॒¦विश्व॑स्मान्नो॒,अंह॑सो॒निष्पि॑पर्तन || 6 || |
दे॒वैर्नो᳚दे॒व्यदि॑ति॒र्निपा᳚तु¦दे॒वस्त्रा॒तात्रा᳚यता॒मप्र॑युच्छन् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 7 || |
[107] यज्ञोदेवानामिति तृचस्य सूक्तस्य कुत्सोविश्वेदेवास्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:107}{अनुवाक:16, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
य॒ज्ञोदे॒वानां॒प्रत्ये᳚तिसु॒म्न¦मादि॑त्यासो॒भव॑तामृळ॒यन्तः॑ | आवो॒ऽर्वाची᳚सुम॒तिर्व॑वृत्या¦दं॒होश्चि॒द्याव॑रिवो॒वित्त॒रास॑त् || 1 || वर्ग:25 |
उप॑नोदे॒वा,अव॒साग॑म॒¦न्त्वङ्गि॑रसां॒साम॑भिःस्तू॒यमा᳚नाः | इन्द्र॑इन्द्रि॒यैर्म॒रुतो᳚म॒रुद्भि॑¦रादि॒त्यैर्नो॒,अदि॑तिः॒शर्म॑यंसत् || 2 || |
तन्न॒इन्द्र॒स्तद्वरु॑ण॒स्तद॒ग्नि¦स्तद᳚र्य॒मातत्स॑वि॒ताचनो᳚धात् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 3 || |
[108] यइंद्राग्नी इति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य कुत्स इंद्राग्नीत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:108}{अनुवाक:16, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
यइ᳚न्द्राग्नीचि॒त्रत॑मो॒रथो᳚वा¦म॒भिविश्वा᳚नि॒भुव॑नानि॒चष्टे᳚ | तेनाया᳚तंस॒रथं᳚तस्थि॒वांसा¦था॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 1 || वर्ग:26 |
याव॑दि॒दंभुव॑नं॒विश्व॒म¦स्त्यु॑रु॒व्यचा᳚वरि॒मता᳚गभी॒रम् | तावाँ᳚,अ॒यंपात॑वे॒सोमो᳚,अ॒¦स्त्वर॑मिन्द्राग्नी॒मन॑सेयु॒वभ्या᳚म् || 2 || |
च॒क्राथे॒हिस॒ध्र्य१॑(अ॒)ङ्नाम॑भ॒द्रं¦स॑ध्रीची॒नावृ॑त्रहणा,उ॒तस्थः॑ | तावि᳚न्द्राग्नीस॒ध्र्य᳚ञ्चानि॒षद्या॒¦वृष्णः॒सोम॑स्यवृष॒णावृ॑षेथाम् || 3 || |
समि॑द्धेष्व॒ग्निष्वा᳚नजा॒ना¦य॒तस्रु॑चाब॒र्हिरु॑तिस्तिरा॒णा | ती॒व्रैःसोमैः॒परि॑षिक्तेभिर॒र्वा¦गेन्द्रा᳚ग्नीसौमन॒साय॑यातम् || 4 || |
यानी᳚न्द्राग्नीच॒क्रथु᳚र्वी॒र्या᳚णि॒¦यानि॑रू॒पाण्यु॒तवृष्ण्या᳚नि | यावां᳚प्र॒त्नानि॑स॒ख्याशि॒वानि॒¦तेभिः॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 5 || |
यदब्र॑वंप्रथ॒मंवां᳚वृणा॒नो॒३॑(ओ॒)¦ऽयंसोमो॒,असु॑रैर्नोवि॒हव्यः॑ | तांस॒त्यांश्र॒द्धाम॒भ्याहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 6 || वर्ग:27 |
यदि᳚न्द्राग्नी॒मद॑थः॒स्वेदु॑रो॒णे¦यद्ब्र॒ह्मणि॒राज॑निवायजत्रा | अतः॒परि॑वृषणा॒वाहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 7 || |
यदि᳚न्द्राग्नी॒यदु॑षुतु॒र्वशे᳚षु॒¦यद्द्रु॒ह्युष्वनु॑षुपू॒रुषु॒स्थः | अतः॒परि॑वृषणा॒वाहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 8 || |
यदि᳚न्द्राग्नी,अव॒मस्यां᳚पृथि॒व्यां¦म॑ध्य॒मस्यां᳚पर॒मस्या᳚मु॒तस्थः | अतः॒परि॑वृषणा॒वाहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 9 || |
यदि᳚न्द्राग्नीपर॒मस्यां᳚पृथि॒व्यां¦म॑ध्य॒मस्या᳚मव॒मस्या᳚मु॒तस्थः | अतः॒परि॑वृषणा॒वाहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 10 || |
यदि᳚न्द्राग्नीदि॒विष्ठोयत्पृ॑थि॒व्यां¦यत्पर्व॑ते॒ष्वोष॑धीष्व॒प्सु | अतः॒परि॑वृषणा॒वाहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 11 || |
यदि᳚न्द्राग्नी॒,उदि॑ता॒सूर्य॑स्य॒¦मध्ये᳚दि॒वःस्व॒धया᳚मा॒दये᳚थे | अतः॒परि॑वृषणा॒वाहिया॒त¦मथा॒सोम॑स्यपिबतंसु॒तस्य॑ || 12 || |
ए॒वेन्द्रा᳚ग्नीपपि॒वांसा᳚सु॒तस्य॒¦विश्वा॒स्मभ्यं॒संज॑यतं॒धना᳚नि | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 13 || |
[109] विह्यख्यमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य कुत्सइंद्राग्नीत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:109}{अनुवाक:16, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
विह्यख्यं॒मन॑सा॒वस्य॑इ॒च्छ¦न्निन्द्रा᳚ग्नीज्ञा॒सउ॒तवा᳚सजा॒तान् | नान्यायु॒वत्प्रम॑तिरस्ति॒मह्यं॒¦सवां॒धियं᳚वाज॒यन्ती᳚मतक्षम् || 1 || वर्ग:28 |
अश्र॑वं॒हिभू᳚रि॒दाव॑त्तरावां॒¦विजा᳚मातुरु॒तवा᳚घास्या॒लात् | अथा॒सोम॑स्य॒प्रय॑तीयु॒वभ्या॒¦मिन्द्रा᳚ग्नी॒स्तोमं᳚जनयामि॒नव्य᳚म् || 2 || |
माच्छे᳚द्मर॒श्मीँरिति॒नाध॑मानाः¦पितॄ॒णांश॒क्तीर॑नु॒यच्छ॑मानाः | इ॒न्द्रा॒ग्निभ्यां॒कंवृष॑णोमदन्ति॒¦ताह्यद्री᳚धि॒षणा᳚या,उ॒पस्थे᳚ || 3 || |
यु॒वाभ्यां᳚दे॒वीधि॒षणा॒मदा॒ये¦न्द्रा᳚ग्नी॒सोम॑मुश॒तीसु॑नोति | ताव॑श्विनाभद्रहस्तासुपाणी॒,¦आधा᳚वतं॒मधु॑नापृ॒ङ्क्तम॒प्सु || 4 || |
यु॒वामि᳚न्द्राग्नी॒वसु॑नोविभा॒गे¦त॒वस्त॑माशुश्रववृत्र॒हत्ये᳚ | तावा॒सद्या᳚ब॒र्हिषि॑य॒ज्ञे,अ॒स्मिन्¦प्रच॑र्षणीमादयेथांसु॒तस्य॑ || 5 || |
प्रच॑र्ष॒णिभ्यः॑पृतना॒हवे᳚षु॒¦प्रपृ॑थि॒व्यारि॑रिचाथेदि॒वश्च॑ | प्रसिन्धु॑भ्यः॒प्रगि॒रिभ्यो᳚महि॒त्वा¦प्रेन्द्रा᳚ग्नी॒विश्वा॒भुव॒नात्य॒न्या || 6 || वर्ग:29 |
आभ॑रतं॒शिक्ष॑तंवज्रबाहू¦,अ॒स्माँ,इ᳚न्द्राग्नी,अवतं॒शची᳚भिः | इ॒मेनुतेर॒श्मयः॒सूर्य॑स्य॒¦येभिः॑सपि॒त्वंपि॒तरो᳚न॒आस॑न् || 7 || |
पुरं᳚दरा॒शिक्ष॑तंवज्रहस्ता॒¦स्माँ,इ᳚न्द्राग्नी,अवतं॒भरे᳚षु | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 8 || |
[110] ततंमइति नवर्चस्य सूक्तस्य कुत्स ऋभवोजगतीपंचम्यंत्येत्रिष्टुभौ{मंडल:1, सूक्त:110}{अनुवाक:16, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
त॒तंमे॒,अप॒स्तदु॑तायते॒पुनः॒¦स्वादि॑ष्ठाधी॒तिरु॒चथा᳚यशस्यते | अ॒यंस॑मु॒द्रइ॒हवि॒श्वदे᳚व्यः॒¦स्वाहा᳚कृतस्य॒समु॑तृप्णुतऋभवः || 1 || वर्ग:30 |
आ॒भो॒गयं॒प्रयदि॒च्छन्त॒ऐत॒ना¦पा᳚काः॒प्राञ्चो॒मम॒केचि॑दा॒पयः॑ | सौध᳚न्वनासश्चरि॒तस्य॑भू॒मना¦ग॑च्छतसवि॒तुर्दा॒शुषो᳚गृ॒हम् || 2 || |
तत्स॑वि॒तावो᳚ऽमृत॒त्वमासु॑व॒¦दगो᳚ह्यं॒यच्छ्र॒वय᳚न्त॒ऐत॑न | त्यंचि॑च्चम॒समसु॑रस्य॒भक्ष॑ण॒¦मेकं॒सन्त॑मकृणुता॒चतु᳚र्वयम् || 3 || |
वि॒ष्ट्वीशमी᳚तरणि॒त्वेन॑वा॒घतो॒¦मर्ता᳚सः॒सन्तो᳚,अमृत॒त्वमा᳚नशुः | सौ॒ध॒न्व॒ना,ऋ॒भवः॒सूर॑चक्षसः¦संवत्स॒रेसम॑पृच्यन्तधी॒तिभिः॑ || 4 || |
क्षेत्र॑मिव॒विम॑मु॒स्तेज॑नेनँ॒¦एकं॒पात्र॑मृ॒भवो॒जेह॑मानम् | उप॑स्तुता,उप॒मंनाध॑माना॒,¦अम॑र्त्येषु॒श्रव॑इ॒च्छमा᳚नाः || 5 || |
आम॑नी॒षाम॒न्तरि॑क्षस्य॒नृभ्यः॑¦स्रु॒चेव॑घृ॒तंजु॑हवामवि॒द्मना᳚ | त॒र॒णि॒त्वायेपि॒तुर॑स्यसश्चि॒र¦ऋ॒भवो॒वाज॑मरुहन्दि॒वोरजः॑ || 6 || वर्ग:31 |
ऋ॒भुर्न॒इन्द्रः॒शव॑सा॒नवी᳚या¦नृ॒भुर्वाजे᳚भि॒र्वसु॑भि॒र्वसु॑र्द॒दिः | यु॒ष्माकं᳚देवा॒,अव॒साह॑निप्रि॒ये॒३॑(ए॒)¦ऽभिति॑ष्ठेमपृत्सु॒तीरसु᳚न्वताम् || 7 || |
निश्चर्म॑णऋभवो॒गाम॑पिंशत॒¦संव॒त्सेना᳚सृजतामा॒तरं॒पुनः॑ | सौध᳚न्वनासःस्वप॒स्यया᳚नरो॒¦जिव्री॒युवा᳚नापि॒तरा᳚कृणोतन || 8 || |
वाजे᳚भिर्नो॒वाज॑सातावविड्ढ्यृ¦भु॒माँ,इ᳚न्द्रचि॒त्रमाद॑र्षि॒राधः॑ | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 9 || |
[111] तक्षन्रथमिति पंचर्चस्य सूक्तस्य कुत्स ऋभवोजगतीअंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:111}{अनुवाक:16, सूक्त:6}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
तक्ष॒न्रथं᳚सु॒वृतं᳚विद्म॒नाप॑स॒¦स्तक्ष॒न्हरी᳚,इन्द्र॒वाहा॒वृष᳚ण्वसू | तक्ष᳚न्पि॒तृभ्या᳚मृ॒भवो॒युव॒द्वय॒¦स्तक्ष᳚न्व॒त्साय॑मा॒तरं᳚सचा॒भुव᳚म् || 1 || वर्ग:32 |
आनो᳚य॒ज्ञाय॑तक्षतऋभु॒मद्वयः॒¦क्रत्वे॒दक्षा᳚यसुप्र॒जाव॑ती॒मिष᳚म् | यथा॒क्षया᳚म॒सर्व॑वीरयावि॒शा¦तन्नः॒शर्धा᳚यधासथा॒स्वि᳚न्द्रि॒यम् || 2 || |
आत॑क्षतसा॒तिम॒स्मभ्य॑मृभवः¦सा॒तिंरथा᳚यसा॒तिमर्व॑तेनरः | सा॒तिंनो॒जैत्रीं॒संम॑हेतवि॒श्वहा᳚¦जा॒मिमजा᳚मिं॒पृत॑नासुस॒क्षणि᳚म् || 3 || |
ऋ॒भु॒क्षण॒मिन्द्र॒माहु॑वऊ॒तय॑¦ऋ॒भून्वाजा᳚न्म॒रुतः॒सोम॑पीतये | उ॒भामि॒त्रावरु॑णानू॒नम॒श्विना॒¦तेनो᳚हिन्वन्तुसा॒तये᳚धि॒येजि॒षे || 4 || |
ऋ॒भुर्भरा᳚य॒संशि॑शातुसा॒तिं¦स॑मर्य॒जिद्वाजो᳚,अ॒स्माँ,अ॑विष्टु | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 5 || |
[112] ईळेद्यावापृथिवीइति पंचविंशत्यृचस्य सूक्तस्य कुत्सः आद्यायाद्यावापृथिव्यग्न्यश्विनः शिष्टानामश्विनौ जगतीअंत्येद्वेत्रिष्टुभौ{मंडल:1, सूक्त:112}{अनुवाक:16, सूक्त:7}{अष्टक:1, अध्याय:7} |
ईळे॒द्यावा᳚पृथि॒वीपू॒र्वचि॑त्तये॒¦ऽग्निंघ॒र्मंसु॒रुचं॒याम᳚न्नि॒ष्टये᳚ | याभि॒र्भरे᳚का॒रमंशा᳚य॒जिन्व॑थ॒¦स्ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 1 || वर्ग:33 |
यु॒वोर्दा॒नाय॑सु॒भरा᳚,अस॒श्चतो॒¦रथ॒मात॑स्थुर्वच॒संनमन्त॑वे | याभि॒र्धियोऽव॑थः॒कर्म᳚न्नि॒ष्टये॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 2 || |
यु॒वंतासां᳚दि॒व्यस्य॑प्र॒शास॑ने¦वि॒शांक्ष॑यथो,अ॒मृत॑स्यम॒ज्मना᳚ | याभि॑र्धे॒नुम॒स्व१॑(अं॒)पिन्व॑थोनरा॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 3 || |
याभिः॒परि॑ज्मा॒तन॑यस्यम॒ज्मना᳚¦द्विमा॒तातू॒र्षुत॒रणि᳚र्वि॒भूष॑ति | याभि॑स्त्रि॒मन्तु॒रभ॑वद्विचक्ष॒ण¦स्ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 4 || |
याभी᳚रे॒भंनिवृ॑तंसि॒तम॒द्भ्य¦उद्वन्द॑न॒मैर॑यतं॒स्व॑र्दृ॒शे | याभिः॒कण्वं॒प्रसिषा᳚सन्त॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 5 || |
याभि॒रन्त॑कं॒जस॑मान॒मार॑णे¦भु॒ज्युंयाभि॑रव्य॒थिभि॑र्जिजि॒न्वथुः॑ | याभिः॑क॒र्कन्धुं᳚व॒य्यं᳚च॒जिन्व॑थ॒¦स्ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 6 || वर्ग:34 |
याभिः॑शुच॒न्तिंध॑न॒सांसु॑षं॒सदं᳚¦त॒प्तंघ॒र्ममो॒म्याव᳚न्त॒मत्र॑ये | याभिः॒पृश्नि॑गुंपुरु॒कुत्स॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 7 || |
याभिः॒शची᳚भिर्वृषणापरा॒वृजं॒¦प्रान्धंश्रो॒णंचक्ष॑स॒एत॑वेकृ॒थः | याभि॒र्वर्ति॑कांग्रसि॒ताममु᳚ञ्चतं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 8 || |
याभिः॒सिन्धुं॒मधु॑मन्त॒मस॑श्चतं॒¦वसि॑ष्ठं॒याभि॑रजरा॒वजि᳚न्वतम् | याभिः॒कुत्सं᳚श्रु॒तर्यं॒नर्य॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 9 || |
याभि᳚र्वि॒श्पलां᳚धन॒साम॑थ॒र्व्यं᳚¦स॒हस्र॑मीळ्हआ॒जावजि᳚न्वतम् | याभि॒र्वश॑म॒श्व्यंप्रे॒णिमाव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 10 || |
याभिः॑सुदानू,औशि॒जाय॑व॒णिजे᳚¦दी॒र्घश्र॑वसे॒मधु॒कोशो॒,अक्ष॑रत् | क॒क्षीव᳚न्तंस्तो॒तारं॒याभि॒राव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 11 || वर्ग:35 |
याभी᳚र॒सांक्षोद॑सो॒द्नःपि॑पि॒न्वथु॑¦रन॒श्वंयाभी॒रथ॒माव॑तंजि॒षे | याभि॑स्त्रि॒शोक॑उ॒स्रिया᳚,उ॒दाज॑त॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 12 || |
याभिः॒सूर्यं᳚परिया॒थःप॑रा॒वति॑¦मन्धा॒तारं॒क्षैत्र॑पत्ये॒ष्वाव॑तम् | याभि॒र्विप्रं॒प्रभ॒रद्वा᳚ज॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 13 || |
याभि᳚र्म॒हाम॑तिथि॒ग्वंक॑शो॒जुवं॒¦दिवो᳚दासंशम्बर॒हत्य॒आव॑तम् | याभिः॑पू॒र्भिद्ये᳚त्र॒सद॑स्यु॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 14 || |
याभि᳚र्व॒म्रंवि॑पिपा॒नमु॑पस्तु॒तं¦क॒लिंयाभि᳚र्वि॒त्तजा᳚निंदुव॒स्यथः॑ | याभि॒र्व्य॑श्वमु॒तपृथि॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 15 || |
याभि᳚र्नराश॒यवे॒याभि॒रत्र॑ये॒¦याभिः॑पु॒रामन॑वेगा॒तुमी॒षथुः॑ | याभिः॒शारी॒राज॑तं॒स्यूम॑रश्मये॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 16 || वर्ग:36 |
याभिः॒पठ᳚र्वा॒जठ॑रस्यम॒ज्मना॒¦ऽग्निर्नादी᳚देच्चि॒तइ॒द्धो,अज्म॒न्ना | याभिः॒शर्या᳚त॒मव॑थोमहाध॒ने¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 17 || |
याभि॑रङ्गिरो॒मन॑सानिर॒ण्यथो¦ऽग्रं॒गच्छ॑थोविव॒रेगो,अ᳚र्णसः | याभि॒र्मनुं॒शूर॑मि॒षास॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 18 || |
याभिः॒पत्नी᳚र्विम॒दाय᳚न्यू॒हथु॒¦राघ॑वा॒याभि॑ररु॒णीरशि॑क्षतम् | याभिः॑सु॒दास॑ऊ॒हथुः॑सुदे॒व्य१॑(अं॒)¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 19 || |
याभिः॒शंता᳚ती॒भव॑थोददा॒शुषे᳚¦भु॒ज्युंयाभि॒रव॑थो॒याभि॒रध्रि॑गुम् | ओ॒म्याव॑तींसु॒भरा᳚मृत॒स्तुभं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 20 || |
याभिः॑कृ॒शानु॒मस॑नेदुव॒स्यथो᳚¦ज॒वेयाभि॒र्यूनो॒,अर्व᳚न्त॒माव॑तम् | मधु॑प्रि॒यंभ॑रथो॒यत्स॒रड्भ्य॒¦स्ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 21 || वर्ग:37 |
याभि॒र्नरं᳚गोषु॒युधं᳚नृ॒षाह्ये॒¦क्षेत्र॑स्यसा॒तातन॑यस्य॒जिन्व॑थः | याभी॒रथाँ॒,अव॑थो॒याभि॒रर्व॑त॒¦स्ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 22 || |
याभिः॒कुत्स॑मार्जुने॒यंश॑तक्रतू॒¦प्रतु॒र्वीतिं॒प्रच॑द॒भीति॒माव॑तम् | याभि॑र्ध्व॒सन्तिं᳚पुरु॒षन्ति॒माव॑तं॒¦ताभि॑रू॒षुऊ॒तिभि॑रश्वि॒नाग॑तम् || 23 || |
अप्न॑स्वतीमश्विना॒वाच॑म॒स्मे¦कृ॒तंनो᳚दस्रावृषणामनी॒षाम् | अ॒द्यू॒त्येऽव॑से॒निह्व॑येवां¦वृ॒धेच॑नोभवतं॒वाज॑सातौ || 24 || |
द्युभि॑र॒क्तुभिः॒परि॑पातम॒स्मा¦नरि॑ष्टेभिरश्विना॒सौभ॑गेभिः | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 25 || |
[113] इदंश्रेष्ठमिति विंशत्यृचस्य सूक्तस्य कुत्स उषाद्वितीयायाअर्धर्चोरात्रिस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:113}{अनुवाक:16, सूक्त:8}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
इ॒दंश्रेष्ठं॒ज्योति॑षां॒ज्योति॒रागा᳚¦च्चि॒त्रःप्र॑के॒तो,अ॑जनिष्ट॒विभ्वा᳚ | यथा॒प्रसू᳚तासवि॒तुःस॒वायँ᳚¦ए॒वारात्र्यु॒षसे॒योनि॑मारैक् || 1 || वर्ग:1 |
रुश॑द्वत्सा॒रुश॑तीश्वे॒त्यागा॒¦दारै᳚गुकृ॒ष्णासद॑नान्यस्याः | स॒मा॒नब᳚न्धू,अ॒मृते᳚,अनू॒ची¦द्यावा॒वर्णं᳚चरतआमिना॒ने || 2 || |
स॒मा॒नो,अध्वा॒स्वस्रो᳚रन॒न्त¦स्तम॒न्यान्या᳚चरतोदे॒वशि॑ष्टे | नमे᳚थेते॒नत॑स्थतुःसु॒मेके॒¦नक्तो॒षासा॒सम॑नसा॒विरू᳚पे || 3 || |
भास्व॑तीने॒त्रीसू॒नृता᳚ना॒¦मचे᳚तिचि॒त्राविदुरो᳚नआवः | प्रार्प्या॒जग॒द्व्यु॑नोरा॒यो,अ॑ख्य¦दु॒षा,अ॑जीग॒र्भुव॑नानि॒विश्वा᳚ || 4 || |
जि॒ह्म॒श्ये॒३॑(ए॒)चरि॑तवेम॒घो¦न्या᳚भो॒गय॑इ॒ष्टये᳚रा॒यउ॑त्वम् | द॒भ्रंपश्य॑द्भ्यउर्वि॒यावि॒चक्ष॑¦उ॒षा,अ॑जीग॒र्भुव॑नानि॒विश्वा᳚ || 5 || |
क्ष॒त्राय॑त्वं॒श्रव॑सेत्वंमही॒या¦,इ॒ष्टये᳚त्व॒मर्थ॑मिवत्वमि॒त्यै | विस॑दृशाजीवि॒ताभि॑प्र॒चक्ष॑¦उ॒षा,अ॑जीग॒र्भुव॑नानि॒विश्वा᳚ || 6 || वर्ग:2 |
ए॒षादि॒वोदु॑हि॒ताप्रत्य॑दर्शि¦व्यु॒च्छन्ती᳚युव॒तिःशु॒क्रवा᳚साः | विश्व॒स्येशा᳚ना॒पार्थि॑वस्य॒वस्व॒¦उषो᳚,अ॒द्येहसु॑भगे॒व्यु॑च्छ || 7 || |
प॒रा॒य॒ती॒नामन्वे᳚ति॒पाथ॑¦आयती॒नांप्र॑थ॒माशश्व॑तीनाम् | व्यु॒च्छन्ती᳚जी॒वमु॑दी॒रय᳚¦न्त्यु॒षामृ॒तंकंच॒नबो॒धय᳚न्ती || 8 || |
उषो॒यद॒ग्निंस॒मिधे᳚च॒कर्थ॒¦वियदाव॒श्चक्ष॑सा॒सूर्य॑स्य | यन्मानु॑षान्य॒क्ष्यमा᳚णाँ॒,अजी᳚ग॒¦स्तद्दे॒वेषु॑चकृषेभ॒द्रमप्नः॑ || 9 || |
किया॒त्यायत्स॒मया॒भवा᳚ति॒¦याव्यू॒षुर्याश्च॑नू॒नंव्यु॒च्छान् | अनु॒पूर्वाः᳚कृपतेवावशा॒ना¦प्र॒दीध्या᳚ना॒जोष॑म॒न्याभि॑रेति || 10 || |
ई॒युष्टेयेपूर्व॑तरा॒मप॑श्यन्¦व्यु॒च्छन्ती᳚मु॒षसं॒मर्त्या᳚सः | अ॒स्माभि॑रू॒नुप्र॑ति॒चक्ष्या᳚भू॒¦दोतेय᳚न्ति॒ये,अ॑प॒रीषु॒पश्या॑न् || 11 || वर्ग:3 |
या॒व॒यद्द्वे᳚षा,ऋत॒पा,ऋ॑ते॒जाः¦सु᳚म्ना॒वरी᳚सू॒नृता᳚,ई॒रय᳚न्ती | सु॒म॒ङ्ग॒लीर्बिभ्र॑तीदे॒ववी᳚ति¦मि॒हाद्योषः॒श्रेष्ठ॑तमा॒व्यु॑च्छ || 12 || |
शश्व॑त्पु॒रोषाव्यु॑वासदे॒व्य¦थो᳚,अ॒द्येदंव्या᳚वोम॒घोनी᳚ | अथो॒व्यु॑च्छा॒दुत्त॑राँ॒,अनु॒द्यू¦न॒जरा॒मृता᳚चरतिस्व॒धाभिः॑ || 13 || |
व्य१॑(अ॒)न्जिभि॑र्दि॒वआता᳚स्वद्यौ॒¦दप॑कृ॒ष्णांनि॒र्णिजं᳚दे॒व्या᳚वः | प्र॒बो॒धय᳚न्त्यरु॒णेभि॒रश्वै॒¦रोषाया᳚तिसु॒युजा॒रथे᳚न || 14 || |
आ॒वह᳚न्ती॒पोष्या॒वार्या᳚णि¦चि॒त्रंके॒तुंकृ॑णुते॒चेकि॑ताना | ई॒युषी᳚णामुप॒माशश्व॑तीनां¦विभाती॒नांप्र॑थ॒मोषाव्य॑श्वैत् || 15 || |
उदी᳚र्ध्वंजी॒वो,असु᳚र्न॒आगा॒¦दप॒प्रागा॒त्तम॒आज्योति॑रेति | आरै॒क्पन्थां॒यात॑वे॒सूर्या॒या¦ग᳚न्म॒यत्र॑प्रति॒रन्त॒आयुः॑ || 16 || वर्ग:4 |
स्यूम॑नावा॒चउदि॑यर्ति॒वह्निः॒¦स्तवा᳚नोरे॒भउ॒षसो᳚विभा॒तीः | अ॒द्यातदु॑च्छगृण॒तेम॑घो¦न्य॒स्मे,आयु॒र्निदि॑दीहिप्र॒जाव॑त् || 17 || |
यागोम॑तीरु॒षसः॒सर्व॑वीरा¦व्यु॒च्छन्ति॑दा॒शुषे॒मर्त्या᳚य | वा॒योरि॑वसू॒नृता᳚नामुद॒र्के¦ता,अ॑श्व॒दा,अ॑श्नवत्सोम॒सुत्वा᳚ || 18 || |
मा॒तादे॒वाना॒मदि॑ते॒रनी᳚कं¦य॒ज्ञस्य॑के॒तुर्बृ॑ह॒तीविभा᳚हि | प्र॒श॒स्ति॒कृद्ब्रह्म॑णेनो॒व्यु१॑(उ॒)च्छा¦नो॒जने᳚जनयविश्ववारे || 19 || |
यच्चि॒त्रमप्न॑उ॒षसो॒वह᳚न्ती¦जा॒नाय॑शशमा॒नाय॑भ॒द्रम् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 20 || |
[114] इमारुद्रायेत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य कुत्सोरुद्रोजगतीअंत्येद्वेत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:114}{अनुवाक:16, सूक्त:9}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
इ॒मारु॒द्राय॑त॒वसे᳚कप॒र्दिने᳚¦क्ष॒यद्वी᳚राय॒प्रभ॑रामहेम॒तीः | यथा॒शमस॑द्द्वि॒पदे॒चतु॑ष्पदे॒¦विश्वं᳚पु॒ष्टंग्रामे᳚,अ॒स्मिन्न॑नातु॒रम् || 1 || वर्ग:5 |
मृ॒ळानो᳚रुद्रो॒तनो॒मय॑स्कृधि¦क्ष॒यद्वी᳚राय॒नम॑साविधेमते | यच्छंच॒योश्च॒मनु॑राये॒जेपि॒ता¦तद॑श्याम॒तव॑रुद्र॒प्रणी᳚तिषु || 2 || |
अ॒श्याम॑तेसुम॒तिंदे᳚वय॒ज्यया᳚¦क्ष॒यद्वी᳚रस्य॒तव॑रुद्रमीढ्वः | सु॒म्ना॒यन्निद्विशो᳚,अ॒स्माक॒माच॒रा¦रि॑ष्टवीराजुहवामतेह॒विः || 3 || |
त्वे॒षंव॒यंरु॒द्रंय॑ज्ञ॒साधं᳚¦व॒ङ्कुंक॒विमव॑से॒निह्व॑यामहे | आ॒रे,अ॒स्मद्दैव्यं॒हेळो᳚,अस्यतु¦सुम॒तिमिद्व॒यम॒स्यावृ॑णीमहे || 4 || |
दि॒वोव॑रा॒हम॑रु॒षंक॑प॒र्दिनं᳚¦त्वे॒षंरू॒पंनम॑सा॒निह्व॑यामहे | हस्ते॒बिभ्र॑द्भेष॒जावार्या᳚णि॒¦शर्म॒वर्म॑च्छ॒र्दिर॒स्मभ्यं᳚यंसत् || 5 || |
इ॒दंपि॒त्रेम॒रुता᳚मुच्यते॒वचः॑¦स्वा॒दोःस्वादी᳚योरु॒द्राय॒वर्ध॑नम् | रास्वा᳚चनो,अमृतमर्त॒भोज॑नं॒¦त्मने᳚तो॒काय॒तन॑यायमृळ || 6 || वर्ग:6 |
मानो᳚म॒हान्त॑मु॒तमानो᳚,अर्भ॒कं¦मान॒उक्ष᳚न्तमु॒तमान॑उक्षि॒तम् | मानो᳚वधीःपि॒तरं॒मोतमा॒तरं॒¦मानः॑प्रि॒यास्त॒न्वो᳚रुद्ररीरिषः || 7 || |
मान॑स्तो॒केतन॑ये॒मान॑आ॒यौ¦मानो॒गोषु॒मानो॒,अश्वे᳚षुरीरिषः | वी॒रान्मानो᳚रुद्रभामि॒तोव॑धी¦र्ह॒विष्म᳚न्तः॒सद॒मित्त्वा᳚हवामहे || 8 || |
उप॑ते॒स्तोमा᳚न्पशु॒पा,इ॒वाक॑रं॒¦रास्वा᳚पितर्मरुतांसु॒म्नम॒स्मे | भ॒द्राहिते᳚सुम॒तिर्मृ॑ळ॒यत्त॒मा¦था᳚व॒यमव॒इत्ते᳚वृणीमहे || 9 || |
आ॒रेते᳚गो॒घ्नमु॒तपू᳚रुष॒घ्नं¦क्षय॑द्वीरसु॒म्नम॒स्मेते᳚,अस्तु | मृ॒ळाच॑नो॒,अधि॑चब्रूहिदे॒वा¦धा᳚चनः॒शर्म॑यच्छद्वि॒बर्हाः᳚ || 10 || |
अवो᳚चाम॒नमो᳚,अस्मा,अव॒स्यवः॑¦शृ॒णोतु॑नो॒हवं᳚रु॒द्रोम॒रुत्वा॑न् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 11 || |
[115] चित्रंदेवानामितिषडृचस्य सूक्तस्य कुत्सः सूर्यस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:115}{अनुवाक:16, सूक्त:10}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
चि॒त्रंदे॒वाना॒मुद॑गा॒दनी᳚कं॒¦चक्षु᳚र्मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्या॒ग्नेः | आप्रा॒द्यावा᳚पृथि॒वी,अ॒न्तरि॑क्षं॒¦सूर्य॑आ॒त्माजग॑तस्त॒स्थुष॑श्च || 1 || वर्ग:7 |
सूर्यो᳚दे॒वीमु॒षसं॒रोच॑मानां॒¦मर्यो॒नयोषा᳚म॒भ्ये᳚तिप॒श्चात् | यत्रा॒नरो᳚देव॒यन्तो᳚यु॒गानि॑¦वितन्व॒तेप्रति॑भ॒द्राय॑भ॒द्रम् || 2 || |
भ॒द्रा,अश्वा᳚ह॒रितः॒सूर्य॑स्य¦चि॒त्रा,एत॑ग्वा,अनु॒माद्या᳚सः | न॒म॒स्यन्तो᳚दि॒वआपृ॒ष्ठम॑स्थुः॒¦परि॒द्यावा᳚पृथि॒वीय᳚न्तिस॒द्यः || 3 || |
तत्सूर्य॑स्यदेव॒त्वंतन्म॑हि॒त्वं¦म॒ध्याकर्तो॒र्वित॑तं॒संज॑भार | य॒देदयु॑क्तह॒रितः॑स॒धस्था॒¦दाद्रात्री॒वास॑स्तनुतेसि॒मस्मै᳚ || 4 || |
तन्मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्याभि॒चक्षे॒¦सूर्यो᳚रू॒पंकृ॑णुते॒द्योरु॒पस्थे᳚ | अ॒न॒न्तम॒न्यद्रुश॑दस्य॒पाजः॑¦कृ॒ष्णम॒न्यद्ध॒रितः॒संभ॑रन्ति || 5 || |
अ॒द्यादे᳚वा॒,उदि॑ता॒सूर्य॑स्य॒¦निरंह॑सःपिपृ॒तानिर॑व॒द्यात् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒¦मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वी,उ॒तद्यौः || 6 || |
[116] नासत्याभ्यामिति पंचविंशत्यृचस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:116}{अनुवाक:17, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
नास॑त्याभ्यांब॒र्हिरि॑व॒प्रवृ᳚ञ्जे॒¦स्तोमाँ᳚,इयर्म्य॒भ्रिये᳚व॒वातः॑ | यावर्भ॑गायविम॒दाय॑जा॒यां¦से᳚ना॒जुवा᳚न्यू॒हतू॒रथे᳚न || 1 || वर्ग:8 |
वी॒ळु॒पत्म॑भिराशु॒हेम॑भिर्वा¦दे॒वानां᳚वाजू॒तिभिः॒शाश॑दाना | तद्रास॑भोनासत्यास॒हस्र॑¦मा॒जाय॒मस्य॑प्र॒धने᳚जिगाय || 2 || |
तुग्रो᳚हभु॒ज्युम॑श्विनोदमे॒घे¦र॒यिंनकश्चि᳚न्ममृ॒वाँ,अवा᳚हाः | तमू᳚हथुर्नौ॒भिरा᳚त्म॒न्वती᳚भि¦रन्तरिक्ष॒प्रुद्भि॒रपो᳚दकाभिः || 3 || |
ति॒स्रः,क्षप॒स्त्रिरहा᳚ति॒व्रज॑द्भि॒¦र्नास॑त्याभु॒ज्युमू᳚हथुःपतं॒गैः | स॒मु॒द्रस्य॒धन्व᳚न्ना॒र्द्रस्य॑पा॒रे¦त्रि॒भीरथैः᳚श॒तप॑द्भिः॒षळ॑श्वैः || 4 || |
अ॒ना॒र॒म्भ॒णेतद॑वीरयेथा¦मनास्था॒ने,अ॑ग्रभ॒णेस॑मु॒द्रे | यद॑श्विना,ऊ॒हथु॑र्भु॒ज्युमस्तं᳚¦श॒तारि॑त्रां॒नाव॑मातस्थि॒वांस᳚म् || 5 || |
यम॑श्विनाद॒दथुः॑श्वे॒तमश्व॑¦म॒घाश्वा᳚य॒शश्व॒दित्स्व॒स्ति | तद्वां᳚दा॒त्रंमहि॑की॒र्तेन्यं᳚भूत्¦पै॒द्वोवा॒जीसद॒मिद्धव्यो᳚,अ॒र्यः || 6 || वर्ग:9 |
यु॒वंन॑रास्तुव॒तेप॑ज्रि॒याय॑¦क॒क्षीव॑ते,अरदतं॒पुरं᳚धिम् | का॒रो॒त॒राच्छ॒फादश्व॑स्य॒वृष्णः॑¦श॒तंकु॒म्भाँ,अ॑सिञ्चतं॒सुरा᳚याः || 7 || |
हि॒मेना॒ग्निंघ्रं॒सम॑वारयेथां¦पितु॒मती॒मूर्ज॑मस्मा,अधत्तम् | ऋ॒बीसे॒,अत्रि॑मश्वि॒नाव॑नीत॒¦मुन्नि᳚न्यथुः॒सर्व॑गणंस्व॒स्ति || 8 || |
परा᳚व॒तंना᳚सत्यानुदेथा¦मु॒च्चाबु॑ध्नंचक्रथुर्जि॒ह्मबा᳚रम् | क्षर॒न्नापो॒नपा॒यना᳚यरा॒ये¦स॒हस्रा᳚य॒तृष्य॑ते॒गोत॑मस्य || 9 || |
जु॒जु॒रुषो᳚नासत्यो॒तव॒व्रिं¦प्रामु᳚ञ्चतंद्रा॒पिमि॑व॒च्यवा᳚नात् | प्राति॑रतंजहि॒तस्यायु॑र्द॒स्रा¦दित्पति॑मकृणुतंक॒नीना᳚म् || 10 || |
तद्वां᳚नरा॒शंस्यं॒राध्यं᳚चा¦भिष्टि॒मन्ना᳚सत्या॒वरू᳚थम् | यद्वि॒द्वांसा᳚नि॒धिमि॒वाप॑गूळ्ह॒¦मुद्द॑र्श॒तादू॒पथु॒र्वन्द॑नाय || 11 || वर्ग:10 |
तद्वां᳚नरास॒नये॒दंस॑उ॒ग्र¦मा॒विष्कृ॑णोमितन्य॒तुर्नवृ॒ष्टिम् | द॒ध्यङ्ह॒यन्मध्वा᳚थर्व॒णोवा॒¦मश्व॑स्यशी॒र्ष्णाप्रयदी᳚मु॒वाच॑ || 12 || |
अजो᳚हवीन्नासत्याक॒रावां᳚¦म॒हेयाम᳚न्पुरुभुजा॒पुरं᳚धिः | श्रु॒तंतच्छासु॑रिववध्रिम॒त्या¦हिर᳚ण्यहस्तमश्विनावदत्तम् || 13 || |
आ॒स्नोवृक॑स्य॒वर्ति॑काम॒भीके᳚¦यु॒वंन॑रानासत्यामुमुक्तम् | उ॒तोक॒विंपु॑रुभुजायु॒वंह॒¦कृप॑माणमकृणुतंवि॒चक्षे᳚ || 14 || |
च॒रित्रं॒हिवेरि॒वाच्छे᳚दिप॒र्ण¦मा॒जाखे॒लस्य॒परि॑तक्म्यायाम् | स॒द्योजङ्घा॒माय॑सींवि॒श्पला᳚यै॒¦धने᳚हि॒तेसर्त॑वे॒प्रत्य॑धत्तम् || 15 || |
श॒तंमे॒षान्वृ॒क्ये᳚चक्षदा॒न¦मृ॒ज्राश्वं॒तंपि॒तान्धंच॑कार | तस्मा᳚,अ॒क्षीना᳚सत्यावि॒चक्ष॒¦आध॑त्तंदस्राभिषजावन॒र्वन् || 16 || वर्ग:11 |
आवां॒रथं᳚दुहि॒तासूर्य॑स्य॒¦कार्ष्मे᳚वातिष्ठ॒दर्व॑ता॒जय᳚न्ती | विश्वे᳚दे॒वा,अन्व॑मन्यन्तहृ॒द्भिः¦समु॑श्रि॒याना᳚सत्यासचेथे || 17 || |
यदया᳚तं॒दिवो᳚दासायव॒र्ति¦र्भ॒रद्वा᳚जायाश्विना॒हय᳚न्ता | रे॒वदु॑वाहसच॒नोरथो᳚वां¦वृष॒भश्च॑शिंशु॒मार॑श्चयु॒क्ता || 18 || |
र॒यिंसु॑क्ष॒त्रंस्व॑प॒त्यमायुः॑¦सु॒वीर्यं᳚नासत्या॒वह᳚न्ता | आज॒ह्नावीं॒सम॑न॒सोप॒वाजै॒¦स्त्रिरह्नो᳚भा॒गंदध॑तीमयातम् || 19 || |
परि॑विष्टंजाहु॒षंवि॒श्वतः॑सीं¦सु॒गेभि॒र्नक्त॑मूहथू॒रजो᳚भिः | वि॒भि॒न्दुना᳚नासत्या॒रथे᳚न॒¦विपर्व॑ताँ,अजर॒यू,अ॑यातम् || 20 || |
एक॑स्या॒वस्तो᳚रावतं॒रणा᳚य॒¦वश॑मश्विनास॒नये᳚स॒हस्रा᳚ | निर॑हतंदु॒च्छुना॒,इन्द्र॑वन्ता¦पृथु॒श्रव॑सोवृषणा॒वरा᳚तीः || 21 || वर्ग:12 |
श॒रस्य॑चिदार्च॒त्कस्या᳚व॒तादा¦नी॒चादु॒च्चाच॑क्रथुः॒पात॑वे॒वाः | श॒यवे᳚चिन्नासत्या॒शची᳚भि॒¦र्जसु॑रयेस्त॒र्यं᳚पिप्यथु॒र्गाम् || 22 || |
अ॒व॒स्य॒तेस्तु॑व॒तेकृ॑ष्णि॒याय॑¦ऋजूय॒तेना᳚सत्या॒शची᳚भिः | प॒शुंनन॒ष्टमि॑व॒दर्श॑नाय¦विष्णा॒प्वं᳚ददथु॒र्विश्व॑काय || 23 || |
दश॒रात्री॒रशि॑वेना॒नव॒द्यू¦नव॑नद्धंश्नथि॒तम॒प्स्व१॑(अ॒)न्तः | विप्रु॑तंरे॒भमु॒दनि॒प्रवृ॑क्त॒¦मुन्नि᳚न्यथुः॒सोम॑मिवस्रु॒वेण॑ || 24 || |
प्रवां॒दंसां᳚स्यश्विनाववोच¦म॒स्यपतिः॑स्यांसु॒गवः॑सु॒वीरः॑ | उ॒तपश्य᳚न्नश्नु॒वन्दी॒र्घमायु॒¦रस्त॑मि॒वेज्ज॑रि॒माणं᳚जगम्याम् || 25 || |
[117] मध्वःसोमस्येति पंचविंशत्यृचस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:117}{अनुवाक:17, सूक्त:2}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
मध्वः॒सोम॑स्याश्विना॒मदा᳚य¦प्र॒त्नोहोतावि॑वासतेवाम् | ब॒र्हिष्म॑तीरा॒तिर्विश्रि॑ता॒गी¦रि॒षाया᳚तंनास॒त्योप॒वाजैः᳚ || 1 || वर्ग:13 |
योवा᳚मश्विना॒मन॑सो॒जवी᳚या॒न्¦रथः॒स्वश्वो॒विश॑आ॒जिगा᳚ति | येन॒गच्छ॑थःसु॒कृतो᳚दुरो॒णं¦तेन॑नराव॒र्तिर॒स्मभ्यं᳚यातम् || 2 || |
ऋषिं᳚नरा॒वंह॑सः॒पाञ्च॑जन्य¦मृ॒बीसा॒दत्रिं᳚मुञ्चथोग॒णेन॑ | मि॒नन्ता॒दस्यो॒रशि॑वस्यमा॒या¦,अ॑नुपू॒र्वंवृ॑षणाचो॒दय᳚न्ता || 3 || |
अश्वं॒नगू॒ळ्हम॑श्विनादु॒रेवै॒¦रृषिं᳚नरावृषणारे॒भम॒प्सु | संतंरि॑णीथो॒विप्रु॑तं॒दंसो᳚भि॒¦र्नवां᳚जूर्यन्तिपू॒र्व्याकृ॒तानि॑ || 4 || |
सु॒षु॒प्वांसं॒ननिरृ॑तेरु॒पस्थे॒¦सूर्यं॒नद॑स्रा॒तम॑सिक्षि॒यन्त᳚म् | शु॒भेरु॒क्मंनद॑र्श॒तंनिखा᳚त॒¦मुदू᳚पथुरश्विना॒वन्द॑नाय || 5 || |
तद्वां᳚नरा॒शंस्यं᳚पज्रि॒येण॑¦क॒क्षीव॑तानासत्या॒परि॑ज्मन् | श॒फादश्व॑स्यवा॒जिनो॒जना᳚य¦श॒तंकु॒म्भाँ,अ॑सिञ्चतं॒मधू᳚नाम् || 6 || वर्ग:14 |
यु॒वंन॑रास्तुव॒तेकृ॑ष्णि॒याय॑¦विष्णा॒प्वं᳚ददथु॒र्विश्व॑काय | घोषा᳚यैचित्पितृ॒षदे᳚दुरो॒णे¦पतिं॒जूर्य᳚न्त्या,अश्विनावदत्तम् || 7 || |
यु॒वंश्यावा᳚य॒रुश॑तीमदत्तं¦म॒हः,क्षो॒णस्या᳚श्विना॒कण्वा᳚य | प्र॒वाच्यं॒तद्वृ॑षणाकृ॒तंवां॒¦यन्ना᳚र्ष॒दाय॒श्रवो᳚,अ॒ध्यध॑त्तम् || 8 || |
पु॒रूवर्पां᳚स्यश्विना॒दधा᳚ना॒¦निपे॒दव॑ऊहथुरा॒शुमश्व᳚म् | स॒ह॒स्र॒सांवा॒जिन॒मप्र॑तीत¦महि॒हनं᳚श्रव॒स्य१॑(अं॒)तरु॑त्रम् || 9 || |
ए॒तानि॑वांश्रव॒स्या᳚सुदानू॒¦ब्रह्मा᳚ङ्गू॒षंसद॑नं॒रोद॑स्योः | यद्वां᳚प॒ज्रासो᳚,अश्विना॒हव᳚न्ते¦या॒तमि॒षाच॑वि॒दुषे᳚च॒वाज᳚म् || 10 || |
सू॒नोर्माने᳚नाश्विनागृणा॒ना¦वाजं॒विप्रा᳚यभुरणा॒रद᳚न्ता | अ॒गस्त्ये॒ब्रह्म॑णावावृधा॒ना¦संवि॒श्पलां᳚नासत्यारिणीतम् || 11 || वर्ग:15 |
कुह॒यान्ता᳚सुष्टु॒तिंका॒व्यस्य॒¦दिवो᳚नपातावृषणाशयु॒त्रा | हिर᳚ण्यस्येवक॒लशं॒निखा᳚त॒¦मुदू᳚पथुर्दश॒मे,अ॑श्वि॒नाह॑न् || 12 || |
यु॒वंच्यवा᳚नमश्विना॒जर᳚न्तं॒¦पुन॒र्युवा᳚नंचक्रथुः॒शची᳚भिः | यु॒वोरथं᳚दुहि॒तासूर्य॑स्य¦स॒हश्रि॒याना᳚सत्यावृणीत || 13 || |
यु॒वंतुग्रा᳚यपू॒र्व्येभि॒रेवैः᳚¦पुनर्म॒न्याव॑भवतंयुवाना | यु॒वंभु॒ज्युमर्ण॑सो॒निःस॑मु॒द्राद्¦विभि॑रूहथुरृ॒ज्रेभि॒रश्वैः᳚ || 14 || |
अजो᳚हवीदश्विनातौ॒ग्र्योवां॒¦प्रोळ्हः॑समु॒द्रम᳚व्य॒थिर्ज॑ग॒न्वान् | निष्टमू᳚हथुःसु॒युजा॒रथे᳚न॒¦मनो᳚जवसावृषणास्व॒स्ति || 15 || |
अजो᳚हवीदश्विना॒वर्ति॑कावा¦मा॒स्नोयत्सी॒ममु᳚ञ्चतं॒वृक॑स्य | विज॒युषा᳚ययथुः॒सान्वद्रे᳚¦र्जा॒तंवि॒ष्वाचो᳚,अहतंवि॒षेण॑ || 16 || वर्ग:16 |
श॒तंमे॒षान्वृ॒क्ये᳚मामहा॒नं¦तमः॒प्रणी᳚त॒मशि॑वेनपि॒त्रा | आक्षी,ऋ॒ज्राश्वे᳚,अश्विनावधत्तं॒¦ज्योति॑र॒न्धाय॑चक्रथुर्वि॒चक्षे᳚ || 17 || |
शु॒नम॒न्धाय॒भर॑मह्वय॒त्सा¦वृ॒कीर॑श्विनावृषणा॒नरेति॑ | जा॒रःक॒नीन॑इवचक्षदा॒न¦ऋ॒ज्राश्वः॑श॒तमेकं᳚चमे॒षान् || 18 || |
म॒हीवा᳚मू॒तिर॑श्विनामयो॒भू¦रु॒तस्रा॒मंधि॑ष्ण्या॒संरि॑णीथः | अथा᳚यु॒वामिद॑ह्वय॒त्पुरं᳚धि॒¦राग॑च्छतंसींवृषणा॒ववो᳚भिः || 19 || |
अधे᳚नुंदस्रास्त॒र्य१॑(अं॒)विष॑क्ता॒¦मपि᳚न्वतंश॒यवे᳚,अश्विना॒गाम् | यु॒वंशची᳚भिर्विम॒दाय॑जा॒यां¦न्यू᳚हथुःपुरुमि॒त्रस्य॒योषा᳚म् || 20 || |
यवं॒वृके᳚णाश्विना॒वप॒न्ते¦षं᳚दु॒हन्ता॒मनु॑षायदस्रा | अ॒भिदस्युं॒बकु॑रेणा॒धम᳚न्तो॒¦रुज्योति॑श्चक्रथु॒रार्या᳚य || 21 || वर्ग:17 |
आ॒थ॒र्व॒णाया᳚श्विनादधी॒चे¦ऽश्व्यं॒शिरः॒प्रत्यै᳚रयतम् | सवां॒मधु॒प्रवो᳚चदृता॒यन्¦त्वा॒ष्ट्रंयद्द॑स्रावपिक॒क्ष्यं᳚वाम् || 22 || |
सदा᳚कवीसुम॒तिमाच॑केवां॒¦विश्वा॒धियो᳚,अश्विना॒प्राव॑तंमे | अ॒स्मेर॒यिंना᳚सत्याबृ॒हन्त॑¦मपत्य॒साचं॒श्रुत्यं᳚रराथाम् || 23 || |
हिर᳚ण्यहस्तमश्विना॒ररा᳚णा¦पु॒त्रंन॑रावध्रिम॒त्या,अ॑दत्तम् | त्रिधा᳚ह॒श्याव॑मश्विना॒विक॑स्त॒¦मुज्जी॒वस॑ऐरयतंसुदानू || 24 || |
ए॒तानि॑वामश्विनावी॒र्या᳚णि॒¦प्रपू॒र्व्याण्या॒यवो᳚ऽवोचन् | ब्रह्म॑कृ॒ण्वन्तो᳚वृषणायु॒वभ्यां᳚¦सु॒वीरा᳚सोवि॒दथ॒माव॑देम || 25 || |
[118] आवांरथइत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:118}{अनुवाक:17, सूक्त:3}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
आवां॒रथो᳚,अश्विनाश्ये॒नप॑त्वा¦सुमृळी॒कःस्ववाँ᳚यात्व॒र्वाङ् | योमर्त्य॑स्य॒मन॑सो॒जवी᳚यान्¦त्रिवन्धु॒रोवृ॑षणा॒वात॑रंहाः || 1 || वर्ग:18 |
त्रि॒व॒न्धु॒रेण॑त्रि॒वृता॒रथे᳚न¦त्रिच॒क्रेण॑सु॒वृताया᳚तम॒र्वाक् | पिन्व॑तं॒गाजिन्व॑त॒मर्व॑तोनो¦व॒र्धय॑तमश्विनावी॒रम॒स्मे || 2 || |
प्र॒वद्या᳚मनासु॒वृता॒रथे᳚न॒¦दस्रा᳚वि॒मंशृ॑णुतं॒श्लोक॒मद्रेः᳚ | किम॒ङ्गवां॒प्रत्यव॑र्तिं॒गमि॑ष्ठा॒¦हुर्विप्रा᳚सो,अश्विनापुरा॒जाः || 3 || |
आवां᳚श्ये॒नासो᳚,अश्विनावहन्तु॒¦रथे᳚यु॒क्तास॑आ॒शवः॑पतं॒गाः | ये,अ॒प्तुरो᳚दि॒व्यासो॒नगृध्रा᳚,¦अ॒भिप्रयो᳚नासत्या॒वह᳚न्ति || 4 || |
आवां॒रथं᳚युव॒तिस्ति॑ष्ठ॒दत्र॑¦जु॒ष्ट्वीन॑रादुहि॒तासूर्य॑स्य | परि॑वा॒मश्वा॒वपु॑षःपतं॒गा¦वयो᳚वहन्त्वरु॒षा,अ॒भीके᳚ || 5 || |
उद्वन्द॑नमैरतंदं॒सना᳚भि॒¦रुद्रे॒भंद॑स्रावृषणा॒शची᳚भिः | निष्टौ॒ग्र्यंपा᳚रयथःसमु॒द्रात्¦पुन॒श्च्यवा᳚नंचक्रथु॒र्युवा᳚नम् || 6 || वर्ग:19 |
यु॒वमत्र॒येऽव॑नीतायत॒प्त¦मूर्ज॑मो॒मान॑मश्विनावधत्तम् | यु॒वंकण्वा॒यापि॑रिप्ताय॒चक्षुः॒¦प्रत्य॑धत्तंसुष्टु॒तिंजु॑जुषा॒णा || 7 || |
यु॒वंधे॒नुंश॒यवे᳚नाधि॒ताया¦पि᳚न्वतमश्विनापू॒र्व्याय॑ | अमु᳚ञ्चतं॒वर्ति॑का॒मंह॑सो॒निः¦प्रति॒जङ्घां᳚वि॒श्पला᳚या,अधत्तम् || 8 || |
यु॒वंश्वे॒तंपे॒दव॒इन्द्र॑जूत¦महि॒हन॑मश्विनादत्त॒मश्व᳚म् | जो॒हूत्र॑म॒र्यो,अ॒भिभू᳚तिमु॒ग्रं¦स॑हस्र॒सांवृष॑णंवी॒ड्व᳚ङ्गम् || 9 || |
तावां᳚नरा॒स्वव॑सेसुजा॒ता¦हवा᳚महे,अश्विना॒नाध॑मानाः | आन॒उप॒वसु॑मता॒रथे᳚न॒¦गिरो᳚जुषा॒णासु॑वि॒ताय॑यातम् || 10 || |
आश्ये॒नस्य॒जव॑सा॒नूत॑नेना॒¦स्मेया᳚तंनासत्यास॒जोषाः᳚ | हवे॒हिवा᳚मश्विनारा॒तह᳚व्यः¦शश्वत्त॒माया᳚,उ॒षसो॒व्यु॑ष्टौ || 11 || |
[119] आवांरथमिति दशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानश्विनौजगती |{मंडल:1, सूक्त:119}{अनुवाक:17, सूक्त:4}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
आवां॒रथं᳚पुरुमा॒यंम॑नो॒जुवं᳚¦जी॒राश्वं᳚य॒ज्ञियं᳚जी॒वसे᳚हुवे | स॒हस्र॑केतुंव॒निनं᳚श॒तद्व॑सुं¦श्रुष्टी॒वानं᳚वरिवो॒धाम॒भिप्रयः॑ || 1 || वर्ग:20 |
ऊ॒र्ध्वाधी॒तिःप्रत्य॑स्य॒प्रया᳚म॒¦न्यधा᳚यि॒शस्म॒न्त्सम॑यन्त॒आदिशः॑ | स्वदा᳚मिघ॒र्मंप्रति॑यन्त्यू॒तय॒¦आवा᳚मू॒र्जानी॒रथ॑मश्विनारुहत् || 2 || |
संयन्मि॒थःप॑स्पृधा॒नासो॒,अग्म॑त¦शु॒भेम॒खा,अमि॑ताजा॒यवो॒रणे᳚ | यु॒वोरह॑प्रव॒णेचे᳚किते॒रथो॒¦यद॑श्विना॒वह॑थःसू॒रिमावर᳚म् || 3 || |
यु॒वंभु॒ज्युंभु॒रमा᳚णं॒विभि॑र्ग॒तं¦स्वयु॑क्तिभिर्नि॒वह᳚न्तापि॒तृभ्य॒आ | या॒सि॒ष्टंव॒र्तिर्वृ॑षणाविजे॒न्य१॑(अं॒)¦दिवो᳚दासाय॒महि॑चेतिवा॒मवः॑ || 4 || |
यु॒वोर॑श्विना॒वपु॑षेयुवा॒युजं॒¦रथं॒वाणी᳚येमतुरस्य॒शर्ध्य᳚म् | आवां᳚पति॒त्वंस॒ख्याय॑ज॒ग्मुषी॒¦योषा᳚वृणीत॒जेन्या᳚यु॒वांपती᳚ || 5 || |
यु॒वंरे॒भंपरि॑षूतेरुरुष्यथो¦हि॒मेन॑घ॒र्मंपरि॑तप्त॒मत्र॑ये | यु॒वंश॒योर॑व॒संपि॑प्यथु॒र्गवि॒¦प्रदी॒र्घेण॒वन्द॑नस्ता॒र्यायु॑षा || 6 || वर्ग:21 |
यु॒वंवन्द॑नं॒निरृ॑तंजर॒ण्यया॒¦रथं॒नद॑स्राकर॒णासमि᳚न्वथः | क्षेत्रा॒दाविप्रं᳚जनथोविप॒न्यया॒¦प्रवा॒मत्र॑विध॒तेदं॒सना᳚भुवत् || 7 || |
अग॑च्छतं॒कृप॑माणंपरा॒वति॑¦पि॒तुःस्वस्य॒त्यज॑सा॒निबा᳚धितम् | स्व᳚र्वतीरि॒तऊ॒तीर्यु॒वोरह॑¦चि॒त्रा,अ॒भीके᳚,अभवन्न॒भिष्ट॑यः || 8 || |
उ॒तस्यावां॒मधु॑म॒न्मक्षि॑कारप॒¦न्मदे॒सोम॑स्यौशि॒जोहु॑वन्यति | यु॒वंद॑धी॒चोमन॒आवि॑वास॒थो¦ऽथा॒शिरः॒प्रति॑वा॒मश्व्यं᳚वदत् || 9 || |
यु॒वंपे॒दवे᳚पुरु॒वार॑मश्विना¦स्पृ॒धांश्वे॒तंत॑रु॒तारं᳚दुवस्यथः | शर्यै᳚र॒भिद्युं॒पृत॑नासुदु॒ष्टरं᳚¦च॒र्कृत्य॒मिन्द्र॑मिवचर्षणी॒सह᳚म् || 10 || |
[120] काराधदिति द्वादशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानश्विनौ आद्यागायत्री द्वितीयाककुप् तृतीयाकाविराट् चतुर्थीनष्टरूपी पंचमीतनुशिरा षष्ट्युष्णिक् सप्तमीविष्टारबृहत्यष्टमीकृतिर्नवमीविराट्अंत्यास्तिस्रोगायत्र्यः ( अंत्यादुःस्वप्ननाशिनी ) {मंडल:1, सूक्त:120}{अनुवाक:17, सूक्त:5}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
कारा᳚ध॒द्धोत्रा᳚श्विनावां॒¦कोवां॒जोष॑उ॒भयोः᳚ | क॒थावि॑धा॒त्यप्र॑चेताः || 1 || वर्ग:22 |
वि॒द्वांसा॒विद्दुरः॑पृच्छे॒¦दवि॑द्वानि॒त्थाप॑रो,अचे॒ताः | नूचि॒न्नुमर्ते॒,अक्रौ᳚ || 2 || |
तावि॒द्वांसा᳚हवामहेवां॒¦तानो᳚वि॒द्वांसा॒मन्म॑वोचेतम॒द्य | प्रार्च॒द्दय॑मानोयु॒वाकुः॑ || 3 || |
विपृ॑च्छामिपा॒क्या॒३॑(आ॒)नदे॒वान्¦वष॑ट्कृतस्याद्भु॒तस्य॑दस्रा | पा॒तंच॒सह्य॑सोयु॒वंच॒रभ्य॑सोनः || 4 || |
प्रयाघोषे॒भृग॑वाणे॒नशोभे॒¦यया᳚वा॒चायज॑तिपज्रि॒योवा᳚म् | प्रैष॒युर्नवि॒द्वान् || 5 || |
श्रु॒तंगा᳚य॒त्रंतक॑वानस्या॒¦ऽहंचि॒द्धिरि॒रेभा᳚श्विनावाम् | आक्षीशु॑भस्पती॒दन् || 6 || वर्ग:23 |
यु॒वंह्यास्तं᳚म॒होरन्¦यु॒वंवा॒यन्नि॒रत॑तंसतम् | तानो᳚वसूसुगो॒पास्या᳚तंपा॒तं¦नो॒वृका᳚दघा॒योः || 7 || |
माकस्मै᳚धातम॒भ्य॑मि॒त्रिणे᳚नो॒¦माकुत्रा᳚नोगृ॒हेभ्यो᳚धे॒नवो᳚गुः | स्त॒ना॒भुजो॒,अशि॑श्वीः || 8 || |
दु॒ही॒यन्मि॒त्रधि॑तयेयु॒वाकु॑¦रा॒येच॑नोमिमी॒तंवाज॑वत्यै | इ॒षेच॑नोमिमीतंधेनु॒मत्यै᳚ || 9 || |
अ॒श्विनो᳚रसनं॒रथ॑¦मन॒श्वंवा॒जिनी᳚वतोः | तेना॒हंभूरि॑चाकन || 10 || |
अ॒यंस॑महमातनू॒¦ह्याते॒जनाँ॒,अनु॑ | सो॒म॒पेयं᳚सु॒खोरथः॑ || 11 || |
अध॒स्वप्न॑स्य॒निर्वि॒दे¦ऽभु᳚ञ्जतश्चरे॒वतः॑ | उ॒भाताबस्रि॑नश्यतः || 12 || |
[121] कदित्थेति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानिंद्रस्त्रिष्टुप् (विश्वेदेवावा) |{मंडल:1, सूक्त:121}{अनुवाक:18, सूक्त:1}{अष्टक:1, अध्याय:8} |
कदि॒त्थानॄँःपात्रं᳚देवय॒तां¦श्रव॒द्गिरो॒,अङ्गि॑रसांतुर॒ण्यन् | प्रयदान॒ड्विश॒आह॒र्म्यस्यो॒¦रुक्रं᳚सते,अध्व॒रेयज॑त्रः || 1 || वर्ग:24 |
स्तम्भी᳚द्ध॒द्यांसध॒रुणं᳚प्रुषाय¦दृ॒भुर्वाजा᳚य॒द्रवि॑णं॒नरो॒गोः | अनु॑स्व॒जांम॑हि॒षस्च॑क्षत॒व्रां¦मेना॒मश्व॑स्य॒परि॑मा॒तरं॒गोः || 2 || |
नक्ष॒द्धव॑मरु॒णीःपू॒र्व्यंराट्¦तु॒रोवि॒शामङ्गि॑रसा॒मनु॒द्यून् | तक्ष॒द्वज्रं॒नियु॑तंत॒स्तम्भ॒द्द्यां¦चतु॑ष्पदे॒नर्या᳚यद्वि॒पादे᳚ || 3 || |
अ॒स्यमदे᳚स्व॒र्यं᳚दा,ऋ॒ताया¦पी᳚वृतमु॒स्रिया᳚णा॒मनी᳚कम् | यद्ध॑प्र॒सर्गे᳚त्रिक॒कुम्नि॒वर्त॒¦दप॒द्रुहो॒मानु॑षस्य॒दुरो᳚वः || 4 || |
तुभ्यं॒पयो॒यत्पि॒तरा॒वनी᳚तां॒¦राधः॑सु॒रेत॑स्तु॒रणे᳚भुर॒ण्यू | शुचि॒यत्ते॒रेक्ण॒आय॑जन्त¦सब॒र्दुघा᳚याः॒पय॑उ॒स्रिया᳚याः || 5 || |
अध॒प्रज॑ज्ञेत॒रणि᳚र्ममत्तु॒¦प्ररो᳚च्य॒स्या,उ॒षसो॒नसूरः॑ | इन्दु॒र्येभि॒राष्ट॒स्वेदु॑हव्यैः¦स्रु॒वेण॑सि॒ञ्चञ्ज॒रणा॒भिधाम॑ || 6 || वर्ग:25 |
स्वि॒ध्मायद्व॒नधि॑तिरप॒स्यात्¦सूरो᳚,अध्व॒रेपरि॒रोध॑ना॒गोः | यद्ध॑प्र॒भासि॒कृत्व्याँ॒,अनु॒द्यू¦नन᳚र्विशेप॒श्विषे᳚तु॒राय॑ || 7 || |
अ॒ष्टाम॒होदि॒वआदो॒हरी᳚,इ॒ह¦द्यु᳚म्ना॒साह॑म॒भियो᳚धा॒नउत्स᳚म् | हरिं॒यत्ते᳚म॒न्दिनं᳚दु॒क्षन्वृ॒धे¦गोर॑भस॒मद्रि॑भिर्वा॒ताप्य᳚म् || 8 || |
त्वमा᳚य॒संप्रति॑वर्तयो॒गो¦र्दि॒वो,अश्मा᳚न॒मुप॑नीत॒मृभ्वा᳚ | कुत्सा᳚य॒यत्र॑पुरुहूतव॒न्वञ्¦छुष्ण॑मन॒न्तैःप॑रि॒यासि॑व॒धैः || 9 || |
पु॒रायत्सूर॒स्तम॑सो॒,अपी᳚ते॒¦स्तम॑द्रिवःफलि॒गंहे॒तिम॑स्य | शुष्ण॑स्यचि॒त्परि॑हितं॒यदोजो᳚¦दि॒वस्परि॒सुग्र॑थितं॒तदादः॑ || 10 || |
अनु॑त्वाम॒हीपाज॑सी,अच॒क्रे¦द्यावा॒क्षामा᳚मदतामिन्द्र॒कर्म॑न् | त्वंवृ॒त्रमा॒शया᳚नंसि॒रासु॑¦म॒होवज्रे᳚णसिष्वपोव॒राहु᳚म् || 11 || वर्ग:26 |
त्वमि᳚न्द्र॒नर्यो॒याँ,अवो॒नॄन्¦तिष्ठा॒वात॑स्यसु॒युजो॒वहि॑ष्ठान् | यंते᳚का॒व्यउ॒शना᳚म॒न्दिनं॒दाद्¦वृ॑त्र॒हणं॒पार्यं᳚ततक्ष॒वज्र᳚म् || 12 || |
त्वंसूरो᳚ह॒रितो᳚रामयो॒नॄन्¦भर॑च्च॒क्रमेत॑शो॒नायमि᳚न्द्र | प्रास्य॑पा॒रंन॑व॒तिंना॒व्या᳚ना॒¦मपि॑क॒र्तम॑वर्त॒योऽय॑ज्यून् || 13 || |
त्वंनो᳚,अ॒स्या,इ᳚न्द्रदु॒र्हणा᳚याः¦पा॒हिव॑ज्रिवोदुरि॒ताद॒भीके᳚ | प्रनो॒वाजा᳚न्र॒थ्यो॒३॑(ओ॒)अश्व॑बुध्या¦नि॒षेय᳚न्धि॒श्रव॑सेसू॒नृता᳚यै || 14 || |
मासाते᳚,अ॒स्मत्सु॑म॒तिर्विद॑स॒द्¦वाज॑प्रमहः॒समिषो᳚वरन्त | आनो᳚भजमघव॒न्गोष्व॒र्यो¦मंहि॑ष्ठास्तेसध॒मादः॑स्याम || 15 || |
[122] प्रवःपांतमिति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवान्विश्वेदेवास्त्रिष्टुप् पंचमीषष्ठ्यौ विराड्रूपे | (भेदप्रयोगपक्षेतुआद्यानांषण्णांक्रमेणरुद्रमरुतउषासानक्ता विश्वेदेवाअश्विनौविश्वेदेवामित्रावरुणसिंधवोदेवताः ततोद्वयोर्विश्वेदेवाः ततोद्वयोर्मित्रावरुणौ अंत्य पंचानांविश्वेदेवाः एवं १५) |{मंडल:1, सूक्त:122}{अनुवाक:18, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
प्रवः॒पान्तं᳚रघुमन्य॒वोऽन्धो᳚¦य॒ज्ञंरु॒द्राय॑मी॒ळ्हुषे᳚भरध्वम् | दि॒वो,अ॑स्तो॒ष्यसु॑रस्यवी॒रै¦रि॑षु॒ध्येव॑म॒रुतो॒रोद॑स्योः || 1 || वर्ग:1 |
पत्नी᳚वपू॒र्वहू᳚तिंवावृ॒धध्या᳚,¦उ॒षासा॒नक्ता᳚पुरु॒धाविदा᳚ने | स्त॒रीर्नात्कं॒व्यु॑तं॒वसा᳚ना॒¦सूर्य॑स्यश्रि॒यासु॒दृशी॒हिर᳚ण्यैः || 2 || |
म॒मत्तु॑नः॒परि॑ज्मावस॒र्हा¦म॒मत्तु॒वातो᳚,अ॒पांवृष᳚ण्वान् | शि॒शी॒तमि᳚न्द्रापर्वतायु॒वंन॒¦स्तन्नो॒विश्वे᳚वरिवस्यन्तुदे॒वाः || 3 || |
उ॒तत्यामे᳚य॒शसा᳚श्वेत॒नायै॒¦व्यन्ता॒पान्तौ᳚शि॒जोहु॒वध्यै᳚ | प्रवो॒नपा᳚तम॒पांकृ॑णुध्वं॒¦प्रमा॒तरा᳚रास्पि॒नस्या॒योः || 4 || |
आवो᳚रुव॒ण्युमौ᳚शि॒जोहु॒वध्यै॒¦घोषे᳚व॒शंस॒मर्जु॑नस्य॒नंशे᳚ | प्रवः॑पू॒ष्णेदा॒वन॒आँ¦अच्छा᳚वोचेयव॒सुता᳚तिम॒ग्नेः || 5 || |
श्रु॒तंमे᳚मित्रावरुणा॒हवे॒मो¦तश्रु॑तं॒सद॑नेवि॒श्वतः॑सीम् | श्रोतु॑नः॒श्रोतु॑रातिःसु॒श्रोतुः॑¦सु॒क्षेत्रा॒सिन्धु॑र॒द्भिः || 6 || वर्ग:2 |
स्तु॒षेसावां᳚वरुणमित्ररा॒ति¦र्गवां᳚श॒तापृ॒क्षया᳚मेषुप॒ज्रे | श्रु॒तर॑थेप्रि॒यर॑थे॒दधा᳚नाः¦स॒द्यःपु॒ष्टिंनि॑रुन्धा॒नासो᳚,अग्मन् || 7 || |
अ॒स्यस्तु॑षे॒महि॑मघस्य॒राधः॒¦सचा᳚सनेम॒नहु॑षःसु॒वीराः᳚ | जनो॒यःप॒ज्रेभ्यो᳚वा॒जिनी᳚वा॒¦नश्वा᳚वतोर॒थिनो॒मह्यं᳚सू॒रिः || 8 || |
जनो॒योमि॑त्रावरुणावभि॒ध्रु¦ग॒पोनवां᳚सु॒नोत्य॑क्ष्णया॒ध्रुक् | स्व॒यंसयक्ष्मं॒हृद॑ये॒निध॑त्त॒¦आप॒यदीं॒होत्रा᳚भिरृ॒तावा᳚ || 9 || |
सव्राध॑तो॒नहु॑षो॒दंसु॑जूतः॒¦शर्ध॑स्तरोन॒रांगू॒र्तश्र॑वाः | विसृ॑ष्टरातिर्यातिबाळ्ह॒सृत्वा॒¦विश्वा᳚सुपृ॒त्सुसद॒मिच्छूरः॑ || 10 || |
अध॒ग्मन्ता॒नहु॑षो॒हवं᳚सू॒रेः¦श्रोता᳚राजानो,अ॒मृत॑स्यमन्द्राः | न॒भो॒जुवो॒यन्नि॑र॒वस्य॒राधः॒¦प्रश॑स्तयेमहि॒नारथ॑वते || 11 || वर्ग:3 |
ए॒तंशर्धं᳚धाम॒यस्य॑सू॒रे¦रित्य॑वोच॒न्दश॑तयस्य॒नंशे᳚ | द्यु॒म्नानि॒येषु॑व॒सुता᳚तीरा॒रन्¦विश्वे᳚सन्वन्तुप्रभृ॒थेषु॒वाज᳚म् || 12 || |
मन्दा᳚महे॒दश॑तयस्यधा॒से¦र्द्विर्यत्पञ्च॒बिभ्र॑तो॒यन्त्यन्ना᳚ | किमि॒ष्टाश्व॑इ॒ष्टर॑श्मिरे॒त¦ई᳚शा॒नास॒स्तरु॑षऋञ्जते॒नॄन् || 13 || |
हिर᳚ण्यकर्णंमणिग्रीव॒मर्ण॒¦स्तन्नो॒विश्वे᳚वरिवस्यन्तुदे॒वाः | अ॒र्योगिरः॑स॒द्यआज॒ग्मुषी॒¦रोस्राश्चा᳚कन्तू॒भये᳚ष्व॒स्मे || 14 || |
च॒त्वारो᳚मामश॒र्शार॑स्य॒शिश्व॒¦स्त्रयो॒राज्ञ॒आय॑वसस्यजि॒ष्णोः | रथो᳚वांमित्रावरुणादी॒र्घाप्साः॒¦स्यूम॑गभस्तिः॒सूरो॒नाद्यौ᳚त् || 15 || |
[123] पृथूरथइति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानुषास्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:123}{अनुवाक:18, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
पृ॒थूरथो॒दक्षि॑णाया,अयो॒ज्यै¦नं᳚दे॒वासो᳚,अ॒मृता᳚सो,अस्थुः | कृ॒ष्णादुद॑स्थाद॒र्या॒३॑(आ॒)विहा᳚या॒¦श्चिकि॑त्सन्ती॒मानु॑षाय॒क्षया᳚य || 1 || वर्ग:4 |
पूर्वा॒विश्व॑स्मा॒द्भुव॑नादबोधि॒¦जय᳚न्ती॒वाजं᳚बृह॒तीसनु॑त्री | उ॒च्चाव्य॑ख्यद्युव॒तिःपु॑न॒र्भू¦रोषा,अ॑गन्प्रथ॒मापू॒र्वहू᳚तौ || 2 || |
यद॒द्यभा॒गंवि॒भजा᳚सि॒नृभ्य॒¦उषो᳚देविमर्त्य॒त्रासु॑जाते | दे॒वोनो॒,अत्र॑सवि॒तादमू᳚ना॒,¦अना᳚गसोवोचति॒सूर्या᳚य || 3 || |
गृ॒हंगृ॑हमह॒नाया॒त्यच्छा᳚¦दि॒वेदि॑वे॒,अधि॒नामा॒दधा᳚ना | सिषा᳚सन्तीद्योत॒नाशश्व॒दागा॒¦दग्र॑मग्र॒मिद्भ॑जते॒वसू᳚नाम् || 4 || |
भग॑स्य॒स्वसा॒वरु॑णस्यजा॒मि¦रुषः॑सूनृतेप्रथ॒माज॑रस्व | प॒श्चासद॑घ्या॒यो,अ॒घस्य॑धा॒ता¦जये᳚म॒तंदक्षि॑णया॒रथे᳚न || 5 || |
उदी᳚रतांसू॒नृता॒,उत्पुरं᳚धी॒¦रुद॒ग्नयः॑शुशुचा॒नासो᳚,अस्थुः | स्पा॒र्हावसू᳚नि॒तम॒साप॑गूळ्हा॒¦विष्कृ᳚ण्वन्त्यु॒षसो᳚विभा॒तीः || 6 || वर्ग:5 |
अपा॒न्यदेत्य॒भ्य१॑(अ॒)न्यदे᳚ति॒¦विषु॑रूपे॒,अह॑नी॒संच॑रेते | प॒रि॒क्षितो॒स्तमो᳚,अ॒न्यागुहा᳚क॒¦रद्यौ᳚दु॒षाःशोशु॑चता॒रथे᳚न || 7 || |
स॒दृशी᳚र॒द्यस॒दृशी॒रिदु॒श्वो¦दी॒र्घंस॑चन्ते॒वरु॑णस्य॒धाम॑ | अ॒न॒व॒द्यास्त्रिं॒शतं॒योज॑ना॒¦न्येकै᳚का॒क्रतुं॒परि॑यन्तिस॒द्यः || 8 || |
जा॒न॒त्यह्नः॑प्रथ॒मस्य॒नाम॑¦शु॒क्राकृ॒ष्णाद॑जनिष्टश्विती॒ची | ऋ॒तस्य॒योषा॒नमि॑नाति॒धामा¦ह॑रहर्निष्कृ॒तमा॒चर᳚न्ती || 9 || |
क॒न्ये᳚वत॒न्वा॒३॑(आ॒)शाश॑दानाँ॒¦एषि॑देविदे॒वमिय॑क्षमाणम् | सं॒स्मय॑मानायुव॒तिःपु॒रस्ता᳚¦दा॒विर्वक्षां᳚सिकृणुषेविभा॒ती || 10 || |
सु॒सं॒का॒शामा॒तृमृ॑ष्टेव॒योषा॒¦विस्त॒न्वं᳚कृणुषेदृ॒शेकम् | भ॒द्रात्वमु॑षोवित॒रंव्यु॑च्छ॒¦नतत्ते᳚,अ॒न्या,उ॒षसो᳚नशन्त || 11 || वर्ग:6 |
अश्वा᳚वती॒र्गोम॑तीर्वि॒श्ववा᳚रा॒¦यत॑मानार॒श्मिभिः॒सूर्य॑स्य | परा᳚च॒यन्ति॒पुन॒राच॑यन्ति¦भ॒द्रानाम॒वह॑माना,उ॒षासः॑ || 12 || |
ऋ॒तस्य॑र॒श्मिम॑नु॒यच्छ॑माना¦भ॒द्रम्भ॑द्रं॒क्रतु॑म॒स्मासु॑धेहि | उषो᳚नो,अ॒द्यसु॒हवा॒व्यु॑च्छा॒¦ऽस्मासु॒रायो᳚म॒घव॑त्सुचस्युः || 13 || |
[124] उषा उच्छंतीति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानुषास्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:124}{अनुवाक:18, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
उ॒षा,उ॒च्छन्ती᳚समिधा॒ने,अ॒ग्ना¦,उ॒द्यन्त्सूर्य॑उर्वि॒याज्योति॑रश्रेत् | दे॒वोनो॒,अत्र॑सवि॒तान्वर्थं॒¦प्रासा᳚वीद्द्वि॒पत्प्रचतु॑ष्पदि॒त्यै || 1 || वर्ग:7 |
अमि॑नती॒दैव्या᳚निव्र॒तानि॑¦प्रमिन॒तीम॑नु॒ष्या᳚यु॒गानि॑ | ई॒युषी᳚णामुप॒माशश्व॑तीना¦मायती॒नांप्र॑थ॒मोषाव्य॑द्यौत् || 2 || |
ए॒षादि॒वोदु॑हि॒ताऽप्रत्य॑दर्शि॒¦ज्योति॒र्वसा᳚नासम॒नापु॒रस्ता᳚त् | ऋ॒तस्य॒पन्था॒मन्वे᳚तिसा॒धु¦प्र॑जान॒तीव॒नदिशो᳚मिनाति || 3 || |
उपो᳚,अदर्शिशु॒न्ध्युवो॒नवक्षो᳚¦नो॒धा,इ॑वा॒विर॑कृतप्रि॒याणि॑ | अ॒द्म॒सन्नस॑स॒तोबो॒धय᳚न्ती¦शश्वत्त॒मागा॒त्पुन॑रे॒युषी᳚णाम् || 4 || |
पूर्वे॒,अर्धे॒रज॑सो,अ॒प्त्यस्य॒¦गवां॒जनि॑त्र्यकृत॒प्रके॒तुम् | व्यु॑प्रथतेवित॒रंवरी᳚य॒¦ओभापृ॒णन्ती᳚पि॒त्रोरु॒पस्था᳚ || 5 || |
ए॒वेदे॒षापु॑रु॒तमा᳚दृ॒शेकं¦नाजा᳚मिं॒नपरि॑वृणक्तिजा॒मिम् | अ॒रे॒पसा᳚त॒न्वा॒३॑(आ॒)शाश॑दाना॒¦नार्भा॒दीष॑ते॒नम॒होवि॑भा॒ती || 6 || वर्ग:8 |
अ॒भ्रा॒तेव॑पुं॒सए᳚तिप्रती॒ची¦ग॑र्ता॒रुगि॑वस॒नये॒धना᳚नाम् | जा॒येव॒पत्य॑उश॒तीसु॒वासा᳚,¦उ॒षाह॒स्रेव॒निरि॑णीते॒,अप्सः॑ || 7 || |
स्वसा॒स्वस्रे॒ज्याय॑स्यै॒योनि॑मारै॒¦गपै᳚त्यस्याःप्रति॒चक्ष्ये᳚व | व्यु॒च्छन्ती᳚र॒श्मिभिः॒सूर्य॑स्या॒ञ्¦ज्य᳚ङ्क्तेसमन॒गा,इ॑व॒व्राः || 8 || |
आ॒सांपूर्वा᳚सा॒मह॑सु॒स्वसॄ᳚णा॒¦मप॑रा॒पूर्वा᳚म॒भ्ये᳚तिप॒श्चात् | ताःप्र॑त्न॒वन्नव्य॑सीर्नू॒नम॒स्मे¦रे॒वदु॑च्छन्तुसु॒दिना᳚,उ॒षासः॑ || 9 || |
प्रबो᳚धयोषःपृण॒तोम॑घो॒¦न्यबु॑ध्यमानाःप॒णयः॑ससन्तु | रे॒वदु॑च्छम॒घव॑द्भ्योमघोनि¦रे॒वत्स्तो॒त्रेसू᳚नृतेजा॒रय᳚न्ती || 10 || |
अवे॒यम॑श्वैद्युव॒तिःपु॒रस्ता᳚द्¦यु॒ङ्क्तेगवा᳚मरु॒णाना॒मनी᳚कम् | विनू॒नमु॑च्छा॒दस॑ति॒प्रके॒तु¦र्गृ॒हंगृ॑ह॒मुप॑तिष्ठाते,अ॒ग्निः || 11 || वर्ग:9 |
उत्ते॒वय॑श्चिद्वस॒तेर॑पप्त॒न्¦नर॑श्च॒येपि॑तु॒भाजो॒व्यु॑ष्टौ | अ॒मास॒तेव॑हसि॒भूरि॑वा॒म¦मुषो᳚देविदा॒शुषे॒मर्त्या᳚य || 12 || |
अस्तो᳚ढ्वंस्तोम्या॒ब्रह्म॑णा॒मे¦ऽवी᳚वृधध्वमुश॒तीरु॑षासः | यु॒ष्माकं᳚देवी॒रव॑सासनेम¦सह॒स्रिणं᳚चश॒तिनं᳚च॒वाज᳚म् || 13 || |
[125] प्रातारत्नमिति सप्तर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवान्त्स्वनयस्यदानस्तुतिस्त्रिष्टुप् चतुर्थीपंचम्यौजगत्यौ | (स्वनयनाम्नोराज्ञोदानस्तुतिरतःस्वनयोदेवता) |{मंडल:1, सूक्त:125}{अनुवाक:18, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
प्रा॒तारत्नं᳚प्रात॒रित्वा᳚दधाति॒¦तंचि॑कि॒त्वान्प्र॑ति॒गृह्या॒निध॑त्ते | तेन॑प्र॒जांव॒र्धय॑मान॒आयू᳚¦रा॒यस्पोषे᳚णसचतेसु॒वीरः॑ || 1 || वर्ग:10 |
सु॒गुर॑सत्सुहिर॒ण्यःस्वश्वो᳚¦बृ॒हद॑स्मै॒वय॒इन्द्रो᳚दधाति | यस्त्वा॒यन्तं॒वसु॑नाऽप्रातरित्वो¦मु॒क्षीज॑येव॒पदि॑मुत्सि॒नाति॑ || 2 || |
आय॑म॒द्यसु॒कृतं᳚प्रा॒तरि॒च्छ¦न्नि॒ष्टेःपु॒त्रंवसु॑मता॒रथे᳚न | अं॒शोःसु॒तंपा᳚ययमत्स॒रस्य॑¦क्ष॒यद्वी᳚रंवर्धयसू॒नृता᳚भिः || 3 || |
उप॑क्षरन्ति॒सिन्ध॑वोमयो॒भुव॑¦ईजा॒नंच॑य॒क्ष्यमा᳚णंचधे॒नवः॑ | पृ॒णन्तं᳚च॒पपु॑रिंचश्रव॒स्यवो᳚¦घृ॒तस्य॒धारा॒,उप॑यन्तिवि॒श्वतः॑ || 4 || |
नाक॑स्यपृ॒ष्ठे,अधि॑तिष्ठतिश्रि॒तो¦यःपृ॒णाति॒सह॑दे॒वेषु॑गच्छति | तस्मा॒,आपो᳚घृ॒तम॑र्षन्ति॒सिन्ध॑व॒¦स्तस्मा᳚,इ॒यंदक्षि॑णापिन्वते॒सदा᳚ || 5 || |
दक्षि॑णावता॒मिदि॒मानि॑चि॒त्रा¦दक्षि॑णावतांदि॒विसूर्या᳚सः | दक्षि॑णावन्तो,अ॒मृतं᳚भजन्ते॒¦दक्षि॑णावन्तः॒प्रति॑रन्त॒आयुः॑ || 6 || |
मापृ॒णन्तो॒दुरि॑त॒मेन॒आर॒न्¦माजा᳚रिषुःसू॒रयः॑सुव्र॒तासः॑ | अ॒न्यस्तेषां᳚परि॒धिर॑स्तु॒कश्चि॒¦दपृ॑णन्तम॒भिसंय᳚न्तु॒शोकाः᳚ || 7 || |
[126] अमंदानिति सप्तर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवानृषिः आगधितेत्यस्यभावयव्यऋषिः रोमशादेवता उपोपमइत्यस्यरोमशाऋषिकास्वनयोदेवतात्रिष्टुप् अंत्येद्वेअनुष्टुभौ | (स्वनयएवभावयव्यशब्देनोच्यते रोमशास्वनयभार्याअंत्येद्वेऋचौतयोः परस्परंसंवादः आद्याभिःपंचभिर्दानुतष्टः कक्षीवान्भावयव्यमस्तौत् ततश्चसएवदेवता) |{मंडल:1, सूक्त:126}{अनुवाक:18, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
अम᳚न्दा॒न्त्स्तोमा॒न्प्रभ॑रेमनी॒षा¦सिन्धा॒वधि॑क्षिय॒तोभा॒व्यस्य॑ | योमे᳚स॒हस्र॒ममि॑मीतस॒वा¦न॒तूर्तो॒राजा॒श्रव॑इ॒च्छमा᳚नः || 1 || वर्ग:11 |
श॒तंराज्ञो॒नाध॑मानस्यनि॒ष्काञ्¦छ॒तमश्वा॒न्प्रय॑तान्त्स॒द्यआद᳚म् | श॒तंक॒क्षीवाँ॒,असु॑रस्य॒गोनां᳚¦दि॒विश्रवो॒ऽजर॒मात॑तान || 2 || |
उप॑माश्या॒वाःस्व॒नये᳚नद॒त्ता¦व॒धूम᳚न्तो॒दश॒रथा᳚सो,अस्थुः | ष॒ष्टिःस॒हस्र॒मनु॒गव्य॒मागा॒त्¦सन॑त्क॒क्षीवाँ᳚,अभिपि॒त्वे,अह्ना᳚म् || 3 || |
च॒त्वा॒रिं॒शद्दश॑रथस्य॒शोणाः᳚¦स॒हस्र॒स्याग्रे॒श्रेणिं᳚नयन्ति | म॒द॒च्युतः॑कृश॒नाव॑तो॒,अत्या᳚न्¦क॒क्षीव᳚न्त॒उद॑मृक्षन्तप॒ज्राः || 4 || |
पूर्वा॒मनु॒प्रय॑ति॒माद॑देव॒¦स्त्रीन्यु॒क्ताँ,अ॒ष्टाव॒रिधा᳚यसो॒गाः | सु॒बन्ध॑वो॒येवि॒श्या᳚,इव॒व्रा¦,अन॑स्वन्तः॒श्रव॒ऐष᳚न्तप॒ज्राः || 5 || |
आग॑धिता॒परि॑गधिता॒¦याक॑शी॒केव॒जङ्ग॑हे | ददा᳚ति॒मह्यं॒यादु॑री॒¦याशू᳚नांभो॒ज्या᳚श॒ता || 6 || |
उपो᳚पमे॒परा᳚मृश॒¦मामे᳚द॒भ्राणि॑मन्यथाः | सर्वा॒हम॑स्मिरोम॒शा¦ग॒न्धारी᳚णामिवावि॒का || 7 || |
[127] अग्निहोतारमित्येकादशर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिःपरुच्छेपोऽग्निरत्यष्टिः षष्ट्यतिधृतिः |{मंडल:1, सूक्त:127}{अनुवाक:19, सूक्त:1}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
अ॒ग्निंहोता᳚रंमन्ये॒दास्व᳚न्तं॒¦वसुं᳚सू॒नुंसह॑सोजा॒तवे᳚दसं॒¦विप्रं॒नजा॒तवे᳚दसम् | यऊ॒र्ध्वया᳚स्वध्व॒रो¦दे॒वोदे॒वाच्या᳚कृ॒पा | घृ॒तस्य॒विभ्रा᳚ष्टि॒मनु॑वष्टिशो॒चिषा॒ऽऽ¦जुह्वा᳚नस्यस॒र्पिषः॑ || 1 || वर्ग:12 |
यजि॑ष्ठंत्वा॒यज॑मानाहुवेम॒¦ज्येष्ठ॒मङ्गि॑रसांविप्र॒मन्म॑भि॒¦र्विप्रे᳚भिःशुक्र॒मन्म॑भिः | परि॑ज्मानमिव॒द्यां¦होता᳚रंचर्षणी॒नाम् | शो॒चिष्के᳚शं॒वृष॑णं॒यमि॒माविशः॒¦प्राव᳚न्तुजू॒तये॒विशः॑ || 2 || |
सहिपु॒रूचि॒दोज॑सावि॒रुक्म॑ता॒¦दीद्या᳚नो॒भव॑तिद्रुहंत॒रः¦प॑र॒शुर्नद्रु॑हंत॒रः | वी॒ळुचि॒द्यस्य॒समृ॑तौ॒¦श्रुव॒द्वने᳚व॒यत्स्थि॒रम् | निः॒षह॑माणोयमते॒नाय॑ते¦धन्वा॒सहा॒नाय॑ते || 3 || |
दृ॒ळ्हाचि॑दस्मा॒,अनु॑दु॒र्यथा᳚वि॒दे¦तेजि॑ष्ठाभिर॒रणि॑भिर्दा॒ष्ट्यव॑से॒¦ऽग्नये᳚दा॒ष्ट्यव॑से | प्रयःपु॒रूणि॒गाह॑ते॒¦तक्ष॒द्वने᳚वशो॒चिषा᳚ | स्थि॒राचि॒दन्ना॒निरि॑णा॒त्योज॑सा॒¦निस्थि॒राणि॑चि॒दोज॑सा || 4 || |
तम॑स्यपृ॒क्षमुप॑रासुधीमहि॒¦नक्तं॒यःसु॒दर्श॑तरो॒दिवा᳚तरा॒¦दप्रा᳚युषे॒दिवा᳚तरात् | आद॒स्यायु॒र्ग्रभ॑णवद्¦वी॒ळुशर्म॒नसू॒नवे᳚ | भ॒क्तमभ॑क्त॒मवो॒व्यन्तो᳚,अ॒जरा᳚,¦अ॒ग्नयो॒व्यन्तो᳚,अ॒जराः᳚ || 5 || |
सहिशर्धो॒नमारु॑तंतुवि॒ष्वणि॒¦रप्न॑स्वतीषू॒र्वरा᳚स्वि॒ष्टनि॒¦रार्त॑नास्वि॒ष्टनिः॑ | आद॑द्ध॒व्यान्या᳚द॒दि¦र्य॒ज्ञस्य॑के॒तुर॒र्हणा᳚ | अध॑स्मास्य॒हर्ष॑तो॒हृषी᳚वतो॒¦विश्वे᳚जुषन्त॒पन्थां॒नरः॑शु॒भेनपन्था᳚म् || 6 || वर्ग:13 |
द्वि॒तायदीं᳚की॒स्तासो᳚,अ॒भिद्य॑वो¦नम॒स्यन्त॑उप॒वोच᳚न्त॒भृग॑वो¦म॒थ्नन्तो᳚दा॒शाभृग॑वः | अ॒ग्निरी᳚शे॒वसू᳚नां॒¦शुचि॒र्योध॒र्णिरे᳚षाम् | प्रि॒याँ,अ॑पि॒धीँर्व॑निषीष्ट॒मेधि॑र॒¦आव॑निषीष्ट॒मेधि॑रः || 7 || |
विश्वा᳚सांत्वावि॒शांपतिं᳚हवामहे॒¦सर्वा᳚सांसमा॒नंदम्प॑तिंभु॒जे¦स॒त्यगि᳚र्वाहसंभु॒जे | अति॑थिं॒मानु॑षाणां¦पि॒तुर्नयस्या᳚स॒या | अ॒मीच॒विश्वे᳚,अ॒मृता᳚स॒आवयो᳚¦ह॒व्यादे॒वेष्वावयः॑ || 8 || |
त्वम॑ग्ने॒सह॑सा॒सह᳚न्तमः¦शु॒ष्मिन्त॑मोजायसेदे॒वता᳚तये¦र॒यिर्नदे॒वता᳚तये | शु॒ष्मिन्त॑मो॒हिते॒मदो᳚¦द्यु॒म्निन्त॑मउ॒तक्रतुः॑ | अध॑स्माते॒परि॑चरन्त्यजर¦श्रुष्टी॒वानो॒नाज॑र || 9 || |
प्रवो᳚म॒हेसह॑सा॒सह॑स्वत¦उष॒र्बुधे᳚पशु॒षेनाग्नये॒¦स्तोमो᳚बभूत्व॒ग्नये᳚ | प्रति॒यदीं᳚ह॒विष्मा॒न्¦विश्वा᳚सु॒क्षासु॒जोगु॑वे | अग्रे᳚रे॒भोनज॑रतऋषू॒णां¦जूर्णि॒र्होत॑ऋषू॒णाम् || 10 || |
सनो॒नेदि॑ष्ठं॒ददृ॑शान॒आभ॒रा¦ग्ने᳚दे॒वेभिः॒सच॑नाःसुचे॒तुना᳚¦म॒होरा॒यःसु॑चे॒तुना᳚ | महि॑शविष्ठनस्कृधि¦सं॒चक्षे᳚भु॒जे,अ॒स्यै | महि॑स्तो॒तृभ्यो᳚मघवन्त्सु॒वीर्यं॒¦मथी᳚रु॒ग्रोनशव॑सा || 11 || |
[128] अयंजायतेत्यष्टर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिःपरुच्छेपोग्निरत्यष्टिः |{मंडल:1, सूक्त:128}{अनुवाक:19, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
अ॒यंजा᳚यत॒मनु॑षो॒धरी᳚मणि॒¦होता॒यजि॑ष्ठउ॒शिजा॒मनु᳚व्र॒त¦म॒ग्निःस्वमनु᳚व्र॒तम् | वि॒श्वश्रु॑ष्टिःसखीय॒ते¦र॒यिरि॑वश्रवस्य॒ते | अद॑ब्धो॒होता॒निष॑ददि॒ळस्प॒दे¦परि॑वीतइ॒ळस्प॒दे || 1 || वर्ग:14 |
तंय॑ज्ञ॒साध॒मपि॑वातयाम¦स्यृ॒तस्य॑प॒थानम॑साह॒विष्म॑ता¦दे॒वता᳚ताह॒विष्म॑ता | सन॑ऊ॒र्जामु॒पाभृ॑¦त्य॒याकृ॒पानजू᳚र्यति | यंमा᳚त॒रिश्वा॒मन॑वेपरा॒वतो᳚¦दे॒वंभाःप॑रा॒वतः॑ || 2 || |
एवे᳚नस॒द्यःपर्ये᳚ति॒पार्थि॑वं¦मुहु॒र्गीरेतो᳚वृष॒भःकनि॑क्रद॒द्¦दध॒द्रेतः॒कनि॑क्रदत् | श॒तंचक्षा᳚णो,अ॒क्षभि॑¦र्दे॒वोवने᳚षुतु॒र्वणिः॑ | सदो॒दधा᳚न॒उप॑रेषु॒सानु॑¦ष्व॒ग्निःपरे᳚षु॒सानु॑षु || 3 || |
ससु॒क्रतुः॑पु॒रोहि॑तो॒दमे᳚दमे॒¦ऽग्निर्य॒ज्ञस्या᳚ध्व॒रस्य॑चेतति॒¦क्रत्वा᳚य॒ज्ञस्य॑चेतति | क्रत्वा᳚वे॒धा,इ॑षूय॒ते¦विश्वा᳚जा॒तानि॑पस्पशे | यतो᳚घृत॒श्रीरति॑थि॒रजा᳚यत॒¦वह्नि᳚र्वे॒धा,अजा᳚यत || 4 || |
क्रत्वा॒यद॑स्य॒तवि॑षीषुपृ॒ञ्चते॒¦ऽग्नेरवे᳚णम॒रुतां॒नभो॒ज्ये᳚¦षि॒राय॒नभो॒ज्या᳚ | सहिष्मा॒दान॒मिन्व॑ति॒¦वसू᳚नांचम॒ज्मना᳚ | सन॑स्त्रासतेदुरि॒ताद॑भि॒ह्रुतः॒¦शंसा᳚द॒घाद॑भि॒ह्रुतः॑ || 5 || |
विश्वो॒विहा᳚या,अर॒तिर्वसु॑र्दधे॒¦हस्ते॒दक्षि॑णेत॒रणि॒र्नशि॑श्रथ¦च्छ्रव॒स्यया॒नशि॑श्रथत् | विश्व॑स्मा॒,इदि॑षुध्य॒ते¦दे᳚व॒त्राह॒व्यमोहि॑षे | विश्व॑स्मा॒,इत्सु॒कृते॒वार॑मृण्व¦त्य॒ग्निर्द्वारा॒व्यृ᳚ण्वति || 6 || वर्ग:15 |
समानु॑षेवृ॒जने॒शंत॑मोहि॒तो॒३॑(ओ॒)¦ऽग्निर्य॒ज्ञेषु॒जेन्यो॒नवि॒श्पतिः॑¦प्रि॒योय॒ज्ञेषु॑वि॒श्पतिः॑ | सह॒व्यामानु॑षाणा¦मि॒ळाकृ॒तानि॑पत्यते | सन॑स्त्रासते॒वरु॑णस्यधू॒र्ते¦र्म॒होदे॒वस्य॑धू॒र्तेः || 7 || |
अ॒ग्निंहोता᳚रमीळते॒वसु॑धितिं¦प्रि॒यंचेति॑ष्ठमर॒तिंन्ये᳚रिरे¦हव्य॒वाहं॒न्ये᳚रिरे | वि॒श्वायुं᳚वि॒श्ववे᳚दसं॒¦होता᳚रंयज॒तंक॒विम् | दे॒वासो᳚र॒ण्वमव॑सेवसू॒यवो᳚¦गी॒र्भीर॒ण्वंव॑सू॒यवः॑ || 8 || |
[129] यंत्वंरथमित्येकादशर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपइंद्रः षष्ट्याइंदुरत्यष्टिः अष्टमीनवम्यावतिशक्वर्यावेकादश्यष्टिः |{मंडल:1, सूक्त:129}{अनुवाक:19, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
यंत्वंरथ॑मिन्द्रमे॒धसा᳚तये¦ऽपा॒कासन्त॑मिषिरप्र॒णय॑सि॒¦प्रान॑वद्य॒नय॑सि | स॒द्यश्चि॒त्तम॒भिष्ट॑ये॒¦करो॒वश॑श्चवा॒जिन᳚म् | सास्माक॑मनवद्यतूतुजानवे॒धसा᳚¦मि॒मांवाचं॒नवे॒धसा᳚म् || 1 || वर्ग:16 |
सश्रु॑धि॒यःस्मा॒पृत॑नासु॒कासु॑चिद्¦द॒क्षाय्य॑इन्द्र॒भर॑हूतये॒नृभि॒¦रसि॒प्रतू᳚र्तये॒नृभिः॑ | यःशूरैः॒स्व१॑(अः॒)सनि॑ता॒¦योविप्रै॒र्वाजं॒तरु॑ता | तमी᳚शा॒नास॑इरधन्तवा॒जिनं᳚¦पृ॒क्षमत्यं॒नवा॒जिन᳚म् || 2 || |
द॒स्मोहिष्मा॒वृष॑णं॒पिन्व॑सि॒त्वचं॒¦कंचि॑द्यावीर॒ररुं᳚शूर॒मर्त्यं᳚¦परिवृ॒णक्षि॒मर्त्य᳚म् | इन्द्रो॒ततुभ्यं॒तद्दि॒वे¦तद्रु॒द्राय॒स्वय॑शसे | मि॒त्राय॑वोचं॒वरु॑णायस॒प्रथः॑¦सुमृळी॒काय॑स॒प्रथः॑ || 3 || |
अ॒स्माकं᳚व॒इन्द्र॑मुश्मसी॒ष्टये॒¦सखा᳚यंवि॒श्वायुं᳚प्रा॒सहं॒युजं॒¦वाजे᳚षुप्रा॒सहं॒युज᳚म् | अ॒स्माकं॒ब्रह्मो॒तये¦ऽवा᳚पृ॒त्सुषु॒कासु॑चित् | न॒हित्वा॒शत्रुः॒स्तर॑तेस्तृ॒णोषि॒यं¦विश्वं॒शत्रुं᳚स्तृ॒णोषि॒यम् || 4 || |
निषून॒माति॑मतिं॒कय॑स्यचि॒त्¦तेजि॑ष्ठाभिर॒रणि॑भि॒र्नोतिभि॑¦रु॒ग्राभि॑रुग्रो॒तिभिः॑ | नेषि॑णो॒यथा᳚पु॒रा¦ने॒नाःशू᳚र॒मन्य॑से | विश्वा᳚निपू॒रोरप॑पर्षि॒वह्नि॑¦रा॒सावह्नि᳚र्नो॒,अच्छ॑ || 5 || |
प्रतद्वो᳚चेयं॒भव्या॒येन्द॑वे॒¦हव्यो॒नयइ॒षवा॒न्मन्म॒रेज॑ति¦रक्षो॒हामन्म॒रेज॑ति | स्व॒यंसो,अ॒स्मदानि॒दो¦व॒धैर॑जेतदुर्म॒तिम् | अव॑स्रवेद॒घशं᳚सोऽवत॒र¦मव॑क्षु॒द्रमि॑वस्रवेत् || 6 || वर्ग:17 |
व॒नेम॒तद्धोत्र॑याचि॒तन्त्या᳚¦व॒नेम॑र॒यिंर॑यिवःसु॒वीर्यं᳚¦र॒ण्वंसन्तं᳚सु॒वीर्य᳚म् | दु॒र्मन्मा᳚नंसु॒मन्तु॑भि॒¦रेमि॒षापृ॑चीमहि | आस॒त्याभि॒रिन्द्रं᳚द्यु॒म्नहू᳚तिभि॒¦र्यज॑त्रंद्यु॒म्नहू᳚तिभिः || 7 || |
प्रप्रा᳚वो,अ॒स्मेस्वय॑शोभिरू॒ती¦प॑रिव॒र्गइन्द्रो᳚दुर्मती॒नां¦दरी᳚मन्दुर्मती॒नाम् | स्व॒यंसारि॑ष॒यध्यै॒¦यान॑उपे॒षे,अ॒त्रैः | ह॒तेम॑स॒न्नव॑क्षति¦क्षि॒प्ताजू॒र्णिर्नव॑क्षति || 8 || |
त्वंन॑इन्द्ररा॒यापरी᳚णसा¦या॒हिप॒थाँ,अ॑ने॒हसा᳚¦पु॒रोया᳚ह्यर॒क्षसा᳚ | सच॑स्वनःपरा॒कआ¦सच॑स्वास्तमी॒कआ | पा॒हिनो᳚दू॒रादा॒राद॒भिष्टि॑भिः॒¦सदा᳚पाह्य॒भिष्टि॑भिः || 9 || |
त्वंन॑इन्द्ररा॒यातरू᳚षसो॒ऽ¦ग्रंचि॑त्त्वामहि॒मास॑क्ष॒दव॑से¦म॒हेमि॒त्रंनाव॑से | ओजि॑ष्ठ॒त्रात॒रवि॑ता॒¦रथं॒कंचि॑दमर्त्य | अ॒न्यम॒स्मद्रि॑रिषेः॒कंचि॑दद्रिवो॒¦रिरि॑क्षन्तंचिदद्रिवः || 10 || |
पा॒हिन॑इन्द्रसुष्टुतस्रि॒धो᳚¦ऽवया॒तासद॒मिद्दु᳚र्मती॒नां¦दे॒वःसन्दु᳚र्मती॒नाम् | ह॒न्तापा॒पस्य॑र॒क्षस॑¦स्त्रा॒ताविप्र॑स्य॒माव॑तः | अधा॒हित्वा᳚जनि॒ताजीज॑नद्वसो¦रक्षो॒हणं᳚त्वा॒जीज॑नद्वसो || 11 || |
[130] एंद्रयाहीतिदशर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपइंद्रोत्यष्टिरंत्यात्रिष्टुप् | (अष्टिरित्येवप्रयोगः साधुः)|{मंडल:1, सूक्त:130}{अनुवाक:19, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
एन्द्र॑या॒ह्युप॑नःपरा॒वतो॒¦नायमच्छा᳚वि॒दथा᳚नीव॒सत्प॑ति॒¦रस्तं॒राजे᳚व॒सत्प॑तिः | हवा᳚महेत्वाव॒यं¦प्रय॑स्वन्तःसु॒तेसचा᳚ | पु॒त्रासो॒नपि॒तरं॒वाज॑सातये॒¦मंहि॑ष्ठं॒वाज॑सातये || 1 || वर्ग:18 |
पिबा॒सोम॑मिन्द्रसुवा॒नमद्रि॑भिः॒¦कोशे᳚नसि॒क्तम॑व॒तंनवंस॑ग¦स्तातृषा॒णोनवंस॑गः | मदा᳚यहर्य॒ताय॑ते¦तु॒विष्ट॑माय॒धाय॑से | आत्वा᳚यच्छन्तुह॒रितो॒नसूर्य॒¦महा॒विश्वे᳚व॒सूर्य᳚म् || 2 || |
अवि᳚न्दद्दि॒वोनिहि॑तं॒गुहा᳚नि॒धिं¦वेर्नगर्भं॒परि॑वीत॒मश्म᳚¦न्यन॒न्ते,अ॒न्तरश्म॑नि | व्र॒जंव॒ज्रीगवा᳚मिव॒¦सिषा᳚स॒न्नङ्गि॑रस्तमः | अपा᳚वृणो॒दिष॒इन्द्रः॒परी᳚वृता॒¦द्वार॒इषः॒परी᳚वृताः || 3 || |
दा॒दृ॒हा॒णोवज्र॒मिन्द्रो॒गभ॑स्त्योः॒,¦क्षद्मे᳚वति॒ग्ममस॑नाय॒संश्य॑¦दहि॒हत्या᳚य॒संश्य॑त् | सं॒वि॒व्या॒नओज॑सा॒¦शवो᳚भिरिन्द्रम॒ज्मना᳚ | तष्टे᳚ववृ॒क्षंव॒निनो॒निवृ॑श्चसि¦पर॒श्वेव॒निवृ॑श्चसि || 4 || |
त्वंवृथा᳚न॒द्य॑इन्द्र॒सर्त॒वे¦ऽच्छा᳚समु॒द्रम॑सृजो॒रथाँ᳚,इव¦वाजय॒तोरथाँ᳚,इव | इ॒तऊ॒तीर॑युञ्जत¦समा॒नमर्थ॒मक्षि॑तम् | धे॒नूरि॑व॒मन॑वेवि॒श्वदो᳚हसो॒¦जना᳚यवि॒श्वदो᳚हसः || 5 || |
इ॒मांते॒वाचं᳚वसू॒यन्त॑आ॒यवो॒¦रथं॒नधीरः॒स्वपा᳚,अतक्षिषुः¦सु॒म्नाय॒त्वाम॑तक्षिषुः | शु॒म्भन्तो॒जेन्यं᳚यथा॒¦वाजे᳚षुविप्रवा॒जिन᳚म् | अत्य॑मिव॒शव॑सेसा॒तये॒धना॒¦विश्वा॒धना᳚निसा॒तये᳚ || 6 || वर्ग:19 |
भि॒नत्पुरो᳚नव॒तिमि᳚न्द्रपू॒रवे॒¦दिवो᳚दासाय॒महि॑दा॒शुषे᳚नृतो॒¦वज्रे᳚णदा॒शुषे᳚नृतो | अ॒ति॒थि॒ग्वाय॒शम्ब॑रं¦गि॒रेरु॒ग्रो,अवा᳚भरत् | म॒होधना᳚नि॒दय॑मान॒ओज॑सा॒¦विश्वा॒धना॒न्योज॑सा || 7 || |
इन्द्रः॑स॒मत्सु॒यज॑मान॒मार्यं॒¦प्राव॒द्विश्वे᳚षुश॒तमू᳚तिरा॒जिषु॒¦स्व᳚र्मीळ्हेष्वा॒जिषु॑ | मन॑वे॒शास॑दव्र॒तान्¦त्वचं᳚कृ॒ष्णाम॑रन्धयत् | दक्ष॒न्नविश्वं᳚ततृषा॒णमो᳚षति॒¦न्य॑र्शसा॒नमो᳚षति || 8 || |
सूर॑श्च॒क्रंप्रवृ॑हज्जा॒तओज॑सा¦ऽप्रपि॒त्वेवाच॑मरु॒णोमु॑षायती¦शा॒नआमु॑षायति | उ॒शना॒यत्प॑रा॒वतो¦ऽज॑गन्नू॒तये᳚कवे | सु॒म्नानि॒विश्वा॒मनु॑षेवतु॒र्वणि॒¦रहा॒विश्वे᳚वतु॒र्वणिः॑ || 9 || |
सनो॒नव्ये᳚भिर्वृषकर्मन्नु॒क्थैः¦पुरां᳚दर्तःपा॒युभिः॑पाहिश॒ग्मैः | दि॒वो॒दा॒सेभि॑रिन्द्र॒स्तवा᳚नो¦वावृधी॒था,अहो᳚भिरिव॒द्यौः || 10 || |
[131] इंद्रायहीति सप्तर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपइंद्रोत्यष्टिः |{मंडल:1, सूक्त:131}{अनुवाक:19, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
इन्द्रा᳚य॒हिद्यौरसु॑रो॒,अन᳚म्न॒ते¦न्द्रा᳚यम॒हीपृ॑थि॒वीवरी᳚मभि¦र्द्यु॒म्नसा᳚ता॒वरी᳚मभिः | इन्द्रं॒विश्वे᳚स॒जोष॑सो¦दे॒वासो᳚दधिरेपु॒रः | इन्द्रा᳚य॒विश्वा॒सव॑नानि॒मानु॑षा¦रा॒तानि॑सन्तु॒मानु॑षा || 1 || वर्ग:20 |
विश्वे᳚षु॒हित्वा॒सव॑नेषुतु॒ञ्जते᳚¦समा॒नमेकं॒वृष॑मण्यवः॒पृथ॒क्¦स्वः॑सनि॒ष्यवः॒पृथ॑क् | तंत्वा॒नावं॒नप॒र्षणिं᳚¦शू॒षस्य॑धु॒रिधी᳚महि | इन्द्रं॒नय॒ज्ञैश्चि॒तय᳚न्तआ॒यवः॒¦स्तोमे᳚भि॒रिन्द्र॑मा॒यवः॑ || 2 || |
वित्वा᳚ततस्रेमिथु॒ना,अ॑व॒स्यवो᳚¦व्र॒जस्य॑सा॒तागव्य॑स्यनिः॒सृजः॒¦सक्ष᳚न्तइन्द्रनिः॒सृजः॑ | यद्ग॒व्यन्ता॒द्वाजना॒¦स्व१॑(अ॒)र्यन्ता᳚स॒मूह॑सि | आ॒विष्करि॑क्र॒द्वृष॑णंसचा॒भुवं॒¦वज्र॑मिन्द्रसचा॒भुव᳚म् || 3 || |
वि॒दुष्टे᳚,अ॒स्यवी॒र्य॑स्यपू॒रवः॒¦पुरो॒यदि᳚न्द्र॒शार॑दीर॒वाति॑रः¦सासहा॒नो,अ॒वाति॑रः | शास॒स्तमि᳚न्द्र॒मर्त्य॒¦मय॑ज्युंशवसस्पते | म॒हीम॑मुष्णाःपृथि॒वीमि॒मा,अ॒पो¦म᳚न्दसा॒नइ॒मा,अ॒पः || 4 || |
आदित्ते᳚,अ॒स्यवी॒र्य॑स्यचर्किर॒न्¦मदे᳚षुवृषन्नु॒शिजो॒यदावि॑थ¦सखीय॒तोयदावि॑थ | च॒कर्थ॑का॒रमे᳚भ्यः॒¦पृत॑नासु॒प्रव᳚न्तवे | ते,अ॒न्याम᳚न्यांन॒द्यं᳚सनिष्णत¦श्रव॒स्यन्तः॑सनिष्णत || 5 || |
उ॒तोनो᳚,अ॒स्या,उ॒षसो᳚जु॒षेत॒ह्य१॑(अ॒)¦र्कस्य॑बोधिह॒विषो॒हवी᳚मभिः॒¦स्व॑र्षाता॒हवी᳚मभिः | यदि᳚न्द्र॒हन्त॑वे॒मृधो॒¦वृषा᳚वज्रि॒ञ्चिके᳚तसि | आमे᳚,अ॒स्यवे॒धसो॒नवी᳚यसो॒¦मन्म॑श्रुधि॒नवी᳚यसः || 6 || |
त्वंतमि᳚न्द्रवावृधा॒नो,अ॑स्म॒यु¦र॑मित्र॒यन्तं᳚तुविजात॒मर्त्यं॒¦वज्रे᳚णशूर॒मर्त्य᳚म् | ज॒हियोनो᳚,अघा॒यति॑¦शृणु॒ष्वसु॒श्रव॑स्तमः | रि॒ष्टंनयाम॒न्नप॑भूतुदुर्म॒ति¦र्विश्वाप॑भूतुदुर्म॒तिः || 7 || |
[132] त्वयावयमिति षडृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपइंद्रोयुवंतमिंद्रेत्यर्धचइंद्रापर्वतावत्यष्टिः{मंडल:1, सूक्त:132}{अनुवाक:19, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
त्वया᳚व॒यंम॑घव॒न्पूर्व्ये॒धन॒¦इन्द्र॑त्वोताःसासह्यामपृतन्य॒तो¦व॑नु॒याम॑वनुष्य॒तः | नेदि॑ष्ठे,अ॒स्मिन्नह॒¦न्यधि॑वोचा॒नुसु᳚न्व॒ते | अ॒स्मिन्य॒ज्ञेविच॑येमा॒भरे᳚कृ॒तं¦वा᳚ज॒यन्तो॒भरे᳚कृ॒तम् || 1 || वर्ग:21 |
स्व॒र्जे॒षेभर॑आ॒प्रस्य॒वक्म᳚¦न्युष॒र्बुधः॒स्वस्मि॒न्नञ्ज॑सि¦क्रा॒णस्य॒स्वस्मि॒न्नञ्ज॑सि | अह॒न्निन्द्रो॒यथा᳚वि॒दे¦शी॒र्ष्णाशी᳚र्ष्णोप॒वाच्यः॑ | अ॒स्म॒त्राते᳚स॒ध्र्य॑क्सन्तुरा॒तयो᳚¦भ॒द्राभ॒द्रस्य॑रा॒तयः॑ || 2 || |
तत्तुप्रयः॑प्र॒त्नथा᳚तेशुशुक्व॒नं¦यस्मि᳚न्य॒ज्ञेवार॒मकृ᳚ण्वत॒क्षय॑¦मृ॒तस्य॒वार॑सि॒क्षय᳚म् | वितद्वो᳚चे॒रध॑द्वि॒ता¦ऽन्तःप॑श्यन्तिर॒श्मिभिः॑ | सघा᳚विदे॒,अन्विन्द्रो᳚ग॒वेष॑णो¦बन्धु॒क्षिद्भ्यो᳚ग॒वेष॑णः || 3 || |
नू,इ॒त्थाते᳚पू॒र्वथा᳚चप्र॒वाच्यं॒¦यदङ्गि॑रो॒भ्योऽवृ॑णो॒रप᳚व्र॒ज¦मिन्द्र॒शिक्ष॒न्नप᳚व्र॒जम् | ऐभ्यः॑समा॒न्यादि॒शा¦ऽस्मभ्यं᳚जेषि॒योत्सि॑च | सु॒न्वद्भ्यो᳚रन्धया॒कंचि॑दव्र॒तं¦हृ॑णा॒यन्तं᳚चिदव्र॒तम् || 4 || |
संयज्जना॒न्क्रतु॑भिः॒शूर॑ई॒क्षय॒¦द्धने᳚हि॒तेत॑रुषन्तश्रव॒स्यवः॒¦प्रय॑क्षन्तश्रव॒स्यवः॑ | तस्मा॒,आयुः॑प्र॒जाव॒दिद्¦बाधे᳚,अर्च॒न्त्योज॑सा | इन्द्र॑ओ॒क्यं᳚दिधिषन्तधी॒तयो᳚¦दे॒वाँ,अच्छा॒नधी॒तयः॑ || 5 || |
यु॒वंतमि᳚न्द्रापर्वतापुरो॒युधा॒¦योनः॑पृत॒न्यादप॒तंत॒मिद्ध॑तं॒¦वज्रे᳚ण॒तंत॒मिद्ध॑तम् | दू॒रेच॒त्ताय॑च्छन्त्स॒द्¦गह॑नं॒यदिन॑क्षत् | अ॒स्माकं॒शत्रू॒न्परि॑शूरवि॒श्वतो᳚¦द॒र्माद॑र्षीष्टवि॒श्वतः॑ || 6 || |
[133] उभेपुनामीति सप्तर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपइंद्र आद्यात्रिष्टुप् द्वितीयादितिस्रोनुष्टुभः पंचमीगायत्री षष्ठीधृतिः सप्तम्यष्टिः |{मंडल:1, सूक्त:133}{अनुवाक:19, सूक्त:7}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
उ॒भेपु॑नामि॒रोद॑सी,ऋ॒तेन॒¦द्रुहो᳚दहामि॒संम॒हीर॑नि॒न्द्राः | अ॒भि॒व्लग्य॒यत्र॑ह॒ता,अ॒मित्रा᳚¦वैलस्था॒नंपरि॑तृ॒ळ्हा,अशे᳚रन् || 1 || वर्ग:22 |
अ॒भि॒व्लग्या᳚चिदद्रिवः¦शी॒र्षाया᳚तु॒मती᳚नाम् | छि॒न्धिव॑टू॒रिणा᳚प॒दा¦म॒हाव॑टूरिणाप॒दा || 2 || |
अवा᳚सांमघवञ्जहि॒¦शर्धो᳚यातु॒मती᳚नाम् | वै॒ल॒स्था॒न॒के,अ᳚र्म॒के¦म॒हावै᳚लस्थे,अर्म॒के || 3 || |
यासां᳚ति॒स्रःप᳚ञ्चा॒शतो᳚¦ऽभिव्ल॒ङ्गैर॒पाव॑पः | तत्सुते᳚मनायति¦त॒कत्सुते᳚मनायति || 4 || |
पि॒शङ्ग॑भृष्टिमम्भृ॒णं¦पि॒शाचि॑मिन्द्र॒संमृ॑ण | सर्वं॒रक्षो॒निब᳚र्हय || 5 || |
अ॒वर्म॒हइ᳚न्द्रदादृ॒हिश्रु॒धीनः॑¦शु॒शोच॒हिद्यौः,क्षानभी॒षाँ,अ॑द्रिवो¦घृ॒णान्नभी॒षाँ,अ॑द्रिवः | शु॒ष्मिन्त॑मो॒हिशु॒ष्मिभि᳚¦र्व॒धैरु॒ग्रेभि॒रीय॑से | अपू᳚रुषघ्नो,अप्रतीतशूर॒सत्व॑भि¦स्त्रिस॒प्तैःशू᳚र॒सत्व॑भिः || 6 || |
व॒नोति॒हिसु॒न्वन्क्षयं॒परी᳚णसः¦सुन्वा॒नोहिष्मा॒यज॒त्यव॒द्विषो᳚¦दे॒वाना॒मव॒द्विषः॑ | सु॒न्वा॒नइत्सि॑षासति¦स॒हस्रा᳚वा॒ज्यवृ॑तः | सु॒न्वा॒नायेन्द्रो᳚ददात्या॒भुवं᳚¦र॒यिंद॑दात्या॒भुव᳚म् || 7 || |
[134] आत्वाजुवइति षडृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपोवायुरत्यष्टिरंत्याष्टिः |{मंडल:1, सूक्त:134}{अनुवाक:20, सूक्त:1}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
आत्वा॒जुवो᳚रारहा॒णा,अ॒भिप्रयो॒¦वायो॒वह᳚न्त्वि॒हपू॒र्वपी᳚तये॒¦सोम॑स्यपू॒र्वपी᳚तये | ऊ॒र्ध्वाते॒,अनु॑सू॒नृता॒¦मन॑स्तिष्ठतुजान॒ती | नि॒युत्व॑ता॒रथे॒नाया᳚हिदा॒वने॒¦वायो᳚म॒खस्य॑दा॒वने᳚ || 1 || वर्ग:23 |
मन्द᳚न्तुत्वाम॒न्दिनो᳚वाय॒विन्द॑वो॒¦ऽस्मत्क्रा॒णासः॒सुकृ॑ता,अ॒भिद्य॑वो॒¦गोभिः॑क्रा॒णा,अ॒भिद्य॑वः | यद्ध॑क्रा॒णा,इ॒रध्यै॒¦दक्षं॒सच᳚न्तऊ॒तयः॑ | स॒ध्री॒ची॒नानि॒युतो᳚दा॒वने॒धिय॒¦उप॑ब्रुवतईं॒धियः॑ || 2 || |
वा॒युर्यु᳚ङ्क्ते॒रोहि॑तावा॒युर॑रु॒णा¦वा॒यूरथे᳚,अजि॒राधु॒रिवोळ्ह॑वे॒¦वहि॑ष्ठाधु॒रिवोळ्ह॑वे | प्रबो᳚धया॒पुरं᳚धिं¦जा॒रआस॑स॒तीमि॑व | प्रच॑क्षय॒रोद॑सीवासयो॒षसः॒¦श्रव॑सेवासयो॒षसः॑ || 3 || |
तुभ्य॑मु॒षासः॒शुच॑यःपरा॒वति॑¦भ॒द्रावस्त्रा᳚तन्वते॒दंसु॑र॒श्मिषु॑¦चि॒त्रानव्ये᳚षुर॒श्मिषु॑ | तुभ्यं᳚धे॒नुःस॑ब॒र्दुघा॒¦विश्वा॒वसू᳚निदोहते | अज॑नयोम॒रुतो᳚व॒क्षणा᳚भ्यो¦दि॒वआव॒क्षणा᳚भ्यः || 4 || |
तुभ्यं᳚शु॒क्रासः॒शुच॑यस्तुर॒ण्यवो॒¦मदे᳚षू॒ग्रा,इ॑षणन्तभु॒र्वण्य॒¦पामि॑षन्तभु॒र्वणि॑ | त्वांत्सा॒रीदस॑मानो॒¦भग॑मीट्टेतक्व॒वीये᳚ | त्वंविश्व॑स्मा॒द्भुव॑नात्पासि॒धर्म॑णा¦ऽसु॒र्या᳚त्पासि॒धर्म॑णा || 5 || |
त्वंनो᳚वायवेषा॒मपू᳚र्व्यः॒¦सोमा᳚नांप्रथ॒मःपी॒तिम᳚र्हसि¦सु॒तानां᳚पी॒तिम᳚र्हसि | उ॒तोवि॒हुत्म॑तीनां¦वि॒शांव॑व॒र्जुषी᳚णाम् | विश्वा॒,इत्ते᳚धे॒नवो᳚दुह्रआ॒शिरं᳚¦घृ॒तंदु॑ह्रतआ॒शिर᳚म् || 6 || |
[135] स्तीर्णम्बर्हिरिति नवर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपोवायुश्चतुर्थ्यादिपंचानामिंद्रोवाअत्यष्टिः सप्तम्यष्टम्यावष्टी |{मंडल:1, सूक्त:135}{अनुवाक:20, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
स्ती॒र्णंब॒र्हिरुप॑नोयाहिवी॒तये᳚¦स॒हस्रे᳚णनि॒युता᳚नियुत्वते¦श॒तिनी᳚भिर्नियुत्वते | तुभ्यं॒हिपू॒र्वपी᳚तये¦दे॒वादे॒वाय॑येमि॒रे | प्रते᳚सु॒तासो॒मधु॑मन्तो,अस्थिर॒न्¦मदा᳚य॒क्रत्वे᳚,अस्थिरन् || 1 || वर्ग:24 |
तुभ्या॒यंसोमः॒परि॑पूतो॒,अद्रि॑भिः¦स्पा॒र्हावसा᳚नः॒परि॒कोश॑मर्षति¦शु॒क्रावसा᳚नो,अर्षति | तवा॒यंभा॒गआ॒युषु॒¦सोमो᳚दे॒वेषु॑हूयते | वह॑वायोनि॒युतो᳚याह्यस्म॒यु¦र्जु॑षा॒णोया᳚ह्यस्म॒युः || 2 || |
आनो᳚नि॒युद्भिः॑श॒तिनी᳚भिरध्व॒रं¦स॑ह॒स्रिणी᳚भि॒रुप॑याहिवी॒तये॒¦वायो᳚ह॒व्यानि॑वी॒तये᳚ | तवा॒यंभा॒गऋ॒त्वियः॒¦सर॑श्मिः॒सूर्ये॒सचा᳚ | अ॒ध्व॒र्युभि॒र्भर॑माणा,अयंसत॒¦वायो᳚शु॒क्रा,अ॑यंसत || 3 || |
आवां॒रथो᳚नि॒युत्वा᳚न्वक्ष॒दव॑से॒¦ऽभिप्रयां᳚सि॒सुधि॑तानिवी॒तये॒¦वायो᳚ह॒व्यानि॑वी॒तये᳚ | पिब॑तं॒मध्वो॒,अन्ध॑सः¦पूर्व॒पेयं॒हिवां᳚हि॒तम् | वाय॒वाच॒न्द्रेण॒राध॒साग॑त॒¦मिन्द्र॑श्च॒राध॒साग॑तम् || 4 || |
आवां॒धियो᳚ववृत्युरध्व॒राँ,उपे॒¦ममिन्दुं᳚मर्मृजन्तवा॒जिन॑¦मा॒शुमत्यं॒नवा॒जिन᳚म् | तेषां᳚पिबतमस्म॒यू¦,आनो᳚गन्तमि॒होत्या | इन्द्र॑वायूसु॒ताना॒मद्रि॑भिर्यु॒वं¦मदा᳚यवाजदायु॒वम् || 5 || |
इ॒मेवां॒सोमा᳚,अ॒प्स्वासु॒ता,इ॒हा¦ध्व॒र्युभि॒र्भर॑माणा,अयंसत॒¦वायो᳚शु॒क्रा,अ॑यंसत | ए॒तेवा᳚म॒भ्य॑सृक्षत¦ति॒रःप॒वित्र॑मा॒शवः॑ | यु॒वा॒यवोऽति॒रोमा᳚ण्य॒व्यया॒¦सोमा᳚सो॒,अत्य॒व्यया᳚ || 6 || वर्ग:25 |
अति॑वायोसस॒तोया᳚हि॒शश्व॑तो॒¦यत्र॒ग्रावा॒वद॑ति॒तत्र॑गच्छतं¦गृ॒हमिन्द्र॑श्चगच्छतम् | विसू॒नृता॒ददृ॑शे॒रीय॑तेघृ॒त¦मापू॒र्णया᳚नि॒युता᳚याथो,अध्व॒र¦मिन्द्र॑श्चयाथो,अध्व॒रम् || 7 || |
अत्राह॒तद्व॑हेथे॒मध्व॒आहु॑तिं॒¦यम॑श्व॒त्थमु॑प॒तिष्ठ᳚न्तजा॒यवो॒¦ऽस्मेतेस᳚न्तुजा॒यवः॑ | सा॒कंगावः॒सुव॑ते॒पच्य॑ते॒यवो॒¦नते᳚वाय॒उप॑दस्यन्तिधे॒नवो॒¦नाप॑दस्यन्तिधे॒नवः॑ || 8 || |
इ॒मेयेते॒सुवा᳚योबा॒ह्वो᳚जसो॒¦ऽन्तर्न॒दीते᳚प॒तय᳚न्त्यु॒क्षणो॒¦महि॒व्राध᳚न्तउ॒क्षणः॑ | धन्व᳚ञ्चि॒द्ये,अ॑ना॒शवो᳚¦जी॒राश्चि॒दगि॑रौकसः | सूर्य॑स्येवर॒श्मयो᳚दुर्नि॒यन्त॑वो॒¦हस्त॑योर्दुर्नि॒यन्त॑वः || 9 || |
[136] प्रसुज्येष्ठमिति सप्तर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिः परुच्छेपोमित्रावरुणौ नमोदिवइत्यस्यारोदसी मित्रावरुणेंद्राग्न्यर्यमभगसोमा देवताः ऊतीदेवानामित्यस्यादेवमरुदग्निमित्रवरुणमघवंतोदेवता अत्यष्टिः अंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:136}{अनुवाक:20, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:1} |
प्रसुज्येष्ठं᳚निचि॒राभ्यां᳚बृ॒हन्नमो᳚¦ह॒व्यंम॒तिंभ॑रतामृळ॒यद्भ्यां॒¦स्वादि॑ष्ठंमृळ॒यद्भ्या᳚म् | तास॒म्राजा᳚घृ॒तासु॑ती¦य॒ज्ञेय॑ज्ञ॒उप॑स्तुता | अथै᳚नोः,क्ष॒त्रंनकुत॑श्च॒नाधृषे᳚¦देव॒त्वंनूचि॑दा॒धृषे᳚ || 1 || वर्ग:26 |
अद॑र्शिगा॒तुरु॒रवे॒वरी᳚यसी॒¦पन्था᳚ऋ॒तस्य॒सम॑यंस्तर॒श्मिभि॒¦श्चक्षु॒र्भग॑स्यर॒श्मिभिः॑ | द्यु॒क्षंमि॒त्रस्य॒साद॑न¦मर्य॒म्णोवरु॑णस्यच | अथा᳚दधातेबृ॒हदु॒क्थ्य१॑(अं॒)वय॑¦उप॒स्तुत्यं᳚बृ॒हद्वयः॑ || 2 || |
ज्योति॑ष्मती॒मदि॑तिंधार॒यत्क्षि॑तिं॒¦स्व᳚र्वती॒मास॑चेतेदि॒वेदि॑वे¦जागृ॒वांसा᳚दि॒वेदि॑वे | ज्योति॑ष्मत्क्ष॒त्रमा᳚शाते¦,आदि॒त्यादानु॑न॒स्पती᳚ | मि॒त्रस्तयो॒र्वरु॑णोयात॒यज्ज॑नो¦ऽर्य॒माया᳚त॒यज्ज॑नः || 3 || |
अ॒यंमि॒त्राय॒वरु॑णाय॒शंत॑मः॒¦सोमो᳚भूत्वव॒पाने॒ष्वाभ॑गो¦दे॒वोदे॒वेष्वाभ॑गः | तंदे॒वासो᳚जुषेरत॒¦विश्वे᳚,अ॒द्यस॒जोष॑सः | तथा᳚राजानाकरथो॒यदीम॑ह॒¦ऋता᳚वाना॒यदीम॑हे || 4 || |
योमि॒त्राय॒वरु॑णा॒यावि॑ध॒ज्जनो᳚¦ऽन॒र्वाणं॒तंपरि॑पातो॒,अंह॑सो¦दा॒श्वांसं॒मर्त॒मंह॑सः | तम᳚र्य॒माभिर॑क्ष¦त्यृजू॒यन्त॒मनु᳚व्र॒तम् | उ॒क्थैर्यए᳚नोःपरि॒भूष॑तिव्र॒तं¦स्तोमै᳚रा॒भूष॑तिव्र॒तम् || 5 || |
नमो᳚दि॒वेबृ॑ह॒तेरोद॑सीभ्यां¦मि॒त्राय॑वोचं॒वरु॑णायमी॒ळ्हुषे᳚¦सुमृळी॒काय॑मी॒ळ्हुषे᳚ | इन्द्र॑म॒ग्निमुप॑स्तुहि¦द्यु॒क्षम᳚र्य॒मणं॒भग᳚म् | ज्योग्जीव᳚न्तःप्र॒जया᳚सचेमहि॒¦सोम॑स्यो॒तीस॑चेमहि || 6 || |
ऊ॒तीदे॒वानां᳚व॒यमिन्द्र॑वन्तो¦मंसी॒महि॒स्वय॑शसोम॒रुद्भिः॑ | अ॒ग्निर्मि॒त्रोवरु॑णः॒शर्म॑यंस॒न्¦तद॑श्यामम॒घवा᳚नोव॒यंच॑ || 7 || |
[137] सुषुमेति तृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिःपरुच्छेपोमित्रावरुणावतिशक्वरी |{मंडल:1, सूक्त:137}{अनुवाक:20, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
सु॒षु॒माया᳚त॒मद्रि॑भि॒¦र्गोश्री᳚तामत्स॒रा,इ॒मे¦सोमा᳚सोमत्स॒रा,इ॒मे | आरा᳚जानादिविस्पृशा¦ऽस्म॒त्राग᳚न्त॒मुप॑नः | इ॒मेवां᳚मित्रावरुणा॒गवा᳚शिरः॒¦सोमाः᳚शु॒क्रागवा᳚शिरः || 1 || वर्ग:1 |
इ॒मआया᳚त॒मिन्द॑वः॒¦सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः¦सु॒तासो॒दध्या᳚शिरः | उ॒तवा᳚मु॒षसो᳚बु॒धि¦सा॒कंसूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॑ | सु॒तोमि॒त्राय॒वरु॑णायपी॒तये॒¦चारु᳚रृ॒ताय॑पी॒तये᳚ || 2 || |
तांवां᳚धे॒नुंनवा᳚स॒री¦मं॒शुंदु॑ह॒न्त्यद्रि॑भिः॒¦सोमं᳚दुह॒न्त्यद्रि॑भिः | अ॒स्म॒त्राग᳚न्त॒मुप॑नो॒¦ऽर्वाञ्चा॒सोम॑पीतये | अ॒यंवां᳚मित्रावरुणा॒नृभिः॑सु॒तः¦सोम॒आपी॒तये᳚सु॒तः || 3 || |
[138] प्रप्रपूष्णइति चतुरृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिःपरुच्छेपःपूषात्यष्टिः |{मंडल:1, सूक्त:138}{अनुवाक:20, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
प्रप्र॑पू॒ष्णस्तु॑विजा॒तस्य॑शस्यते¦महि॒त्वम॑स्यत॒वसो॒नत᳚न्दते¦स्तो॒त्रम॑स्य॒नत᳚न्दते | अर्चा᳚मिसुम्न॒यन्न॒ह¦मन्त्यू᳚तिंमयो॒भुव᳚म् | विश्व॑स्य॒योमन॑आयुयु॒वेम॒खो¦दे॒वआ᳚युयु॒वेम॒खः || 1 || वर्ग:2 |
प्रहित्वा᳚पूषन्नजि॒रंनयाम॑नि॒¦स्तोमे᳚भिःकृ॒ण्वऋ॒णवो॒यथा॒मृध॒¦उष्ट्रो॒नपी᳚परो॒मृधः॑ | हु॒वेयत्त्वा᳚मयो॒भुवं᳚¦दे॒वंस॒ख्याय॒मर्त्यः॑ | अ॒स्माक॑माङ्गू॒षान्द्यु॒म्निन॑स्कृधि॒¦वाजे᳚षुद्यु॒म्निन॑स्कृधि || 2 || |
यस्य॑तेपूषन्त्स॒ख्येवि॑प॒न्यवः॒¦क्रत्वा᳚चि॒त्सन्तोऽव॑साबुभुज्रि॒र¦इति॒क्रत्वा᳚बुभुज्रि॒रे | तामनु॑त्वा॒नवी᳚यसीं¦नि॒युतं᳚रा॒यई᳚महे | अहे᳚ळमानउरुशंस॒सरी᳚भव॒¦वाजे᳚वाजे॒सरी᳚भव || 3 || |
अ॒स्या,ऊ॒षुण॒उप॑सा॒तये᳚भु॒वो¦ऽहे᳚ळमानोररि॒वाँ,अ॑जाश्व¦श्रवस्य॒ताम॑जाश्व | ओषुत्वा᳚ववृतीमहि॒¦स्तोमे᳚भिर्दस्मसा॒धुभिः॑ | न॒हित्वा᳚पूषन्नति॒मन्य॑आघृणे॒¦नते᳚स॒ख्यम॑पह्नु॒वे || 4 || |
[139] अस्तुश्रौषडित्येकादशर्चस्य सूक्तस्य दैवोदासिःपरुच्छेप आद्यायाविश्वेदेवाः द्वितीयायामित्रावरुणौ तृतीयादितिसृणामाश्विनौ षष्ठ्याइंद्रः सप्तम्याअग्निरष्टम्यामरुतो नवम्याइंद्राग्नी दशम्याबृहस्पतिरंत्यायाविश्वेदेवाअत्यष्टिः पंचमीबृहत्यंत्यात्रिष्टुप् | ( वैश्वदेवमेतत्सूक्तं | अत्रप्रत्येकं देवताविभागस्त्वाकरएवपठितः | अनयैवदिशासर्वत्रापिवैश्वदेवसूक्ते देवताविभागः कर्तव्यइतिहितदनुज्ञा | यथाह - एवमन्यासामपिसूक्तप्रयोगेवैश्वदेवत्वं सूक्तभेदप्रयोगेतुयल्लिंगंसादेवतेति) |{मंडल:1, सूक्त:139}{अनुवाक:20, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
अस्तु॒श्रौष॑ट्पु॒रो,अ॒ग्निंधि॒याद॑ध॒¦आनुतच्छर्धो᳚दि॒व्यंवृ॑णीमह¦इन्द्रवा॒यूवृ॑णीमहे | यद्ध॑क्रा॒णावि॒वस्व॑ति॒¦नाभा᳚सं॒दायि॒नव्य॑सी | अध॒प्रसून॒उप॑यन्तुधी॒तयो᳚¦दे॒वाँ,अच्छा॒नधी॒तयः॑ || 1 || वर्ग:3 |
यद्ध॒त्यन्मि॑त्रावरुणावृ॒ताद¦ध्या᳚द॒दाथे॒,अनृ॑तं॒स्वेन॑म॒न्युना॒¦दक्ष॑स्य॒स्वेन॑म॒न्युना᳚ | यु॒वोरि॒त्थाधि॒सद्म॒¦स्वप॑श्यामहिर॒ण्यय᳚म् | धी॒भिश्च॒नमन॑सा॒स्वेभि॑र॒क्षभिः॒¦सोम॑स्य॒स्वेभि॑र॒क्षभिः॑ || 2 || |
यु॒वांस्तोमे᳚भिर्देव॒यन्तो᳚,अश्विना¦ऽऽश्रा॒वय᳚न्तइव॒श्लोक॑मा॒यवो᳚¦यु॒वांह॒व्याभ्या॒३॑(आ॒)यवः॑ | यु॒वोर्विश्वा॒,अधि॒श्रियः॒¦पृक्ष॑श्चविश्ववेदसा | प्रु॒षा॒यन्ते᳚वांप॒वयो᳚हिर॒ण्यये॒¦रथे᳚दस्राहिर॒ण्यये᳚ || 3 || |
अचे᳚तिदस्रा॒व्यु१॑(उ॒)नाक॑मृण्वथो¦यु॒ञ्जते᳚वांरथ॒युजो॒दिवि॑ष्टि¦ष्वध्व॒स्मानो॒दिवि॑ष्टिषु | अधि॑वां॒स्थाम॑व॒न्धुरे॒¦रथे᳚दस्राहिर॒ण्यये᳚ | प॒थेव॒यन्ता᳚वनु॒शास॑ता॒रजो¦ऽञ्ज॑सा॒शास॑ता॒रजः॑ || 4 || |
शची᳚भिर्नःशचीवसू॒¦दिवा॒नक्तं᳚दशस्यतम् | मावां᳚रा॒तिरुप॑दस॒त्कदा᳚च॒ना¦ऽस्मद्रा॒तिःकदा᳚च॒न || 5 || |
वृष᳚न्निन्द्रवृष॒पाणा᳚स॒इन्द॑व¦इ॒मेसु॒ता,अद्रि॑षुतासउ॒द्भिद॒¦स्तुभ्यं᳚सु॒तास॑उ॒द्भिदः॑ | तेत्वा᳚मन्दन्तुदा॒वने᳚¦म॒हेचि॒त्राय॒राध॑से | गी॒र्भिर्गि᳚र्वाहः॒स्तव॑मान॒आग॑हि¦सुमृळी॒कोन॒आग॑हि || 6 || वर्ग:4 |
ओषूणो᳚,अग्नेशृणुहि॒त्वमी᳚ळि॒तो¦दे॒वेभ्यो᳚ब्रवसिय॒ज्ञिये᳚भ्यो॒¦राज॑भ्योय॒ज्ञिये᳚भ्यः | यद्ध॒त्यामङ्गि॑रोभ्यो¦धे॒नुंदे᳚वा॒,अद॑त्तन | वितांदु॑ह्रे,अर्य॒माक॒र्तरी॒सचाँ᳚¦ए॒षतांवे᳚दमे॒सचा᳚ || 7 || |
मोषुवो᳚,अ॒स्मद॒भितानि॒पौंस्या॒¦सना᳚भूवन्द्यु॒म्नानि॒मोतजा᳚रिषु¦र॒स्मत्पु॒रोतजा᳚रिषुः | यद्व॑श्चि॒त्रंयु॒गेयु॑गे॒¦नव्यं॒घोषा॒दम॑र्त्यम् | अ॒स्मासु॒तन्म॑रुतो॒यच्च॑दु॒ष्टरं᳚¦दिधृ॒तायच्च॑दु॒ष्टर᳚म् || 8 || |
द॒ध्यङ्ह॑मेज॒नुषं॒पूर्वो॒,अङ्गि॑राः¦प्रि॒यमे᳚धः॒कण्वो॒,अत्रि॒र्मनु᳚र्विदु॒¦स्तेमे॒पूर्वे॒मनु᳚र्विदुः | तेषां᳚दे॒वेष्वाय॑ति¦र॒स्माकं॒तेषु॒नाभ॑यः | तेषां᳚प॒देन॒मह्यान॑मेगि॒रे¦न्द्रा॒ग्नी,आन॑मेगि॒रा || 9 || |
होता᳚यक्षद्व॒निनो᳚वन्त॒वार्यं॒¦बृह॒स्पति᳚र्यजतिवे॒नउ॒क्षभिः॑¦पुरु॒वारे᳚भिरु॒क्षभिः॑ | ज॒गृ॒भ्मादू॒रआ᳚दिशं॒¦श्लोक॒मद्रे॒रध॒त्मना᳚ | अधा᳚रयदर॒रिन्दा᳚निसु॒क्रतुः॑¦पु॒रूसद्मा᳚निसु॒क्रतुः॑ || 10 || |
येदे᳚वासोदि॒व्येका᳚दश॒स्थ¦पृ॑थि॒व्यामध्येका᳚दश॒स्थ | अ॒प्सु॒क्षितो᳚महि॒नैका᳚दश॒स्थ¦तेदे᳚वासोय॒ज्ञमि॒मंजु॑षध्वम् || 11 || |
[140] वेदिषदइति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्निर्जगती अंत्येद्वेत्रिष्टुभौदशमीत्रिष्टुब्वा |{मंडल:1, सूक्त:140}{अनुवाक:21, सूक्त:1}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
वे॒दि॒षदे᳚प्रि॒यधा᳚मायसु॒द्युते᳚¦धा॒सिमि॑व॒प्रभ॑रा॒योनि॑म॒ग्नये᳚ | वस्त्रे᳚णेववासया॒मन्म॑ना॒शुचिं᳚¦ज्यो॒तीर॑थंशु॒क्रव᳚र्णंतमो॒हन᳚म् || 1 || वर्ग:5 |
अ॒भिद्वि॒जन्मा᳚त्रि॒वृदन्न॑मृज्यते¦संवत्स॒रेवा᳚वृधेज॒ग्धमी॒पुनः॑ | अ॒न्यस्या॒साजि॒ह्वया॒जेन्यो॒वृषा॒¦न्य१॑(अ॒)न्येन॑व॒निनो᳚मृष्टवार॒णः || 2 || |
कृ॒ष्ण॒प्रुतौ᳚वेवि॒जे,अ॑स्यस॒क्षिता᳚,¦उ॒भात॑रेते,अ॒भिमा॒तरा॒शिशु᳚म् | प्रा॒चाजि॑ह्वंध्व॒सय᳚न्तंतृषु॒च्युत॒¦मासाच्यं॒कुप॑यं॒वर्ध॑नंपि॒तुः || 3 || |
मु॒मु॒क्ष्वो॒३॑(ओ॒)मन॑वेमानवस्य॒ते¦र॑घु॒द्रुवः॑कृ॒ष्णसी᳚तासऊ॒जुवः॑ | अ॒स॒म॒ना,अ॑जि॒रासो᳚रघु॒ष्यदो॒¦वात॑जूता॒,उप॑युज्यन्तआ॒शवः॑ || 4 || |
आद॑स्य॒तेध्व॒सय᳚न्तो॒वृथे᳚रते¦कृ॒ष्णमभ्वं॒महि॒वर्पः॒करि॑क्रतः | यत्सीं᳚म॒हीम॒वनिं॒प्राभिमर्मृ॑श¦दभिश्व॒सन्त्स्त॒नय॒न्नेति॒नान॑दत् || 5 || |
भूष॒न्नयोधि॑ब॒भ्रूषु॒नम्न॑ते॒¦वृषे᳚व॒पत्नी᳚र॒भ्ये᳚ति॒रोरु॑वत् | ओ॒जा॒यमा᳚नस्त॒न्व॑श्चशुम्भते¦भी॒मोनशृङ्गा᳚दविधावदु॒र्गृभिः॑ || 6 || वर्ग:6 |
ससं॒स्तिरो᳚वि॒ष्टिरः॒संगृ॑भायति¦जा॒नन्ने॒वजा᳚न॒तीर्नित्य॒आश॑ये | पुन᳚र्वर्धन्ते॒,अपि॑यन्तिदे॒व्य॑¦म॒न्यद्वर्पः॑पि॒त्रोःकृ᳚ण्वते॒सचा᳚ || 7 || |
तम॒ग्रुवः॑के॒शिनीः॒संहिरे᳚भि॒र¦ऊ॒र्ध्वास्त॑स्थुर्म॒म्रुषीः॒प्रायवे॒पुनः॑ | तासां᳚ज॒रांप्र॑मु॒ञ्चन्ने᳚ति॒नान॑द॒¦दसुं॒परं᳚ज॒नय᳚ञ्जी॒वमस्तृ॑तम् || 8 || |
अ॒धी॒वा॒संपरि॑मा॒तूरि॒हन्नह॑¦तुवि॒ग्रेभिः॒सत्व॑भिर्याति॒विज्रयः॑ | वयो॒दध॑त्प॒द्वते॒रेरि॑ह॒त्सदा¦ऽनु॒श्येनी᳚सचतेवर्त॒नीरह॑ || 9 || |
अ॒स्माक॑मग्नेम॒घव॑त्सुदीदि॒¦ह्यध॒श्वसी᳚वान्वृष॒भोदमू᳚नाः | अ॒वास्या॒शिशु॑मतीरदीदे॒¦र्वर्मे᳚वयु॒त्सुप॑रि॒जर्भु॑राणः || 10 || |
इ॒दम॑ग्ने॒सुधि॑तं॒दुर्धि॑ता॒दधि॑¦प्रि॒यादु॑चि॒न्मन्म॑नः॒प्रेयो᳚,अस्तुते | यत्ते᳚शु॒क्रंत॒न्वो॒३॑(ओ॒)रोच॑ते॒शुचि॒¦तेना॒स्मभ्यं᳚वनसे॒रत्न॒मात्वम् || 11 || वर्ग:7 |
रथा᳚य॒नाव॑मु॒तनो᳚गृ॒हाय॒¦नित्या᳚रित्रांप॒द्वतीं᳚रास्यग्ने | अ॒स्माकं᳚वी॒राँ,उ॒तनो᳚म॒घोनो॒¦जनाँ᳚श्च॒यापा॒रया॒च्छर्म॒याच॑ || 12 || |
अ॒भीनो᳚,अग्नउ॒क्थमिज्जु॑गुर्या॒¦द्यावा॒क्षामा॒सिन्ध॑वश्च॒स्वगू᳚र्ताः | गव्यं॒यव्यं॒यन्तो᳚दी॒र्घाहे¦षं॒वर॑मरु॒ण्यो᳚वरन्त || 13 || |
[141] बळित्थेति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्निर्जगती अंत्येद्वेत्रिष्टुभौ|{मंडल:1, सूक्त:141}{अनुवाक:21, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
बळि॒त्थातद्वपु॑षेधायिदर्श॒तं¦दे॒वस्य॒भर्गः॒सह॑सो॒यतो॒जनि॑ | यदी॒मुप॒ह्वर॑ते॒साध॑तेम॒ति¦रृ॒तस्य॒धेना᳚,अनयन्तस॒स्रुतः॑ || 1 || वर्ग:8 |
पृ॒क्षोवपुः॑पितु॒मान्नित्य॒आश॑ये¦द्वि॒तीय॒मास॒प्तशि॑वासुमा॒तृषु॑ | तृ॒तीय॑मस्यवृष॒भस्य॑दो॒हसे॒¦दश॑प्रमतिंजनयन्त॒योष॑णः || 2 || |
निर्यदीं᳚बु॒ध्नान्म॑हि॒षस्य॒¦वर्प॑सईशा॒नासः॒शव॑सा॒क्रन्त॑सू॒रयः॑ | यदी॒मनु॑प्र॒दिवो॒मध्व॑आध॒वे¦गुहा॒सन्तं᳚मात॒रिश्वा᳚मथा॒यति॑ || 3 || |
प्रयत्पि॒तुःप॑र॒मान्नी॒यते॒प¦र्यापृ॒क्षुधो᳚वी॒रुधो॒दंसु॑रोहति | उ॒भायद॑स्यज॒नुषं॒यदिन्व॑त॒¦आदिद्यवि॑ष्ठो,अभवद्घृ॒णाशुचिः॑ || 4 || |
आदिन्मा॒तॄरावि॑श॒द्यास्वाशुचि॒¦रहिं᳚स्यमानउर्वि॒याविवा᳚वृधे | अनु॒यत्पूर्वा॒,अरु॑हत्सना॒जुवो॒¦निनव्य॑सी॒ष्वव॑रासुधावते || 5 || |
आदिद्धोता᳚रंवृणते॒दिवि॑ष्टिषु॒¦भग॑मिवपपृचा॒नास॑ऋञ्जते | दे॒वान्यत्क्रत्वा᳚म॒ज्मना᳚पुरुष्टु॒तो¦मर्तं॒शंसं᳚वि॒श्वधा॒वेति॒धाय॑से || 6 || वर्ग:9 |
वियदस्था᳚द्यज॒तोवात॑चोदितो¦ह्वा॒रोनवक्वा᳚ज॒रणा॒,अना᳚कृतः | तस्य॒पत्म᳚न्द॒क्षुषः॑¦कृ॒ष्णजं᳚हसः॒शुचि॑जन्मनो॒रज॒आव्य॑ध्वनः || 7 || |
रथो॒नया॒तःशिक्व॑भिःकृ॒तो¦द्यामङ्गे᳚भिररु॒षेभि॑रीयते | आद॑स्य॒तेकृ॒ष्णासो᳚दक्षिसू॒रयः॒¦शूर॑स्येवत्वे॒षथा᳚दीषते॒वयः॑ || 8 || |
त्वया॒ह्य॑ग्ने॒वरु॑णोधृ॒तव्र॑तो¦मि॒त्रःशा᳚श॒द्रे,अ᳚र्य॒मासु॒दान॑वः | यत्सी॒मनु॒क्रतु॑नावि॒श्वथा᳚वि॒भु¦र॒रान्नने॒मिःप॑रि॒भूरजा᳚यथाः || 9 || |
त्वम॑ग्नेशशमा॒नाय॑सुन्व॒ते¦रत्नं᳚यविष्ठदे॒वता᳚तिमिन्वसि | तंत्वा॒नुनव्यं᳚सहसोयुवन्व॒यं¦भगं॒नका॒रेम॑हिरत्नधीमहि || 10 || |
अ॒स्मेर॒यिंनस्वर्थं॒दमू᳚नसं॒¦भगं॒दक्षं॒नप॑पृचासिधर्ण॒सिम् | र॒श्मीँऽरि॑व॒योयम॑ति॒जन्म॑नी,उ॒भे¦दे॒वानां॒शंस॑मृ॒तआच॑सु॒क्रतुः॑ || 11 || |
उ॒तनः॑सु॒द्योत्मा᳚जी॒राश्वो॒¦होता᳚म॒न्द्रःशृ॑णवच्च॒न्द्रर॑थः | सनो᳚नेष॒न्नेष॑तमै॒रमू᳚रो॒¦ऽग्निर्वा॒मंसु॑वि॒तंवस्यो॒,अच्छ॑ || 12 || |
अस्ता᳚व्य॒ग्निःशिमी᳚वद्भिर॒र्कैः¦साम्रा᳚ज्यायप्रत॒रंदधा᳚नः | अ॒मीच॒येम॒घवा᳚नोव॒यंच॒¦मिहं॒नसूरो॒,अति॒निष्ट॑तन्युः || 13 || |
[142] समिद्धोअग्नइति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाऋषिः इध्मस्तनूनपान्नराशंसइळो बर्हिर्देवीर्द्वार उषासानक्ता देव्यौहोतारौ सरस्वतीळाभारत्यस्त्वष्टावनस्पतिः स्वाहाकृतयइतिक्रमेणदेवताः अंत्याया इंद्रोनुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:142}{अनुवाक:21, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
समि॑द्धो,अग्न॒आव॑ह¦दे॒वाँ,अ॒द्यय॒तस्रु॑चे | तन्तुं᳚तनुष्वपू॒र्व्यं¦सु॒तसो᳚मायदा॒शुषे᳚ || 1 || वर्ग:10 |
घृ॒तव᳚न्त॒मुप॑मासि॒¦मधु॑मन्तंतनूनपात् | य॒ज्ञंविप्र॑स्य॒माव॑तः¦शशमा॒नस्य॑दा॒शुषः॑ || 2 || |
शुचिः॑पाव॒को,अद्भु॑तो॒¦मध्वा᳚य॒ज्ञंमि॑मिक्षति | नरा॒शंस॒स्त्रिरादि॒वो¦दे॒वोदे॒वेषु॑य॒ज्ञियः॑ || 3 || |
ई॒ळि॒तो,अ॑ग्न॒आव॒हे¦न्द्रं᳚चि॒त्रमि॒हप्रि॒यम् | इ॒यंहित्वा᳚म॒तिर्ममा¦च्छा᳚सुजिह्वव॒च्यते᳚ || 4 || |
स्तृ॒णा॒नासो᳚य॒तस्रु॑चो¦ब॒र्हिर्य॒ज्ञेस्व॑ध्व॒रे | वृ॒ञ्जेदे॒वव्य॑चस्तम॒¦मिन्द्रा᳚य॒शर्म॑स॒प्रथः॑ || 5 || |
विश्र॑यन्तामृता॒वृधः॑¦प्र॒यैदे॒वेभ्यो᳚म॒हीः | पा॒व॒कासः॑पुरु॒स्पृहो॒¦द्वारो᳚दे॒वीर॑स॒श्चतः॑ || 6 || |
आभन्द॑माने॒,उपा᳚के॒¦नक्तो॒षासा᳚सु॒पेश॑सा | य॒ह्वी,ऋ॒तस्य॑मा॒तरा॒¦सीद॑तांब॒र्हिरासु॒मत् || 7 || वर्ग:11 |
म॒न्द्रजि॑ह्वाजुगु॒र्वणी॒¦होता᳚रा॒दैव्या᳚क॒वी | य॒ज्ञंनो᳚यक्षतामि॒मं¦सि॒ध्रम॒द्यदि॑वि॒स्पृश᳚म् || 8 || |
शुचि॑र्दे॒वेष्वर्पि॑ता॒¦होत्रा᳚म॒रुत्सु॒भार॑ती | इळा॒सर॑स्वतीम॒ही¦ब॒र्हिःसी᳚दन्तुय॒ज्ञियाः᳚ || 9 || |
तन्न॑स्तु॒रीप॒मद्भु॑तं¦पु॒रुवारं᳚पु॒रुत्मना᳚ | त्वष्टा॒पोषा᳚य॒विष्य॑तु¦रा॒येनाभा᳚नो,अस्म॒युः || 10 || |
अ॒व॒सृ॒जन्नुप॒त्मना᳚¦दे॒वान्य॑क्षिवनस्पते | अ॒ग्निर्ह॒व्यासु॑षूदति¦दे॒वोदे॒वेषु॒मेधि॑रः || 11 || |
पू॒ष॒ण्वते᳚म॒रुत्व॑ते¦वि॒श्वदे᳚वायवा॒यवे᳚ | स्वाहा᳚गाय॒त्रवे᳚पसे¦ह॒व्यमिन्द्रा᳚यकर्तन || 12 || |
स्वाहा᳚कृता॒न्याग॒¦ह्युप॑ह॒व्यानि॑वी॒तये᳚ | इन्द्राग॑हिश्रु॒धीहवं॒¦त्वांह॑वन्ते,अध्व॒रे || 13 || |
[143] प्रतव्यसीमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्यौचथ्यो दीर्घतमाअग्निर्जगतीअंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:143}{अनुवाक:21, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
प्रतव्य॑सीं॒नव्य॑सींधी॒तिम॒ग्नये᳚¦वा॒चोम॒तिंसह॑सःसू॒नवे᳚भरे | अ॒पांनपा॒द्योवसु॑भिःस॒हप्रि॒यो¦होता᳚पृथि॒व्यांन्यसी᳚ददृ॒त्वियः॑ || 1 || वर्ग:12 |
सजाय॑मानःपर॒मेव्यो᳚म¦न्या॒विर॒ग्निर॑भवन्मात॒रिश्व॑ने | अ॒स्यक्रत्वा᳚समिधा॒नस्य॑म॒ज्मना॒¦प्रद्यावा᳚शो॒चिःपृ॑थि॒वी,अ॑रोचयत् || 2 || |
अ॒स्यत्वे॒षा,अ॒जरा᳚,अ॒स्यभा॒नवः॑¦सुसं॒दृशः॑सु॒प्रती᳚कस्यसु॒द्युतः॑ | भात्व॑क्षसो॒,अत्य॒क्तुर्नसिन्ध॑वो॒¦ऽग्नेरे᳚जन्ते॒,अस॑सन्तो,अ॒जराः᳚ || 3 || |
यमे᳚रि॒रेभृग॑वोवि॒श्ववे᳚दसं॒¦नाभा᳚पृथि॒व्याभुव॑नस्यम॒ज्मना᳚ | अ॒ग्निंतंगी॒र्भिर्हि॑नुहि॒स्वआदमे॒¦यएको॒वस्वो॒वरु॑णो॒नराज॑ति || 4 || |
नयोवरा᳚यम॒रुता᳚मिवस्व॒नः¦सेने᳚वसृ॒ष्टादि॒व्यायथा॒शनिः॑ | अ॒ग्निर्जम्भै᳚स्तिगि॒तैर॑त्ति॒भर्व॑ति¦यो॒धोनशत्रू॒न्त्सवना॒न्यृ᳚ञ्जते || 5 || |
कु॒विन्नो᳚,अ॒ग्निरु॒चथ॑स्य॒वीरस॒द्¦वसु॑ष्कु॒विद्वसु॑भिः॒काम॑मा॒वर॑त् | चो॒दःकु॒वित्तु॑तु॒ज्यात्सा॒तये॒धियः॒¦शुचि॑प्रतीकं॒तम॒याधि॒यागृ॑णे || 6 || |
घृ॒तप्र॑तीकंवऋ॒तस्य॑धू॒र्षद॑¦म॒ग्निंमि॒त्रंनस॑मिधा॒नऋ᳚ञ्जते | इन्धा᳚नो,अ॒क्रोवि॒दथे᳚षु॒दीद्य॑¦च्छु॒क्रव᳚र्णा॒मुदु॑नोयंसते॒धिय᳚म् || 7 || |
अप्र॑युच्छ॒न्नप्र॑युच्छद्भिरग्ने¦शि॒वेभि᳚र्नःपा॒युभिः॑पाहिश॒ग्मैः | अद॑ब्धेभि॒रदृ॑पितेभिरि॒ष्टे¦ऽनि॑मिषद्भिः॒परि॑पाहिनो॒जाः || 8 || |
[144] एतीति सप्तर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाग्निर्जगती |{मंडल:1, सूक्त:144}{अनुवाक:21, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
एति॒प्रहोता᳚व्र॒तम॑स्यमा॒ययो॒¦र्ध्वांदधा᳚नः॒शुचि॑पेशसं॒धिय᳚म् | अ॒भिस्रुचः॑क्रमतेदक्षिणा॒वृतो॒¦या,अ॑स्य॒धाम॑प्रथ॒मंह॒निंस॑ते || 1 || वर्ग:13 |
अ॒भीमृ॒तस्य॑दो॒हना᳚,अनूषत॒¦योनौ᳚दे॒वस्य॒सद॑ने॒परी᳚वृताः | अ॒पामु॒पस्थे॒विभृ॑तो॒यदाव॑स॒¦दध॑स्व॒धा,अ॑धय॒द्याभि॒रीय॑ते || 2 || |
युयू᳚षतः॒सव॑यसा॒तदिद्वपुः॑¦समा॒नमर्थं᳚वि॒तरि॑त्रतामि॒थः | आदीं॒भगो॒नहव्यः॒सम॒स्मदा¦वोळ्हु॒र्नर॒श्मीन्त्सम॑यंस्त॒सार॑थिः || 3 || |
यमीं॒द्वासव॑यसासप॒र्यतः॑¦समा॒नेयोना᳚मिथु॒नासमो᳚कसा | दिवा॒ननक्तं᳚पलि॒तोयुवा᳚जनि¦पु॒रूचर᳚न्न॒जरो॒मानु॑षायु॒गा || 4 || |
तमीं᳚हिन्वन्तिधी॒तयो॒दश॒व्रिशो᳚¦दे॒वंमर्ता᳚सऊ॒तये᳚हवामहे | धनो॒रधि॑प्र॒वत॒आसऋ᳚ण्व¦त्यभि॒व्रज॑द्भिर्व॒युना॒नवा᳚धित || 5 || |
त्वंह्य॑ग्नेदि॒व्यस्य॒राज॑सि॒¦त्वंपार्थि॑वस्यपशु॒पा,इ॑व॒त्मना᳚ | एनी᳚तए॒तेबृ॑ह॒ती,अ॑भि॒श्रिया᳚¦हिर॒ण्ययी॒वक्व॑रीब॒र्हिरा᳚शाते || 6 || |
अग्ने᳚जु॒षस्व॒प्रति॑हर्य॒तद्वचो॒¦मन्द्र॒स्वधा᳚व॒ऋत॑जात॒सुक्र॑तो | योवि॒श्वतः॑प्र॒त्यङ्ङसि॑दर्श॒तो¦र॒ण्वःसंदृ॑ष्टौपितु॒माँ,इ॑व॒क्षयः॑ || 7 || |
[145] तंपृच्छतेति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्निर्जगतीअंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:145}{अनुवाक:21, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
तंपृ॑च्छता॒सज॑गामा॒सवे᳚द॒¦सचि॑कि॒त्वाँ,ई᳚यते॒सान्वी᳚यते | तस्मि᳚न्त्सन्तिप्र॒शिष॒स्तस्मि᳚न्नि॒ष्टयः॒¦सवाज॑स्य॒शव॑सःशु॒ष्मिण॒स्पतिः॑ || 1 || वर्ग:14 |
तमित्पृ॑च्छन्ति॒नसि॒मोविपृ॑च्छति॒¦स्वेने᳚व॒धीरो॒मन॑सा॒यदग्र॑भीत् | नमृ॑ष्यतेप्रथ॒मंनाप॑रं॒वचो॒¦ऽस्यक्रत्वा᳚सचते॒,अप्र॑दृपितः || 2 || |
तमिद्ग॑च्छन्तिजु॒ह्व१॑(अ॒)स्तमर्व॑ती॒¦र्विश्वा॒न्येकः॑शृणव॒द्वचां᳚सिमे | पु॒रु॒प्रै॒षस्ततु॑रिर्यज्ञ॒साध॒नो¦ऽच्छि॑द्रोतिः॒शिशु॒राद॑त्त॒संरभः॑ || 3 || |
उ॒प॒स्थायं᳚चरति॒यत्स॒मार॑त¦स॒द्योजा॒तस्त॑त्सार॒युज्ये᳚भिः | अ॒भिश्वा॒न्तंमृ॑शतेना॒न्द्ये᳚मु॒दे¦यदीं॒गच्छ᳚न्त्युश॒तीर॑पिष्ठि॒तम् || 4 || |
सईं᳚मृ॒गो,अप्यो᳚वन॒र्गु¦रुप॑त्व॒च्यु॑प॒मस्यां॒निधा᳚यि | व्य॑ब्रवीद्व॒युना॒मर्त्ये᳚भ्यो॒¦ऽग्निर्वि॒द्वाँ,ऋ॑त॒चिद्धिस॒त्यः || 5 || |
[146] त्रिमूर्धानमिति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्यो दीर्घतमाअग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:146}{अनुवाक:21, सूक्त:7}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
त्रि॒मू॒र्धानं᳚स॒प्तर॑श्मिंगृणी॒षे¦ऽनू᳚नम॒ग्निंपि॒त्रोरु॒पस्थे᳚ | नि॒ष॒त्तम॑स्य॒चर॑तोध्रु॒वस्य॒¦विश्वा᳚दि॒वोरो᳚च॒नाप॑प्रि॒वांस᳚म् || 1 || वर्ग:15 |
उ॒क्षाम॒हाँ,अ॒भिव॑वक्षएने¦,अ॒जर॑स्तस्थावि॒तऊ᳚तिरृ॒ष्वः | उ॒र्व्याःप॒दोनिद॑धाति॒सानौ᳚¦रि॒हन्त्यूधो᳚,अरु॒षासो᳚,अस्य || 2 || |
स॒मा॒नंव॒त्सम॒भिसं॒चर᳚न्ती॒¦विष्व॑ग्धे॒नूविच॑रतःसु॒मेके᳚ | अ॒न॒प॒वृ॒ज्याँ,अध्व॑नो॒मिमा᳚ने॒¦विश्वा॒न्केताँ॒,अधि॑म॒होदधा᳚ने || 3 || |
धीरा᳚सःप॒दंक॒वयो᳚नयन्ति॒¦नाना᳚हृ॒दारक्ष॑माणा,अजु॒र्यम् | सिषा᳚सन्तः॒पर्य॑पश्यन्त॒सिन्धु॑¦मा॒विरे᳚भ्यो,अभव॒त्सूर्यो॒नॄन् || 4 || |
दि॒दृ॒क्षेण्यः॒परि॒काष्ठा᳚सु॒जेन्य॑¦ई॒ळेन्यो᳚म॒हो,अर्भा᳚यजी॒वसे᳚ | पु॒रु॒त्रायदभ॑व॒त्सूरहै᳚भ्यो॒¦गर्भे᳚भ्योम॒घवा᳚वि॒श्वद॑र्शतः || 5 || |
[147] कथातइतिपंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्नित्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:147}{अनुवाक:21, सूक्त:8}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
क॒थाते᳚,अग्नेशु॒चय᳚न्तआ॒यो¦र्द॑दा॒शुर्वाजे᳚भिराशुषा॒णाः | उ॒भेयत्तो॒केतन॑ये॒दधा᳚ना¦ऋ॒तस्य॒साम᳚न्र॒णय᳚न्तदे॒वाः || 1 || वर्ग:16 |
बोधा᳚मे,अ॒स्यवच॑सोयविष्ठ॒¦मंहि॑ष्ठस्य॒प्रभृ॑तस्यस्वधावः | पीय॑तित्वो॒,अनु॑त्वोगृणाति¦व॒न्दारु॑स्तेत॒न्वं᳚वन्दे,अग्ने || 2 || |
येपा॒यवो᳚मामते॒यंते᳚,अग्ने॒¦पश्य᳚न्तो,अ॒न्धंदु॑रि॒तादर॑क्षन् | र॒रक्ष॒तान्त्सु॒कृतो᳚वि॒श्ववे᳚दा॒¦दिप्स᳚न्त॒इद्रि॒पवो॒नाह॑देभुः || 3 || |
योनो᳚,अग्ने॒,अर॑रिवाँ,अघा॒यु¦र॑राती॒वाम॒र्चय॑तिद्व॒येन॑ | मन्त्रो᳚गु॒रुःपुन॑रस्तु॒सो,अ॑स्मा॒,¦अनु॑मृक्षीष्टत॒न्वं᳚दुरु॒क्तैः || 4 || |
उ॒तवा॒यःस॑हस्यप्रवि॒द्वान्¦मर्तो॒मर्तं᳚म॒र्चय॑तिद्व॒येन॑ | अतः॑पाहिस्तवमानस्तु॒वन्त॒¦मग्ने॒माकि᳚र्नोदुरि॒ताय॑धायीः || 5 || |
[148] मथीद्यदीमिति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:148}{अनुवाक:21, सूक्त:9}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
मथी॒द्यदीं᳚वि॒ष्टोमा᳚त॒रिश्वा॒¦होता᳚रंवि॒श्वाप्सुं᳚वि॒श्वदे᳚व्यम् | नियंद॒धुर्म॑नु॒ष्या᳚सुवि॒क्षु¦स्व१॑(अ॒)र्णचि॒त्रंवपु॑षेवि॒भाव᳚म् || 1 || वर्ग:17 |
द॒दा॒नमिन्नद॑दभन्त॒मन्मा॒¦ग्निर्वरू᳚थं॒मम॒तस्य॑चाकन् | जु॒षन्त॒विश्वा᳚न्यस्य॒कर्मो¦प॑स्तुतिं॒भर॑माणस्यका॒रोः || 2 || |
नित्ये᳚चि॒न्नुयंसद॑नेजगृ॒भ्रे¦प्रश॑स्तिभिर्दधि॒रेय॒ज्ञिया᳚सः | प्रसून॑यन्तगृ॒भय᳚न्तइ॒ष्टा¦वश्वा᳚सो॒नर॒थ्यो᳚रारहा॒णाः || 3 || |
पु॒रूणि॑द॒स्मोनिरि॑णाति॒जम्भै॒¦राद्रो᳚चते॒वन॒आवि॒भावा᳚ | आद॑स्य॒वातो॒,अनु॑वातिशो॒चि¦रस्तु॒र्नशर्या᳚मस॒नामनु॒द्यून् || 4 || |
नयंरि॒पवो॒नरि॑ष॒ण्यवो॒¦गर्भे॒सन्तं᳚रेष॒णारे॒षय᳚न्ति | अ॒न्धा,अ॑प॒श्यानद॑भन्नभि॒ख्या¦नित्या᳚सईंप्रे॒तारो᳚,अरक्षन् || 5 || |
[149] महः सरायइति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्निर्विराट् |{मंडल:1, सूक्त:149}{अनुवाक:21, सूक्त:10}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
म॒हःसरा॒यएष॑ते॒पति॒र्द¦न्नि॒नइ॒नस्य॒वसु॑नःप॒दआ | उप॒ध्रज᳚न्त॒मद्र॑योवि॒धन्नित् || 1 || वर्ग:18 |
सयोवृषा᳚न॒रांनरोद॑स्योः॒¦श्रवो᳚भि॒रस्ति॑जी॒वपी᳚तसर्गः | प्रयःस॑स्रा॒णःशि॑श्री॒तयोनौ᳚ || 2 || |
आयःपुरं॒नार्मि॑णी॒मदी᳚दे॒¦दत्यः॑क॒विर्न॑भ॒न्यो॒३॑(ओ॒)नार्वा᳚ | सूरो॒नरु॑रु॒क्वाञ्छ॒तात्मा᳚ || 3 || |
अ॒भिद्वि॒जन्मा॒त्रीरो᳚च॒नानि॒¦विश्वा॒रजां᳚सिशुशुचा॒नो,अ॑स्थात् | होता॒यजि॑ष्ठो,अ॒पांस॒धस्थे᳚ || 4 || |
अ॒यंसहोता॒योद्वि॒जन्मा॒¦विश्वा᳚द॒धेवार्या᳚णिश्रव॒स्या | मर्तो॒यो,अ॑स्मैसु॒तुको᳚द॒दाश॑ || 5 || |
[150] पुरुत्वेति तृचस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअग्निरुष्णिक् |{मंडल:1, सूक्त:150}{अनुवाक:21, सूक्त:11}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
पु॒रुत्वा᳚दा॒श्वान्वो᳚चे॒¦ऽरिर॑ग्ने॒तव॑स्वि॒दा | तो॒दस्ये᳚वशर॒णआम॒हस्य॑ || 1 || वर्ग:19 |
व्य॑नि॒नस्य॑ध॒निनः॑¦प्रहो॒षेचि॒दर॑रुषः | क॒दाच॒नप्र॒जिग॑तो॒,अदे᳚वयोः || 2 || |
सच॒न्द्रोवि॑प्र॒मर्त्यो᳚¦म॒होव्राध᳚न्तमोदि॒वि | प्रप्रेत्ते᳚,अग्नेव॒नुषः॑स्याम || 3 || |
[151] मित्रंनयमिति नवर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमामित्रावरुणावाद्यायामित्रोजगती |{मंडल:1, सूक्त:151}{अनुवाक:21, सूक्त:12}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
मि॒त्रंनयंशिम्या॒गोषु॑ग॒व्यवः॑¦स्वा॒ध्यो᳚वि॒दथे᳚,अ॒प्सुजीज॑नन् | अरे᳚जेतां॒रोद॑सी॒पाज॑सागि॒रा¦प्रति॑प्रि॒यंय॑ज॒तंज॒नुषा॒मवः॑ || 1 || वर्ग:20 |
यद्ध॒त्यद्वां᳚पुरुमी॒ळ्हस्य॑सो॒मिनः॒¦प्रमि॒त्रासो॒नद॑धि॒रेस्वा॒भुवः॑ | अध॒क्रतुं᳚विदतंगा॒तुमर्च॑त¦उ॒तश्रु॑तंवृषणाप॒स्त्या᳚वतः || 2 || |
आवां᳚भूषन्क्षि॒तयो॒जन्म॒रोद॑स्योः¦प्र॒वाच्यं᳚वृषणा॒दक्ष॑सेम॒हे | यदी᳚मृ॒ताय॒भर॑थो॒यदर्व॑ते॒¦प्रहोत्र॑या॒शिम्या᳚वीथो,अध्व॒रम् || 3 || |
प्रसाक्षि॒तिर॑सुर॒यामहि॑प्रि॒य¦ऋता᳚वानावृ॒तमाघो᳚षथोबृ॒हत् | यु॒वंदि॒वोबृ॑ह॒तोदक्ष॑मा॒भुवं॒¦गांनधु॒र्युप॑युञ्जाथे,अ॒पः || 4 || |
म॒ही,अत्र॑महि॒नावार॑मृण्वथो¦ऽरे॒णव॒स्तुज॒आसद्म᳚न्धे॒नवः॑ | स्वर᳚न्ति॒ता,उ॑प॒रता᳚ति॒सूर्य॒¦मानि॒म्रुच॑उ॒षस॑स्तक्व॒वीरि॑व || 5 || |
आवा᳚मृ॒ताय॑के॒शिनी᳚रनूषत॒¦मित्र॒यत्र॒वरु॑णगा॒तुमर्च॑थः | अव॒त्मना᳚सृ॒जतं॒पिन्व॑तं॒धियो᳚¦यु॒वंविप्र॑स्य॒मन्म॑नामिरज्यथः || 6 || वर्ग:21 |
योवां᳚य॒ज्ञैःश॑शमा॒नोह॒दाश॑ति¦क॒विर्होता॒यज॑तिमन्म॒साध॑नः | उपाह॒तंगच्छ॑थोवी॒थो,अ॑ध्व॒र¦मच्छा॒गिरः॑सुम॒तिंग᳚न्तमस्म॒यू || 7 || |
यु॒वांय॒ज्ञैःप्र॑थ॒मागोभि॑रञ्जत॒¦ऋता᳚वाना॒मन॑सो॒नप्रयु॑क्तिषु | भर᳚न्तिवां॒मन्म॑नासं॒यता॒गिरो¦ऽदृ॑प्यता॒मन॑सारे॒वदा᳚शाथे || 8 || |
रे॒वद्वयो᳚दधाथेरे॒वदा᳚शाथे॒¦नरा᳚मा॒याभि॑रि॒तऊ᳚ति॒माहि॑नम् | नवां॒द्यावोऽह॑भि॒र्नोतसिन्ध॑वो॒¦नदे᳚व॒त्वंप॒णयो॒नान॑शुर्म॒घम् || 9 || |
[152] युवंवस्त्राणीति सप्तर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमामित्रावरुणौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:152}{अनुवाक:21, सूक्त:13}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
यु॒वंवस्त्रा᳚णिपीव॒साव॑साथे¦यु॒वोरच्छि॑द्रा॒मन्त॑वोह॒सर्गाः᳚ | अवा᳚तिरत॒मनृ॑तानि॒विश्व॑¦ऋ॒तेन॑मित्रावरुणासचेथे || 1 || वर्ग:22 |
ए॒तच्च॒नत्वो॒विचि॑केतदेषां¦स॒त्योमन्त्रः॑कविश॒स्तऋघा᳚वान् | त्रि॒रश्रिं᳚हन्ति॒चतु॑रश्रिरु॒ग्रो¦दे᳚व॒निदो᳚हप्र॑थ॒मा,अ॑जूर्यन् || 2 || |
अ॒पादे᳚तिप्रथ॒माप॒द्वती᳚नां॒¦कस्तद्वां᳚मित्रावरु॒णाचि॑केत | गर्भो᳚भा॒रंभ॑र॒त्याचि॑दस्य¦ऋ॒तंपिप॒र्त्यनृ॑तं॒निता᳚रीत् || 3 || |
प्र॒यन्त॒मित्परि॑जा॒रंक॒नीनां॒¦पश्या᳚मसि॒नोप॑नि॒पद्य॑मानम् | अन॑वपृग्णा॒वित॑ता॒वसा᳚नं¦प्रि॒यंमि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒धाम॑ || 4 || |
अ॒न॒श्वोजा॒तो,अ॑नभी॒शुरर्वा॒¦कनि॑क्रदत्पतयदू॒र्ध्वसा᳚नुः | अ॒चित्तं॒ब्रह्म॑जुजुषु॒र्युवा᳚नः॒¦प्रमि॒त्रेधाम॒वरु॑णेगृ॒णन्तः॑ || 5 || |
आधे॒नवो᳚मामते॒यमव᳚न्ती¦र्ब्रह्म॒प्रियं᳚पीपय॒न्त्सस्मि॒न्नूध॑न् | पि॒त्वोभि॑क्षेतव॒युना᳚निवि॒द्वा¦ना॒साविवा᳚स॒न्नदि॑तिमुरुष्येत् || 6 || |
आवां᳚मित्रावरुणाह॒व्यजु॑ष्टिं॒¦नम॑सादेवा॒वव॑साववृत्याम् | अ॒स्माकं॒ब्रह्म॒पृत॑नासुसह्या¦,अ॒स्माकं᳚वृ॒ष्टिर्दि॒व्यासु॑पा॒रा || 7 || |
[153] यजामहइति चतुरृचस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमामित्रावरुणौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:153}{अनुवाक:21, सूक्त:14}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
यजा᳚महेवांम॒हःस॒जोषा᳚¦ह॒व्येभि᳚र्मित्रावरुणा॒नमो᳚भिः | घृ॒तैर्घृ॑तस्नू॒,अध॒यद्वा᳚म॒स्मे¦,अ॑ध्व॒र्यवो॒नधी॒तिभि॒र्भर᳚न्ति || 1 || वर्ग:23 |
प्रस्तु॑तिर्वां॒धाम॒नप्रयु॑क्ति॒¦रया᳚मिमित्रावरुणासुवृ॒क्तिः | अ॒नक्ति॒यद्वां᳚वि॒दथे᳚षु॒होता᳚¦सु॒म्नंवां᳚सू॒रिर्वृ॑षणा॒विय॑क्षन् || 2 || |
पी॒पाय॑धे॒नुरदि॑तिरृ॒ताय॒¦जना᳚यमित्रावरुणाहवि॒र्दे | हि॒नोति॒यद्वां᳚वि॒दथे᳚सप॒र्यन्¦त्सरा॒तह᳚व्यो॒मानु॑षो॒नहोता᳚ || 3 || |
उ॒तवां᳚वि॒क्षुमद्या॒स्वन्धो॒¦गाव॒आप॑श्चपीपयन्तदे॒वीः | उ॒तोनो᳚,अ॒स्यपू॒र्व्यःपति॒र्दन्¦वी॒तंपा॒तंपय॑सउ॒स्रिया᳚याः || 4 || |
[154] विष्णोर्नुकमिति षडृचस्य सूक्तस्यौचध्योदीर्घतमा विष्णुस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:154}{अनुवाक:21, सूक्त:15}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
विष्णो॒र्नुकं᳚वी॒र्या᳚णि॒प्रवो᳚चं॒¦यःपार्थि॑वानिविम॒मेरजां᳚सि | यो,अस्क॑भाय॒दुत्त॑रंस॒धस्थं᳚¦विचक्रमा॒णस्त्रे॒धोरु॑गा॒यः || 1 || वर्ग:24 |
प्रतद्विष्णुः॑स्तवतेवी॒र्ये᳚ण¦मृ॒गोनभी॒मःकु॑च॒रोगि॑रि॒ष्ठाः | यस्यो॒रुषु॑त्रि॒षुवि॒क्रम॑णे¦ष्वधिक्षि॒यन्ति॒भुव॑नानि॒विश्वा᳚ || 2 || |
प्रविष्ण॑वेशू॒षमे᳚तु॒मन्म॑¦गिरि॒क्षित॑उरुगा॒याय॒वृष्णे᳚ | यइ॒दंदी॒र्घंप्रय॑तंस॒धस्थ॒¦मेको᳚विम॒मेत्रि॒भिरित्प॒देभिः॑ || 3 || |
यस्य॒त्रीपू॒र्णामधु॑नाप॒दा¦न्यक्षी᳚यमाणास्व॒धया॒मद᳚न्ति | यउ॑त्रि॒धातु॑पृथि॒वीमु॒तद्या¦मेको᳚दा॒धार॒भुव॑नानि॒विश्वा᳚ || 4 || |
तद॑स्यप्रि॒यम॒भिपाथो᳚,अश्यां॒¦नरो॒यत्र॑देव॒यवो॒मद᳚न्ति | उ॒रु॒क्र॒मस्य॒सहिबन्धु॑रि॒त्था¦विष्णोः᳚प॒देप॑र॒मेमध्व॒उत्सः॑ || 5 || |
तावां॒वास्तू᳚न्युश्मसि॒गम॑ध्यै॒¦यत्र॒गावो॒भूरि॑शृङ्गा,अ॒यासः॑ | अत्राह॒तदु॑रुगा॒यस्य॒वृष्णः॑¦पर॒मंप॒दमव॑भाति॒भूरि॑ || 6 || |
[155] प्रवःपांतमिति षडृचस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमा आद्यानांतिसृणामिंद्राविष्णू ततस्तिसृणांविष्णुर्जगती |{मंडल:1, सूक्त:155}{अनुवाक:21, सूक्त:16}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
प्रवः॒पान्त॒मन्ध॑सोधियाय॒ते¦म॒हेशूरा᳚य॒विष्ण॑वेचार्चत | यासानु॑नि॒पर्व॑ताना॒मदा᳚भ्या¦म॒हस्त॒स्थतु॒रर्व॑तेवसा॒धुना᳚ || 1 || वर्ग:25 |
त्वे॒षमि॒त्थास॒मर॑णं॒शिमी᳚वतो॒¦रिन्द्रा᳚विष्णूसुत॒पावा᳚मुरुष्यति | यामर्त्या᳚यप्रतिधी॒यमा᳚न॒मित्¦कृ॒शानो॒रस्तु॑रस॒नामु॑रु॒ष्यथः॑ || 2 || |
ता,ईं᳚वर्धन्ति॒मह्य॑स्य॒पौंस्यं॒¦निमा॒तरा᳚नयति॒रेत॑सेभु॒जे | दधा᳚तिपु॒त्रोऽव॑रं॒परं᳚पि॒तु¦र्नाम॑तृ॒तीय॒मधि॑रोच॒नेदि॒वः || 3 || |
तत्त॒दिद॑स्य॒पौंस्यं᳚गृणीमसी॒¦नस्य॑त्रा॒तुर॑वृ॒कस्य॑मी॒ळ्हुषः॑ | यःपार्थि॑वानित्रि॒भिरिद्विगा᳚मभि¦रु॒रुक्रमि॑ष्टोरुगा॒याय॑जी॒वसे᳚ || 4 || |
द्वे,इद॑स्य॒क्रम॑णेस्व॒र्दृशो᳚¦ऽभि॒ख्याय॒मर्त्यो᳚भुरण्यति | तृ॒तीय॑मस्य॒नकि॒राद॑धर्षति॒¦वय॑श्च॒नप॒तय᳚न्तःपत॒त्रिणः॑ || 5 || |
च॒तुर्भिः॑सा॒कंन॑व॒तिंच॒नाम॑भि¦श्च॒क्रंनवृ॒त्तंव्यतीँ᳚रवीविपत् | बृ॒हच्छ॑रीरोवि॒मिमा᳚न॒ऋक्व॑भिर्॒¦युवाकु॑मारः॒प्रत्ये᳚त्याह॒वम् || 6 || |
[156] भवामित्रइति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाविष्णुर्जगती |{मंडल:1, सूक्त:156}{अनुवाक:21, सूक्त:17}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
भवा᳚मि॒त्रोनशेव्यो᳚घृ॒तासु॑तिर्॒¦विभू᳚तद्युम्नएव॒या,उ॑स॒प्रथाः᳚ | अधा᳚तेविष्णोवि॒दुषा᳚चि॒दर्ध्यः॒¦स्तोमो᳚य॒ज्ञश्च॒राध्यो᳚ह॒विष्म॑ता || 1 || वर्ग:26 |
यःपू॒र्व्याय॑वे॒धसे॒नवी᳚यसे¦सु॒मज्जा᳚नये॒विष्ण॑वे॒ददा᳚शति | योजा॒तम॑स्यमह॒तोमहि॒ब्रव॒त्¦सेदु॒श्रवो᳚भि॒र्युज्यं᳚चिद॒भ्य॑सत् || 2 || |
तमु॑स्तोतारःपू॒र्व्यंयथा᳚वि॒द¦ऋ॒तस्य॒गर्भं᳚ज॒नुषा᳚पिपर्तन | आस्य॑जा॒नन्तो॒नाम॑चिद्विवक्तन¦म॒हस्ते᳚विष्णोसुम॒तिंभ॑जामहे || 3 || |
तम॑स्य॒राजा॒वरु॑ण॒स्तम॒श्विना॒¦क्रतुं᳚सचन्त॒मारु॑तस्यवे॒धसः॑ | दा॒धार॒दक्ष॑मुत्त॒मम॑ह॒र्विदं᳚¦व्र॒जंच॒विष्णुः॒सखि॑वाँ,अपोर्णु॒ते || 4 || |
आयोवि॒वाय॑स॒चथा᳚य॒दैव्य॒¦इन्द्रा᳚य॒विष्णुः॑सु॒कृते᳚सु॒कृत्त॑रः | वे॒धा,अ॑जिन्वत्त्रिषध॒स्थआर्य॑¦मृ॒तस्य॑भा॒गेयज॑मान॒माभ॑जत् || 5 || |
[157] अबोध्यग्निरिति षडृचस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअश्विनौ जगत्यंत्येद्वेत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:157}{अनुवाक:22, सूक्त:1}{अष्टक:2, अध्याय:2} |
अबो᳚ध्य॒ग्निर्ज्मउदे᳚ति॒सूर्यो॒¦व्यु१॑(उ॒)षाश्च॒न्द्राम॒ह्या᳚वो,अ॒र्चिषा᳚ | आयु॑क्षाताम॒श्विना॒यात॑वे॒रथं॒¦प्रासा᳚वीद्दे॒वःस॑वि॒ताजग॒त्पृथ॑क् || 1 || वर्ग:27 |
यद्यु॒ञ्जाथे॒वृष॑णमश्विना॒रथं᳚¦घृ॒तेन॑नो॒मधु॑नाक्ष॒त्रमु॑क्षतम् | अ॒स्माकं॒ब्रह्म॒पृत॑नासुजिन्वतं¦व॒यंधना॒शूर॑साताभजेमहि || 2 || |
अ॒र्वाङ्त्रि॑च॒क्रोम॑धु॒वाह॑नो॒रथो᳚¦जी॒राश्वो᳚,अ॒श्विनो᳚र्यातु॒सुष्टु॑तः | त्रि॒व॒न्धु॒रोम॒घवा᳚वि॒श्वसौ᳚भगः॒¦शंन॒आव॑क्षद्द्वि॒पदे॒चतु॑ष्पदे || 3 || |
आन॒ऊर्जं᳚वहतमश्विनायु॒वं¦मधु॑मत्यानः॒कश॑यामिमिक्षतम् | प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒नीरपां᳚सिमृक्षतं॒¦सेध॑तं॒द्वेषो॒भव॑तंसचा॒भुवा᳚ || 4 || |
यु॒वंह॒गर्भं॒जग॑तीषुधत्थो¦यु॒वंविश्वे᳚षु॒भुव॑नेष्व॒न्तः | यु॒वम॒ग्निंच॑वृषणाव॒पश्च॒¦वन॒स्पतीँ᳚रश्विना॒वैर॑येथाम् || 5 || |
यु॒वंह॑स्थोभि॒षजा᳚भेष॒जेभि॒¦रथो᳚हस्थोर॒थ्या॒३॑(आ॒)राथ्ये᳚भिः | अथो᳚हक्ष॒त्रमधि॑धत्थउग्रा॒¦योवां᳚ह॒विष्मा॒न्मन॑साद॒दाश॑ || 6 || |
[158] वसूरुद्राइति षडृचस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअश्विनौत्रिष्टुबन्त्यानुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:158}{अनुवाक:22, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
वसू᳚रु॒द्रापु॑रु॒मन्तू᳚वृ॒धन्ता᳚¦दश॒स्यतं᳚नोवृषणाव॒भिष्टौ᳚ | दस्रा᳚ह॒यद्रेक्ण॑औच॒थ्योवां॒¦प्रयत्स॒स्राथे॒,अक॑वाभिरू॒ती || 1 || वर्ग:1 |
कोवां᳚दाशत्सुम॒तये᳚चिद॒स्यै¦वसू॒यद्धेथे॒नम॑साप॒देगोः | जि॒गृ॒तम॒स्मेरे॒वतीः॒पुरं᳚धीः¦काम॒प्रेणे᳚व॒मन॑सा॒चर᳚न्ता || 2 || |
यु॒क्तोह॒यद्वां᳚तौ॒ग्र्याय॑पे॒रु¦र्विमध्ये॒,अर्ण॑सो॒धायि॑प॒ज्रः | उप॑वा॒मवः॑शर॒णंग॑मेयं॒¦शूरो॒नाज्म॑प॒तय॑द्भि॒रेवैः᳚ || 3 || |
उप॑स्तुतिरौच॒थ्यमु॑रुष्ये॒¦न्मामामि॒मेप॑त॒त्रिणी॒विदु॑ग्धाम् | मामामेधो॒दश॑तयश्चि॒तोधा॒क्¦प्रयद्वां᳚ब॒द्धस्त्मनि॒खाद॑ति॒क्षाम् || 4 || |
नमा᳚गरन्न॒द्यो᳚मा॒तृत॑मा¦दा॒सायदीं॒सुस॑मुब्धम॒वाधुः॑ | शिरो॒यद॑स्यत्रैत॒नोवि॒तक्ष॑त्¦स्व॒यंदा॒सउरो॒,अंसा॒वपि॑ग्ध || 5 || |
दी॒र्घत॑मामामते॒यो¦जु॑जु॒र्वान्द॑श॒मेयु॒गे | अ॒पामर्थं᳚य॒तीनां᳚¦ब्र॒ह्माभ॑वति॒सार॑थिः || 6 || |
[159] प्रद्यावायज्ञैरिति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाद्यावापृथिव्यौजगती |{मंडल:1, सूक्त:159}{अनुवाक:22, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
प्रद्यावा᳚य॒ज्ञैःपृ॑थि॒वी,ऋ॑ता॒वृधा᳚¦म॒हीस्तु॑षेवि॒दथे᳚षु॒प्रचे᳚तसा | दे॒वेभि॒र्येदे॒वपु॑त्रेसु॒दंस॑से॒¦त्थाधि॒यावार्या᳚णिप्र॒भूष॑तः || 1 || वर्ग:2 |
उ॒तम᳚न्येपि॒तुर॒द्रुहो॒मनो᳚¦मा॒तुर्महि॒स्वत॑व॒स्तद्धवी᳚मभिः | सु॒रेत॑सापि॒तरा॒भूम॑चक्रतु¦रु॒रुप्र॒जाया᳚,अ॒मृतं॒वरी᳚मभिः || 2 || |
तेसू॒नवः॒स्वप॑सःसु॒दंस॑सो¦म॒हीज॑ज्ञुर्मा॒तरा᳚पू॒र्वचि॑त्तये | स्था॒तुश्च॑स॒त्यंजग॑तश्च॒धर्म॑णि¦पु॒त्रस्य॑पाथःप॒दमद्व॑याविनः || 3 || |
तेमा॒यिनो᳚ममिरेसु॒प्रचे᳚तसो¦जा॒मीसयो᳚नीमिथु॒नासमो᳚कसा | नव्यं᳚नव्यं॒तन्तु॒मात᳚न्वतेदि॒वि¦स॑मु॒द्रे,अ॒न्तःक॒वयः॑सुदी॒तयः॑ || 4 || |
तद्राधो᳚,अ॒द्यस॑वि॒तुर्वरे᳚ण्यं¦व॒यंदे॒वस्य॑प्रस॒वेम॑नामहे | अ॒स्मभ्यं᳚द्यावापृथिवीसुचे॒तुना᳚¦र॒यिंध॑त्तं॒वसु॑मन्तंशत॒ग्विन᳚म् || 5 || |
[160] तेहीति पंचर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाद्यावापृथिव्यौजगती |{मंडल:1, सूक्त:160}{अनुवाक:22, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
तेहिद्यावा᳚पृथि॒वीवि॒श्वश᳚म्भुव¦ऋ॒ताव॑री॒रज॑सोधार॒यत्क॑वी | सु॒जन्म॑नीधि॒षणे᳚,अ॒न्तरी᳚यते¦दे॒वोदे॒वीधर्म॑णा॒सूर्यः॒शुचिः॑ || 1 || वर्ग:3 |
उ॒रु॒व्यच॑साम॒हिनी᳚,अस॒श्चता᳚¦पि॒तामा॒ताच॒भुव॑नानिरक्षतः | सु॒धृष्ट॑मेवपु॒ष्ये॒३॑(ए॒)नरोद॑सी¦पि॒तायत्सी᳚म॒भिरू॒पैरवा᳚सयत् || 2 || |
सवह्निः॑पु॒त्रःपि॒त्रोःप॒वित्र॑वान्¦पु॒नाति॒धीरो॒भुव॑नानिमा॒यया᳚ | धे॒नुंच॒पृश्निं᳚वृष॒भंसु॒रेत॑सं¦वि॒श्वाहा᳚शु॒क्रंपयो᳚,अस्यदुक्षत || 3 || |
अ॒यंदे॒वाना᳚म॒पसा᳚म॒पस्त॑मो॒¦योज॒जान॒रोद॑सीवि॒श्वश᳚म्भुवा | वियोम॒मेरज॑सीसुक्रतू॒यया॒¦जरे᳚भिः॒स्कम्भ॑नेभिः॒समा᳚नृचे || 4 || |
तेनो᳚गृणा॒नेम॑हिनी॒महि॒श्रवः॑,¦क्ष॒त्रंद्या᳚वापृथिवीधासथोबृ॒हत् | येना॒भिकृ॒ष्टीस्त॒तना᳚मवि॒श्वहा᳚¦प॒नाय्य॒मोजो᳚,अ॒स्मेसमि᳚न्वतम् || 5 || |
[161] किमुश्रेष्ठइति चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाऋभवोजगत्यंत्या त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:161}{अनुवाक:22, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
किमु॒श्रेष्ठः॒किंयवि॑ष्ठोन॒आज॑ग॒न्¦किमी᳚यतेदू॒त्य१॑(अं॒)कद्यदू᳚चि॒म | ननि᳚न्दिमचम॒संयोम॑हाकु॒लो¦ऽग्ने᳚भ्रात॒र्द्रुण॒इद्भू॒तिमू᳚दिम || 1 || वर्ग:4 |
एकं᳚चम॒संच॒तुरः॑कृणोतन॒¦तद्वो᳚दे॒वा,अ॑ब्रुव॒न्तद्व॒आग॑मम् | सौध᳚न्वना॒यद्ये॒वाक॑रि॒ष्यथ॑¦सा॒कंदे॒वैर्य॒ज्ञिया᳚सोभविष्यथ || 2 || |
अ॒ग्निंदू॒तंप्रति॒यदब्र॑वीत॒ना¦श्वः॒कर्त्वो॒रथ॑उ॒तेहकर्त्वः॑ | धे॒नुःकर्त्वा᳚युव॒शाकर्त्वा॒द्वा¦तानि॑भ्रात॒रनु॑वःकृ॒त्व्येम॑सि || 3 || |
च॒कृ॒वांस॑ऋभव॒स्तद॑पृच्छत॒¦क्वेद॑भू॒द्यःस्यदू॒तोन॒आज॑गन् | य॒दावाख्य॑च्चम॒साञ्च॒तुरः॑कृ॒ता¦नादित्त्वष्टा॒ग्नास्व॒न्तर्न्या᳚नजे || 4 || |
हना᳚मैनाँ॒,इति॒त्वष्टा॒यदब्र॑वी¦च्चम॒संयेदे᳚व॒पान॒मनि᳚न्दिषुः | अ॒न्यानामा᳚निकृण्वतेसु॒तेसचाँ᳚¦अ॒न्यैरे᳚नान्क॒न्या॒३॑(आ॒)नाम॑भिःस्परत् || 5 || |
इन्द्रो॒हरी᳚युयु॒जे,अ॒श्विना॒रथं॒¦बृह॒स्पति᳚र्वि॒श्वरू᳚पा॒मुपा᳚जत | ऋ॒भुर्विभ्वा॒वाजो᳚दे॒वाँ,अ॑गच्छत॒¦स्वप॑सोय॒ज्ञियं᳚भा॒गमै᳚तन || 6 || वर्ग:5 |
निश्चर्म॑णो॒गाम॑रिणीतधी॒तिभि॒¦र्याजर᳚न्तायुव॒शाताकृ॑णोतन | सौध᳚न्वना॒,अश्वा॒दश्व॑मतक्षत¦यु॒क्त्वारथ॒मुप॑दे॒वाँ,अ॑यातन || 7 || |
इ॒दमु॑द॒कंपि॑ब॒तेत्य॑ब्रवीतने॒¦दंवा᳚घापिबतामुञ्ज॒नेज॑नम् | सौध᳚न्वना॒यदि॒तन्नेव॒हर्य॑थ¦तृ॒तीये᳚घा॒सव॑नेमादयाध्वै || 8 || |
आपो॒भूयि॑ष्ठा॒,इत्येको᳚,अब्रवी¦द॒ग्निर्भूयि॑ष्ठ॒इत्य॒न्यो,अ॑ब्रवीत् | व॒ध॒र्यन्तीं᳚ब॒हुभ्यः॒प्रैको᳚,अब्रवी¦दृ॒तावद᳚न्तश्चम॒साँ,अ॑पिंशत || 9 || |
श्रो॒णामेक॑उद॒कंगामवा᳚जति¦मां॒समेकः॑पिंशतिसू॒नयाभृ॑तम् | आनि॒म्रुचः॒शकृ॒देको॒,अपा᳚भर॒त्¦किंस्वि॑त्पु॒त्रेभ्यः॑पि॒तरा॒,उपा᳚वतुः || 10 || |
उ॒द्वत्स्व॑स्मा,अकृणोतना॒तृणं᳚¦नि॒वत्स्व॒पःस्व॑प॒स्यया᳚नरः | अगो᳚ह्यस्य॒यदस॑स्तनागृ॒हे¦तद॒द्येदमृ॑भवो॒नानु॑गच्छथ || 11 || वर्ग:6 |
स॒म्मील्य॒यद्भुव॑नाप॒र्यस॑र्पत॒¦क्व॑स्वित्ता॒त्यापि॒तरा᳚वआसतुः | अश॑पत॒यःक॒रस्नं᳚वआद॒दे¦यःप्राब्र॑वी॒त्प्रोतस्मा᳚,अब्रवीतन || 12 || |
सु॒षु॒प्वांस॑ऋभव॒स्तद॑पृच्छ॒ता¦गो᳚ह्य॒कइ॒दंनो᳚,अबूबुधत् | श्वानं᳚ब॒स्तोबो᳚धयि॒तार॑मब्रवीत्¦संवत्स॒रइ॒दम॒द्याव्य॑ख्यत || 13 || |
दि॒वाया᳚न्तिम॒रुतो॒भूम्या॒ग्नि¦र॒यंवातो᳚,अ॒न्तरि॑क्षेणयाति | अ॒द्भिर्या᳚ति॒वरु॑णःसमु॒द्रै¦र्यु॒ष्माँ,इ॒च्छन्तः॑शवसोनपातः || 14 || |
[162] मानोमित्रइति द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्य औचथ्योदीर्घतमाअश्वस्त्रिष्टुप् तृतीयाषष्ट्यौजगत्यौ | (अश्वस्तुत्याश्वोदेवता) |{मंडल:1, सूक्त:162}{अनुवाक:22, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
मानो᳚मि॒त्रोवरु॑णो,अर्य॒मायु¦रिन्द्र॑ऋभु॒क्षाम॒रुतः॒परि॑ख्यन् | यद्वा॒जिनो᳚दे॒वजा᳚तस्य॒सप्तेः᳚¦प्रव॒क्ष्यामो᳚वि॒दथे᳚वी॒र्या᳚णि || 1 || वर्ग:7 |
यन्नि॒र्णिजा॒रेक्ण॑सा॒प्रावृ॑तस्य¦रा॒तिंगृ॑भी॒तांमु॑ख॒तोनय᳚न्ति | सुप्रा᳚ङ॒जोमेम्य॑द्वि॒श्वरू᳚प¦इन्द्रापू॒ष्णोःप्रि॒यमप्ये᳚ति॒पाथः॑ || 2 || |
ए॒षच्छागः॑पु॒रो,अश्वे᳚नवा॒जिना᳚¦पू॒ष्णोभा॒गोनी᳚यतेवि॒श्वदे᳚व्यः | अ॒भि॒प्रियं॒यत्पु॑रो॒ळाश॒मर्व॑ता॒¦त्वष्टेदे᳚नंसौश्रव॒साय॑जिन्वति || 3 || |
यद्ध॑वि॒ष्य॑मृतु॒शोदे᳚व॒यानं॒¦त्रिर्मानु॑षाः॒पर्यश्वं॒नय᳚न्ति | अत्रा᳚पू॒ष्णःप्र॑थ॒मोभा॒गए᳚ति¦य॒ज्ञंदे॒वेभ्यः॑प्रतिवे॒दय᳚न्न॒जः || 4 || |
होता᳚ध्व॒र्युराव॑या,अग्निमि॒न्धो¦ग्रा᳚वग्रा॒भउ॒तशंस्ता॒सुवि॑प्रः | तेन॑य॒ज्ञेन॒स्व॑रंकृतेन॒¦स्वि॑ष्टेनव॒क्षणा॒,आपृ॑णध्वम् || 5 || |
यू॒प॒व्र॒स्का,उ॒तयेयू᳚पवा॒हा¦श्च॒षालं॒ये,अ॑श्वयू॒पाय॒तक्ष॑ति | येचार्व॑ते॒पच॑नंस॒म्भर᳚¦न्त्यु॒तोतेषा᳚म॒भिगू᳚र्तिर्नइन्वतु || 6 || वर्ग:8 |
उप॒प्रागा᳚त्सु॒मन्मे᳚ऽधायि॒मन्म॑¦दे॒वाना॒माशा॒,उप॑वी॒तपृ॑ष्ठः | अन्वे᳚नं॒विप्रा॒ऋष॑योमदन्ति¦दे॒वानां᳚पु॒ष्टेच॑कृमासु॒बन्धु᳚म् || 7 || |
यद्वा॒जिनो॒दाम॑सं॒दान॒मर्व॑तो॒¦याशी᳚र्ष॒ण्या᳚रश॒नारज्जु॑रस्य | यद्वा᳚घास्य॒प्रभृ॑तमा॒स्ये॒३॑(ए॒)तृणं॒¦सर्वा॒ताते॒,अपि॑दे॒वेष्व॑स्तु || 8 || |
यदश्व॑स्यक्र॒विषो॒मक्षि॒काश॒¦यद्वा॒स्वरौ॒स्वधि॑तौरि॒प्तमस्ति॑ | यद्धस्त॑योःशमि॒तुर्यन्न॒खेषु॒¦सर्वा॒ताते॒,अपि॑दे॒वेष्व॑स्तु || 9 || |
यदूव॑ध्यमु॒दर॑स्याप॒वाति॒¦यआ॒मस्य॑क्र॒विषो᳚ग॒न्धो,अस्ति॑ | सु॒कृ॒तातच्छ॑मि॒तारः॑कृण्वन्तू॒¦तमेधं᳚शृत॒पाकं᳚पचन्तु || 10 || |
यत्ते॒गात्रा᳚द॒ग्निना᳚प॒च्यमा᳚ना¦द॒भिशूलं॒निह॑तस्याव॒धाव॑ति | मातद्भूम्या॒माश्रि॑ष॒न्मातृणे᳚षु¦दे॒वेभ्य॒स्तदु॒शद्भ्यो᳚रा॒तम॑स्तु || 11 || वर्ग:9 |
येवा॒जिनं᳚परि॒पश्य᳚न्तिप॒क्वं¦यई᳚मा॒हुःसु॑र॒भिर्निर्ह॒रेति॑ | येचार्व॑तोमांसभि॒क्षामु॒पास॑त¦उ॒तोतेषा᳚म॒भिगू᳚र्तिर्नइन्वतु || 12 || |
यन्नीक्ष॑णंमां॒स्पच᳚न्या,उ॒खाया॒¦यापात्रा᳚णियू॒ष्णआ॒सेच॑नानि | ऊ॒ष्म॒ण्या᳚पि॒धाना᳚चरू॒णा¦म॒ङ्काःसू॒नाःपरि॑भूष॒न्त्यश्व᳚म् || 13 || |
नि॒क्रम॑णंनि॒षद॑नंवि॒वर्त॑नं॒¦यच्च॒पड्बी᳚श॒मर्व॑तः | यच्च॑प॒पौयच्च॑घा॒सिंज॒घास॒¦सर्वा॒ताते॒,अपि॑दे॒वेष्व॑स्तु || 14 || |
मात्वा॒ग्निर्ध्व॑नयीद्धू॒मग᳚न्धि॒¦र्मोखाभ्राज᳚न्त्य॒भिवि॑क्त॒जघ्रिः॑ | इ॒ष्टंवी॒तम॒भिगू᳚र्तं॒वष॑ट्कृतं॒¦तंदे॒वासः॒प्रति॑गृभ्ण॒न्त्यश्व᳚म् || 15 || |
यदश्वा᳚य॒वास॑उपस्तृ॒णन्¦त्य॑धीवा॒संयाहिर᳚ण्यान्यस्मै | सं॒दान॒मर्व᳚न्तं॒पड्बी᳚शं¦प्रि॒यादे॒वेष्वाया᳚मयन्ति || 16 || वर्ग:10 |
यत्ते᳚सा॒देमह॑सा॒शूकृ॑तस्य॒¦पार्ष्ण्या᳚वा॒कश॑यावातु॒तोद॑ | स्रु॒चेव॒ताह॒विषो᳚,अध्व॒रेषु॒¦सर्वा॒ताते॒ब्रह्म॑णासूदयामि || 17 || |
चतु॑स्त्रिंशद्वा॒जिनो᳚दे॒वब᳚न्धोर्॒¦वङ्क्री॒रश्व॑स्य॒स्वधि॑तिः॒समे᳚ति | अच्छि॑द्रा॒गात्रा᳚व॒युना᳚कृणोत॒¦परु॑ष्परुरनु॒घुष्या॒विश॑स्त || 18 || |
एक॒स्त्वष्टु॒रश्व॑स्याविश॒स्ता¦द्वाय॒न्तारा᳚भवत॒स्तथ॑ऋ॒तुः | याते॒गात्रा᳚णामृतु॒थाकृ॒णोमि॒¦ताता॒पिण्डा᳚नां॒प्रजु॑होम्य॒ग्नौ || 19 || |
मात्वा᳚तपत्प्रि॒यआ॒त्मापि॒यन्तं॒¦मास्वधि॑तिस्त॒न्व१॑(अ॒)आति॑ष्ठिपत्ते | माते᳚गृ॒ध्नुर॑विश॒स्ताति॒हाय॑¦छि॒द्रागात्रा᳚ण्य॒सिना॒मिथू᳚कः || 20 || |
नवा,उ॑ए॒तन्म्रि॑यसे॒नरि॑ष्यसि¦दे॒वाँ,इदे᳚षिप॒थिभिः॑सु॒गेभिः॑ | हरी᳚ते॒युञ्जा॒पृष॑ती,अभूता॒¦मुपा᳚स्थाद्वा॒जीधु॒रिरास॑भस्य || 21 || |
सु॒गव्यं᳚नोवा॒जीस्वश्व्यं᳚पुं॒सः¦पु॒त्राँ,उ॒तवि॑श्वा॒पुषं᳚र॒यिम् | अ॒ना॒गा॒स्त्वंनो॒,अदि॑तिःकृणोतु¦क्ष॒त्रंनो॒,अश्वो᳚वनतांह॒विष्मा॑न् || 22 || |
[163] यदक्रंदइति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्यौचथ्योदीर्घतमाअश्वस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:163}{अनुवाक:22, सूक्त:7}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
यदक्र᳚न्दःप्रथ॒मंजाय॑मान¦उ॒द्यन्त्स॑मु॒द्रादु॒तवा॒पुरी᳚षात् | श्ये॒नस्य॑प॒क्षाह॑रि॒णस्य॑बा॒हू¦,उ॑प॒स्तुत्यं॒महि॑जा॒तंते᳚,अर्वन् || 1 || वर्ग:11 |
य॒मेन॑द॒त्तंत्रि॒तए᳚नमायुन॒¦गिन्द्र॑एणंप्रथ॒मो,अध्य॑तिष्ठत् | ग॒न्ध॒र्वो,अ॑स्यरश॒नाम॑गृभ्णा॒त्¦सूरा॒दश्वं᳚वसवो॒निर॑तष्ट || 2 || |
असि॑य॒मो,अस्या᳚दि॒त्यो,अ᳚र्व॒¦न्नसि॑त्रि॒तोगुह्ये᳚नव्र॒तेन॑ | असि॒सोमे᳚नस॒मया॒विपृ॑क्त¦आ॒हुस्ते॒त्रीणि॑दि॒विबन्ध॑नानि || 3 || |
त्रीणि॑तआहुर्दि॒विबन्ध॑नानि॒¦त्रीण्य॒प्सुत्रीण्य॒न्तःस॑मु॒द्रे | उ॒तेव॑मे॒वरु॑णश्छन्त्स्यर्व॒न्¦यत्रा᳚तआ॒हुःप॑र॒मंज॒नित्र᳚म् || 4 || |
इ॒माते᳚वाजिन्नव॒मार्ज॑नानी॒¦माश॒फानां᳚सनि॒तुर्नि॒धाना᳚ | अत्रा᳚तेभ॒द्रार॑श॒ना,अ॑पश्य¦मृ॒तस्य॒या,अ॑भि॒रक्ष᳚न्तिगो॒पाः || 5 || |
आ॒त्मानं᳚ते॒मन॑सा॒राद॑जाना¦म॒वोदि॒वाप॒तय᳚न्तंपतं॒गम् | शिरो᳚,अपश्यंप॒थिभिः॑सु॒गेभि॑¦ररे॒णुभि॒र्जेह॑मानंपत॒त्रि || 6 || वर्ग:12 |
अत्रा᳚तेरू॒पमु॑त्त॒मम॑पश्यं॒¦जिगी᳚षमाणमि॒षआप॒देगोः | य॒दाते॒मर्तो॒,अनु॒भोग॒मान॒¦ळादिद्ग्रसि॑ष्ठ॒ओष॑धीरजीगः || 7 || |
अनु॑त्वा॒रथो॒,अनु॒मर्यो᳚,अर्व॒¦न्ननु॒गावोऽनु॒भगः॑क॒नीना᳚म् | अनु॒व्राता᳚स॒स्तव॑स॒ख्यमी᳚यु॒¦रनु॑दे॒वाम॑मिरेवी॒र्यं᳚ते || 8 || |
हिर᳚ण्यशृ॒ङ्गोऽयो᳚,अस्य॒पादा॒¦मनो᳚जवा॒,अव॑र॒इन्द्र॑आसीत् | दे॒वा,इद॑स्यहवि॒रद्य॑माय॒न्¦यो,अर्व᳚न्तंप्रथ॒मो,अ॒ध्यति॑ष्ठत् || 9 || |
ई॒र्मान्ता᳚सः॒सिलि॑कमध्यमासः॒¦संशूर॑णासोदि॒व्यासो॒,अत्याः᳚ | हं॒सा,इ॑वश्रेणि॒शोय॑तन्ते॒¦यदाक्षि॑षुर्दि॒व्यमज्म॒मश्वाः᳚ || 10 || |
तव॒शरी᳚रंपतयि॒ष्ण्व᳚र्व॒न्¦तव॑चि॒त्तंवात॑इव॒ध्रजी᳚मान् | तव॒शृङ्गा᳚णि॒विष्ठि॑तापुरु॒त्रा¦र᳚ण्येषु॒जर्भु॑राणाचरन्ति || 11 || वर्ग:13 |
उप॒प्रागा॒च्छस॑नंवा॒ज्यर्वा᳚¦देव॒द्रीचा॒मन॑सा॒दीध्या᳚नः | अ॒जःपु॒रोनी᳚यते॒नाभि॑र॒स्या¦नु॑प॒श्चात्क॒वयो᳚यन्तिरे॒भाः || 12 || |
उप॒प्रागा᳚त्पर॒मंयत्स॒धस्थ॒¦मर्वाँ॒,अच्छा᳚पि॒तरं᳚मा॒तरं᳚च | अ॒द्यादे॒वाञ्जुष्ट॑तमो॒हिग॒म्या¦,अथाशा᳚स्तेदा॒शुषे॒वार्या᳚णि || 13 || |
[164] अस्यवामस्येति द्विपंचाशदृचस्य सूक्तस्य औचथ्योदीर्घतमा आद्यानामेकचत्वारिंशटृचां विश्वेदेवास्तस्याः समुद्राइत्यस्यावाक्समुद्राक्षरापः शकमयमित्यस्याःशकधूमसोमौत्रयः केशिनइत्यस्याअग्निसूर्यवायवो (केशिनइतिगुणः) चत्वारिवागित्यस्यावाक्इंद्रंमित्रमितिद्वयोः सूर्योद्वादशप्रधयइत्यस्याः कालचक्रं (अत्रसंवत्सरसंस्थंकालचक्रवर्णनं) यस्तइत्यस्याः सरस्वतीयज्ञेनेत्यस्याः साध्याःसमानमित्यस्याः सूर्यः (पर्जन्याग्नीवा) दिव्यंसुपर्णमित्यस्याः सरस्वान् (सूर्योवा) त्रिष्टुप् द्वादशी पंचदशी त्रयोविंशी एकोनत्रिंशी षट्त्रिंश्येकचत्वारिं- शीचजगत्यः द्विचत्वारिंशी प्रस्तारपंक्तिः एकपंचाश्यनुष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:164}{अनुवाक:22, सूक्त:8}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
अ॒स्यवा॒मस्य॑पलि॒तस्य॒होतु॒¦स्तस्य॒भ्राता᳚मध्य॒मो,अ॒स्त्यश्नः॑ | तृ॒तीयो॒भ्राता᳚घृ॒तपृ॑ष्ठो,अ॒स्या¦त्रा᳚पश्यंवि॒श्पतिं᳚स॒प्तपु॑त्रम् || 1 || वर्ग:14 |
स॒प्तयु᳚ञ्जन्ति॒रथ॒मेक॑चक्र॒¦मेको॒,अश्वो᳚वहतिस॒प्तना᳚मा | त्रि॒नाभि॑च॒क्रम॒जर॑मन॒र्वं¦यत्रे॒माविश्वा॒भुव॒नाधि॑त॒स्थुः || 2 || |
इ॒मंरथ॒मधि॒येस॒प्तत॒स्थुः¦स॒प्तच॑क्रंस॒प्तव॑ह॒न्त्यश्वाः᳚ | स॒प्तस्वसा᳚रो,अ॒भिसंन॑वन्ते॒¦यत्र॒गवां॒निहि॑तास॒प्तनाम॑ || 3 || |
कोद॑दर्शप्रथ॒मंजाय॑मान¦मस्थ॒न्वन्तं॒यद॑न॒स्थाबिभ॑र्ति | भूम्या॒,असु॒रसृ॑गा॒त्माक्व॑स्वि॒त्¦कोवि॒द्वांस॒मुप॑गा॒त्प्रष्टु॑मे॒तत् || 4 || |
पाकः॑पृच्छामि॒मन॒सावि॑जानन्¦दे॒वाना᳚मे॒नानिहि॑ताप॒दानि॑ | व॒त्सेब॒ष्कयेऽधि॑स॒प्ततन्तू॒न्¦वित॑त्निरेक॒वय॒ओत॒वा,उ॑ || 5 || |
अचि॑कित्वाञ्चिकि॒तुष॑श्चि॒दत्र॑¦क॒वीन्पृ॑च्छामिवि॒द्मने॒नवि॒द्वान् | वियस्त॒स्तम्भ॒षळि॒मारजां᳚¦स्य॒जस्य॑रू॒पेकिमपि॑स्वि॒देक᳚म् || 6 || वर्ग:15 |
इ॒हब्र॑वीतु॒यई᳚म॒ङ्गवेदा॒¦स्यवा॒मस्य॒निहि॑तंप॒दंवेः | शी॒र्ष्णः,क्षी॒रंदु॑ह्रते॒गावो᳚,अस्य¦व॒व्रिंवसा᳚ना,उद॒कंप॒दापुः॑ || 7 || |
मा॒तापि॒तर॑मृ॒तआब॑भाज¦धी॒त्यग्रे॒मन॑सा॒संहिज॒ग्मे | साबी᳚भ॒त्सुर्गर्भ॑रसा॒निवि॑द्धा॒¦नम॑स्वन्त॒इदु॑पवा॒कमी᳚युः || 8 || |
यु॒क्तामा॒तासी᳚द्धु॒रिदक्षि॑णाया॒,¦अति॑ष्ठ॒द्गर्भो᳚वृज॒नीष्व॒न्तः | अमी᳚मेद्व॒त्सो,अनु॒गाम॑पश्यद्¦विश्वरू॒प्यं᳚त्रि॒षुयोज॑नेषु || 9 || |
ति॒स्रोमा॒तॄस्त्रीन्पि॒तॄन्बिभ्र॒देक॑¦ऊ॒र्ध्वस्त॑स्थौ॒नेमव॑ग्लापयन्ति | म॒न्त्रय᳚न्तेदि॒वो,अ॒मुष्य॑पृ॒ष्ठे¦वि॑श्व॒विदं॒वाच॒मवि॑श्वमिन्वाम् || 10 || |
द्वाद॑शारंन॒हितज्जरा᳚य॒¦वर्व॑र्तिच॒क्रंपरि॒द्यामृ॒तस्य॑ | आपु॒त्रा,अ॑ग्नेमिथु॒नासो॒,अत्र॑¦स॒प्तश॒तानि॑विंश॒तिश्च॑तस्थुः || 11 || वर्ग:16 |
पञ्च॑पादंपि॒तरं॒द्वाद॑शाकृतिं¦दि॒वआ᳚हुः॒परे॒,अर्धे᳚पुरी॒षिण᳚म् | अथे॒मे,अ॒न्यउप॑रेविचक्ष॒णं¦स॒प्तच॑क्रे॒षळ॑रआहु॒रर्पि॑तम् || 12 || |
पञ्चा᳚रेच॒क्रेप॑रि॒वर्त॑माने॒¦तस्मि॒न्नात॑स्थु॒र्भुव॑नानि॒विश्वा᳚ | तस्य॒नाक्ष॑स्तप्यते॒भूरि॑भारः¦स॒नादे॒वनशी᳚र्यते॒सना᳚भिः || 13 || |
सने᳚मिच॒क्रम॒जरं॒विवा᳚वृत¦उत्ता॒नायां॒दश॑यु॒क्ताव॑हन्ति | सूर्य॑स्य॒चक्षू॒रज॑सै॒त्यावृ॑तं॒¦तस्मि॒न्नार्पि॑ता॒भुव॑नानि॒विश्वा᳚ || 14 || |
सा॒कं॒जानां᳚स॒प्तथ॑माहुरेक॒जं¦षळिद्य॒मा,ऋष॑योदेव॒जा,इति॑ | तेषा᳚मि॒ष्टानि॒विहि॑तानिधाम॒शः¦स्था॒त्रेरे᳚जन्ते॒विकृ॑तानिरूप॒शः || 15 || |
स्त्रियः॑स॒तीस्ताँ,उ॑मेपुं॒सआ᳚हुः॒¦पश्य॑दक्ष॒ण्वान्नविचे᳚तद॒न्धः | क॒विर्यःपु॒त्रःसई॒माचि॑केत॒¦यस्तावि॑जा॒नात्सपि॒तुष्पि॒तास॑त् || 16 || वर्ग:17 |
अ॒वःपरे᳚णप॒रए॒नाव॑रेण¦प॒दाव॒त्संबिभ्र॑ती॒गौरुद॑स्थात् | साक॒द्रीची॒कंस्वि॒दर्धं॒परा᳚गा॒त्¦क्व॑स्वित्सूतेन॒हियू॒थे,अ॒न्तः || 17 || |
अ॒वःपरे᳚णपि॒तरं॒यो,अ॑स्या¦नु॒वेद॑प॒रए॒नाव॑रेण | क॒वी॒यमा᳚नः॒कइ॒हप्रवो᳚चद्¦दे॒वंमनः॒कुतो॒,अधि॒प्रजा᳚तम् || 18 || |
ये,अ॒र्वाञ्च॒स्ताँ,उ॒परा᳚चआहु॒¦र्येपरा᳚ञ्च॒स्ताँ,उ॑अ॒र्वाच॑आहुः | इन्द्र॑श्च॒याच॒क्रथुः॑सोम॒तानि॑¦धु॒रानयु॒क्तारज॑सोवहन्ति || 19 || |
द्वासु॑प॒र्णास॒युजा॒सखा᳚या¦समा॒नंवृ॒क्षंपरि॑षस्वजाते | तयो᳚र॒न्यःपिप्प॑लंस्वा॒द्वत्¦त्यन॑श्नन्न॒न्यो,अ॒भिचा᳚कशीति || 20 || |
यत्रा᳚सुप॒र्णा,अ॒मृत॑स्यभा॒ग¦मनि॑मेषंवि॒दथा᳚भि॒स्वर᳚न्ति | इ॒नोविश्व॑स्य॒भुव॑नस्यगो॒पाः¦समा॒धीरः॒पाक॒मत्रावि॑वेश || 21 || वर्ग:18 |
यस्मि᳚न्वृ॒क्षेम॒ध्वदः॑सुप॒र्णा¦नि॑वि॒शन्ते॒सुव॑ते॒चाधि॒विश्वे᳚ | तस्येदा᳚हुः॒पिप्प॑लंस्वा॒द्वग्रे॒¦तन्नोन्न॑श॒द्यःपि॒तरं॒नवेद॑ || 22 || |
यद्गा᳚य॒त्रे,अधि॑गाय॒त्रमाहि॑तं॒¦त्रैष्टु॑भाद्वा॒त्रैष्टु॑भंनि॒रत॑क्षत | यद्वा॒जग॒ज्जग॒त्याहि॑तंप॒दं¦यइत्तद्वि॒दुस्ते,अ॑मृत॒त्वमा᳚नशुः || 23 || |
गा॒य॒त्रेण॒प्रति॑मिमीते,अ॒र्क¦म॒र्केण॒साम॒त्रैष्टु॑भेनवा॒कम् | वा॒केन॑वा॒कंद्वि॒पदा॒चतु॑ष्पदा॒¦क्षरे᳚णमिमतेस॒प्तवाणीः᳚ || 24 || |
जग॑ता॒सिन्धुं᳚दि॒व्य॑स्तभायद्¦रथंत॒रेसूर्यं॒पर्य॑पश्यत् | गा॒य॒त्रस्य॑स॒मिध॑स्ति॒स्रआ᳚हु॒¦स्ततो᳚म॒ह्नाप्ररि॑रिचेमहि॒त्वा || 25 || |
उप॑ह्वयेसु॒दुघां᳚धे॒नुमे॒तां¦सु॒हस्तो᳚गो॒धुगु॒तदो᳚हदेनाम् | श्रेष्ठं᳚स॒वंस॑वि॒तासा᳚विषन्नो॒¦ऽभी᳚द्धोघ॒र्मस्तदु॒षुप्रवो᳚चम् || 26 || वर्ग:19 |
हि॒ङ्कृ॒ण्व॒तीव॑सु॒पत्नी॒वसू᳚नां¦व॒त्समि॒च्छन्ती॒मन॑सा॒भ्यागा᳚त् | दु॒हाम॒श्विभ्यां॒पयो᳚,अ॒घ्न्येयं¦साव॑र्धतांमह॒तेसौभ॑गाय || 27 || |
गौर॑मीमे॒दनु॑व॒त्संमि॒षन्तं᳚¦मू॒र्धानं॒हिङ्ङ॑कृणो॒न्मात॒वा,उ॑ | सृक्वा᳚णंघ॒र्मम॒भिवा᳚वशा॒ना¦मिमा᳚तिमा॒युंपय॑ते॒पयो᳚भिः || 28 || |
अ॒यंसशि᳚ङ्क्ते॒येन॒गौर॒भीवृ॑ता॒¦मिमा᳚तिमा॒युंध्व॒सना॒वधि॑श्रि॒ता | साचि॒त्तिभि॒र्निहिच॒कार॒मर्त्यं᳚¦वि॒द्युद्भव᳚न्ती॒प्रति॑व॒व्रिमौ᳚हत || 29 || |
अ॒नच्छ॑येतु॒रगा᳚तुजी॒व¦मेज॑द्ध्रु॒वंमध्य॒आप॒स्त्या᳚नाम् | जी॒वोमृ॒तस्य॑चरतिस्व॒धाभि॒¦रम॑र्त्यो॒मर्त्ये᳚ना॒सयो᳚निः || 30 || |
अप॑श्यंगो॒पामनि॑पद्यमान॒¦माच॒परा᳚चप॒थिभि॒श्चर᳚न्तम् | सस॒ध्रीचीः॒सविषू᳚ची॒र्वसा᳚न॒¦आव॑रीवर्ति॒भुव॑नेष्व॒न्तः || 31 || वर्ग:20 |
यईं᳚च॒कार॒नसो,अ॒स्यवे᳚द॒¦यईं᳚द॒दर्श॒हिरु॒गिन्नुतस्मा᳚त् | समा॒तुर्योना॒परि॑वीतो,अ॒न्त¦र्ब॑हुप्र॒जानिरृ॑ति॒मावि॑वेश || 32 || |
द्यौर्मे᳚पि॒ताज॑नि॒तानाभि॒रत्र॒¦बन्धु᳚र्मेमा॒तापृ॑थि॒वीम॒हीयम् | उ॒त्ता॒नयो᳚श्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)र्योनि॑र॒न्त¦रत्रा᳚पि॒तादु॑हि॒तुर्गर्भ॒माधा᳚त् || 33 || |
पृ॒च्छामि॑त्वा॒पर॒मन्तं᳚पृथि॒व्याः¦पृ॒च्छामि॒यत्र॒भुव॑नस्य॒नाभिः॑ | पृ॒च्छामि॑त्वा॒वृष्णो॒,अश्व॑स्य॒रेतः॑¦पृ॒च्छामि॑वा॒चःप॑र॒मंव्यो᳚म || 34 || |
इ॒यंवेदिः॒परो॒,अन्तः॑पृथि॒व्या¦,अ॒यंय॒ज्ञोभुव॑नस्य॒नाभिः॑ | अ॒यंसोमो॒वृष्णो॒,अश्व॑स्य॒रेतो᳚¦ब्र॒ह्मायंवा॒चःप॑र॒मंव्यो᳚म || 35 || |
स॒प्तार्ध॑ग॒र्भाभुव॑नस्य॒रेतो॒¦विष्णो᳚स्तिष्ठन्तिप्र॒दिशा॒विध᳚र्मणि | तेधी॒तिभि॒र्मन॑सा॒तेवि॑प॒श्चितः॑¦परि॒भुवः॒परि॑भवन्तिवि॒श्वतः॑ || 36 || वर्ग:21 |
नविजा᳚नामि॒यदि॑वे॒दमस्मि॑¦नि॒ण्यःसंन॑द्धो॒मन॑साचरामि | य॒दामाग᳚न्प्रथम॒जा,ऋ॒तस्या¦दिद्वा॒चो,अ॑श्नुवेभा॒गम॒स्याः || 37 || |
अपा॒ङ्प्राङे᳚तिस्व॒धया᳚गृभी॒तो¦ऽम॑र्त्यो॒मर्त्ये᳚ना॒सयो᳚निः | ताशश्व᳚न्ताविषू॒चीना᳚वि॒यन्ता॒¦न्य१॑(अ॒)न्यंचि॒क्युर्ननिचि॑क्युर॒न्यम् || 38 || |
ऋ॒चो,अ॒क्षरे᳚पर॒मेव्यो᳚म॒न्¦यस्मि᳚न्दे॒वा,अधि॒विश्वे᳚निषे॒दुः | यस्तन्नवेद॒किमृ॒चाक॑रिष्यति॒¦यइत्तद्वि॒दुस्तइ॒मेसमा᳚सते || 39 || |
सू॒य॒व॒साद्भग॑वती॒हिभू॒या¦,अथो᳚व॒यंभग॑वन्तःस्याम | अ॒द्धितृण॑मघ्न्येविश्व॒दानीं॒¦पिब॑शु॒द्धमु॑द॒कमा॒चर᳚न्ती || 40 || |
गौ॒रीर्मि॑मायसलि॒लानि॒तक्ष॒¦त्येक॑पदीद्वि॒पदी॒साचतु॑ष्पदी | अ॒ष्टाप॑दी॒नव॑पदीबभू॒वुषी᳚¦स॒हस्रा᳚क्षरापर॒मेव्यो᳚मन् || 41 || वर्ग:22 |
तस्याः᳚समु॒द्रा,अधि॒विक्ष॑रन्ति॒¦तेन॑जीवन्तिप्र॒दिश॒श्चत॑स्रः | ततः॑,क्षरत्य॒क्षरं॒¦तद्विश्व॒मुप॑जीवति || 42 || |
श॒क॒मयं᳚धू॒ममा॒राद॑पश्यं¦विषू॒वता᳚प॒रए॒नाव॑रेण | उ॒क्षाणं॒पृश्नि॑मपचन्तवी॒रा¦स्तानि॒धर्मा᳚णिप्रथ॒मान्या᳚सन् || 43 || |
त्रयः॑के॒शिन॑ऋतु॒थाविच॑क्षते¦संवत्स॒रेव॑पत॒एक॑एषाम् | विश्व॒मेको᳚,अ॒भिच॑ष्टे॒शची᳚भि॒¦र्ध्राजि॒रेक॑स्यददृशे॒नरू॒पम् || 44 || |
च॒त्वारि॒वाक्परि॑मिताप॒दानि॒¦तानि॑विदुर्ब्राह्म॒णायेम॑नी॒षिणः॑ | गुहा॒त्रीणि॒निहि॑ता॒नेङ्ग॑यन्ति¦तु॒रीयं᳚वा॒चोम॑नु॒ष्या᳚वदन्ति || 45 || |
इन्द्रं᳚मि॒त्रंवरु॑णम॒ग्निमा᳚हु॒¦रथो᳚दि॒व्यःससु॑प॒र्णोग॒रुत्मा॑न् | एकं॒सद्विप्रा᳚बहु॒धाव॑द¦न्त्य॒ग्निंय॒मंमा᳚त॒रिश्वा᳚नमाहुः || 46 || |
कृ॒ष्णंनि॒यानं॒हर॑यःसुप॒र्णा¦,अ॒पोवसा᳚ना॒दिव॒मुत्प॑तन्ति | तआव॑वृत्र॒न्त्सद॑नादृ॒तस्या¦दिद्घृ॒तेन॑पृथि॒वीव्यु॑द्यते || 47 || वर्ग:23 |
द्वाद॑शप्र॒धय॑श्च॒क्रमेकं॒¦त्रीणि॒नभ्या᳚नि॒कउ॒तच्चि॑केत | तस्मि᳚न्त्सा॒कंत्रि॑श॒तानश॒ङ्कवो᳚¦ऽर्पि॒ताःष॒ष्टिर्नच॑लाच॒लासः॑ || 48 || |
यस्ते॒स्तनः॑शश॒योयोम॑यो॒भू¦र्येन॒विश्वा॒पुष्य॑सि॒वार्या᳚णि | योर॑त्न॒धाव॑सु॒विद्यःसु॒दत्रः॒¦सर॑स्वति॒तमि॒हधात॑वेकः || 49 || |
य॒ज्ञेन॑य॒ज्ञम॑यजन्तदे॒वा¦स्तानि॒धर्मा᳚णिप्रथ॒मान्या᳚सन् | तेह॒नाकं᳚महि॒मानः॑सचन्त॒¦यत्र॒पूर्वे᳚सा॒ध्याःसन्ति॑दे॒वाः || 50 || |
स॒मा॒नमे॒तदु॑द॒क¦मुच्चैत्यव॒चाह॑भिः | भूमिं᳚प॒र्जन्या॒जिन्व᳚न्ति॒¦दिवं᳚जिन्वन्त्य॒ग्नयः॑ || 51 || |
दि॒व्यंसु॑प॒र्णंवा᳚य॒संबृ॒हन्त॑¦म॒पांगर्भं᳚दर्श॒तमोष॑धीनाम् | अ॒भी॒प॒तोवृ॒ष्टिभि॑स्त॒र्पय᳚न्तं॒¦सर॑स्वन्त॒मव॑सेजोहवीमि || 52 || |
[165] कयाशुभेति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य तृतीयाद्ययुगृचामेकादशीवर्ज्यानां मरुतः त्रयोदश्यादितिसृणामगस्त्यः शिष्टानामिंद्रऋषिः | सर्वसूक्तस्यमरुत्वानिंद्रोदेवतात्रिष्टुप्छंदः |{मंडल:1, सूक्त:165}{अनुवाक:23, सूक्त:1}{अष्टक:2, अध्याय:3} |
कया᳚शु॒भासव॑यसः॒सनी᳚ळाः¦समा॒न्याम॒रुतः॒संमि॑मिक्षुः | कया᳚म॒तीकुत॒एता᳚सए॒ते¦ऽर्च᳚न्ति॒शुष्मं॒वृष॑णोवसू॒या || 1 || वर्ग:24 |
कस्य॒ब्रह्मा᳚णिजुजुषु॒र्युवा᳚नः॒¦को,अ॑ध्व॒रेम॒रुत॒आव॑वर्त | श्ये॒नाँ,इ॑व॒ध्रज॑तो,अ॒न्तरि॑क्षे॒¦केन॑म॒हामन॑सारीरमाम || 2 || |
कुत॒स्त्वमि᳚न्द्र॒माहि॑नः॒स¦न्नेको᳚यासिसत्पते॒किंत॑इ॒त्था | संपृ॑च्छसेसमरा॒णःशु॑भा॒नै¦र्वो॒चेस्तन्नो᳚हरिवो॒यत्ते᳚,अ॒स्मे || 3 || |
ब्रह्मा᳚णिमेम॒तयः॒शंसु॒तासः॒¦शुष्म॑इयर्ति॒प्रभृ॑तोमे॒,अद्रिः॑ | आशा᳚सते॒प्रति॑हर्यन्त्यु॒क्थे¦माहरी᳚वहत॒स्तानो॒,अच्छ॑ || 4 || |
अतो᳚व॒यम᳚न्त॒मेभि᳚र्युजा॒नाः¦स्वक्ष॑त्रेभिस्त॒न्व१॑(अः॒)शुम्भ॑मानाः | महो᳚भि॒रेताँ॒,उप॑युज्महे॒न्¦विन्द्र॑स्व॒धामनु॒हिनो᳚ब॒भूथ॑ || 5 || |
क्व१॑(अ॒)स्यावो᳚मरुतःस्व॒धासी॒द्¦यन्मामेकं᳚स॒मध॑त्ताहि॒हत्ये᳚ | अ॒हंह्यु१॑(उ॒)ग्रस्त॑वि॒षस्तुवि॑ष्मा॒न्¦विश्व॑स्य॒शत्रो॒रन॑मंवध॒स्नैः || 6 || वर्ग:25 |
भूरि॑चकर्थ॒युज्ये᳚भिर॒स्मे¦स॑मा॒नेभि᳚र्वृषभ॒पौंस्ये᳚भिः | भूरी᳚णि॒हिकृ॒णवा᳚माशवि॒ष्ठे¦न्द्र॒क्रत्वा᳚मरुतो॒यद्वशा᳚म || 7 || |
वधीं᳚वृ॒त्रंम॑रुतइन्द्रि॒येण॒¦स्वेन॒भामे᳚नतवि॒षोब॑भू॒वान् | अ॒हमे॒तामन॑वेवि॒श्वश्च᳚न्द्राः¦सु॒गा,अ॒पश्च॑कर॒वज्र॑बाहुः || 8 || |
अनु॑त्त॒माते᳚मघव॒न्नकि॒र्नु¦नत्वावाँ᳚,अस्तिदे॒वता॒विदा᳚नः | नजाय॑मानो॒नश॑ते॒नजा॒तो¦यानि॑करि॒ष्याकृ॑णु॒हिप्र॑वृद्ध || 9 || |
एक॑स्यचिन्मेवि॒भ्व१॑(अ॒)स्त्वोजो॒¦यानुद॑धृ॒ष्वान्कृ॒णवै᳚मनी॒षा | अ॒हंह्यु१॑(उ॒)ग्रोम॑रुतो॒विदा᳚नो॒¦यानि॒च्यव॒मिन्द्र॒इदी᳚शएषाम् || 10 || |
अम᳚न्दन्मामरुतः॒स्तोमो॒,अत्र॒¦यन्मे᳚नरः॒श्रुत्यं॒ब्रह्म॑च॒क्र | इन्द्रा᳚य॒वृष्णे॒सुम॑खाय॒मह्यं॒¦सख्ये॒सखा᳚यस्त॒न्वे᳚त॒नूभिः॑ || 11 || वर्ग:26 |
ए॒वेदे॒तेप्रति॑मा॒रोच॑माना॒,¦अने᳚द्यः॒श्रव॒एषो॒दधा᳚नाः | सं॒चक्ष्या᳚मरुतश्च॒न्द्रव᳚र्णा॒,¦अच्छा᳚न्तमेछ॒दया᳚थाचनू॒नम् || 12 || |
कोन्वत्र॑मरुतोमामहेवः॒¦प्रया᳚तन॒सखीँ॒रच्छा᳚सखायः | मन्मा᳚निचित्रा,अपिवा॒तय᳚न्त¦ए॒षांभू᳚त॒नवे᳚दामऋ॒ताना᳚म् || 13 || |
आयद्दु॑व॒स्याद्दु॒वसे॒नका॒रु¦र॒स्माञ्च॒क्रेमा॒न्यस्य॑मे॒धा | ओषुव॑र्त्तमरुतो॒विप्र॒मच्छे॒¦माब्रह्मा᳚णिजरि॒तावो᳚,अर्चत् || 14 || |
ए॒षवः॒स्तोमो᳚मरुतइ॒यंगी¦र्मा᳚न्दा॒र्यस्य॑मा॒न्यस्य॑का॒रोः | एषाया᳚सीष्टत॒न्वे᳚व॒यां¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 15 || |
[166] तन्नुवोचामेति पंचदशर्चस्य सूक्तस्यमैत्रावरुणिरगस्त्योमरुतोजगत्यंत्येद्वेत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:166}{अनुवाक:23, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
तन्नुवो᳚चामरभ॒साय॒जन्म॑ने॒¦पूर्वं᳚महि॒त्वंवृ॑ष॒भस्य॑के॒तवे᳚ | ऐ॒धेव॒याम᳚न्मरुतस्तुविष्वणो¦यु॒धेव॑शक्रास्तवि॒षाणि॑कर्तन || 1 || वर्ग:1 |
नित्यं॒नसू॒नुंमधु॒बिभ्र॑त॒उप॒¦क्रीळ᳚न्तिक्री॒ळावि॒दथे᳚षु॒घृष्व॑यः | नक्ष᳚न्तिरु॒द्रा,अव॑सानम॒स्विनं॒¦नम॑र्धन्ति॒स्वत॑वसोहवि॒ष्कृत᳚म् || 2 || |
यस्मा॒,ऊमा᳚सो,अ॒मृता॒,अरा᳚सत¦रा॒यस्पोषं᳚चह॒विषा᳚ददा॒शुषे᳚ | उ॒क्षन्त्य॑स्मैम॒रुतो᳚हि॒ता,इ॑व¦पु॒रूरजां᳚सि॒पय॑सामयो॒भुवः॑ || 3 || |
आयेरजां᳚सि॒तवि॑षीभि॒रव्य॑त॒¦प्रव॒एवा᳚सः॒स्वय॑तासो,अध्रजन् | भय᳚न्ते॒विश्वा॒भुव॑नानिह॒र्म्या¦चि॒त्रोवो॒यामः॒प्रय॑तास्वृ॒ष्टिषु॑ || 4 || |
यत्त्वे॒षया᳚मान॒दय᳚न्त॒पर्व॑तान्¦दि॒वोवा᳚पृ॒ष्ठंनर्या॒,अचु॑च्यवुः | विश्वो᳚वो॒,अज्म᳚न्भयते॒वन॒स्पती᳚¦रथी॒यन्ती᳚व॒प्रजि॑हीत॒ओष॑धिः || 5 || |
यू॒यंन॑उग्रामरुतःसुचे॒तुना¦रि॑ष्टग्रामाःसुम॒तिंपि॑पर्तन | यत्रा᳚वोदि॒द्युद्रद॑ति॒क्रिवि॑र्दती¦रि॒णाति॑प॒श्वःसुधि॑तेवब॒र्हणा᳚ || 6 || वर्ग:2 |
प्रस्क॒म्भदे᳚ष्णा,अनव॒भ्ररा᳚धसो¦ऽलातृ॒णासो᳚वि॒दथे᳚षु॒सुष्टु॑ताः | अर्च᳚न्त्य॒र्कंम॑दि॒रस्य॑पी॒तये᳚¦वि॒दुर्वी॒रस्य॑प्रथ॒मानि॒पौंस्या᳚ || 7 || |
श॒तभु॑जिभि॒स्तम॒भिह्रु॑तेर॒घात्¦पू॒र्भीर॑क्षतामरुतो॒यमाव॑त | जनं॒यमु॑ग्रास्तवसोविरप्शिनः¦पा॒थना॒शंसा॒त्तन॑यस्यपु॒ष्टिषु॑ || 8 || |
विश्वा᳚निभ॒द्राम॑रुतो॒रथे᳚षुवो¦मिथ॒स्पृध्ये᳚वतवि॒षाण्याहि॑ता | अंसे॒ष्वावः॒प्रप॑थेषुखा॒दयो¦ऽक्षो᳚वश्च॒क्रास॒मया॒विवा᳚वृते || 9 || |
भूरी᳚णिभ॒द्रानर्ये᳚षुबा॒हुषु॒¦वक्ष॑स्सुरु॒क्मार॑भ॒सासो᳚,अ॒ञ्जयः॑ | अंसे॒ष्वेताः᳚प॒विषु॑क्षु॒रा,अधि॒¦वयो॒नप॒क्षान्व्यनु॒श्रियो᳚धिरे || 10 || |
म॒हान्तो᳚म॒ह्नावि॒भ्वो॒३॑(ओ॒)विभू᳚तयो¦दूरे॒दृशो॒येदि॒व्या,इ॑व॒स्तृभिः॑ | म॒न्द्राःसु॑जि॒ह्वाःस्वरि॑तारआ॒सभिः॒¦सम्मि॑श्ला॒,इन्द्रे᳚म॒रुतः॑परि॒ष्टुभः॑ || 11 || वर्ग:3 |
तद्वः॑सुजातामरुतोमहित्व॒नं¦दी॒र्घंवो᳚दा॒त्रमदि॑तेरिवव्र॒तम् | इन्द्र॑श्च॒नत्यज॑सा॒विह्रु॑णाति॒त¦ज्जना᳚य॒यस्मै᳚सु॒कृते॒,अरा᳚ध्वम् || 12 || |
तद्वो᳚जामि॒त्वंम॑रुतः॒परे᳚यु॒गे¦पु॒रूयच्छंस॑ममृतास॒आव॑त | अ॒याधि॒यामन॑वेश्रु॒ष्टिमाव्या᳚¦सा॒कंनरो᳚दं॒सनै॒राचि॑कित्रिरे || 13 || |
येन॑दी॒र्घंम॑रुतःशू॒शवा᳚म¦यु॒ष्माके᳚न॒परी᳚णसातुरासः | आयत्त॒तन᳚न्वृ॒जने॒जना᳚स¦ए॒भिर्य॒ज्ञेभि॒स्तद॒भीष्टि॑मश्याम् || 14 || |
ए॒षवः॒स्तोमो᳚मरुतइ॒यंगी¦र्मा᳚न्दा॒र्यस्य॑मा॒न्यस्य॑का॒रोः | एषाया᳚सीष्टत॒न्वे᳚व॒यां¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 15 || |
[167] सहस्रंतइत्येकादशर्चस्य सूक्तस्यमैत्रावरुणिरगस्त्यो मरुत आद्यायाइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:167}{अनुवाक:23, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
स॒हस्रं᳚तइन्द्रो॒तयो᳚नः¦स॒हस्र॒मिषो᳚हरिवोगू॒र्तत॑माः | स॒हस्रं॒रायो᳚माद॒यध्यै᳚¦सह॒स्रिण॒उप॑नोयन्तु॒वाजाः᳚ || 1 || वर्ग:4 |
आनोऽवो᳚भिर्म॒रुतो᳚या॒न्त्वच्छा॒¦ज्येष्ठे᳚भिर्वाबृ॒हद्दि॑वैःसुमा॒याः | अध॒यदे᳚षांनि॒युतः॑पर॒माः¦स॑मु॒द्रस्य॑चिद्ध॒नय᳚न्तपा॒रे || 2 || |
मि॒म्यक्ष॒येषु॒सुधि॑ताघृ॒ताची॒¦हिर᳚ण्यनिर्णि॒गुप॑रा॒नऋ॒ष्टिः | गुहा॒चर᳚न्ती॒मनु॑षो॒नयोषा᳚¦स॒भाव॑तीविद॒थ्ये᳚व॒संवाक् || 3 || |
परा᳚शु॒भ्रा,अ॒यासो᳚य॒व्या¦सा᳚धार॒ण्येव॑म॒रुतो᳚मिमिक्षुः | नरो᳚द॒सी,अप॑नुदन्तघो॒रा¦जु॒षन्त॒वृधं᳚स॒ख्याय॑दे॒वाः || 4 || |
जोष॒द्यदी᳚मसु॒र्या᳚स॒चध्यै॒¦विषि॑तस्तुकारोद॒सीनृ॒मणाः᳚ | आसू॒र्येव॑विध॒तोरथं᳚गात्¦त्वे॒षप्र॑तीका॒नभ॑सो॒नेत्या || 5 || |
आस्था᳚पयन्तयुव॒तिंयुवा᳚नः¦शु॒भेनिमि॑श्लांवि॒दथे᳚षुप॒ज्राम् | अ॒र्कोयद्वो᳚मरुतोह॒विष्मा॒न्¦गाय॑द्गा॒थंसु॒तसो᳚मोदुव॒स्यन् || 6 || वर्ग:5 |
प्रतंवि॑वक्मि॒वक्म्यो॒यए᳚षां¦म॒रुतां᳚महि॒मास॒त्यो,अस्ति॑ | सचा॒यदीं॒वृष॑मणा,अहं॒युः¦स्थि॒राचि॒ज्जनी॒र्वह॑तेसुभा॒गाः || 7 || |
पान्ति॑मि॒त्रावरु॑णावव॒द्या¦च्चय॑तईमर्य॒मो,अप्र॑शस्तान् | उ॒तच्य॑वन्ते॒,अच्यु॑ताध्रु॒वाणि॑¦वावृ॒धईं᳚मरुतो॒दाति॑वारः || 8 || |
न॒हीनुवो᳚मरुतो॒,अन्त्य॒स्मे¦,आ॒रात्ता᳚च्चि॒च्छव॑सो॒,अन्त॑मा॒पुः | तेधृ॒ष्णुना॒शव॑साशूशु॒वांसो¦ऽर्णो॒नद्वेषो᳚धृष॒तापरि॑ष्ठुः || 9 || |
व॒यम॒द्येन्द्र॑स्य॒प्रेष्ठा᳚¦व॒यंश्वोवो᳚चेमहिसम॒र्ये | व॒यंपु॒रामहि॑चनो॒,अनु॒द्यून्¦तन्न॑ऋभु॒क्षान॒रामनु॑ष्यात् || 10 || |
ए॒षवः॒स्तोमो᳚मरुतइ॒यंगी¦र्मा᳚न्दा॒र्यस्य॑मा॒न्यस्य॑का॒रोः | एषाया᳚सीष्टत॒न्वे᳚व॒यां¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 11 || |
[168] यज्ञायज्ञेति दशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यो मरुतोजगती अंत्यास्तिस्रस्त्रिष्टुभः |{मंडल:1, सूक्त:168}{अनुवाक:23, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
य॒ज्ञाय॑ज्ञावःसम॒नातु॑तु॒र्वणि॒¦र्धियं᳚धियंवोदेव॒या,उ॑दधिध्वे | आवो॒ऽर्वाचः॑सुवि॒ताय॒रोद॑स्यो¦र्म॒हेव॑वृत्या॒मव॑सेसुवृ॒क्तिभिः॑ || 1 || वर्ग:6 |
व॒व्रासो॒नयेस्व॒जाःस्वत॑वस॒¦इषं॒स्व॑रभि॒जाय᳚न्त॒धूत॑यः | स॒ह॒स्रिया᳚सो,अ॒पांनोर्मय॑¦आ॒सागावो॒वन्द्या᳚सो॒नोक्षणः॑ || 2 || |
सोमा᳚सो॒नयेसु॒तास्तृ॒प्तांश॑वो¦हृ॒त्सुपी॒तासो᳚दु॒वसो॒नास॑ते | ऐषा॒मंसे᳚षुर॒म्भिणी᳚वरारभे॒¦हस्ते᳚षुखा॒दिश्च॑कृ॒तिश्च॒संद॑धे || 3 || |
अव॒स्वयु॑क्तादि॒वआवृथा᳚ययु॒¦रम॑र्त्याः॒कश॑याचोदत॒त्मना᳚ | अ॒रे॒णव॑स्तुविजा॒ता,अ॑चुच्यवु¦र्दृ॒ळ्हानि॑चिन्म॒रुतो॒भ्राज॑दृष्टयः || 4 || |
कोवो॒ऽन्तर्म॑रुतऋष्टिविद्युतो॒¦रेज॑ति॒त्मना॒हन्वे᳚वजि॒ह्वया᳚ | ध॒न्व॒च्युत॑इ॒षांनयाम॑नि¦पुरु॒प्रैषा᳚,अह॒न्यो॒३॑(ओ॒)नैत॑शः || 5 || |
क्व॑स्विद॒स्यरज॑सोम॒हस्परं॒¦क्वाव॑रंमरुतो॒यस्मि᳚न्नाय॒य | यच्च्या॒वय॑थविथु॒रेव॒संहि॑तं॒¦व्यद्रि॑णापतथत्वे॒षम᳚र्ण॒वम् || 6 || वर्ग:7 |
सा॒तिर्नवोऽम॑वती॒स्व᳚र्वती¦त्वे॒षाविपा᳚कामरुतः॒पिपि॑ष्वती | भ॒द्रावो᳚रा॒तिःपृ॑ण॒तोनदक्षि॑णा¦पृथु॒ज्रयी᳚,असु॒र्ये᳚व॒जञ्ज॑ती || 7 || |
प्रति॑ष्टोभन्ति॒सिन्ध॑वःप॒विभ्यो॒¦यद॒भ्रियां॒वाच॑मुदी॒रय᳚न्ति | अव॑स्मयन्तवि॒द्युतः॑पृथि॒व्यां¦यदी᳚घृ॒तंम॒रुतः॑प्रुष्णु॒वन्ति॑ || 8 || |
असू᳚त॒पृश्नि᳚र्मह॒तेरणा᳚य¦त्वे॒षम॒यासां᳚म॒रुता॒मनी᳚कम् | तेस॑प्स॒रासो᳚ऽजनय॒न्ताभ्व॒¦मादित्स्व॒धामि॑षि॒रांपर्य॑पश्यन् || 9 || |
ए॒षवः॒स्तोमो᳚मरुतइ॒यंगी¦र्मा᳚न्दा॒र्यस्य॑मा॒न्यस्य॑का॒रोः | एषाया᳚सीष्टत॒न्वे᳚व॒यां¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 10 || |
[169] महश्चिदित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यइंद्रस्त्रिष्टुप् द्वितीयाविराट् |{मंडल:1, सूक्त:169}{अनुवाक:23, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
म॒हश्चि॒त्त्वमि᳚न्द्रय॒तए॒तान्¦म॒हश्चि॑दसि॒त्यज॑सोवरू॒ता | सनो᳚वेधोम॒रुतां᳚चिकि॒त्वान्¦त्सु॒म्नाव॑नुष्व॒तव॒हिप्रेष्ठा᳚ || 1 || वर्ग:8 |
अयु॑ज्र॒न्तइ᳚न्द्रवि॒श्वकृ॑ष्टी¦र्विदा॒नासो᳚नि॒ष्षिधो᳚मर्त्य॒त्रा | म॒रुतां᳚पृत्सु॒तिर्हास॑माना॒¦स्व᳚र्मीळ्हस्यप्र॒धन॑स्यसा॒तौ || 2 || |
अम्य॒क्सात॑इन्द्रऋ॒ष्टिर॒स्मे¦सने॒म्यभ्वं᳚म॒रुतो᳚जुनन्ति | अ॒ग्निश्चि॒द्धिष्मा᳚त॒सेशु॑शु॒क्वा¦नापो॒नद्वी॒पंदध॑ति॒प्रयां᳚सि || 3 || |
त्वंतून॑इन्द्र॒तंर॒यिंदा॒,¦ओजि॑ष्ठया॒दक्षि॑णयेवरा॒तिम् | स्तुत॑श्च॒यास्ते᳚च॒कन᳚न्तवा॒योः¦स्तनं॒नमध्वः॑पीपयन्त॒वाजैः᳚ || 4 || |
त्वेराय॑इन्द्रतो॒शत॑माः¦प्रणे॒तारः॒कस्य॑चिदृता॒योः | तेषुणो᳚म॒रुतो᳚मृळयन्तु॒¦येस्मा᳚पु॒रागा᳚तू॒यन्ती᳚वदे॒वाः || 5 || |
प्रति॒प्रया᳚हीन्द्रमी॒ळ्हुषो॒नॄन्¦म॒हःपार्थि॑वे॒सद॑नेयतस्व | अध॒यदे᳚षांपृथुबु॒ध्नास॒एता᳚¦स्ती॒र्थेनार्यःपौंस्या᳚नित॒स्थुः || 6 || वर्ग:9 |
प्रति॑घो॒राणा॒मेता᳚नाम॒यासां᳚¦म॒रुतां᳚शृण्वआय॒तामु॑प॒ब्दिः | येमर्त्यं᳚पृतना॒यन्त॒मूमै᳚¦रृणा॒वानं॒नप॒तय᳚न्त॒सर्गैः᳚ || 7 || |
त्वंमाने᳚भ्यइन्द्रवि॒श्वज᳚न्या॒¦रदा᳚म॒रुद्भिः॑शु॒रुधो॒गो,अ॑ग्राः | स्तवा᳚नेभिःस्तवसेदेवदे॒वै¦र्वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 8 || |
[170] ननूनमिति पंचर्चस्य सूक्तस्यप्रथमतृतीयाचतुर्थीनामृचामिंद्रोगस्त्यो द्वितीयापंचम्योरगस्यऋषिरिंद्रोदेवता आद्याबृहती ततस्तिस्रोनुष्टुभोंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:170}{अनुवाक:23, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
ननू॒नमस्ति॒नोश्वः¦कस्तद्वे᳚द॒यदद्भु॑तम् | अ॒न्यस्य॑चि॒त्तम॒भिसं᳚च॒रेण्य॑¦मु॒ताधी᳚तं॒विन॑श्यति || 1 || वर्ग:10 |
किंन॑इन्द्रजिघांससि॒¦भ्रात॑रोम॒रुत॒स्तव॑ | तेभिः॑कल्पस्वसाधु॒या¦मानः॑स॒मर॑णेवधीः || 2 || |
किंनो᳚भ्रातरगस्त्य॒¦सखा॒सन्नति॑मन्यसे | वि॒द्माहिते॒यथा॒मनो॒¦ऽस्मभ्य॒मिन्नदि॑त्ससि || 3 || |
अरं᳚कृण्वन्तु॒वेदिं॒¦सम॒ग्निमि᳚न्धतांपु॒रः | तत्रा॒मृत॑स्य॒चेत॑नं¦य॒ज्ञंते᳚तनवावहै || 4 || |
त्वमी᳚शिषेवसुपते॒वसू᳚नां॒¦त्वंमि॒त्राणां᳚मित्रपते॒धेष्ठः॑ | इन्द्र॒त्वंम॒रुद्भिः॒संव॑द॒स्वा¦ध॒प्राशा᳚नऋतु॒थाह॒वींषि॑ || 5 || |
[171] प्रतिवइति षडृचस्य सूक्तस्यागस्त्योमरुतः अंत्यानांचतसृणांमरुत्वानिंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:171}{अनुवाक:23, सूक्त:7}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
प्रति॑वए॒नानम॑सा॒हमे᳚मि¦सू॒क्तेन॑भिक्षेसुम॒तिंतु॒राणा᳚म् | र॒रा॒णता᳚मरुतोवे॒द्याभि॒¦र्निहेळो᳚ध॒त्तविमु॑चध्व॒मश्वा॑न् || 1 || वर्ग:11 |
ए॒षवः॒स्तोमो᳚मरुतो॒नम॑स्वान्¦हृ॒दात॒ष्टोमन॑साधायिदेवाः | उपे॒माया᳚त॒मन॑साजुषा॒णा¦यू॒यंहिष्ठानम॑स॒इद्वृ॒धासः॑ || 2 || |
स्तु॒तासो᳚नोम॒रुतो᳚मृळयन्तू॒¦तस्तु॒तोम॒घवा॒शम्भ॑विष्ठः | ऊ॒र्ध्वानः॑सन्तुको॒म्यावना॒¦न्यहा᳚नि॒विश्वा᳚मरुतोजिगी॒षा || 3 || |
अ॒स्माद॒हंत॑वि॒षादीष॑माण॒¦इन्द्रा᳚द्भि॒याम॑रुतो॒रेज॑मानः | यु॒ष्मभ्यं᳚ह॒व्यानिशि॑तान्यास॒न्¦तान्या॒रेच॑कृमामृ॒ळता᳚नः || 4 || |
येन॒माना᳚सश्चि॒तय᳚न्तउ॒स्रा¦व्यु॑ष्टिषु॒शव॑सा॒शश्व॑तीनाम् | सनो᳚म॒रुद्भि᳚र्वृषभ॒श्रवो᳚धा¦,उ॒ग्रउ॒ग्रेभिः॒स्थवि॑रःसहो॒दाः || 5 || |
त्वंपा᳚हीन्द्र॒सही᳚यसो॒नॄन्¦भवा᳚म॒रुद्भि॒रव॑यातहेळाः | सु॒प्र॒के॒तेभिः॑सास॒हिर्दधा᳚नो¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 6 || |
[172] चित्रोवइति तृचस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यो मरुतो गायत्री |{मंडल:1, सूक्त:172}{अनुवाक:23, सूक्त:8}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
चि॒त्रोवो᳚ऽस्तु॒याम॑¦श्चि॒त्रऊ॒तीसु॑दानवः | मरु॑तो॒,अहि॑भानवः || 1 || वर्ग:12 |
आ॒रेसावः॑सुदानवो॒¦मरु॑तऋञ्ज॒तीशरुः॑ | आ॒रे,अश्मा॒यमस्य॑थ || 2 || |
तृ॒ण॒स्क॒न्दस्य॒नुविशः॒¦परि॑वृङ्क्तसुदानवः | ऊ॒र्ध्वान्नः॑कर्तजी॒वसे᳚ || 3 || |
[173] गायत्सामेति त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:173}{अनुवाक:23, सूक्त:9}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
गाय॒त्साम॑नभ॒न्य१॑(अं॒)यथा॒वे¦रर्चा᳚म॒तद्वा᳚वृधा॒नंस्व᳚र्वत् | गावो᳚धे॒नवो᳚ब॒र्हिष्यद॑ब्धा॒,¦आयत्स॒द्मानं᳚दि॒व्यंविवा᳚सान् || 1 || वर्ग:13 |
अर्च॒द्वृषा॒वृष॑भिः॒स्वेदु॑हव्यै¦र्मृ॒गोनाश्नो॒,अति॒यज्जु॑गु॒र्यात् | प्रम᳚न्द॒युर्म॒नांगू᳚र्त॒होता॒¦भर॑ते॒मर्यो᳚मिथु॒नायज॑त्रः || 2 || |
नक्ष॒द्धोता॒परि॒सद्म॑मि॒तायन्¦भर॒द्गर्भ॒माश॒रदः॑पृथि॒व्याः | क्रन्द॒दश्वो॒नय॑मानोरु॒वद्गौ¦र॒न्तर्दू॒तोनरोद॑सीचर॒द्वाक् || 3 || |
ताक॒र्माष॑तरास्मै॒¦प्रच्यौ॒त्नानि॑देव॒यन्तो᳚भरन्ते | जुजो᳚ष॒दिन्द्रो᳚द॒स्मव॑र्चा॒¦नास॑त्येव॒सुग्म्यो᳚रथे॒ष्ठाः || 4 || |
तमु॑ष्टु॒हीन्द्रं॒योह॒सत्वा॒¦यःशूरो᳚म॒घवा॒योर॑थे॒ष्ठाः | प्र॒ती॒चश्चि॒द्योधी᳚या॒न्वृष᳚ण्वान्¦वव॒व्रुष॑श्चि॒त्तम॑सोविह॒न्ता || 5 || |
प्रयदि॒त्थाम॑हि॒नानृभ्यो॒,अ¦स्त्यरं॒रोद॑सीक॒क्ष्ये॒३॑(ए॒)नास्मै᳚ | संवि᳚व्य॒इन्द्रो᳚वृ॒जनं॒नभूमा॒¦भर्ति॑स्व॒धावाँ᳚,ओप॒शमि॑व॒द्याम् || 6 || वर्ग:14 |
स॒मत्सु॑त्वाशूरस॒तामु॑रा॒णं¦प्र॑प॒थिन्त॑मंपरितंस॒यध्यै᳚ | स॒जोष॑स॒इन्द्रं॒मदे᳚क्षो॒णीः¦सू॒रिंचि॒द्ये,अ॑नु॒मद᳚न्ति॒वाजैः᳚ || 7 || |
ए॒वाहिते॒शंसव॑नासमु॒द्र¦आपो॒यत्त॑आ॒सुमद᳚न्तिदे॒वीः | विश्वा᳚ते॒,अनु॒जोष्या᳚भू॒द्गौः¦सू॒रीँश्चि॒द्यदि॑धि॒षावेषि॒जना॑न् || 8 || |
असा᳚म॒यथा᳚सुष॒खाय॑एन¦स्वभि॒ष्टयो᳚न॒रांनशंसैः᳚ | अस॒द्यथा᳚न॒इन्द्रो᳚वन्दने॒ष्ठा¦स्तु॒रोनकर्म॒नय॑मानउ॒क्था || 9 || |
विष्प॑र्धसोन॒रांनशंसै᳚¦र॒स्माका᳚स॒दिन्द्रो॒वज्र॑हस्तः | मि॒त्रा॒युवो॒नपूर्प॑तिं॒सुशि॑ष्टौ¦मध्या॒युव॒उप॑शिक्षन्तिय॒ज्ञैः || 10 || |
य॒ज्ञोहिष्मेन्द्रं॒कश्चि॑दृ॒न्धञ्जु॑हुरा॒णश्चि॒न्मन॑सापरि॒यन् | ती॒र्थेनाच्छा᳚तातृषा॒णमोको᳚¦दी॒र्घोनसि॒ध्रमाकृ॑णो॒त्यध्वा᳚ || 11 || वर्ग:15 |
मोषूण॑इ॒न्द्रात्र॑पृ॒त्सुदे॒वै¦रस्ति॒हिष्मा᳚तेशुष्मिन्नव॒याः | म॒हश्चि॒द्यस्य॑मी॒ळ्हुषो᳚य॒व्या¦ह॒विष्म॑तोम॒रुतो॒वन्द॑ते॒गीः || 12 || |
ए॒षस्तोम॑इन्द्र॒तुभ्य॑म॒स्मे¦,ए॒तेन॑गा॒तुंह॑रिवोविदोनः | आनो᳚ववृत्याःसुवि॒ताय॑देव¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 13 || |
[174] त्वंराजेति दशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:174}{अनुवाक:23, सूक्त:10}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
त्वंराजे᳚न्द्र॒येच॑दे॒वा¦रक्षा॒नॄन्पा॒ह्य॑सुर॒त्वम॒स्मान् | त्वंसत्प॑तिर्म॒घवा᳚न॒स्तरु॑त्र॒¦स्त्वंस॒त्योवस॑वानःसहो॒दाः || 1 || वर्ग:16 |
दनो॒विश॑इन्द्रमृ॒ध्रवा᳚चः¦स॒प्तयत्पुरः॒शर्म॒शार॑दी॒र्दर्त् | ऋ॒णोर॒पो,अ॑नव॒द्यार्णा॒¦यूने᳚वृ॒त्रंपु॑रु॒कुत्सा᳚यरन्धीः || 2 || |
अजा॒वृत॑इन्द्र॒शूर॑पत्नी॒¦र्द्यांच॒येभिः॑पुरुहूतनू॒नम् | रक्षो᳚,अ॒ग्निम॒शुषं॒तूर्व॑याणं¦सिं॒होनदमे॒,अपां᳚सि॒वस्तोः᳚ || 3 || |
शेष॒न्नुतइ᳚न्द्र॒सस्मि॒न्योनौ॒¦प्रश॑स्तये॒पवी᳚रवस्यम॒ह्ना | सृ॒जदर्णां॒स्यव॒यद्यु॒धागा¦स्तिष्ठ॒द्धरी᳚धृष॒तामृ॑ष्ट॒वाजा॑न् || 4 || |
वह॒कुत्स॑मिन्द्र॒यस्मि᳚ञ्चा॒कन्¦त्स्यू᳚म॒न्यू,ऋ॒ज्रावात॒स्याश्वा᳚ | प्रसूर॑श्च॒क्रंवृ॑हताद॒भीके॒¦ऽभिस्पृधो᳚यासिष॒द्वज्र॑बाहुः || 5 || |
ज॒घ॒न्वाँ,इ᳚न्द्रमि॒त्रेरू᳚ञ्¦चो॒दप्र॑वृद्धोहरिवो॒,अदा᳚शून् | प्रयेपश्य᳚न्नर्य॒मणं॒सचा॒यो¦स्त्वया᳚शू॒र्तावह॑माना॒,अप॑त्यम् || 6 || वर्ग:17 |
रप॑त्क॒विरि᳚न्द्रा॒र्कसा᳚तौ॒¦क्षांदा॒सायो᳚प॒बर्ह॑णींकः | कर॑त्ति॒स्रोम॒घवा॒दानु॑चित्रा॒¦निदु᳚र्यो॒णेकुय॑वाचंमृ॒धिश्रे᳚त् || 7 || |
सना॒तात॑इन्द्र॒नव्या॒,आगुः॒¦सहो॒नभोऽवि॑रणायपू॒र्वीः | भि॒नत्पुरो॒नभिदो॒,अदे᳚वी¦र्न॒नमो॒वध॒रदे᳚वस्यपी॒योः || 8 || |
त्वंधुनि॑रिन्द्र॒धुनि॑मती¦रृ॒णोर॒पःसी॒रानस्रव᳚न्तीः | प्रयत्स॑मु॒द्रमति॑शूर॒पर्षि॑¦पा॒रया᳚तु॒र्वशं॒यदुं᳚स्व॒स्ति || 9 || |
त्वम॒स्माक॑मिन्द्रवि॒श्वध॑स्या¦,अवृ॒कत॑मोन॒रांनृ॑पा॒ता | सनो॒विश्वा᳚सांस्पृ॒धांस॑हो॒दा¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 10 || |
[175] मत्स्यपायीति षडृचस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्य इंद्रोनुष्टुप् आद्यास्कंधोग्रीवी अंत्यात्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:175}{अनुवाक:23, सूक्त:11}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
मत्स्यपा᳚यिते॒महः॒¦पात्र॑स्येवहरिवोमत्स॒रोमदः॑ | वृषा᳚ते॒वृष्ण॒इन्दु᳚¦र्वा॒जीस॑हस्र॒सात॑मः || 1 || वर्ग:18 |
आन॑स्तेगन्तुमत्स॒रो¦वृषा॒मदो॒वरे᳚ण्यः | स॒हावाँ᳚,इन्द्रसान॒सिः¦पृ॑तना॒षाळम॑र्त्यः || 2 || |
त्वंहिशूरः॒सनि॑ता¦चो॒दयो॒मनु॑षो॒रथ᳚म् | स॒हावा॒न्दस्यु॑मव्र॒त¦मोषः॒पात्रं॒नशो॒चिषा᳚ || 3 || |
मु॒षा॒यसूर्यं᳚कवे¦च॒क्रमीशा᳚न॒ओज॑सा | वह॒शुष्णा᳚यव॒धं¦कुत्सं॒वात॒स्याश्वैः᳚ || 4 || |
शु॒ष्मिन्त॑मो॒हिते॒मदो᳚¦द्यु॒म्निन्त॑मउ॒तक्रतुः॑ | वृ॒त्र॒घ्नाव॑रिवो॒विदा᳚¦मंसी॒ष्ठा,अ॑श्व॒सात॑मः || 5 || |
यथा॒पूर्वे᳚भ्योजरि॒तृभ्य॑इन्द्र॒¦मय॑इ॒वापो॒नतृष्य॑तेब॒भूथ॑ | तामनु॑त्वानि॒विदं᳚जोहवीमि¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 6 || |
[176] मत्सिनइति षडृचस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्य इंद्रोनुष्टुबन्त्या त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:176}{अनुवाक:23, सूक्त:12}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
मत्सि॑नो॒वस्य॑इष्टय॒¦इन्द्र॑मिन्दो॒वृषावि॑श | ऋ॒घा॒यमा᳚णइन्वसि॒¦शत्रु॒मन्ति॒नवि᳚न्दसि || 1 || वर्ग:19 |
तस्मि॒न्नावे᳚शया॒गिरो॒¦यएक॑श्चर्षणी॒नाम् | अनु॑स्व॒धायमु॒प्यते॒¦यवं॒नचर्कृ॑ष॒द्वृषा᳚ || 2 || |
यस्य॒विश्वा᳚नि॒हस्त॑योः॒¦पञ्च॑क्षिती॒नांवसु॑ | स्पा॒शय॑स्व॒यो,अ॑स्म॒ध्रुग्¦दि॒व्येवा॒शनि॑र्जहि || 3 || |
असु᳚न्वन्तंसमंजहि¦दू॒णाशं॒योनते॒मयः॑ | अ॒स्मभ्य॑मस्य॒वेद॑नं¦द॒द्धिसू॒रिश्चि॑दोहते || 4 || |
आवो॒यस्य॑द्वि॒बर्ह॑सो॒¦ऽर्केषु॑सानु॒षगस॑त् | आ॒जाविन्द्र॑स्येन्दो॒¦प्रावो॒वाजे᳚षुवा॒जिन᳚म् || 5 || |
यथा॒पूर्वे᳚भ्योजरि॒तृभ्य॑इन्द्र॒¦मय॑इ॒वापो॒नतृष्य॑तेब॒भूथ॑ | तामनु॑त्वानि॒विदं᳚जोहवीमि¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 6 || |
[177] आचर्षणिप्राइति पंचर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:177}{अनुवाक:23, सूक्त:13}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
आच॑र्षणि॒प्रावृ॑ष॒भोजना᳚नां॒¦राजा᳚कृष्टी॒नांपु॑रुहू॒तइन्द्रः॑ | स्तु॒तःश्र॑व॒स्यन्नव॒सोप॑म॒द्रिग्¦यु॒क्त्वाहरी॒वृष॒णाया᳚ह्य॒र्वाङ् || 1 || वर्ग:20 |
येते॒वृष॑णोवृष॒भास॑इन्द्र¦ब्रह्म॒युजो॒वृष॑रथासो॒,अत्याः᳚ | ताँ,आति॑ष्ठ॒तेभि॒राया᳚ह्य॒र्वाङ्¦हवा᳚महेत्वासु॒तइ᳚न्द्र॒सोमे᳚ || 2 || |
आति॑ष्ठ॒रथं॒वृष॑णं॒वृषा᳚ते¦सु॒तःसोमः॒परि॑षिक्ता॒मधू᳚नि | यु॒क्त्वावृष॑भ्यांवृषभक्षिती॒नां¦हरि॑भ्यांयाहिप्र॒वतोप॑म॒द्रिक् || 3 || |
अ॒यंय॒ज्ञोदे᳚व॒या,अ॒यंमि॒येध॑¦इ॒माब्रह्मा᳚ण्य॒यमि᳚न्द्र॒सोमः॑ | स्ती॒र्णंब॒र्हिरातुश॑क्र॒प्रया᳚हि॒¦पिबा᳚नि॒षद्य॒विमु॑चा॒हरी᳚,इ॒ह || 4 || |
ओसुष्टु॑तइन्द्रयाह्य॒र्वाङ्¦उप॒ब्रह्मा᳚णिमा॒न्यस्य॑का॒रोः | वि॒द्याम॒वस्तो॒रव॑सागृ॒णन्तो᳚¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 5 || |
[178] यद्धस्यातइति पंचर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यइंद्रस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:178}{अनुवाक:23, सूक्त:14}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
यद्ध॒स्यात॑इन्द्रश्रु॒ष्टिरस्ति॒¦यया᳚ब॒भूथ॑जरि॒तृभ्य॑ऊ॒ती | मानः॒कामं᳚म॒हय᳚न्त॒माध॒¦ग्विश्वा᳚ते,अश्यां॒पर्याप॑आ॒योः || 1 || वर्ग:21 |
नघा॒राजेन्द्र॒आद॑भन्नो॒¦यानुस्वसा᳚राकृ॒णव᳚न्त॒योनौ᳚ | आप॑श्चिदस्मैसु॒तुका᳚,अवेष॒न्¦गम᳚न्न॒इन्द्रः॑स॒ख्यावय॑श्च || 2 || |
जेता॒नृभि॒रिन्द्रः॑पृ॒त्सुशूरः॒¦श्रोता॒हवं॒नाध॑मानस्यका॒रोः | प्रभ॑र्ता॒रथं᳚दा॒शुष॑उपा॒क¦उद्य᳚न्ता॒गिरो॒यदि॑च॒त्मना॒भूत् || 3 || |
ए॒वानृभि॒रिन्द्रः॑सुश्रव॒स्या¦प्र॑खा॒दःपृ॒क्षो,अ॒भिमि॒त्रिणो᳚भूत् | स॒म॒र्यइ॒षःस्त॑वते॒विवा᳚चि¦सत्राक॒रोयज॑मानस्य॒शंसः॑ || 4 || |
त्वया᳚व॒यंम॑घवन्निन्द्र॒शत्रू᳚¦न॒भिष्या᳚ममह॒तोमन्य॑मानान् | त्वंत्रा॒तात्वमु॑नोवृ॒धेभू᳚¦र्वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 5 || |
[179] पूर्वीरमिति षडृचस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यः आद्ययोर्द्वयोर्लोपामुद्राऋषिका अंत्ययोर्द्वयोरगस्त्यांतेवासीब्रह्मचारीऋषिः सर्वासांरतिर्देवता त्रिष्टुप् पंचमी बृहती |{मंडल:1, सूक्त:179}{अनुवाक:23, सूक्त:15}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
पू॒र्वीर॒हंश॒रदः॑शश्रमा॒णा¦दो॒षावस्तो᳚रु॒षसो᳚ज॒रय᳚न्तीः | मि॒नाति॒श्रियं᳚जरि॒मात॒नूना॒¦मप्यू॒नुपत्नी॒र्वृष॑णोजगम्युः || 1 || वर्ग:22 |
येचि॒द्धिपूर्व॑ऋत॒साप॒आस॑न्¦त्सा॒कंदे॒वेभि॒रव॑दन्नृ॒तानि॑ | तेचि॒दवा᳚सुर्न॒ह्यन्त॑मा॒पुः¦समू॒नुपत्नी॒र्वृष॑भिर्जगम्युः || 2 || |
नमृषा᳚श्रा॒न्तंयदव᳚न्तिदे॒वा¦विश्वा॒,इत्स्पृधो᳚,अ॒भ्य॑श्नवाव | जया॒वेदत्र॑श॒तनी᳚थमा॒जिं¦यत्स॒म्यञ्चा᳚मिथु॒नाव॒भ्यजा᳚व || 3 || |
न॒दस्य॑मारुध॒तःकाम॒आग᳚¦न्नि॒तआजा᳚तो,अ॒मुतः॒कुत॑श्चित् | लोपा᳚मुद्रा॒वृष॑णं॒नीरि॑णाति॒¦धीर॒मधी᳚राधयतिश्व॒सन्त᳚म् || 4 || |
इ॒मंनुसोम॒मन्ति॑तो¦हृ॒त्सुपी॒तमुप॑ब्रुवे | यत्सी॒माग॑श्चकृ॒मातत्सुमृ॑ळतु¦पुलु॒कामो॒हिमर्त्यः॑ || 5 || |
अ॒गस्त्यः॒खन॑मानःख॒नित्रैः᳚¦प्र॒जामप॑त्यं॒बल॑मि॒च्छमा᳚नः | उ॒भौवर्णा॒वृषि॑रु॒ग्रःपु॑पोष¦स॒त्यादे॒वेष्वा॒शिषो᳚जगाम || 6 || |
[180] युवोरजांसीति दशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:180}{अनुवाक:24, सूक्त:1}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
यु॒वोरजां᳚सिसु॒यमा᳚सो॒,अश्वा॒¦रथो॒यद्वां॒पर्यर्णां᳚सि॒दीय॑त् | हि॒र॒ण्यया᳚वांप॒वयः॑प्रुषाय॒न्¦मध्वः॒पिब᳚न्ता,उ॒षसः॑सचेथे || 1 || वर्ग:23 |
यु॒वमत्य॒स्याव॑नक्षथो॒यद्¦विप॑त्मनो॒नर्य॑स्य॒प्रय॑ज्योः | स्वसा॒यद्वां᳚विश्वगूर्ती॒भरा᳚ति॒¦वाजा॒येट्टे᳚मधुपावि॒षेच॑ || 2 || |
यु॒वंपय॑उ॒स्रिया᳚यामधत्तं¦प॒क्वमा॒माया॒मव॒पूर्व्यं॒गोः | अ॒न्तर्यद्व॒निनो᳚वामृतप्सू¦ह्वा॒रोनशुचि॒र्यज॑तेह॒विष्मा॑न् || 3 || |
यु॒वंह॑घ॒र्मंमधु॑मन्त॒मत्र॑ये॒¦ऽपोनक्षोदो᳚ऽवृणीतमे॒षे | तद्वां᳚नरावश्विना॒पश्व॑इष्टी॒¦रथ्ये᳚वच॒क्राप्रति॑यन्ति॒मध्वः॑ || 4 || |
आवां᳚दा॒नाय॑ववृतीयदस्रा॒¦गोरोहे᳚णतौ॒ग्र्योनजिव्रिः॑ | अ॒पः,क्षो॒णीस॑चते॒माहि॑नावां¦जू॒र्णोवा॒मक्षु॒रंह॑सोयजत्रा || 5 || |
नियद्यु॒वेथे᳚नि॒युतः॑सुदानू॒,¦उप॑स्व॒धाभिः॑सृजथः॒पुरं᳚धिम् | प्रेष॒द्वेष॒द्वातो॒नसू॒रि¦राम॒हेद॑देसुव्र॒तोनवाज᳚म् || 6 || वर्ग:24 |
व॒यंचि॒द्धिवां᳚जरि॒तारः॑स॒त्या¦वि॑प॒न्याम॑हे॒विप॒णिर्हि॒तावा॑न् | अधा᳚चि॒द्धिष्मा᳚श्विनावनिन्द्या¦पा॒थोहिष्मा᳚वृषणा॒वन्ति॑देवम् || 7 || |
यु॒वांचि॒द्धिष्मा᳚श्विना॒वनु॒द्यून्¦विरु॑द्रस्यप्र॒स्रव॑णस्यसा॒तौ | अ॒गस्त्यो᳚न॒रांनृषु॒प्रश॑स्तः॒¦कारा᳚धुनीवचितयत्स॒हस्रैः᳚ || 8 || |
प्रयद्वहे᳚थेमहि॒नारथ॑स्य॒¦प्रस्प᳚न्द्रायाथो॒मनु॑षो॒नहोता᳚ | ध॒त्तंसू॒रिभ्य॑उ॒तवा॒स्वश्व्यं॒¦नास॑त्यारयि॒षाचः॑स्याम || 9 || |
तंवां॒रथं᳚व॒यम॒द्याहु॑वेम॒¦स्तोमै᳚रश्विनासुवि॒ताय॒नव्य᳚म् | अरि॑ष्टनेमिं॒परि॒द्यामि॑या॒नं¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 10 || |
[181] कदुप्रेष्ठाविति नवर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:181}{अनुवाक:24, सूक्त:2}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
कदु॒प्रेष्टा᳚वि॒षांर॑यी॒णा¦म॑ध्व॒र्यन्ता॒यदु᳚न्निनी॒थो,अ॒पाम् | अ॒यंवां᳚य॒ज्ञो,अ॑कृत॒प्रश॑स्तिं॒¦वसु॑धिती॒,अवि॑ताराजनानाम् || 1 || वर्ग:25 |
आवा॒मश्वा᳚सः॒शुच॑यःपय॒स्पा¦वात॑रंहसोदि॒व्यासो॒,अत्याः᳚ | म॒नो॒जुवो॒वृष॑णोवी॒तपृ॑ष्ठा॒,¦एहस्व॒राजो᳚,अ॒श्विना᳚वहन्तु || 2 || |
आवां॒रथो॒ऽवनि॒र्नप्र॒वत्वा᳚न्¦त्सृ॒प्रव᳚न्धुरःसुवि॒ताय॑गम्याः | वृष्णः॑स्थातारा॒मन॑सो॒जवी᳚या¦नहम्पू॒र्वोय॑ज॒तोधि॑ष्ण्या॒यः || 3 || |
इ॒हेह॑जा॒तासम॑वावशीता¦मरे॒पसा᳚त॒न्वा॒३॑(आ॒)नाम॑भिः॒स्वैः | जि॒ष्णुर्वा᳚म॒न्यःसुम॑खस्यसू॒रि¦र्दि॒वो,अ॒न्यःसु॒भगः॑पु॒त्रऊ᳚हे || 4 || |
प्रवां᳚निचे॒रुःक॑कु॒होवशाँ॒,अनु॑¦पि॒शङ्ग॑रूपः॒सद॑नानिगम्याः | हरी᳚,अ॒न्यस्य॑पी॒पय᳚न्त॒वाजै᳚¦र्म॒थ्रारजां᳚स्यश्विना॒विघोषैः᳚ || 5 || |
प्रवां᳚श॒रद्वा᳚न्वृष॒भोननि॒ष्षाट्¦पू॒र्वीरिष॑श्चरति॒मध्व॑इ॒ष्णन् | एवै᳚र॒न्यस्य॑पी॒पय᳚न्त॒वाजै॒¦र्वेष᳚न्तीरू॒र्ध्वान॒द्यो᳚न॒आगुः॑ || 6 || वर्ग:26 |
अस॑र्जिवां॒स्थवि॑रावेधसा॒गी¦र्बा॒ळ्हे,अ॑श्विनात्रे॒धाक्षर᳚न्ती | उप॑स्तुताववतं॒नाध॑मानं॒¦याम॒न्नया᳚मञ्छृणुतं॒हवं᳚मे || 7 || |
उ॒तस्यावां॒रुश॑तो॒वप्स॑सो॒गी¦स्त्रि॑ब॒र्हिषि॒सद॑सिपिन्वते॒नॄन् | वृषा᳚वांमे॒घोवृ॑षणापीपाय॒¦गोर्नसेके॒मनु॑षोदश॒स्यन् || 8 || |
यु॒वांपू॒षेवा᳚श्विना॒पुरं᳚धि¦र॒ग्निमु॒षांनज॑रतेह॒विष्मा॑न् | हु॒वेयद्वां᳚वरिव॒स्यागृ॑णा॒नो¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 9 || |
[182] अभूदिदमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योश्विनौजगती षष्ठ्यंत्येत्रिष्टुभौ |{मंडल:1, सूक्त:182}{अनुवाक:24, सूक्त:3}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
अभू᳚दि॒दंव॒युन॒मोषुभू᳚षता॒¦रथो॒वृष᳚ण्वा॒न्मद॑तामनीषिणः | धि॒यं॒जि॒न्वाधिष्ण्या᳚वि॒श्पला᳚वसू¦दि॒वोनपा᳚तासु॒कृते॒शुचि᳚व्रता || 1 || वर्ग:27 |
इन्द्र॑तमा॒हिधिष्ण्या᳚म॒रुत्त॑मा¦द॒स्रादंसि॑ष्ठार॒थ्या᳚र॒थीत॑मा | पू॒र्णंरथं᳚वहेथे॒मध्व॒आचि॑तं॒¦तेन॑दा॒श्वांस॒मुप॑याथो,अश्विना || 2 || |
किमत्र॑दस्राकृणुथः॒किमा᳚साथे॒¦जनो॒यःकश्चि॒दह॑विर्मही॒यते᳚ | अति॑क्रमिष्टंजु॒रतं᳚प॒णेरसुं॒¦ज्योति॒र्विप्रा᳚यकृणुतंवच॒स्यवे᳚ || 3 || |
ज॒म्भय॑तम॒भितो॒राय॑तः॒शुनो᳚¦ह॒तंमृधो᳚वि॒दथु॒स्तान्य॑श्विना | वाचं᳚वाचंजरि॒तूर॒त्निनीं᳚कृत¦मु॒भाशंसं᳚नासत्यावतं॒मम॑ || 4 || |
यु॒वमे॒तंच॑क्रथुः॒सिन्धु॑षुप्ल॒व¦मा᳚त्म॒न्वन्तं᳚प॒क्षिणं᳚तौ॒ग्र्याय॒कम् | येन॑देव॒त्रामन॑सानिरू॒हथुः॑¦सुपप्त॒नीपे᳚तथुः॒,क्षोद॑सोम॒हः || 5 || |
अव॑विद्धंतौ॒ग्र्यम॒प्स्व१॑(अ॒)न्त¦र॑नारम्भ॒णेतम॑सि॒प्रवि॑द्धम् | चत॑स्रो॒नावो॒जठ॑लस्य॒जुष्टा॒,¦उद॒श्विभ्या᳚मिषि॒ताःपा᳚रयन्ति || 6 || वर्ग:28 |
कःस्वि॑द्वृ॒क्षोनिष्ठि॑तो॒मध्ये॒,अर्ण॑सो॒¦यंतौ॒ग्र्योना᳚धि॒तःप॒र्यष॑स्वजत् | प॒र्णामृ॒गस्य॑प॒तरो᳚रिवा॒रभ॒¦उद॑श्विना,ऊहथुः॒श्रोम॑ताय॒कम् || 7 || |
तद्वां᳚नरानासत्या॒वनु॑ष्या॒द्¦यद्वां॒माना᳚सउ॒चथ॒मवो᳚चन् | अ॒स्माद॒द्यसद॑सःसो॒म्यादा¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 8 || |
[183] तंयुञ्जाथामिति षडृचस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:183}{अनुवाक:24, सूक्त:4}{अष्टक:2, अध्याय:4} |
तंयु᳚ञ्जाथां॒मन॑सो॒योजवी᳚यान्¦त्रिवन्धु॒रोवृ॑षणा॒यस्त्रि॑च॒क्रः | येनो᳚पया॒थःसु॒कृतो᳚दुरो॒णं¦त्रि॒धातु॑नापतथो॒विर्नप॒र्णैः || 1 || वर्ग:29 |
सु॒वृद्रथो᳚वर्तते॒यन्न॒भिक्षां¦यत्तिष्ठ॑थः॒क्रतु॑म॒न्तानु॑पृ॒क्षे | वपु᳚र्वपु॒ष्यास॑चतामि॒यंगी¦र्दि॒वोदु॑हि॒त्रोषसा᳚सचेथे || 2 || |
आति॑ष्ठतंसु॒वृतं॒योरथो᳚वा॒¦मनु᳚व्र॒तानि॒वर्त॑तेह॒विष्मा॑न् | येन॑नरानासत्येष॒यध्यै᳚¦व॒र्तिर्या॒थस्तन॑याय॒त्मने᳚च || 3 || |
मावां॒वृको॒मावृ॒कीराद॑धर्षी॒¦न्मापरि॑वर्क्तमु॒तमाति॑धक्तम् | अ॒यंवां᳚भा॒गोनिहि॑तइ॒यंगी¦र्दस्रा᳚वि॒मेवां᳚नि॒धयो॒मधू᳚नाम् || 4 || |
यु॒वांगोत॑मःपुरुमी॒ळ्हो,अत्रि॒¦र्दस्रा॒हव॒तेऽव॑सेह॒विष्मा॑न् | दिशं॒नदि॒ष्टामृ॑जू॒येव॒यन्ता¦मे॒हवं᳚नास॒त्योप॑यातम् || 5 || |
अता᳚रिष्म॒तम॑सस्पा॒रम॒स्य¦प्रति॑वां॒स्तोमो᳚,अश्विनावधायि | एहया᳚तंप॒थिभि॑र्देव॒यानै᳚¦र्वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 6 || |
[184] तावामिति षडृचस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योश्विनौत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:184}{अनुवाक:24, सूक्त:5}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
तावा᳚म॒द्यताव॑प॒रंहु॑वेमो॒¦च्छन्त्या᳚मु॒षसि॒वह्नि॑रु॒क्थैः | नास॑त्या॒कुह॑चि॒त्सन्ता᳚व॒र्यो¦दि॒वोनपा᳚तासु॒दास्त॑राय || 1 || वर्ग:1 |
अ॒स्मे,ऊ॒षुवृ॑षणामादयेथा॒¦मुत्प॒णीँर्ह॑तमू॒र्म्यामद᳚न्ता | श्रु॒तंमे॒,अच्छो᳚क्तिभिर्मती॒ना¦मेष्टा᳚नरा॒निचे᳚ताराच॒कर्णैः᳚ || 2 || |
श्रि॒येपू᳚षन्निषु॒कृते᳚वदे॒वा¦नास॑त्यावह॒तुंसू॒र्यायाः᳚ | व॒च्यन्ते᳚वांककु॒हा,अ॒प्सुजा॒ता¦यु॒गाजू॒र्णेव॒वरु॑णस्य॒भूरेः᳚ || 3 || |
अ॒स्मेसावां᳚माध्वीरा॒तिर॑स्तु॒¦स्तोमं᳚हिनोतंमा॒न्यस्य॑का॒रोः | अनु॒यद्वां᳚श्रव॒स्या᳚सुदानू¦सु॒वीर्या᳚यचर्ष॒णयो॒मद᳚न्ति || 4 || |
ए॒षवां॒स्तोमो᳚,अश्विनावकारि॒¦माने᳚भिर्मघवानासुवृ॒क्ति | या॒तंव॒र्तिस्तन॑याय॒त्मने᳚चा॒¦गस्त्ये᳚नासत्या॒मद᳚न्ता || 5 || |
अता᳚रिष्म॒तम॑सस्पा॒रम॒स्य¦प्रति॑वां॒स्तोमो᳚,अश्विनावधायि | एहया᳚तंप॒थिभि॑र्देव॒यानै᳚¦र्वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 6 || |
[185] कतरेत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योद्यावापृथिवीत्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:185}{अनुवाक:24, सूक्त:6}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
क॒त॒रापूर्वा᳚कत॒राप॑रा॒योः¦क॒थाजा॒तेक॑वयः॒कोविवे᳚द | विश्वं॒त्मना᳚बिभृतो॒यद्ध॒नाम॒¦विव॑र्तेते॒,अह॑नीच॒क्रिये᳚व || 1 || वर्ग:2 |
भूरिं॒द्वे,अच॑रन्ती॒चर᳚न्तं¦प॒द्वन्तं॒गर्भ॑म॒पदी᳚दधाते | नित्यं॒नसू॒नुंपि॒त्रोरु॒पस्थे॒¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 2 || |
अ॒ने॒होदा॒त्रमदि॑तेरन॒र्वं¦हु॒वेस्व᳚र्वदव॒धंनम॑स्वत् | तद्रो᳚दसीजनयतंजरि॒त्रे¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 3 || |
अत॑प्यमाने॒,अव॒साव᳚न्ती॒,¦अनु॑ष्याम॒रोद॑सीदे॒वपु॑त्रे | उ॒भेदे॒वाना᳚मु॒भये᳚भि॒रह्नां॒¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 4 || |
सं॒गच्छ॑मानेयुव॒तीसम᳚न्ते॒¦स्वसा᳚राजा॒मीपि॒त्रोरु॒पस्थे᳚ | अ॒भि॒जिघ्र᳚न्ती॒भुव॑नस्य॒नाभिं॒¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 5 || |
उ॒र्वीसद्म॑नीबृह॒ती,ऋ॒तेन॑¦हु॒वेदे॒वाना॒मव॑सा॒जनि॑त्री | द॒धाते॒ये,अ॒मृतं᳚सु॒प्रती᳚के॒¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 6 || वर्ग:3 |
उ॒र्वीपृ॒थ्वीब॑हु॒लेदू॒रे,अ᳚न्ते॒,¦उप॑ब्रुवे॒नम॑साय॒ज्ञे,अ॒स्मिन् | द॒धाते॒येसु॒भगे᳚सु॒प्रतू᳚र्ती॒¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 7 || |
दे॒वान्वा॒यच्च॑कृ॒माकच्चि॒दागः॒¦सखा᳚यंवा॒सद॒मिज्जास्प॑तिंवा | इ॒यंधीर्भू᳚या,अव॒यान॑मेषां॒¦द्यावा॒रक्ष॑तंपृथिवीनो॒,अभ्वा᳚त् || 8 || |
उ॒भाशंसा॒नर्या॒माम॑विष्टा¦मु॒भेमामू॒ती,अव॑सासचेताम् | भूरि॑चिद॒र्यःसु॒दास्त॑राये॒¦षामद᳚न्तइषयेमदेवाः || 9 || |
ऋ॒तंदि॒वेतद॑वोचंपृथि॒व्या¦,अ॑भिश्रा॒वाय॑प्रथ॒मंसु॑मे॒धाः | पा॒ताम॑व॒द्याद्दु॑रि॒ताद॒भीके᳚¦पि॒तामा॒ताच॑रक्षता॒मवो᳚भिः || 10 || |
इ॒दंद्या᳚वापृथिवीस॒त्यम॑स्तु॒¦पित॒र्मात॒र्यदि॒होप॑ब्रु॒वेवा᳚म् | भू॒तंदे॒वाना᳚मव॒मे,अवो᳚भि¦र्वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 11 || |
[186] आनइळाभिरित्येकादशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योविश्वेदेवास्त्रिष्टुप् | (सूक्तभेदप्रयोगेतु-आद्यचतसृणां विश्वेदेवाः ततएकस्याअहिर्बुध्न्यः ततएकस्यास्त्वष्टा ततएकस्याइंद्रः ततोद्वयोर्मरुतः ततोद्वयोर्विश्वेदेवाः एवमेकादश) |{मंडल:1, सूक्त:186}{अनुवाक:24, सूक्त:7}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
आन॒इळा᳚भिर्वि॒दथे᳚सुश॒स्ति¦वि॒श्वान॑रःसवि॒तादे॒वए᳚तु | अपि॒यथा᳚युवानो॒मत्स॑थानो॒¦विश्वं॒जग॑दभिपि॒त्वेम॑नी॒षा || 1 || वर्ग:4 |
आनो॒विश्व॒आस्क्रा᳚गमन्तुदे॒वा¦मि॒त्रो,अ᳚र्य॒मावरु॑णःस॒जोषाः᳚ | भुव॒न्यथा᳚नो॒विश्वे᳚वृ॒धासः॒¦कर᳚न्त्सु॒षाहा᳚विथु॒रंनशवः॑ || 2 || |
प्रेष्ठं᳚वो॒,अति॑थिंगृणीषे॒¦ऽग्निंश॒स्तिभि॑स्तु॒र्वणिः॑स॒जोषाः᳚ | अस॒द्यथा᳚नो॒वरु॑णःसुकी॒र्ति¦रिष॑श्चपर्षदरिगू॒र्तःसू॒रिः || 3 || |
उप॑व॒एषे॒नम॑साजिगी॒षो¦षासा॒नक्ता᳚सु॒दुघे᳚वधे॒नुः | स॒मा॒ने,अह᳚न्वि॒मिमा᳚नो,अ॒र्कं¦विषु॑रूपे॒पय॑सि॒सस्मि॒न्नूध॑न् || 4 || |
उ॒तनोऽहि॑र्बु॒ध्न्यो॒३॑(ओ॒)मय॑स्कः॒¦शिशुं॒नपि॒प्युषी᳚ववेति॒सिन्धुः॑ | येन॒नपा᳚तम॒पांजु॒नाम॑¦मनो॒जुवो॒वृष॑णो॒यंवह᳚न्ति || 5 || |
उ॒तन॑ईं॒त्वष्टाग॒न्त्वच्छा॒¦स्मत्सू॒रिभि॑रभिपि॒त्वेस॒जोषाः᳚ | आवृ॑त्र॒हेन्द्र॑श्चर्षणि॒प्रा¦स्तु॒विष्ट॑मोन॒रांन॑इ॒हग᳚म्याः || 6 || वर्ग:5 |
उ॒तन॑ईंम॒तयोऽश्व॑योगाः॒¦शिशुं॒नगाव॒स्तरु॑णंरिहन्ति | तमीं॒गिरो॒जन॑यो॒नपत्नीः᳚¦सुर॒भिष्ट॑मंन॒रांन॑सन्त || 7 || |
उ॒तन॑ईंम॒रुतो᳚वृ॒द्धसे᳚नाः॒¦स्मद्रोद॑सी॒सम॑नसःसदन्तु | पृष॑दश्वासो॒ऽवन॑यो॒नरथा᳚¦रि॒शाद॑सोमित्र॒युजो॒नदे॒वाः || 8 || |
प्रनुयदे᳚षांमहि॒नाचि॑कि॒त्रे¦प्रयु᳚ञ्जतेप्र॒युज॒स्तेसु॑वृ॒क्ति | अध॒यदे᳚षांसु॒दिने॒नशरु॒¦र्विश्व॒मेरि॑णंप्रुषा॒यन्त॒सेनाः᳚ || 9 || |
प्रो,अ॒श्विना॒वव॑सेकृणुध्वं॒¦प्रपू॒षणं॒स्वत॑वसो॒हिसन्ति॑ | अ॒द्वे॒षोविष्णु॒र्वात॑ऋभु॒क्षा¦,अच्छा᳚सु॒म्नाय॑ववृतीयदे॒वान् || 10 || |
इ॒यंसावो᳚,अ॒स्मेदीधि॑तिर्यजत्रा¦,अपि॒प्राणी᳚च॒सद॑नीचभूयाः | नियादे॒वेषु॒यत॑तेवसू॒यु¦र्वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 11 || |
[187] पितुंन्वित्येकादशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योन्नं गायत्री आद्यानुष्टुगर्भा तृतीयापंचम्याद्याश्चतस्रोनुष्टुभोन्त्याबृहतीवा |{मंडल:1, सूक्त:187}{अनुवाक:24, सूक्त:8}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
पि॒तुंनुस्तो᳚षं¦म॒होध॒र्माणं॒तवि॑षीम् | यस्य॑त्रि॒तोव्योज॑सा¦वृ॒त्रंविप᳚र्वम॒र्दय॑त् || 1 || वर्ग:6 |
स्वादो᳚पितो॒मधो᳚पितो¦व॒यंत्वा᳚ववृमहे | अ॒स्माक॑मवि॒ताभ॑व || 2 || |
उप॑नःपित॒वाच॑र¦शि॒वःशि॒वाभि॑रू॒तिभिः॑ | म॒यो॒भुर॑द्विषे॒ण्यः¦सखा᳚सु॒शेवो॒,अद्व॑याः || 3 || |
तव॒त्येपि॑तो॒रसा॒¦रजां॒स्यनु॒विष्ठि॑ताः | दि॒विवाता᳚,इवश्रि॒ताः || 4 || |
तव॒त्येपि॑तो॒दद॑त॒¦स्तव॑स्वादिष्ठ॒तेपि॑तो | प्रस्वा॒द्मानो॒रसा᳚नां¦तुवि॒ग्रीवा᳚,इवेरते || 5 || |
त्वेपि॑तोम॒हानां᳚¦दे॒वानां॒मनो᳚हि॒तम् | अका᳚रि॒चारु॑के॒तुना॒¦तवाहि॒मव॑सावधीत् || 6 || वर्ग:7 |
यद॒दोपि॑तो॒,अज॑गन्¦वि॒वस्व॒पर्व॑तानाम् | अत्रा᳚चिन्नोमधोपि॒तो¦ऽरं᳚भ॒क्षाय॑गम्याः || 7 || |
यद॒पामोष॑धीनां¦परिं॒शमा᳚रि॒शाम॑हे | वाता᳚पे॒पीव॒इद्भ॑व || 8 || |
यत्ते᳚सोम॒गवा᳚शिरो॒¦यवा᳚शिरो॒भजा᳚महे | वाता᳚पे॒पीव॒इद्भ॑व || 9 || |
क॒र॒म्भओ᳚षधेभव॒¦पीवो᳚वृ॒क्कउ॑दार॒थिः | वाता᳚पे॒पीव॒इद्भ॑व || 10 || |
तंत्वा᳚व॒यंपि॑तो॒वचो᳚भि॒¦र्गावो॒नह॒व्यासु॑षूदिम | दे॒वेभ्य॑स्त्वासध॒माद॑¦म॒स्मभ्यं᳚त्वासध॒माद᳚म् || 11 || |
[188] समिद्धइत्येकादशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्य इध्मस्तनूनपादिळोबर्हिर्देवीर्द्वार उषासानक्तादैव्यौहोतारौ सरस्वतीळा भारत्यस्त्वष्टा वनस्पति स्वाहाकृतयइतिक्रमेणदेवताः गायत्रीच्छंदः |{मंडल:1, सूक्त:188}{अनुवाक:24, सूक्त:9}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
समि॑द्धो,अ॒द्यरा᳚जसि¦दे॒वोदे॒वैःस॑हस्रजित् | दू॒तोह॒व्याक॒विर्व॑ह || 1 || वर्ग:8 |
तनू᳚नपादृ॒तंय॒ते¦मध्वा᳚य॒ज्ञःसम॑ज्यते | दध॑त्सह॒स्रिणी॒रिषः॑ || 2 || |
आ॒जुह्वा᳚नोन॒ईड्यो᳚¦दे॒वाँ,आव॑क्षिय॒ज्ञिया॑न् | अग्ने᳚सहस्र॒सा,अ॑सि || 3 || |
प्रा॒चीनं᳚ब॒र्हिरोज॑सा¦स॒हस्र॑वीरमस्तृणन् | यत्रा᳚दित्यावि॒राज॑थ || 4 || |
वि॒राट्स॒म्राड्वि॒भ्वीःप्र॒भ्वी¦र्ब॒ह्वीश्च॒भूय॑सीश्च॒याः | दुरो᳚घृ॒तान्य॑क्षरन् || 5 || |
सु॒रु॒क्मेहिसु॒पेश॒सा¦धि॑श्रि॒यावि॒राज॑तः | उ॒षासा॒वेहसी᳚दताम् || 6 || वर्ग:9 |
प्र॒थ॒माहिसु॒वाच॑सा॒¦होता᳚रा॒दैव्या᳚क॒वी | य॒ज्ञंनो᳚यक्षतामि॒मम् || 7 || |
भार॒तीळे॒सर॑स्वति॒¦यावः॒सर्वा᳚,उपब्रु॒वे | तान॑श्चोदयतश्रि॒ये || 8 || |
त्वष्टा᳚रू॒पाणि॒हिप्र॒भुः¦प॒शून्विश्वा᳚न्त्समान॒जे | तेषां᳚नःस्फा॒तिमाय॑ज || 9 || |
उप॒त्मन्या᳚वनस्पते॒¦पाथो᳚दे॒वेभ्यः॑सृज | अ॒ग्निर्ह॒व्यानि॑सिष्वदत् || 10 || |
पु॒रो॒गा,अ॒ग्निर्दे॒वानां᳚¦गाय॒त्रेण॒सम॑ज्यते | स्वाहा᳚कृतीषुरोचते || 11 || |
[189] अग्नेनयेत्यष्टर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योग्निस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:189}{अनुवाक:24, सूक्त:10}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
अग्ने॒नय॑सु॒पथा᳚रा॒ये,अ॒स्मान्¦विश्वा᳚निदेवव॒युना᳚निवि॒द्वान् | यु॒यो॒ध्य१॑(अ॒)स्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒¦भूयि॑ष्ठांते॒नम॑उक्तिंविधेम || 1 || वर्ग:10 |
अग्ने॒त्वंपा᳚रया॒नव्यो᳚,अ॒स्मान्¦त्स्व॒स्तिभि॒रति॑दु॒र्गाणि॒विश्वा᳚ | पूश्च॑पृ॒थ्वीब॑हु॒लान॑उ॒र्वी¦भवा᳚तो॒काय॒तन॑याय॒शंयोः || 2 || |
अग्ने॒त्वम॒स्मद्यु॑यो॒ध्यमी᳚वा॒,¦अन॑ग्नित्रा,अ॒भ्यम᳚न्तकृ॒ष्टीः | पुन॑र॒स्मभ्यं᳚सुवि॒ताय॑देव॒¦क्षांविश्वे᳚भिर॒मृते᳚भिर्यजत्र || 3 || |
पा॒हिनो᳚,अग्नेपा॒युभि॒रज॑स्रै¦रु॒तप्रि॒येसद॑न॒आशु॑शु॒क्वान् | माते᳚भ॒यंज॑रि॒तारं᳚यविष्ठ¦नू॒नंवि॑द॒न्माप॒रंस॑हस्वः || 4 || |
मानो᳚,अ॒ग्नेऽव॑सृजो,अ॒घाया᳚¦वि॒ष्यवे᳚रि॒पवे᳚दु॒च्छुना᳚यै | माद॒त्वते॒दश॑ते॒मादते᳚नो॒¦मारीष॑तेसहसाव॒न्परा᳚दाः || 5 || |
विघ॒त्वावाँ᳚,ऋतजातयंसद्¦गृणा॒नो,अ॑ग्नेत॒न्वे॒३॑(ए॒)वरू᳚थम् | विश्वा᳚द्रिरि॒क्षोरु॒तवा᳚निनि॒त्सो¦र॑भि॒ह्रुता॒मसि॒हिदे᳚ववि॒ष्पट् || 6 || वर्ग:11 |
त्वंताँ,अ॑ग्नउ॒भया॒न्विवि॒द्वान्¦वेषि॑प्रपि॒त्वेमनु॑षोयजत्र | अ॒भि॒पि॒त्वेमन॑वे॒शास्यो᳚भू¦र्मर्मृ॒जेन्य॑उ॒शिग्भि॒र्नाक्रः || 7 || |
अवो᳚चामनि॒वच॑नान्यस्मि॒न्¦मान॑स्यसू॒नुःस॑हसा॒ने,अ॒ग्नौ | व॒यंस॒हस्र॒मृषि॑भिःसनेम¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 8 || |
[190] अनर्वाणमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्यो बृहस्पतिस्त्रिष्टुप् |{मंडल:1, सूक्त:190}{अनुवाक:24, सूक्त:11}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
अ॒न॒र्वाणं᳚वृष॒भंम॒न्द्रजि॑ह्वं॒¦बृह॒स्पतिं᳚वर्धया॒नव्य॑म॒र्कैः | गा॒था॒न्यः॑सु॒रुचो॒यस्य॑दे॒वा¦,आ᳚शृ॒ण्वन्ति॒नव॑मानस्य॒मर्ताः᳚ || 1 || वर्ग:12 |
तमृ॒त्विया॒,उप॒वाचः॑सचन्ते॒¦सर्गो॒नयोदे᳚वय॒तामस॑र्जि | बृह॒स्पतिः॒सह्यञ्जो॒वरां᳚सि॒¦विभ्वाभ॑व॒त्समृ॒तेमा᳚त॒रिश्वा᳚ || 2 || |
उप॑स्तुतिं॒नम॑स॒उद्य॑तिंच॒¦श्लोकं᳚यंसत्सवि॒तेव॒प्रबा॒हू | अ॒स्यक्रत्वा᳚ह॒न्यो॒३॑(ओ॒)यो,अस्ति॑¦मृ॒गोनभी॒मो,अ॑र॒क्षस॒स्तुवि॑ष्मान् || 3 || |
अ॒स्यश्लोको᳚दि॒वीय॑तेपृथि॒व्या¦मत्यो॒नयं᳚सद्यक्ष॒भृद्विचे᳚ताः | मृ॒गाणां॒नहे॒तयो॒यन्ति॑चे॒मा¦बृह॒स्पते॒रहि॑मायाँ,अ॒भिद्यून् || 4 || |
येत्वा᳚देवोस्रि॒कंमन्य॑मानाः¦पा॒पाभ॒द्रमु॑प॒जीव᳚न्तिप॒ज्राः | नदू॒ढ्ये॒३॑(ए॒)अनु॑ददासिवा॒मं¦बृह॑स्पते॒चय॑स॒इत्पिया᳚रुम् || 5 || |
सु॒प्रैतुः॑सू॒यव॑सो॒नपन्था᳚¦दुर्नि॒यन्तुः॒परि॑प्रीतो॒नमि॒त्रः | अ॒न॒र्वाणो᳚,अ॒भियेचक्ष॑ते॒नो¦ऽपी᳚वृता,अपोर्णु॒वन्तो᳚,अस्थुः || 6 || वर्ग:13 |
संयंस्तुभो॒ऽवन॑यो॒नयन्ति॑¦समु॒द्रंनस्र॒वतो॒रोध॑चक्राः | सवि॒द्वाँ,उ॒भयं᳚चष्टे,अ॒न्त¦र्बृह॒स्पति॒स्तर॒आप॑श्च॒गृध्रः॑ || 7 || |
ए॒वाम॒हस्तु॑विजा॒तस्तुवि॑ष्मा॒न्¦बृह॒स्पति᳚र्वृष॒भोधा᳚यिदे॒वः | सनः॑स्तु॒तोवी॒रव॑द्धातु॒गोम॑द्¦वि॒द्यामे॒षंवृ॒जनं᳚जी॒रदा᳚नुम् || 8 || |
[191] कङ्कतइति षोळशर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरुणिरगस्त्योप्तृणसूर्याअनुष्टुप् दशम्याद्यास्तिस्रो महापंक्तयस्त्रयोदशी महाबृहती | (विषन्नसूक्तं) |{मंडल:1, सूक्त:191}{अनुवाक:24, सूक्त:12}{अष्टक:2, अध्याय:5} |
कङ्क॑तो॒नकङ्क॒तो¦ऽथो᳚सती॒नक᳚ङ्कतः | द्वाविति॒प्लुषी॒,इति॒¦न्य१॑(अ॒)दृष्टा᳚,अलिप्सत || 1 || वर्ग:14 |
अ॒दृष्टा᳚न्हन्त्याय॒¦त्यथो᳚हन्तिपराय॒ती | अथो᳚,अवघ्न॒तीह॒¦न्त्यथो᳚पिनष्टिपिंष॒ती || 2 || |
श॒रासः॒कुश॑रासो¦द॒र्भासः॑सै॒र्या,उ॒त | मौ॒ञ्जा,अ॒दृष्टा᳚वैरि॒णाः¦सर्वे᳚सा॒कंन्य॑लिप्सत || 3 || |
निगावो᳚गो॒ष्ठे,अ॑सद॒न्¦निमृ॒गासो᳚,अविक्षत | निके॒तवो॒जना᳚नां॒¦न्य१॑(अ॒)दृष्टा᳚,अलिप्सत || 4 || |
ए॒तउ॒त्येप्रत्य॑दृश्रन्¦प्रदो॒षंतस्क॑रा,इव | अदृ॑ष्टा॒विश्व॑दृष्टाः॒¦प्रति॑बुद्धा,अभूतन || 5 || |
द्यौर्वः॑पि॒तापृ॑थि॒वीमा॒ता¦सोमो॒भ्रातादि॑तिः॒स्वसा᳚ | अदृ॑ष्टा॒विश्व॑दृष्टा॒¦स्तिष्ठ॑ते॒लय॑ता॒सुक᳚म् || 6 || वर्ग:15 |
ये,अंस्या॒ये,अङ्ग्याः᳚¦सू॒चीका॒येप्र॑कङ्क॒ताः | अदृ॑ष्टाः॒किंच॒नेहवः॒¦सर्वे᳚सा॒कंनिज॑स्यत || 7 || |
उत्पु॒रस्ता॒त्सूर्य॑एति¦वि॒श्वदृ॑ष्टो,अदृष्ट॒हा | अ॒दृष्टा॒न्त्सर्वा᳚ञ्ज॒म्भय॒न्¦त्सर्वा᳚श्चयातुधा॒न्यः॑ || 8 || |
उद॑पप्तद॒सौसूर्यः॑¦पु॒रुविश्वा᳚नि॒जूर्व॑न् | आ॒दि॒त्यःपर्व॑तेभ्यो¦वि॒श्वदृ॑ष्टो,अदृष्ट॒हा || 9 || |
सूर्ये᳚वि॒षमास॑जामि॒¦दृतिं॒सुरा᳚वतोगृ॒हे | सोचि॒न्नुनम॑राति॒नो¦व॒यंम॑रामा॒रे,अ॑स्य॒¦योज॑नंहरि॒ष्ठामधु॑¦त्वामधु॒लाच॑कार || 10 || |
इ॒य॒त्ति॒काश॑कुन्ति॒का¦स॒काज॑घासतेवि॒षम् | सोचि॒न्नुनम॑राति॒नो¦व॒यंम॑रामा॒रे,अ॑स्य॒¦योज॑नंहरि॒ष्ठामधु॑¦त्वामधु॒लाच॑कार || 11 || वर्ग:16 |
त्रिःस॒प्तवि॑ष्पुलिङ्ग॒का¦वि॒षस्य॒पुष्प॑मक्षन् | ताश्चि॒न्नुनम॑रन्ति॒नो¦व॒यंम॑रामा॒रे,अ॑स्य॒¦योज॑नंहरि॒ष्ठामधु॑¦त्वामधु॒लाच॑कार || 12 || |
न॒वा॒नांन॑वती॒नां¦वि॒षस्य॒रोपु॑षीणाम् | सर्वा᳚सामग्रभं॒नामा॒¦रे,अ॑स्य॒योज॑नं¦हरि॒ष्ठामधु॑त्वामधु॒लाच॑कार || 13 || |
त्रिःस॒प्तम॑यू॒र्यः॑¦स॒प्तस्वसा᳚रो,अ॒ग्रुवः॑ | तास्ते᳚वि॒षंविज॑भ्रिर¦उद॒कंकु॒म्भिनी᳚रिव || 14 || |
इ॒य॒त्त॒कःकु॑षुम्भ॒क¦स्त॒कंभि॑न॒द्म्यश्म॑ना | ततो᳚वि॒षंप्रवा᳚वृते॒¦परा᳚ची॒रनु॑सं॒वतः॑ || 15 || |
कु॒षु॒म्भ॒कस्तद॑ब्रवीद्¦गि॒रेःप्र॑वर्तमान॒कः | वृश्चि॑कस्यार॒संवि॒ष¦म॑र॒संवृ॑श्चिकतेवि॒षम् || 16 || |