|| श्री॒ गु॒रु॒भ्यो॒ न॒मः॒ हरिः ॐ ||


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Mantra classification is following this convention {मंडल,सूक्त,मंत्र}{मंडल,अनुवाक,सूक्त,मंत्र}{अष्टक,अध्याय,वर्ग,मंत्र}
[Last updated on: 15-Mar-2025]

१। आचमनं
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२। घण्टानादं
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् | कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताह्वान लांछनं ||
येभ्यो᳚मा॒तामधु॑म॒त्‌पिन्व॑ते॒पयः॑¦पी॒यूषं॒द्यौरदि॑ति॒रद्रि॑बर्हाः |{गयः प्लातः | विश्वदेवाः | जगती}

उ॒क्थशु॑ष्मान्‌वृषभ॒रान्‌त्स्वप्न॑स॒¦स्ताँ,आ᳚दि॒त्याँ,अनु॑मदास्व॒स्तये᳚ || {10.63.3}{10.5.3.3}{8.2.3.3}

ए॒वापि॒त्रेवि॒श्वदे᳚वाय॒वृष्णे᳚¦य॒ज्ञैर्वि॑धेम॒नम॑साह॒विर्भिः॑ |{गौतमो वामदेवः | बृहस्पतिः | त्रिष्टुप्}

बृह॑स्पतेसुप्र॒जावी॒रव᳚न्तो¦व॒यंस्या᳚म॒पत॑योरयी॒णाम् || {4.50.6}{4.5.5.6}{3.7.27.1}

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३। गुरुगणेश प्रार्थनॆ
श्री गुरवे नमः गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुः साक्षान्महेश्वरः गुरुरेव जगत्सर्वं तस्मै श्री गुरवे नमः ||
सुमुखश्चैकद‌न्तश्च कपिलॊ गजकर्णकः | लम्बॊदरश्च विकटो विघ्नराजो गणाधिपः ||
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षॊ फालचन्द्रॊ गजाननः | द्वादशैतानि नामानि यःपठेत् श्रुणुयादपि ||
विद्यारम्भॆ विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा | सङ्ग्रामॆ सर्वकार्येषु विघ्नस्तस्य न जायतॆ |
शुक्लाम्बरधरं विश्णुम् शशिवर्णं चतुर्भुजं | प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ||
अभीप्सितार्थ सिद्ध्यर्थम्‌ पूजितॊ यः सुरैरपि | सर्वविघ्नच्छिदे तस्मै गणाधिपतये नमः ||
ध्यायामि नरसिंहाख्यम् ब्रह्म वेदान्त गोचर‌म् | भवाब्धि तरणोपायम् योगानन्दम् जगद्गुरु‌म् ||
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४। आसनविधिः
पृथ्वीत्यस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः | सुतलं छन्दः | आदिकूर्मो देवता | आसनसिद्द्यर्थे विनियोगः ||
ओम् पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता | त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासन‌म् ||
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५। भूतोच्चाटनम्
अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भुवि संस्थिताः | ये भूता विघ्नकर्तारस्ते गच्चन्तु शिवाज्ञया ||
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिश‌म् | सर्वेषाम्‌ अविरोधेन पूजाकर्म समारभे ||
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६। गुरुनमस्कारः
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः, परम गुरुभ्यो नमः, परमेष्ठि गुरुभ्यो नमः,
गुं गुरुभ्यो नमः, गं गणपतये नमः, दुं दुर्गायै नमः,
क्षं क्षेत्रपालाय नमः, सं सरस्वत्यै नमः, पं परमात्मने नमः ||
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७। प्राणायाम
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८। संकल्प
शुभाभ्याम् शुभे शोभने मुहूर्ते, आद्य ब्रह्मणः, द्वितीयॆ परार्धे,
श्वेतवराह कल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अश्टाविंशतितमे कलियुगे, प्रथम पादे,
भारत वर्षे, भरत खण्डे, जम्बू द्वीपे गोदावर्याः दक्षिणे तीरे, राम क्षेत्रे,
शालिवाहन शके बौद्दावतारे अस्मिन् वर्तमाने व्यावहारिके,
_________________ नाम संवत्सरे, _________________ आयणॆ, _________________ ऋतौ,
_________________ मासे, _________________ पक्षे, _________________ तिथौ,
_________________ वासर-युक्तायाम्,
शुभतिथि, शुभवार, शुभनक्षत्र, शुभयॊग, शुभकरण एवंगुणविशेषण विशिष्टायम्,
शुभपुण्यतिथौ, मम उपाक्त समस्त दुरित क्षय द्वारा श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थम्,
अस्माकं सकुटुंबानां क्षेम स्थैर्य विजय वीर्य अभय अयुरारोग्य आनन्द ऐश्वर्य अभिवृद्ध्यर्थं,
धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्विध फलपुरुषार्थ सिद्ध्यर्थं,
श्री विष्णु देवता प्रसाद सिद्ध्यर्थं,
यावच्छक्ति ध्याना आवाहनादि षोडशोपचार पूजां करिष्ये
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९। तदंगत्वेन कलशार्चनम् करिष्ये
इ॒मंमे᳚गङ्गेयमुनेसरस्वति॒¦शुतु॑द्रि॒स्तोमं᳚सचता॒परु॒ष्ण्या |{प्रैयमेधः सिंधुक्षिः | नद्यः | जगती}

अ॒सि॒क्न्याम॑रुद्वृधेवि॒तस्त॒या¦ऽऽर्जी᳚कीयेशृणु॒ह्यासु॒षोम॑या || {10.75.5}{10.6.7.5}{8.3.6.5}

कलशम् गंधाक्षत पत्र पुष्पैरभ्यर्च
गंध॑द्वा॒रांदु॑राध॒र्षां¦नि॒त्यपु॑ष्टांकरी॒षिणी᳚म् |

ई॒श्वरीं᳚सर्व॑भूता॒नां¦तामि॒होप॑ह्वये॒श्रिय᳚म् ||

गन्धं समर्पयामि ||
अर्च॑त॒प्रार्च॑त॒¦प्रिय॑मेधासो॒,अर्च॑त |{आङ्गिरसः प्रियमेधः | इन्द्रः | अनुष्टुप्}

अर्च᳚न्तुपुत्र॒का,उ॒त¦पुरं॒धृ॒ष्ण्व॑र्चत || {8.69.8}{8.7.10.8}{6.5.6.3}

अक्षतान् समर्पयामि ||
आय॑नेतेप॒राय॑णे॒¦दूर्वा᳚रोहन्तुपु॒ष्पिणीः᳚ |{शार्ङ्गस्तम्बमित्रः | अग्निः | अनुष्टुप्}

ह्र॒दाश्च॑पु॒ण्डरी᳚काणि¦समु॒द्रस्य॑गृ॒हा,इ॒मे || {10.142.8}{10.11.14.8}{8.7.30.8}

पुष्पाणि समर्पयामि ||
तत्वायामीत्यस्य शुनः शेप ऋषिः | वरुणो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || कलशे वरुणावाहने विनियोगः
तत्‌त्वा᳚यामि॒ब्रह्म॑णा॒वन्द॑मान॒स्¦तदाशा᳚स्ते॒यज॑मानोह॒विर्भिः॑ |{आजीगर्तिः शुनःशेपः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः | वरुणः | त्रिष्टुप्}

अहे᳚ळमानोवरुणे॒हबो॒ध्यु¦रु॑शंस॒मान॒आयुः॒प्रमो᳚षीः || {1.24.11}{1.6.1.11}{1.2.15.1}

अस्मिन् कलशे
भूः वरुणम् आवाहयामि, भुवः वरुणम् आवाहयामि, स्वः वरुणम् आवाहयामि, भूर्भुवस्वः वरुणम् आवाहयामि ||
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः, मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा, ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशाम्बु समाश्रिताः, अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा
आयान्तु देव पूजार्थम् दुरित क्षयकारकाः, सर्वे समुद्राः सरिताः तीर्थानि जलदानदाः
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती, नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु
गंगादि सर्वतीर्थेभ्यो नमः कलश पूजाम् समर्पयामि ||
सितमकरनिषण्णां शुभ्रवर्णां त्रिनेत्रा‌म् | करधृत कलशोद्यत्‌सोत्पलाभीत्यभीष्टा‌म् ||
विधिहरिहररूपां सेन्दु कोटीरचूडां | भसितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ||
कलश देवताभ्यो नमः |
ध्यानद्युपचारपूजां समर्पयामि ||
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१०। अथ शंखपूजाम् करिष्ये
शंनो᳚दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒¦आपो᳚भवन्तुपी॒तये᳚ |{आंबरीषः सिंधुद्वीपः | आपः | गायत्री}

शंयोर॒भिस्र॑वन्तुनः || {10.9.4}{10.1.9.4}{7.6.5.4}

शंखं चन्द्रार्कदैवत्यं मध्ये वरुणसंयुतम् | पृष्ठे प्रजापतिम् विन्द्यात् अग्रे गङ्गा सरस्वती ||
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया | शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्राः तस्माच्छंखं प्रपूजयेत् ||
त्वं पुरा सागरोत्पन्नः विष्णुना विधृतः करे | देवैश्च पूजितस्सम्यक् पाञ्चजन्य नमोऽस्तुते ||
ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पद्मगर्भाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात् ||
ओम् ह्रीं पाञ्चजन्याय नमः || (१० सल)
लम् पृथिव्यात्मना गन्धम् कल्पयामि, हम् आकाशात्मना पुष्पम् कल्पयामि, यम् वाय्वात्मना धूपम् कल्पयामि
तम् अग्न्यात्मना दीपम् कल्पयामि, वम् अमृतात्मना नैवेद्यम् कल्पयामि
पंचोपचारपूजाम् समर्पयामि
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११। आत्मपूजा/आत्मार्चन‌म्
दिव्यगन्धान् धारयामि ॥
देहो देवालयः प्रोक्तः जीवो देवः सनातनः | त्यजेद् अज्ञाननिर्माल्यं सोऽहं भावेन पूजयेत् ||
अम् आत्मने नमः, उम् अन्तरात्मने नमः, मम् परमात्मने नमः ||
स्वामिन् सर्व जगन्नाथ यावत्‌ पूजावसानकम् | तावत्वम् प्रीति भावेन बिम्बेस्मिन् सन्निधिम् कुरु ||
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१२। अथ मण्टप ध्यानम् करिष्ये
उत्तप्तोज्वलकांचनेन रचितं तुंगांग रंगस्थलं | शुद्धस्थाटिकभित्तिका विरचितैः स्तंभैश्च हैमैः शुभैः ||
द्वारैश्चामर रत्न राज खचितैः शोभा वहैर्मंटपैः | तत्रान्यैरपि चित्र शंख धवलैः प्रभ्राजितम् स्वस्तिकैः ||
मुक्ताजाल विलंब मंटपयुतैर्वज्रैश्च सोपानकैः | नानारत्न विनिर्मितैश्च कलशैरत्यंत शोभावहैः ||
माणिक्योज्वलदीपदीप्तिखचितम् लक्ष्मीविलासास्पदं | ध्यायेन्मंटप मर्चनेषु सकलेष्वेवं विधं साधकः ||
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१३। अथ द्वारदेवता पूजाम् करिष्ये
ॐ पूर्वद्वारे द्वारश्रियै नमः | ॐ धात्रे नमः | ॐ विधात्रे नमः ||
ॐ दक्षिणद्वारे द्वारश्रियै नमः | ॐ जयाय नमः | ॐ विजयाय नमः ||
ॐ पश्चिमद्वारे द्वारश्रियै नमः | ॐ चण्डाय नमः | ॐ प्रचण्डाय नमः ||
ॐ उत्तरद्वारे द्वारश्रियै नमः | ॐ नन्दाय नमः | ॐ सुनन्दाय नमः ||
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१४। अथ पीठपूजाम् करिष्ये
ॐ आधारशक्त्यै नमः, ॐ मूलप्रकृत्यै नमः, ॐ आदिकूर्माय नमः, ॐ वराहाय नमः,
ॐ अनन्ताय नमः, ॐ अष्टदिग्गजेभ्यो नमः, ॐ क्षीरार्णवाय नमः, ॐ श्वेतद्वीपाय नमः,
ॐ कल्पवृक्षाय नमः, ॐ सुवर्णमण्टपाय नमः, ओम् रत्नसिंहासनम् कल्पयामि ||
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१५ ध्यानम् (विष्णु)
साध्यो नारायण ऋषिः, देवी गायत्री छन्दः, परमात्मा देवता ||
क्रुद्धोल्काय स्वाहा अंगुष्ठाभ्यां नमः, हृदयायः नमः |
महोल्काय स्वाहा तर्जनीभ्याम् नमः, शिरसे स्वाह |
वीरोल्काय स्वाहा मध्यमाभ्याम् नमः, शिखायै वषट् |
द्यूल्काय स्वाहा अनामिकाभ्याम् नमः, कवचाय हु‌म् |
ज्ञानोल्काय स्वाहा कनिष्ठिकाभ्याम् नमः, नेत्रत्रयाय वौषट् |
सहस्रोल्काय स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्याम् नमः, अस्त्रायफट् |
भूर्भुवःस्वरो‌म् || ध्यान‌म्
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् |
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||
ॐ नमो नारायणाय || (८ सल)
लम् पृथिव्यात्मने गन्धम् कल्पयामि, हम् आकाशात्मने पुष्पम् कल्पयामि, यम् वाय्वात्मने धूपम् कल्पयामि
तम् अग्न्यात्मने दीपम् कल्पयामि, वम् अमृतात्मने नैवेद्यम् कल्पयामि
पंचोपचारपूजाम् समर्पयामि
इ॒दंविष्णु॒र्विच॑क्रमे¦त्रे॒धानिद॑धेप॒दम् |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

समू᳚ळ्हमस्यपांसु॒रे || {1.22.17}{1.5.5.17}{1.2.7.2}

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१६। श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | षोडशोपचारपूजाम् करिष्ये
सहस्रशीर्षेति षोडशर्चस्य सूक्तस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, परमपुरुषो देवत || पूजायाम् विनियोगः
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१७। आवाहनम्
स॒हस्र॑शीर्षा॒पुरु॑षः¦सहस्रा॒क्षःस॒हस्र॑पात् |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

भूमिं᳚वि॒श्वतो᳚वृ॒त्वा¦ऽत्य॑तिष्ठद्दशाङ्गु॒लम् || {10.90.1}{10.7.6.1}{8.4.17.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | आवाहयमि | इत्यावाह्य ||
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१८। आसनम्
पुरु॑षए॒वेदंसर्वं॒¦यद्भू॒तंयच्च॒भव्य᳚म् |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

उ॒तामृ॑त॒त्वस्येशा᳚नो॒¦यदन्ने᳚नाति॒रोह॑ति || {10.90.2}{10.7.6.2}{8.4.17.2}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | आसनं समर्पयामि ||
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१९। पाद्यम्
ए॒तावा᳚नस्यमहि॒मा¦ऽतो॒ज्यायाँ᳚श्च॒पूरु॑षः |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

पादो᳚ऽस्य॒विश्वा᳚भू॒तानि॑¦त्रि॒पाद॑स्या॒मृतं᳚दि॒वि || {10.90.3}{10.7.6.3}{8.4.17.3}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | पादारविन्दयोः पाद्यं पाद्यं समर्पयामि ||
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२०। अर्घ्यम्
त्रि॒पादू॒र्ध्वउदै॒त्‌पुरु॑षः॒¦पादो᳚ऽस्ये॒हाभ॑व॒त्‌पुनः॑ |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

ततो॒विष्व॒ङ्‌व्य॑क्रामत्¦साशनानश॒ने,अ॒भि || {10.90.4}{10.7.6.4}{8.4.17.4}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | हस्तयोः अर्घ्यम् अर्घ्यम् समर्पयामि
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२१। आचमनम्
तस्मा᳚द्वि॒राळ॑जायत¦वि॒राजो॒,अधि॒पूरु॑षः |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

जा॒तो,अत्य॑रिच्यत¦प॒श्चाद्भूमि॒मथो᳚पु॒रः || {10.90.5}{10.7.6.5}{8.4.17.5}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | मुखे आचमनीयं आचमनीयं समर्पयामि ||
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२२। मलापकर्षण स्नानं समर्पयामि
आपो॒हिष्ठाम॑यो॒भुव॒¦स्तान॑ऊ॒र्जेद॑धातन |{आंबरीषः सिंधुद्वीपः | आपः | गायत्री}

म॒हेरणा᳚य॒चक्ष॑से || {10.9.1}{10.1.9.1}{7.6.5.1}

योवः॑शि॒वत॑मो॒रस॒¦स्तस्य॑भाजयते॒हनः॑ |{आंबरीषः सिंधुद्वीपः | आपः | गायत्री}

उ॒श॒तीरि॑वमा॒तरः॑ || {10.9.2}{10.1.9.2}{7.6.5.2}

तस्मा॒,अरं᳚गमामवो॒¦यस्य॒क्षया᳚य॒जिन्व॑थ |{आंबरीषः सिंधुद्वीपः | आपः | गायत्री}

आपो᳚ज॒नय॑थानः || {10.9.3}{10.1.9.3}{7.6.5.3}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | मलापकर्षण स्नानं समर्पयामि ||
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२३। अथ पंचामृत्यै स्नपयिश्ये
२३।१।१ क्षीरस्नानेन स्नपयिश्ये
प्या᳚यस्व॒समे᳚तु¦तेवि॒श्वतः॑सोम॒वृष्ण्य᳚म् |{रहूगणो गोतमः | सोमः | गायत्री}

भवा॒वाज॑स्यसंग॒थे || {1.91.16}{1.14.7.16}{1.6.22.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | क्षीर स्नानं समर्पयामि ||
२३।१।२ क्षीर स्नानानन्तरं शुद्धोदकेन स्नपयिश्ये
अतो᳚दे॒वा,अ॑वन्तुनो॒¦यतो॒विष्णु᳚र्विचक्र॒मे |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुर्देवो वा | गायत्री}

पृ॒थि॒व्याःस॒प्तधाम॑भिः || {1.22.16}{1.5.5.16}{1.2.7.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ||
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२३।२।१ शुद्धोदक स्नानानन्तरम् दध्ना स्नपयिश्ये
द॒धि॒क्राव्णो᳚,अकारिषं¦जि॒ष्णोरश्व॑स्यवा॒जिनः॑ |{गौतमो वामदेवः | दधिक्राः | अनुष्टुप्}

सु॒र॒भिनो॒मुखा᳚कर॒त्¦प्रण॒आयूं᳚षितारिषत् || {4.39.6}{4.4.7.6}{3.7.13.6}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | दधिस्नानं समर्पयामि ||
२३।२।२ दधि स्नानानन्तरम् शुद्धोदकेन स्नपयिश्ये
इ॒दंविष्णु॒र्विच॑क्रमे¦त्रे॒धानिद॑धेप॒दम् |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

समू᳚ळ्हमस्यपांसु॒रे || {1.22.17}{1.5.5.17}{1.2.7.2}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ||
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२३।३।१ शुद्धोदक स्नानानन्तरम् घृतेन स्नपयिश्ये
घृ॒तंमि॑मिक्षेघृ॒तम॑स्य॒योनि॑¦र्घृ॒तेश्रि॒तोघृ॒तम्व॑स्य॒धाम॑ |{शौनको गृत्समदः | स्वाहाकृतयः | त्रिष्टुप्}

अ॒नु॒ष्व॒धमाव॑हमा॒दय॑स्व॒¦स्वाहा᳚कृतंवृषभवक्षिह॒व्यम् || {2.3.11}{2.1.3.11}{2.5.23.6}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | घृत स्नानं समर्पयामि ||
२३।३।२ घृत स्नानानन्तरम् शुद्धोदकेन स्नपयिश्ये
त्रीणि॑प॒दाविच॑क्रमे॒¦विष्णु॑र्गो॒पा,अदा᳚भ्यः |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

अतो॒धर्मा᳚णिधा॒रय॑न् || {1.22.18}{1.5.5.18}{1.2.7.3}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि
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२३।४।१ शुद्धोदक स्नानानन्तरम् मधुना स्नपयिश्ये
मधु॒वाता᳚ऋताय॒ते¦मधु॑क्षरन्ति॒सिन्ध॑वः |{रहूगणो गोतमः | विश्वदेवाः | गायत्री}

माध्वी᳚र्नःस॒न्त्वोष॑धीः || {1.90.6}{1.14.6.6}{1.6.18.1}

मधु॒नक्त॑मु॒तोषसो॒¦मधु॑म॒त्‌पार्थि॑वं॒रजः॑ |{रहूगणो गोतमः | विश्वदेवाः | गायत्री}

मधु॒द्यौर॑स्तुनःपि॒ता || {1.90.7}{1.14.6.7}{1.6.18.2}

मधु॑मान्नो॒वन॒स्पति॒¦र्मधु॑माँ,अस्तु॒सूर्यः॑ |{रहूगणो गोतमः | विश्वदेवाः | गायत्री}

माध्वी॒र्गावो᳚भवन्तुनः || {1.90.8}{1.14.6.8}{1.6.18.3}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | मधु स्नानं समर्पयामि ||
२३।४।२ मधु स्नानानन्तरम् शुद्धोदकेन स्नपयिश्ये
विष्णोः॒कर्मा᳚णिपश्यत॒¦यतो᳚व्र॒तानि॑पस्प॒शे |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

इन्द्र॑स्य॒युज्यः॒सखा᳚ || {1.22.19}{1.5.5.19}{1.2.7.4}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ||
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२३।५।१ शुद्धोदक स्नानानन्तरम् शर्करया स्नपयिश्ये
स्वा॒दुःप॑वस्वदि॒व्याय॒जन्म॑ने¦स्वा॒दुरिन्द्रा᳚यसु॒हवी᳚तुनाम्ने |{भार्गवो वेनः | पवमानः सोमः | जगती}

स्वा॒दुर्मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे॒¦बृह॒स्पत॑ये॒मधु॑माँ॒,अदा᳚भ्यः || {9.85.6}{9.4.18.6}{7.3.11.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शर्कर स्नानं समर्पयामि ||
२३।५।१ शर्कर स्नानानन्तरम् शुद्धोदकेन स्नपयिश्ये
तद्विष्णोः᳚पर॒मंप॒दं¦सदा᳚पश्यन्तिसू॒रयः॑ |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

दि॒वी᳚व॒चक्षु॒रात॑तम् || {1.22.20}{1.5.5.20}{1.2.7.5}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ||
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२३।६।१ शुद्धोदक स्नानानन्तरम् फलेन स्नपयिश्ये
याःफ॒लिनी॒र्या,अ॑फ॒ला¦,अ॑पु॒ष्पायाश्च॑पु॒ष्पिणीः᳚ |{अथर्वणो भिषगः | ओषधयः | अनुष्टुप्}

बृह॒स्पति॑प्रसूता॒¦स्तानो᳚मुञ्च॒न्त्वंह॑सः || {10.97.15}{10.8.7.15}{8.5.10.5}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | फलस्नानं समर्पयामि ||
२३।६।२ फल स्नानानन्तरम् शुद्धोदकेन स्नपयिश्ये
तद्विप्रा᳚सोविप॒न्यवो᳚¦जागृ॒वांसः॒समि᳚न्धते |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

विष्णो॒र्यत्‌प॑र॒मंप॒दम् || {1.22.21}{1.5.5.21}{1.2.7.6}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | फलपंचामृत स्नानं समर्पयामि ||
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२४। अथ विष्णु सूक्तेन स्नपयिष्ये (श्री महाविष्णवे नमः | विष्णु सूक्ताभिषेक स्नानम् समर्पयामि)
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२५। स्नानं
यत्‌पुरु॑षेणह॒विषा᳚¦दे॒वाय॒ज्ञमत᳚न्वत |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

व॒स॒न्तो,अ॑स्यासी॒दाज्यं᳚¦ग्री॒ष्मइ॒ध्मःश॒रद्ध॒विः || {10.90.6}{10.7.6.6}{8.4.18.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | स्नानं समर्पयामि ||
स्नानानन्तरम् आचमनं समर्पयामि ||
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२६। वस्त्र समर्पणम्
तंय॒ज्ञंब॒र्हिषि॒प्रौक्ष॒न्¦पुरु॑षंजा॒तम॑ग्र॒तः |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

तेन॑दे॒वा,अ॑यजन्त¦सा॒ध्या,ऋष॑यश्च॒ये || {10.90.7}{10.7.6.7}{8.4.18.2}

यु॒वंवस्त्रा᳚णिपीव॒साव॑साथे¦यु॒वोरच्छि॑द्रा॒मन्त॑वोह॒सर्गाः᳚ |{औचथ्यो दीर्घतमाः | मित्रावरुणौ | त्रिष्टुप्}

अवा᳚तिरत॒मनृ॑तानि॒विश्व॑¦ऋ॒तेन॑मित्रावरुणासचेथे || {1.152.1}{1.21.13.1}{2.2.22.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | वस्त्रार्थं अक्षतान् समर्पयामि ||
वस्त्रानन्तरम् आचमनं समर्पयामि ||
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२७। यज्ञोपवीत समर्पणम्
तस्मा᳚द्य॒ज्ञात्‌स᳚र्व॒हुतः॒¦सम्भृ॑तंपृषदा॒ज्यम् |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

प॒शून्‌ताँश्च॑क्रेवाय॒व्या᳚¦नार॒ण्यान्‌ग्रा॒म्याश्च॒ये || {10.90.8}{10.7.6.8}{8.4.18.3}

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजा पतेर्यत् सहजं पुरस्तात् |
आयुष्यमग्रियं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ||
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | यज्ञोपवीतार्थं अक्षतान् समर्पयामि ||
उपवीतान्तॆ आचमनीयं आचमनीयं समर्पयामि ||
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२८। गन्ध विलेपनम्
तस्मा᳚द्य॒ज्ञात्‌स᳚र्व॒हुत॒¦ऋचः॒सामा᳚निजज्ञिरे |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

छन्दां᳚सिजज्ञिरे॒तस्मा॒¦द्यजु॒स्तस्मा᳚दजायत || {10.90.9}{10.7.6.9}{8.4.18.4}

गंध॑द्वा॒रांदु॑राध॒र्षां¦नि॒त्यपु॑ष्टांकरी॒षिणी᳚म् |

ई॒श्वरीं᳚सर्व॑भूता॒नां¦तामि॒होप॑ह्वये॒श्रिय᳚म् ||

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | गन्धम् समर्पयामि ||
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२९। आभरण समर्पणम्
हिर᳚ण्यरूपः॒हिर᳚ण्यसंदृग॒पां¦नपा॒त्‌सेदु॒हिर᳚ण्यवर्णः |{शौनको गृत्समदः | अपान्नपात् | त्रिष्टुप्}

हि॒र॒ण्यया॒त्‌परि॒योने᳚र्नि॒षद्या᳚¦हिरण्य॒दाद॑द॒त्यन्न॑मस्मै || {2.35.10}{2.4.3.10}{2.7.23.5}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | आभरणार्थम् अक्षतान् समर्पयामि ||
********************************************************************
३०। कुंकुमालंकरणम्
यागु॒ङ्गूर्यासि॑नीवा॒ली¦यारा॒कायासर॑स्वती |{शौनको गृत्समदः | लिङ्गोक्ताः | अनुष्टुप्}

इ॒न्द्रा॒णीम॑ह्वऊ॒तये᳚¦वरुणा॒नींस्व॒स्तये᳚ || {2.32.8}{2.3.10.8}{2.7.15.8}

सक्तु॑मिव॒तित॑उनापु॒नन्तो॒¦यत्र॒धीरा॒मन॑सा॒वाच॒मक्र॑त |{बृहस्पतिः | ज्ञानम् | त्रिष्टुप्}

अत्रा॒सखा᳚यःस॒ख्यानि॑जानते¦भ॒द्रैषां᳚ल॒क्ष्मीर्निहि॒ताधि॑वा॒चि || {10.71.2}{10.6.3.2}{8.2.23.2}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | हरिद्राकुंकुम चूर्णं समर्पयामि ||
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३१। सर्वालंकार समर्पणम्
अहि॑रिवभो॒गैःपर्ये᳚तिबा॒हुं¦ज्याया᳚हे॒तिंप॑रि॒बाध॑मानः |{भारद्वाजः पायुः | हस्तत्राणः | त्रिष्टुप्}

ह॒स्त॒घ्नोविश्वा᳚व॒युना᳚निवि॒द्वान्¦पुमा॒न्‌पुमां᳚सं॒परि॑पातुवि॒श्वतः॑ || {6.75.14}{6.6.14.14}{5.1.21.4}

चि॑त्रचि॒त्रंचि॒तय᳚न्तम॒स्मे¦चित्र॑क्षत्रचि॒त्रत॑मंवयो॒धाम् |{बार्हस्पत्यो भरद्वाजः | अग्निः | त्रिष्टुप्}

च॒न्द्रंर॒यिंपु॑रु॒वीरं᳚बृ॒हन्तं॒¦चन्द्र॑च॒न्द्राभि॑र्गृण॒तेयु॑वस्व || {6.6.7}{6.1.6.7}{4.5.8.7}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | सर्वालंकार समर्पयामि ||
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३२। अक्षत समर्पणम्
उपा᳚स्मैगायतानरः॒¦पव॑माना॒येन्द॑वे |{काश्यपोसितः | पवमानः सोमः | गायत्री}

अ॒भिदे॒वाँ,इय॑क्षते || {9.11.1}{9.1.11.1}{6.7.36.1}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | अक्षतान् समर्पयामि ||
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३३। पुष्पसमर्पणम्
तस्मा॒दश्वा᳚,अजायन्त॒¦येकेचो᳚भ॒याद॑तः |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

गावो᳚जज्ञिरे॒तस्मा॒त्¦तस्मा᳚ज्जा॒ता,अ॑जा॒वयः॑ || {10.90.10}{10.7.6.10}{8.4.18.5}

आय॑नेतेप॒राय॑णे॒¦दूर्वा᳚रोहन्तुपु॒ष्पिणीः᳚ |{शार्ङ्गस्तम्बमित्रः | अग्निः | अनुष्टुप्}

ह्र॒दाश्च॑पु॒ण्डरी᳚काणि¦समु॒द्रस्य॑गृ॒हा,इ॒मे || {10.142.8}{10.11.14.8}{8.7.30.8}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | पुष्पाणि समर्पयामि ||
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३४। विष्णु द्वादश नाम पूजाम् करिष्ये (विशेष दिनगळन्दु अंग पूजॆ, आवरण पूजॆ, अष्तोत्तर शतनाम पूजॆगळन्नू माडबहुदु)
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः,
ॐ गोविंदाय नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ मधुसूदनाय नमः,
ॐ त्रिविक्रमाय नमः, ॐ वामनाय नमः, ॐ श्रीधराय नमः,
ॐ हृषीकेशाय नमः, ॐ पद्मनाभाय नमः, ॐ दामोदराय नमः,
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | द्वादशनाम पूजाम् समर्पयामि ||
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३५। धूपम्
यत्पुरु॑षं॒व्यद॑धुः¦कति॒धाव्य॑कल्पयन् |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

मुखं॒किम॑स्य॒कौबा॒हू¦का,ऊ॒रूपादा᳚,उच्येते || {10.90.11}{10.7.6.11}{8.4.19.1}

वनस्पतिरसोत्पन्नो गन्धाड्यॊ धूप उत्तमः | आघ्रेयः सर्वदेवानाम् धूपोऽयम् प्रतिगृह्यताम्||
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | धूपं आघ्रापयामि ||
धूपानन्तरं आचमनीयं समर्पयामि
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३६। दीपम्
ब्रा॒ह्म॒णो᳚स्य॒मुख॑मासी¦द्बा॒हूरा᳚ज॒न्यः॑कृ॒तः |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

ऊ॒रूतद॑स्य॒यद्वैश्यः॑¦प॒द्भ्यांशू॒द्रो,अ॑जायत || {10.90.12}{10.7.6.12}{8.4.19.2}

ज्योतिः शुक्लश्चतेजश्च देवानाम् सततम् प्रियः | प्रभाकरो महातेजा दीपोयम् प्रतिगृह्यता‌म्
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | दीपां दर्शयामि ||
दीपानन्तरं आचमनीयं समर्पयामि
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३७। नैवेद्यम्
गायत्रि मन्त्र ॥।
सत्यम् त्वर्तेन परिशिंचामि |
अन्तश्चरति भूतेषु गुहायाम् सर्वतोमुखः |
त्वम् यज्ञस्त्वंवषट्कारस्त्वम् विष्णुः पुरुषः परः |
अमृतोपस्तरणमसि | जुहोमिस्वाहा ||
ओम् प्राणाय स्वाहा, ओम् अपानाय स्वाहा, ओम् व्यानाय स्वाहा, ओम् उदानाय स्वाहा,
ओम् समानाय स्वाहा, ओम् ब्रह्मणे स्वाहा, ओम् देवेभ्यः स्वाहा
दे॒वस्य॑ त्वा सवि॒तुः प्र॑स॒वे᳚ऽश्विनो᳚र्बा॒हुभ्यां᳚ पू॒ष्णो हस्ता᳚भ्याम् ||
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | शाल्यन्नम् निवेदयामि ||
साध्यो नारायण ऋषिः, देवी गायत्री छन्दः, परमात्मा देवता ॐ नमो नारायणाय || (८ सल)
भो॒जंत्वामि᳚न्द्रव॒यंहु॑वेम¦द॒दिष्ट्वमि॒न्द्रापां᳚सि॒वाजा॑न् |{शौनको गृत्समदः | इन्द्रः | त्रिष्टुप्}

अ॒वि॒ड्ढी᳚न्द्रचि॒त्रया᳚ऊ॒ती¦कृ॒धिवृ॑षन्निन्द्र॒वस्य॑सोनः || {2.17.8}{2.2.6.8}{2.6.20.3}

च॒न्द्रमा॒मन॑सोजा॒त¦श्चक्षोः॒सूर्यो᳚,अजायत |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

मुखा॒दिन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑¦प्रा॒णाद्वा॒युर॑जायत || {10.90.13}{10.7.6.13}{8.4.19.3}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | नैवेद्यम् समर्पयामि ||
मध्ये मध्ये स्वादूदकम् समर्पयामि ||
अमृतापिधानमसि जुहोमि स्वाहा
निर्माल्यम् विसर्जयामि, हस्तप्रक्षाळनम् समर्पयामि, गंडूषम् समर्पयामि, पुनराचमनम् समर्पयामि ||
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३८। तांबूलम्
फूगीफल समायुक्तं नागवल्लीदलैर्युतं | कर्पूरचूर्ण संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यता‌म् ||
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | क्रमुकतांबूलम् समर्पयामि ||
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३९। अथः नीराजनम् करिष्ये
नाभ्या᳚,आसीद॒न्तरि॑क्षं¦शी॒र्ष्णोद्यौःसम॑वर्तत |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

प॒द्भ्यांभूमि॒र्दिशः॒श्रोत्रा॒त्¦तथा᳚लो॒काँ,अ॑कल्पयन् || {10.90.14}{10.7.6.14}{8.4.19.4}

श्रि॒येजा॒तःश्रि॒यनिरि॑याय॒¦श्रियं॒वयो᳚जरि॒तृभ्यो᳚दधाति |{घौरः कण्वः | पवमानः सोमः | त्रिष्टुप्}

श्रियं॒वसा᳚ना,अमृत॒त्वमा᳚य॒न्¦भव᳚न्तिस॒त्यास॑मि॒थामि॒तद्रौ᳚ || {9.94.4}{9.5.9.4}{7.4.4.4}

श्रिय॑ एवैनं तच्छ्रि॒यामा᳚दधा॒ति | स॒न्त॒त॒मृ॒चा व॑षट्कृ॒त्यं सन्ध॑त्तं॒ सन्धी॑यते प्रज॒या प॒शुभिः |
य ए॑वं वे॒द ||
ध्रु॒वाद्यौर्ध्रु॒वापृ॑थि॒वी¦ध्रु॒वासः॒पर्व॑ता,इ॒मे |{आंगिरसो ध्रुवः | राजाः | अनुष्टुप्}

ध्रु॒वंविश्व॑मि॒दंजग॑द्¦ध्रु॒वोराजा᳚वि॒शाम॒यम् || {10.173.4}{10.12.22.4}{8.8.31.4}

ध्रु॒वंते॒राजा॒वरु॑णो¦ध्रु॒वंदे॒वोबृह॒स्पतिः॑ |{आंगिरसो ध्रुवः | राजाः | अनुष्टुप्}

ध्रु॒वंत॒इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑¦रा॒ष्ट्रंधा᳚रयतांध्रु॒वम् || {10.173.5}{10.12.22.5}{8.8.31.5}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | मंगळ नीराजनम् समर्पयामि ||
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४०। अथः मन्त्रपुष्पम् निवेदयिष्ये
ग॒णानां᳚त्वाग॒णप॑तिंहवामहे¦क॒विंक॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् |{शौनको गृत्समदः | ब्रह्मणस्पतिः | जगती}

ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ब्रह्म॑णांब्रह्मणस्पत॒¦नः॑शृ॒ण्वन्नू॒तिभिः॑सीद॒साद॑नम् || {2.23.1}{2.3.1.1}{2.6.29.1}

तद्विष्णोः᳚पर॒मंप॒दं¦सदा᳚पश्यन्तिसू॒रयः॑ |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

दि॒वी᳚व॒चक्षु॒रात॑तम् || {1.22.20}{1.5.5.20}{1.2.7.5}

अ॒स्मेरु॒द्रामे॒हना॒पर्व॑तासो¦वृत्र॒हत्ये॒भर॑हूतौस॒जोषाः᳚ |{काण्वः प्रगाथः | देवाः | त्रिष्टुप्}

यःशंस॑तेस्तुव॒तेधायि॑प॒ज्र¦इन्द्र॑ज्येष्ठा,अ॒स्माँ,अ॑वन्तुदे॒वाः || {8.63.12}{8.7.4.12}{6.4.43.6}

उ॒द्यन्न॒द्यमि॑त्रमह¦आ॒रोह॒न्नुत्त॑रां॒दिव᳚म् |{काण्वः प्रस्कण्वः | सूर्यः | अनुष्टुप्}

हृ॒द्रो॒गंमम॑सूर्य¦हरि॒माणं᳚नाशय || {1.50.11}{1.9.7.11}{1.4.8.6}

जा॒तवे᳚दसेसुनवाम॒सोम॑¦मरातीय॒तोनिद॑हाति॒वेदः॑ |{मारीचः कश्यपः | जातवेदाग्निर्वा | त्रिष्टुप्}

नः॑पर्ष॒दति॑दु॒र्गाणि॒विश्वा᳚¦ना॒वेव॒सिन्धुं᳚दुरि॒तात्य॒ग्निः || {1.99.1}{1.15.6.1}{1.7.7.1}

रा॒जा॒धि॒रा॒जाय॑प्रसह्यसा॒हिने᳚ |

नमो॑व॒यंवै᳚श्रव॒णाय॑कुर्महे |

मे॒कामा॒न्‌काम॒कामा॑य॒मह्य᳚म् |

का॒मे॒श्व॒रोवै᳚श्रव॒णोद॑दातु |

कु॒बे॒राय॑वैश्रव॒णाय॑ |

म॒हा॒रा॒जाय॒ नमः॑||

पर्या᳚प्त्या॒अन॑न्तरायाय॒सर्व॑स्तोमोतिरा॒त्रउ॑त्त॒ममह॑र्भवति |

सर्व॒स्याप्त्यै॒सर्व॑स्य॒जित्यै॒सर्व॑मे॒वतेना᳚प्नोति॒सर्वम्॑जयति ||

योवेदादौस्व॑रःप्रो॒क्तो॒वे॒दान्ते॑प्र॒तिष्ठि॑तः |

तस्य॑प्र॒कृति॑लीन॒स्य॒यः॒परः॑स॒म॒हेश्व॑रः ||

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | मन्त्रपुष्पम् समर्पयामि ||
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४१। प्रदक्षिणम्
स॒प्तास्या᳚सन्‌परि॒धय॒¦स्त्रिःस॒प्तस॒मिधः॑कृ॒ताः |{नारायणः | पुरुषः | अनुष्टुप्}

दे॒वायद्य॒ज्ञंत᳚न्वा॒ना¦,अब॑ध्न॒न्‌पुरु॑षंप॒शुम् || {10.90.15}{10.7.6.15}{8.4.19.5}

पापोहम् पापकर्माहम् पापात्मा पापसम्भवः | त्राहि माम् कृपया देव शरणागतवत्सल ||
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च | तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ||
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम | तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष माम् जनार्धन ||
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | प्रदक्षिणम् समर्पयामि ||
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४२। नमस्कार
य॒ज्ञेन॑य॒ज्ञम॑यजन्तदे॒वा¦स्तानि॒धर्मा᳚णिप्रथ॒मान्या᳚सन् |{नारायणः | पुरुषः | त्रिष्टुप्}

तेह॒नाकं᳚महि॒मानः॑सचन्त॒¦यत्र॒पूर्वे᳚सा॒ध्याःसन्ति॑दे॒वाः || {10.90.16}{10.7.6.16}{8.4.19.6}

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | नमस्कारान् समर्पयामि ||
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४३। प्रसन्नार्घ्यम् करिष्ये
ना॒रा॒य॒णायवि॒द्महे॑वासुदे॒वाय॑धीमहि |

तन्नो॑विष्णुःप्रचो॒दया᳚त् || (मूरावर्ति)

श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | प्रसन्नार्घ्यम् समर्पयामि ||
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४४। प्रार्थनाम् करिष्ये
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशम् मया| दासोऽयमिति माम् मत्वा क्षमस्व जनार्धन ||
अनायासेन मरणं विनादैन्येन जीवनं | महेश कृपया देहि त्वयि भक्तिमचंचलां ||
गतम् पापम् गतम् दुःखम् गतम् दारिद्र्य मेव च | आगता सुख सम्पत्तिः विश्वेश तव दर्शनात् ||
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४५। उत्तरपूज
श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | छत्र चामराध्य खिलराजोपचार सुवर्णपुष्पदक्षिणाम् समर्पयामि ||
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४६। ईश्वरार्पणं
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपः पूजाक्रियादिषु | न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्‌ ||
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्धन | यत्पूजितं तु मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ||
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् | ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ||
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४७। प्रायश्चित
पूजाकाले मध्ये न्यूनातिरिक्तलोप दोष प्रायश्चित्तार्थम् नाम त्रय जपमह‌ं करिष्ये
आच्युताय नमः, अनन्ताय नमः, गोविन्दाय नमः (३ सल)
हरायः नमः, मृडाय नमः, शंकराय नमः
अ॒यंमे॒हस्तो॒भग॑वा¦न॒यंमे॒भग॑वत्तरः |{गौपायना बंध्वादयः | हस्तः | अनुष्टुप्}

अ॒यंमे᳚वि॒श्वभे᳚षजो॒¦ऽयंशि॒वाभि॑मर्शनः || {10.60.12}{10.4.18.12}{8.1.25.6}

तद्विष्णोः᳚पर॒मंप॒दं¦सदा᳚पश्यन्तिसू॒रयः॑ |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

दि॒वी᳚व॒चक्षु॒रात॑तम् || {1.22.20}{1.5.5.20}{1.2.7.5}

तद्विप्रा᳚सोविप॒न्यवो᳚¦जागृ॒वांसः॒समि᳚न्धते |{काण्वो मेधातिथि | विष्णुः | गायत्री}

विष्णो॒र्यत्‌प॑र॒मंप॒दम् || {1.22.21}{1.5.5.21}{1.2.7.6}

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४८। पूजान्त्य
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मत्कृतां इष्ट काम्यार्थ सिद्द्यर्थम् पुनरागमनायच
आवाहित श्री विष्ण्वादि पञ्चब्रह्मदेवताभ्यो नमः | यथास्थानमुद्द्वासयामि
(आचमनं)
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तीर्थ सङ्ग्रहणम्
श्रा॒वयेद॑स्य॒कर्णा᳚वाज॒यध्यै॒¦जुष्टा॒मनु॒प्रदिशं᳚मन्द॒यध्यै᳚ |{गौतमो वामदेवः | इन्द्रः | त्रिष्टुप्}

उ॒द्वा॒वृ॒षा॒णोराध॑से॒तुवि॑ष्मा॒न्¦कर᳚न्न॒इन्द्रः॑सुती॒र्थाभ॑यं || {4.29.3}{4.3.8.3}{3.6.18.3}

अच्छा॒योगन्ता॒नाध॑मानमू॒ती¦,इ॒त्थाविप्रं॒हव॑मानंगृ॒णन्त᳚म् |{गौतमो वामदेवः | इन्द्रः | त्रिष्टुप्}

उप॒त्मनि॒दधा᳚नोधु॒र्या॒३॑(आ॒)शून्¦त्स॒हस्रा᳚णिश॒तानि॒वज्र॑बाहुः || {4.29.4}{4.3.8.4}{3.6.18.4}

अकाल मृत्यु मथनम् सर्वव्याधि निवारणम् | सर्व दुरितोपशमनम् देव पादोदकम् शुभम्||
शरीरे जर्जरी भूते व्याधिग्रस्ते कलेवरे | औषधम् जाह्नवी तोयम् वैद्यो नारायणो हरिः ||
प्रथमम् कायसिद्द्यर्थम् द्वितीयम् कर्मसाधनम्| तृतीयम् मोक्षदम् चैव एवम् तीर्थम् त्रिधा पिबेत्||